रविवार, 12 फ़रवरी 2023

पत्नी का भूत

 एक आदमी की पत्नी अचानक से बहुत बीमार पड़ गयी . मरने से पहले उसने अपने पति से कहा , “ मैं तुम्हे बहुत प्यार करती हूँ …. तुम्हे छोड़ कर नहीं जाना चाहती… मैं नहीं चाहती की मेरे जाने के बाद तुम मुझे भुला दो और किसी दूसरी औरत से शादी करो … वादा करो कि मेरे मरने के बाद तुम किसी और से प्रेम नहीं करोगे …वर्ना मेरी आत्मा तुम्हे चैन से जीने नहीं देगी ”

और इतना कह कर वो चल बसी .

उसके जाने के कुछ महीनो तक उस आदमी ने किसी दूसरी औरत की तरफ देखा तक नहीं पर एक दिन उसकी मुलाक़ात एक ऐसी लड़की से हुई जिसे वह चाहने लगा . बात बढ़ते -बढ़ते शादी तक आ गयी और उनकी शादी हो गयी .

शादी के ठीक बाद आदमी को लगा कि कोई उससे कुछ कह रहा है , मुड़ कर देखा तो वो उसकी पहली पत्नी की आत्मा थी.

आत्मा बोली , “ तुमने अपना वादा तोड़ा है , अब मैं हर रोज तुम्हे परेशान करने आउंगी .”

और इतना कह कर वो गायब हो गयी .

आदमी घबरा गया , उसे रात भर नींद नहीं आई .

अगले दिन भी रात को उसे वही आवाज़ सुनाई दी .

“मैं तुम्हे चैन से नहीं जीने दूंगी…. मैं जानती हूँ कि आज तुमने अपनी नयी पत्नी से क्या-क्या बातें की ,..” और उसने आदमी को अक्षरश: एक -एक बात बता दी .

आदमी डर कर कांपने लगा . अगले दिन वह शहर से बहुत दूर एक जेन मास्टर के पास गया और सारी बात बता दी .

मास्टर बोले , “ ये प्रेत बहुत चालाक है ! ”

“बिलकुल है , तभी तो मेरी एक-एक बात उसे पता होती है …”, “ आदमी घबराते हुए बोला .

मास्टर बोले , “ कोई बात नहीं मेरे पास इसका भी इलाज़ है . इस बार जब तुम्हारी पत्नी का भूत आये तो मैं जैसा कहता हूँ तुम ठीक वैसा ही करना .”

उस रात जब आत्मा वापस आई तो आदमी बोला , “ तुम इतनी चालाक हो …मैं तुमसे कुछ भी नहीं छिपा सकता . और जैसा कि तुम चाहती हो मैं अपनी पत्नी को छोड़ने के लिए भी तैयार हूँ पर उसके लिए तुम्हे एक प्रश्न का उत्तर देना होगा …और अगर तुम उत्तर न दे पायी तो तुम्हे हमेशा -हमेशा के लिए मेरा पीछा छोड़ना होगा …”

पत्नी का भूत बोला ,” मंजूर है …पूछो अपना प्रश्न ”

 

आदमी ने फ़ौरन ज़मीन पर पड़े बहुत सारे छोटे -छोटे कंकड़ अपनी मुट्ठी में भर लिए और बोला , “बताओ मेरी मुट्ठी में कितने कंकड़ हैं ?”

और ठीक उसी समय भूत गायब हो गया .

कुछ हफ़्तों बाद वो एक बार फिर से जेन मास्टर के पास उनका शुक्रिया अदा करने पहुंचा .

“मास्टर , उस भूत से मेरा पीछा छुड़ाने के लिए मैं जीवन भर आपका आभारी रहूँगा .”, आदमी बोला , “ पर मैं ये नहीं समझ पाया की आखिर उस प्रश्न में ऐसा क्या था कि एक झटके में ही भूत गायब हो गया ?”

मास्टर बोले , “ बेटा , दरअसल कोई भूत था ही नहीं ! ”

“मतलब !”, आदमी आश्चर्य से बोला .

“ हाँ , कोई भूत था ही नही , दरअसल दूसरी शादी करने की वजह से तुम्हे एक अपराधबोध महसूस हो रहा था और उसी वजह से तुम्हारा दिमाग एक भ्रम की स्थिति पैदा कर तुम्हे भूत का अनुभव करा रहा था .”, मास्टर ने समझाया .

“ पर ऐसा था तो वो मेरी हर एक बात कैसे जान जाता था ?”, आदमी ने पुछा .

मास्टर मुस्कुराये , “ क्योंकि वो तुम्हारा बनाया हुआ ही भूत था ,इसलिए जो कुछ तुम जानते थे वही वो भी जानता था . और यही कारण था कि मैंने तुम्हे वो कंकड़ वाला प्रश्न पूछने को कहा , क्योंकि मैं जानता था कि इसका उत्तर तुम्हे भी नहीं पता होगा और इसलिए भूत भी इसका उत्तर नहीं दे पायेगा और तुम्हे तुम्हारे दिमाग की ही उपज से छुटकारा मिल जायेगा. ”

आदमी अब पूरी बात समझ चुका था . उसने एक बार फिर मास्टर को धन्यवाद किया और अपने घर लौट गया .

Friends , कई बार हमारे मन में भी किसी पुरानी बात को लेकर एक guilt feeling रह जाती है. कहानी में भूत का आना उसी तरह की फीलिंग का एक extreme form है। पर अधिकतर मामलों में हम किसी पुरानी घटना को याद कर अफ़सोस करते हैं और कभी-कभार खुद पर क्रोधित भी हो जाते हैं। ऐसा बार-बार करना गलत है , अपने भूत की वजह से अपने भविष्य और वर्तमान को बिगाड़ने में कोई समझदारी नहीं है। इसलिए अगर आप भी किसी पुरानी घटना की वजह से अपराधबोध महसूस करते हैं तो ऐसा ना करें , गलतियां करना मनुष्य का स्वाभाव है , सभी करते हैं , आपसे भी हुई तो कोई बात नहीं….उस घटना को पीछे छोड़ें और अपने जीवन को सार्थक बनाने की दिशा में काम करें।

पर क्या भूत सच में होते हैं ?

यह एक ऐसी बहस है जो सदियों से चली आ रही है. जहाँ करोड़ों लोग मानते हैं कि भूत सच में होते हैं वहीँ बहुत से  लोग ऐसे भी हैं जो भूत या आत्माओं के अस्तित्व को लेकर सहमत नहीं हैं. खैर जो भी हो, अकसर हमें भूतों से जुडी कुछ घटनाओं का जिक्र सुनने को मिल ही जाता है और अगर बताने वाले की माने तो ये घटनाएँ सच्ची होती हैं

शनिवार, 28 जनवरी 2023

सच्ची मदद

 एक नन्हा परिंदा अपने परिवार-जनों से बिछड़ कर अपने आशियाने से बहुत दूर आ गया था । उस नन्हे परिंदे को अभी उड़ान भरने अच्छे से नहीं आता था… उसने उड़ना सीखना अभी शुरू ही किया था ! उधर नन्हे परिंदे के परिवार वाले बहुत परेशान थे और उसके आने की राह देख रहे थे । इधर नन्हा परिंदा भी समझ नहीं पा रहा था कि वो अपने आशियाने तक कैसे पहुंचे?

वह उड़ान भरने की काफी कोशिश कर रहा था पर बार-बार कुछ ऊपर उठ कर गिर जाता।

कुछ दूर से एक अनजान परिंदा अपने मित्र के साथ ये सब दृश्य बड़े गौर से देख रहा था । कुछ देर देखने के बाद वो दोनों परिंदे उस नन्हे परिंदे के करीब आ पहुंचे । नन्हा परिंदा उन्हें देख के पहले घबरा गया फिर उसने सोचा शायद ये उसकी मदद करें और उसे घर तक पहुंचा दें ।

अनजान परिंदा – क्या हुआ नन्हे परिंदे काफी परेशान हो ?

 

नन्हा परिंदा – मैं रास्ता भटक गया हूँ और मुझे शाम होने से पहले अपने घर लौटना है । मुझे उड़ान भरना अभी अच्छे से नहीं आता । मेरे घर वाले बहुत परेशान हो रहे होंगे । आप मुझे उड़ान भरना सीखा सकते है ? मैं काफी देर से कोशिश कर रहा हूँ पर कामयाबी नहीं मिल पा रही है ।

अनजान परिंदा – (थोड़ी देर सोचने के बाद )- जब उड़ान भरना सीखा नहीं तो इतना दूर निकलने की क्या जरुरत थी ? वह अपने मित्र के साथ मिलकर नन्हे परिंदे का मज़ाक उड़ाने लगा ।

उन लोगो की बातों से नन्हा परिंदा बहुत क्रोधित हो रहा था ।

अनजान परिंदा हँसते हुए बोला – देखो हम तो उड़ान भरना जानते हैं और अपनी मर्जी से कहीं भी जा सकते हैं । इतना कहकर अनजान परिंदे ने उस नन्हे परिंदे के सामने पहली उड़ान भरी । वह फिर थोड़ी देर बाद लौटकर आया और दो-चार कड़वी बातें बोल पुनः उड़ गया । ऐसा उसने पांच- छः बार किया और जब इस बार वो उड़ान भर के वापस आया तो नन्हा परिंदा वहां नहीं था ।

अनजान परिंदा अपने मित्र से- नन्हे परिंदे ने उड़ान भर ली ना? उस समय अनजान परिंदे के चेहरे पर ख़ुशी झलक रही थी ।

मित्र परिंदा – हाँ नन्हे परिंदे ने तो उड़ान भर ली लेकिन तुम इतना खुश क्यों हो रहे हो मित्र? तुमने तो उसका कितना मज़ाक बनाया ।

अनजान परिंदा – मित्र तुमने मेरी सिर्फ नकारात्मकता पर ध्यान दिया । लेकिन नन्हा परिंदा मेरी नकारात्मकता पर कम और सकारात्मकता पर ज्यादा ध्यान दे रहा था । इसका मतलब यह है कि उसने मेरे मज़ाक को अनदेखा करते हुए मेरी उड़ान भरने वाली चाल पर ज्यादा ध्यान दिया और वह उड़ान भरने में सफल हुआ ।

मित्र परिंदा – जब तुम्हे उसे उड़ान भरना सिखाना ही था तो उसका मज़ाक बनाकर क्यों सिखाया ?

अनजान परिंदा – मित्र, नन्हा परिंदा अपने जीवन की पहली बड़ी उड़ान भर रहा था और मैं उसके लिए अजनबी था । अगर मैं उसको सीधे तरीके से उड़ना सिखाता तो वह पूरी ज़िंदगी मेरे एहसान के नीचे दबा रहता और आगे भी शायद ज्यादा कोशिश खुद से नहीं करता ।

मैंने उस परिंदे के अंदर छिपी लगन देखी थी। जब मैंने उसको कोशिश करते हुए देखा था तभी समझ गया था इसे बस थोड़ी सी दिशा देने की जरुरत है और जो मैंने अनजाने में उसे दी और वो अपने मंजिल को पाने में कामयाब हुआ ।अब वो पूरी ज़िंदगी खुद से कोशिश करेगा और दूसरों से कम मदद मांगेगा । इसी के साथ उसके अंदर आत्मविश्वास भी ज्यादा बढ़ेगा ।

मित्र परिंदे ने अनजान परिंदे की तारीफ करते हुए बोला तुम बहुत महान हो, जिस तरह से तुमने उस नन्हे परिंदे की मदद की वही सच्ची मदद है !

सच्ची मदद

एक नन्हा परिंदा अपने परिवार-जनों से बिछड़ कर अपने आशियाने से बहुत दूर आ गया था । उस नन्हे परिंदे को अभी उड़ान भरने अच्छे से नहीं आता था… उसने उड़ना सीखना अभी शुरू ही किया था ! उधर नन्हे परिंदे के परिवार वाले बहुत परेशान थे और उसके आने की राह देख रहे थे । इधर नन्हा परिंदा भी समझ नहीं पा रहा था कि वो अपने आशियाने तक कैसे पहुंचे?

वह उड़ान भरने की काफी कोशिश कर रहा था पर बार-बार कुछ ऊपर उठ कर गिर जाता।

कुछ दूर से एक अनजान परिंदा अपने मित्र के साथ ये सब दृश्य बड़े गौर से देख रहा था । कुछ देर देखने के बाद वो दोनों परिंदे उस नन्हे परिंदे के करीब आ पहुंचे । नन्हा परिंदा उन्हें देख के पहले घबरा गया फिर उसने सोचा शायद ये उसकी मदद करें और उसे घर तक पहुंचा दें ।

अनजान परिंदा – क्या हुआ नन्हे परिंदे काफी परेशान हो ?

सच्ची मदद

नन्हा परिंदा – मैं रास्ता भटक गया हूँ और मुझे शाम होने से पहले अपने घर लौटना है । मुझे उड़ान भरना अभी अच्छे से नहीं आता । मेरे घर वाले बहुत परेशान हो रहे होंगे । आप मुझे उड़ान भरना सीखा सकते है ? मैं काफी देर से कोशिश कर रहा हूँ पर कामयाबी नहीं मिल पा रही है ।

अनजान परिंदा – (थोड़ी देर सोचने के बाद )- जब उड़ान भरना सीखा नहीं तो इतना दूर निकलने की क्या जरुरत थी ? वह अपने मित्र के साथ मिलकर नन्हे परिंदे का मज़ाक उड़ाने लगा ।

 उन लोगो की बातों से नन्हा परिंदा बहुत क्रोधित हो रहा था ।

अनजान परिंदा हँसते हुए बोला – देखो हम तो उड़ान भरना जानते हैं और अपनी मर्जी से कहीं भी जा सकते हैं । इतना कहकर अनजान परिंदे ने उस नन्हे परिंदे के सामने पहली उड़ान भरी । वह फिर थोड़ी देर बाद लौटकर आया और दो-चार कड़वी बातें बोल पुनः उड़ गया । ऐसा उसने पांच- छः बार किया और जब इस बार वो उड़ान भर के वापस आया तो नन्हा परिंदा वहां नहीं था ।

अनजान परिंदा अपने मित्र से- नन्हे परिंदे ने उड़ान भर ली ना? उस समय अनजान परिंदे के चेहरे पर ख़ुशी झलक रही थी ।

मित्र परिंदा – हाँ नन्हे परिंदे ने तो उड़ान भर ली लेकिन तुम इतना खुश क्यों हो रहे हो मित्र? तुमने तो उसका कितना मज़ाक बनाया ।

अनजान परिंदा – मित्र तुमने मेरी सिर्फ नकारात्मकता पर ध्यान दिया । लेकिन नन्हा परिंदा मेरी नकारात्मकता पर कम और सकारात्मकता पर ज्यादा ध्यान दे रहा था । इसका मतलब यह है कि उसने मेरे मज़ाक को अनदेखा करते हुए मेरी उड़ान भरने वाली चाल पर ज्यादा ध्यान दिया और वह उड़ान भरने में सफल हुआ ।

मित्र परिंदा – जब तुम्हे उसे उड़ान भरना सिखाना ही था तो उसका मज़ाक बनाकर क्यों सिखाया ?

अनजान परिंदा – मित्र, नन्हा परिंदा अपने जीवन की पहली बड़ी उड़ान भर रहा था और मैं उसके लिए अजनबी था । अगर मैं उसको सीधे तरीके से उड़ना सिखाता तो वह पूरी ज़िंदगी मेरे एहसान के नीचे दबा रहता और आगे भी शायद ज्यादा कोशिश खुद से नहीं करता ।

मैंने उस परिंदे के अंदर छिपी लगन देखी थी। जब मैंने उसको कोशिश करते हुए देखा था तभी समझ गया था इसे बस थोड़ी सी दिशा देने की जरुरत है और जो मैंने अनजाने में उसे दी और वो अपने मंजिल को पाने में कामयाब हुआ ।अब वो पूरी ज़िंदगी खुद से कोशिश करेगा और दूसरों से कम मदद मांगेगा । इसी के साथ उसके अंदर आत्मविश्वास भी ज्यादा बढ़ेगा ।

मित्र परिंदे ने अनजान परिंदे की तारीफ करते हुए बोला तुम बहुत महान हो, जिस तरह से तुमने उस नन्हे परिंदे की मदद की वही सच्ची मदद है !

Friends , सच्ची  मदद  वही  है  जो  मदद  पाने  वाले  को  ये  महसूस  न  होने  दे  कि  उसकी  मदद  की  गयी  है  . बहुत  बार  लोग  help तो  करते  हैं  पर  उसका  ढिंढोरा  पीटने  से  नहीं  चूकते . ऐसी  help किस  काम की  ! परिंदों  की  ये  कहानी  हम  इंसानो  के  लिए  भी  एक  सीख  है  कि  हम  लोगों  की  मदद  तो  करें  पर  उसे  जताएं नहीं !

 

 

सोमवार, 23 जनवरी 2023

पुराना रिवाज़

 

रेगिस्तान के बीच बसे एक शहर में फलों की बहुत कमी थी . भगवान ने अपने दूत को भेजा कि जाओ और लोगों से कह दो कि हो सके तो वो एक दिन में बस एक ही फल खाएं .

सभी लोग ऐसा ही करने लगे .

 

पीढ़ी दर पीढ़ी ऐसा ही होता चला

आया और वहां का पर्यावरण संरक्षित हो गया . चूँकि बचे हुए फलों के बीजों से और भी पेड़ निकल आते , कुछ दशकों में ही पूरा शहर हरा-भरा हो गया .

अब वहां फलों की कोई कमी नहीं थी लेकिन अभी भी लोग एक दिन में बस एक ही फल खाने का पुराना रिवाज़ मानते थे – वे अपने पुरखों द्वारा दी गयी नसीहत के प्रति अभी भी वफादार थे . दूसरे शहर वाले उनसे बचे हुए फलों को देने का आग्रह करते पर उन्हें लौटा दिया जाता . नतीजतन टनो – टन फल बर्बाद हो जाते और सड़कों पर इधर -उधर बिखरे पड़े रहते .

भगवान ने एक और दूत को बुलाया और कहा , ” जाओ नगर वासियों से कह दो कि वो अब जितना चाहें उतने फल कहें और बचे हुए फलों को बाकी शहरों को दे दें .”

दूत यही सन्देश लेकर शहर पहुंचा लेकिन उसे पत्थरों से मार गया और शहर से दूर भगा दिया गया . लोगों के दिलो -दिमाग में पुरानी बात इतनी बैठ चुकी थी कि उससे अलग वो किसी भी बात को मानने के लिए तैयार नहीं थे .

पर समय के साथ कुछ युवा सोच वाले लोग पुराने रिवाजों के खिलाफ आवाज़ उठाने लगे . लेकिन इतनी पुरानी परंपरा को छोड़ना आसान न था इसलिए इन लोगों ने अपना धर्म ही छोड़ दिया और अब जी भर के फल खाने लगे और बचे हुए फलों को दूसरों में बांटने लगे .

कुछ सालों में बस वो ही लोग धर्म को मानने वाले बचे जो खुद को संत मानते थे . लेकिन हकीकत में वे ये नहीं देख पा रहे थे कि दुनिया कैसे बदलती है और कैसे खुद को समय के साथ बदल लेना चाहिए .

Friends, Paulo Coehlo कि ये कहानी हमारे लिए काफी relevant है . हमारे यहाँ बिल्ली के रास्ता काटने और कौवे के कांव – कांव से लेकर जात -पात और ऊँच-नीच से जुड़ी अनेकों मान्यताएं हैं जिनका आज कोई अर्थ नहीं है . और जैसे इस कहानी में इन चीजों को मानने वाले खुद को बड़ा धार्मिक और सबसे बड़ा संत समझते हैं उसी तरह हमारे समाज में भी ऐसी बातें मानने वाले खुद को बड़ा पवित्र और ईश्वर का चहेता समझते हैं … जबकि हकीकत कुछ और ही है . हमें भी समय के हिसाब से अपनी सोच को विकसित करना चाहिए , जो कल सही था वो आज गलत हो सकता है और जो आज सही है वो कल गलत भी हो सकता है . So, let’s change with time and abolish irrelevant customs and traditions.

 

 

गुलाम की सीख

 

दास प्रथा के दिनों में एक मालिक के पास अनेकों गुलाम हुआ करते थे। उन्हीं में से एक था लुक़मान।

लुक़मान था तो सिर्फ एक गुलाम लेकिन वह बड़ा ही चतुर और बुद्धिमान था। उसकी ख्याति दूर दराज़ के इलाकों में फैलने लगी थी।

एक दिन इस बात की खबर उसके मालिक को लगी, मालिक ने लुक़मान को बुलाया और कहा- सुनते हैं, कि तुम बहुत बुद्धिमान हो। मैं तुम्हारी बुद्धिमानी की परीक्षा लेना चाहता हूँ। अगर तुम इम्तिहान में पास हो गए तो तुम्हें गुलामी से छुट्टी दे दी जाएगी। अच्छा जाओ, एक मरे हुए बकरे को काटो और उसका जो हिस्सा बढ़िया हो, उसे ले आओ।

लुक़मान ने आदेश का पालन किया और मरे हुए बकरे की जीभ लाकर मालिक के सामने रख दी।

कारण पूछने पर कि जीभ ही क्यों लाया ! लुक़मान ने कहा- अगर शरीर में जीभ अच्छी हो तो सब कुछ अच्छा-ही-अच्छा होता है।

मालिक ने आदेश देते हुए कहा- “अच्छा! इसे उठा ले जाओ और अब बकरे का जो हिस्सा बुरा हो उसे ले आओ।”

लुक़मान बाहर गया, लेकिन थोड़ी ही देर में उसने उसी जीभ को लाकर मालिक के सामने फिर रख दिया।

फिर से कारण पूछने पर लुक़मान ने कहा- “अगर शरीर में जीभ अच्छी नहीं तो सब बुरा-ही-बुरा है। “

उसने आगे कहते हुए कहा- “मालिक! वाणी तो सभी के पास जन्मजात होती है, परन्तु बोलना किसी-किसी को ही आता है…क्या बोलें? कैसे शब्द बोलें, कब बोलें.. इस एक कला को बहुत ही कम लोग जानते हैं। एक बात से प्रेम झरता है और दूसरी बात से झगड़ा होता है।

कड़वी बातों ने संसार में न जाने कितने झगड़े पैदा किये हैं। इस जीभ ने ही दुनिया में बड़े-बड़े कहर ढाये हैं।जीभ तीन इंच का वो हथियार है जिससे कोई छः फिट के आदमी को भी मार सकता है तो कोई मरते हुए इंसान में भी प्राण फूंक सकता है । संसार के सभी प्राणियों में वाणी का वरदान मात्र मानव को ही मिला है। उसके सदुपयोग से स्वर्ग पृथ्वी पर उतर सकता है और दुरूपयोग से स्वर्ग भी नरक में परिणत हो सकता है। भारत के विनाशकारी महाभारत का युद्ध वाणी के गलत प्रयोग का ही परिणाम था। “

मालिक, लुक़मान की बुद्धिमानी और चतुराई भरी बातों को सुनकर बहुत खुश हुए ; आज उनके गुलाम ने उन्हें एक बहुत बड़ी सीख दी थी और उन्होंने उसे आजाद कर दिया।

मित्रों, मधुर वाणी एक वरदान है जो हमें लोकप्रिय बनाती है वहीँ कर्कश या तीखी बोली हमें अपयश दिलाती है और हमारी प्रतिष्ठा को कम करती है। आपकी वाणी कैसी है ? यदि वो तीखी है या सामान्य भी है तो उसे मीठा बनाने का प्रयास करिये। आपकी वाणी आपके व्यत्कित्व का प्रतिबिम्ब है , उसे अच्छा होना ही चाहिए।

 

 

बदलाव

 

बूढ़े  दादा  जी  को  उदास  बैठे  देख  बच्चों  ने  पूछा , “क्या  हुआ  दादा  जी  , आज  आप  इतने  उदास  बैठे  क्या  सोच  रहे  हैं ?”

“कुछ  नहीं  , बस  यूँही  अपनी  ज़िन्दगी  के  बारे  में  सोच  रहा  था !”, दादा  जी बोले .

“जरा  हमें  भी  अपनी  लाइफ  के  बारे  में  बताइये  न …”, बच्चों  ने  ज़िद्द्द  की .

दादा  जी कुछ देर सोचते रहे और फिर बोले , “ जब  मैं  छोटा  था  , मेरे  ऊपर  कोई  जिम्मेदारी  नहीं  थी , मेरी  कल्पनाओं  की  भी  कोई  सीमा  नहीं  थी …. मैं  दुनिया  बदलने  के  बारे  में  सोचा  करता  था …

जब  मैं  थोड़ा  बड़ा  हुआ  …बुद्धि  कुछ  बढ़ी ….तो  सोचने  लगा  ये  दुनिया  बदलना  तो  बहुत  मुश्किल काम है …इसलिए  मैंने  अपना  लक्ष्य  थोड़ा  छोटा  कर  लिया … सोचा  दुनिया  न  सही  मैं  अपना  देश  तो  बदल  ही  सकता  हूँ .

पर  जब  कुछ  और  समय  बीता , मैं  अधेड़  होने  को  आया  … तो  लगा  ये  देश  बदलना  भी  कोई  मामूली बात  नहीं  है …हर कोई ऐसा नहीं कर सकता है …चलो  मैं  बस  अपने  परिवार  और  करीबी  लोगों  को  बदलता  हूँ …

पर  अफ़सोस  मैं  वो  भी  नहीं  कर  पाया .

और  अब  जब  मैं  इस  दुनिया  में  कुछ  दिनों  का  ही  मेहमान  हूँ  तो  मुझे  एहसास  होता  है  कि   बस अगर  मैंने  खुद  को  बदलने  का   सोचा  होता  तो  मैं  ऐसा  ज़रूर  कर  पाता …और  हो   सकता  है  मुझे  देखकर  मेरा  परिवार  भी  बदल  जाता …और  क्या  पता  उनसे  प्रेरणा  लेकर  ये  देश  भी  कुछ  बदल जाता … और  तब   शायद  मैं  इस  दुनिया  को  भी  बदल  पाता !

ये कहते-कहते दादा जी की आँखें नम हो गयीं और वे धीरे से बोले, “बच्चों ! तुम  मेरी  जैसी  गलती  मत  करना …कुछ  और  बदलने  से  पहले  खुद  को  बदलना  …बाकि  सब   अपने  आप  बदलता  चला जायेगा .”

Friends, हम  सभी  में  दुनिया  बदलने  की  ताकत  है  पर  इसकी  शुरआत  खुद से ही  होती  है . कुछ  और  बदलने  से  पहले  हमें  खुद  को  बदलना  होगा …हमें  खुद  को  तैयार  करना  होगा …अपनी  skills को  strengthen करना  होगा …अपने  attitude को  positive बनाना  होगा …अपनी  determination को   फौलाद  करना   होगा …और  तभी  हम  वो  हर  एक  बदलाव  ला  पाएंगे  जो  हम  सचमुच  लाना  चाहते  हैं .

दोस्तों , इसी  बात  को  महात्मा  गांधी  ने  बड़े  प्रभावी   ढंग  से  कहा  है  …

Be the change that you want to see in the world.

खुद वो बदलाव बनिए जो आप दुनिया में  देखना चाहते हैं.

तो  चलिए  आज  से  हम  खुद  वो  बदलाव  बनते  हैं  जो  हम  दुनिया  में  देखना  चाहते  हैं.

 

अंगूठी की कीमत

 एक नौजवान शिष्य अपने गुरु के पास पहुंचा और बोला , ” गुरु जी एक बात समझ नहीं आती , आप इतने साधारण वस्त्र क्यों पहनते हैं …इन्हे देख कर लगता ही नहीं कि आप एक ज्ञानी व्यक्ति हैं जो सैकड़ों शिष्यों को शिक्षित करने का महान कार्य करता है .

गुरु जी मुस्कुराये . फिर उन्होंने अपनी ऊँगली से एक अंगूठी निकाली और शिष्य को देते हुए बोले , ” मैं तुम्हारी जिज्ञासा अवश्य शांत करूँगा लेकिन पहले तुम मेरा एक छोटा सा काम कर दो … इस अंगूठी को लेकर बाज़ार जाओ और किसी सब्जी वाले या ऐसे ही किसी दुकानदार को इसे बेच दो … बस इतना ध्यान रहे कि इसके बदले कम से कम सोने की एक अशर्फी ज़रूर लाना .”

शिष्य फ़ौरन उस अंगूठी को लेकर बाज़ार गया पर थोड़ी देर में अंगूठी वापस लेकर लौट आया .

“क्या हुआ , तुम इसे लेकर क्यों लौट आये ?”, गुरु जी ने पुछा .

” गुरु जी , दरअसल , मैंने इसे सब्जी वाले , किराना वाले , और अन्य दुकानदारों को बेचने का प्रयास किया पर कोई भी इसके बदले सोने की एक अशर्फी देने को तैयार नहीं हुआ …”

गुरु जी बोले , ” अच्छा कोई बात नहीं अब तुम इसे लेकर किसी जौहरी के पास जाओ और इसे बेचने की कोशिश करो …”

शिष्य एक बार फिर अंगूठी लेकर निकल पड़ा , पर इस बार भी कुछ ही देर में वापस आ गया .

“क्या हुआ , इस बार भी कोई इसके बदले 1 अशर्फी भी देने को तैयार नहीं हुआ ?”, गुरूजी ने पुछा .

शिष्य के हाव -भाव कुछ अजीब लग रहे थे , वो घबराते हुए बोला , ” अरररे … नहीं गुरु जी , इस बार मैं जिस किसी जौहरी के पास गया सभी ने ये कहते हुए मुझे लौटा दिया की यहाँ के सारे जौहरी मिलकर भी इस अनमोल हीरे को नहीं खरीद सकते इसके लिए तो लाखों अशर्फियाँ भी कम हैं …”

“यही तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है ” , गुरु जी बोले , ” जिस प्रकार ऊपर से देखने पर इस अनमोल अंगूठी की कीमत का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता उसी प्रकार किसी व्यक्ति के वस्त्रों को देखकर उसे  आँका नहीं जा सकता .व्यक्ति की विशेषता जानने के लिए उसे भीतर से देखना चाहिए , बाह्य आवरण तो कोई भी धारण कर सकता है लेकिन आत्मा की शुद्धता और ज्ञान का भण्डार तो अंदर ही छिपा होता है। “

शिष्य की जिज्ञासा शांत हो चुकी थी . वह समझ चुका था कि बाहरी वेश-भूषा से व्यक्ति की सही पहचान नहीं हो सकती , जो बात मायने रखती है वो ये कि व्यक्ति भीतर से कैसा है !

Friends, आज के युग में आप क्या पहनते हैं …कैसे दिखते हैं इसकी अपनी importance है , और कई जगहों पे , for ex: किसी interview या meeting वगैरा में तो इसका कुछ ज्यादा ही महत्त्व है . पर ये भी सच है कि सिर्फ outer appearance से इंसान को judge नहीं किया जा सकता . इसलिए हमें कभी भी किसी को सिर्फ इसलिए छोटा नहीं समझना चाहिए क्योंकि उसने अच्छे कपड़े नहीं पहने या किसी को सिर्फ इसलिए बहुत बड़ा नहीं समझना चाहिए क्योंकि वो बहुत अच्छे से dressed up है . इंसान का असली गुण तो उसके भीतर होता है और वही उसे अच्छा या बुरा बनाता है .

 

 

 

 

सच्ची मदद

 

एक नन्हा परिंदा अपने परिवार-जनों से बिछड़ कर अपने आशियाने से बहुत दूर आ गया था । उस नन्हे परिंदे को अभी उड़ान भरने अच्छे से नहीं आता था… उसने उड़ना सीखना अभी शुरू ही किया था ! उधर नन्हे परिंदे के परिवार वाले बहुत परेशान थे और उसके आने की राह देख रहे थे । इधर नन्हा परिंदा भी समझ नहीं पा रहा था कि वो अपने आशियाने तक कैसे पहुंचे?

वह उड़ान भरने की काफी कोशिश कर रहा था पर बार-बार कुछ ऊपर उठ कर गिर जाता।

कुछ दूर से एक अनजान परिंदा अपने मित्र के साथ ये सब दृश्य बड़े गौर से देख रहा था । कुछ देर देखने के बाद वो दोनों परिंदे उस नन्हे परिंदे के करीब आ पहुंचे । नन्हा परिंदा उन्हें देख के पहले घबरा गया फिर उसने सोचा शायद ये उसकी मदद करें और उसे घर तक पहुंचा दें ।

 

नन्हा परिंदा – मैं रास्ता भटक गया हूँ और मुझे शाम होने से पहले अपने घर लौटना है । मुझे उड़ान भरना अभी अच्छे से नहीं आता । मेरे घर वाले बहुत परेशान हो रहे होंगे । आप मुझे उड़ान भरना सीखा सकते है ? मैं काफी देर से कोशिश कर रहा हूँ पर कामयाबी नहीं मिल पा रही है ।

अनजान परिंदा – (थोड़ी देर सोचने के बाद )- जब उड़ान भरना सीखा नहीं तो इतना दूर निकलने की क्या जरुरत थी ? वह अपने मित्र के साथ मिलकर नन्हे परिंदे का मज़ाक उड़ाने लगा ।

 उन लोगो की बातों से नन्हा परिंदा बहुत क्रोधित हो रहा था ।

अनजान परिंदा हँसते हुए बोला – देखो हम तो उड़ान भरना जानते हैं और अपनी मर्जी से कहीं भी जा सकते हैं । इतना कहकर अनजान परिंदे ने उस नन्हे परिंदे के सामने पहली उड़ान भरी । वह फिर थोड़ी देर बाद लौटकर आया और दो-चार कड़वी बातें बोल पुनः उड़ गया । ऐसा उसने पांच- छः बार किया और जब इस बार वो उड़ान भर के वापस आया तो नन्हा परिंदा वहां नहीं था ।

अनजान परिंदा अपने मित्र से- नन्हे परिंदे ने उड़ान भर ली ना? उस समय अनजान परिंदे के चेहरे पर ख़ुशी झलक रही थी ।

मित्र परिंदा – हाँ नन्हे परिंदे ने तो उड़ान भर ली लेकिन तुम इतना खुश क्यों हो रहे हो मित्र? तुमने तो उसका कितना मज़ाक बनाया ।

अनजान परिंदा – मित्र तुमने मेरी सिर्फ नकारात्मकता पर ध्यान दिया । लेकिन नन्हा परिंदा मेरी नकारात्मकता पर कम और सकारात्मकता पर ज्यादा ध्यान दे रहा था । इसका मतलब यह है कि उसने मेरे मज़ाक को अनदेखा करते हुए मेरी उड़ान भरने वाली चाल पर ज्यादा ध्यान दिया और वह उड़ान भरने में सफल हुआ ।

मित्र परिंदा – जब तुम्हे उसे उड़ान भरना सिखाना ही था तो उसका मज़ाक बनाकर क्यों सिखाया ?

अनजान परिंदा – मित्र, नन्हा परिंदा अपने जीवन की पहली बड़ी उड़ान भर रहा था और मैं उसके लिए अजनबी था । अगर मैं उसको सीधे तरीके से उड़ना सिखाता तो वह पूरी ज़िंदगी मेरे एहसान के नीचे दबा रहता और आगे भी शायद ज्यादा कोशिश खुद से नहीं करता ।

मैंने उस परिंदे के अंदर छिपी लगन देखी थी। जब मैंने उसको कोशिश करते हुए देखा था तभी समझ गया था इसे बस थोड़ी सी दिशा देने की जरुरत है और जो मैंने अनजाने में उसे दी और वो अपने मंजिल को पाने में कामयाब हुआ ।अब वो पूरी ज़िंदगी खुद से कोशिश करेगा और दूसरों से कम मदद मांगेगा । इसी के साथ उसके अंदर आत्मविश्वास भी ज्यादा बढ़ेगा ।

मित्र परिंदे ने अनजान परिंदे की तारीफ करते हुए बोला तुम बहुत महान हो, जिस तरह से तुमने उस नन्हे परिंदे की मदद की वही सच्ची मदद है !

सच्ची मदद

एक नन्हा परिंदा अपने परिवार-जनों से बिछड़ कर अपने आशियाने से बहुत दूर आ गया था । उस नन्हे परिंदे को अभी उड़ान भरने अच्छे से नहीं आता था… उसने उड़ना सीखना अभी शुरू ही किया था ! उधर नन्हे परिंदे के परिवार वाले बहुत परेशान थे और उसके आने की राह देख रहे थे । इधर नन्हा परिंदा भी समझ नहीं पा रहा था कि वो अपने आशियाने तक कैसे पहुंचे?

वह उड़ान भरने की काफी कोशिश कर रहा था पर बार-बार कुछ ऊपर उठ कर गिर जाता।

कुछ दूर से एक अनजान परिंदा अपने मित्र के साथ ये सब दृश्य बड़े गौर से देख रहा था । कुछ देर देखने के बाद वो दोनों परिंदे उस नन्हे परिंदे के करीब आ पहुंचे । नन्हा परिंदा उन्हें देख के पहले घबरा गया फिर उसने सोचा शायद ये उसकी मदद करें और उसे घर तक पहुंचा दें ।

अनजान परिंदा – क्या हुआ नन्हे परिंदे काफी परेशान हो ?

सच्ची मदद

नन्हा परिंदा – मैं रास्ता भटक गया हूँ और मुझे शाम होने से पहले अपने घर लौटना है । मुझे उड़ान भरना अभी अच्छे से नहीं आता । मेरे घर वाले बहुत परेशान हो रहे होंगे । आप मुझे उड़ान भरना सीखा सकते है ? मैं काफी देर से कोशिश कर रहा हूँ पर कामयाबी नहीं मिल पा रही है ।

अनजान परिंदा – (थोड़ी देर सोचने के बाद )- जब उड़ान भरना सीखा नहीं तो इतना दूर निकलने की क्या जरुरत थी ? वह अपने मित्र के साथ मिलकर नन्हे परिंदे का मज़ाक उड़ाने लगा ।

 उन लोगो की बातों से नन्हा परिंदा बहुत क्रोधित हो रहा था ।

अनजान परिंदा हँसते हुए बोला – देखो हम तो उड़ान भरना जानते हैं और अपनी मर्जी से कहीं भी जा सकते हैं । इतना कहकर अनजान परिंदे ने उस नन्हे परिंदे के सामने पहली उड़ान भरी । वह फिर थोड़ी देर बाद लौटकर आया और दो-चार कड़वी बातें बोल पुनः उड़ गया । ऐसा उसने पांच- छः बार किया और जब इस बार वो उड़ान भर के वापस आया तो नन्हा परिंदा वहां नहीं था ।

अनजान परिंदा अपने मित्र से- नन्हे परिंदे ने उड़ान भर ली ना? उस समय अनजान परिंदे के चेहरे पर ख़ुशी झलक रही थी ।

मित्र परिंदा – हाँ नन्हे परिंदे ने तो उड़ान भर ली लेकिन तुम इतना खुश क्यों हो रहे हो मित्र? तुमने तो उसका कितना मज़ाक बनाया ।

अनजान परिंदा – मित्र तुमने मेरी सिर्फ नकारात्मकता पर ध्यान दिया । लेकिन नन्हा परिंदा मेरी नकारात्मकता पर कम और सकारात्मकता पर ज्यादा ध्यान दे रहा था । इसका मतलब यह है कि उसने मेरे मज़ाक को अनदेखा करते हुए मेरी उड़ान भरने वाली चाल पर ज्यादा ध्यान दिया और वह उड़ान भरने में सफल हुआ ।

मित्र परिंदा – जब तुम्हे उसे उड़ान भरना सिखाना ही था तो उसका मज़ाक बनाकर क्यों सिखाया ?

अनजान परिंदा – मित्र, नन्हा परिंदा अपने जीवन की पहली बड़ी उड़ान भर रहा था और मैं उसके लिए अजनबी था । अगर मैं उसको सीधे तरीके से उड़ना सिखाता तो वह पूरी ज़िंदगी मेरे एहसान के नीचे दबा रहता और आगे भी शायद ज्यादा कोशिश खुद से नहीं करता ।

मैंने उस परिंदे के अंदर छिपी लगन देखी थी। जब मैंने उसको कोशिश करते हुए देखा था तभी समझ गया था इसे बस थोड़ी सी दिशा देने की जरुरत है और जो मैंने अनजाने में उसे दी और वो अपने मंजिल को पाने में कामयाब हुआ ।अब वो पूरी ज़िंदगी खुद से कोशिश करेगा और दूसरों से कम मदद मांगेगा । इसी के साथ उसके अंदर आत्मविश्वास भी ज्यादा बढ़ेगा ।

मित्र परिंदे ने अनजान परिंदे की तारीफ करते हुए बोला तुम बहुत महान हो, जिस तरह से तुमने उस नन्हे परिंदे की मदद की वही सच्ची मदद है !

Friends , सच्ची  मदद  वही  है  जो  मदद  पाने  वाले  को  ये  महसूस  न  होने  दे  कि  उसकी  मदद  की  गयी  है  . बहुत  बार  लोग  help तो  करते  हैं  पर  उसका  ढिंढोरा  पीटने  से  नहीं  चूकते . ऐसी  help किस  काम की  ! परिंदों  की  ये  कहानी  हम  इंसानो  के  लिए  भी  एक  सीख  है  कि  हम  लोगों  की  मदद  तो  करें  पर  उसे  जताएं नहीं !