सोमवार, 12 मई 2014

सिज़ोफेरनिया क्‍या है

सिज़ोफेरनिया एक दिमाग से जुड़ी परेशानी है जिसमें कि दिमाग कमज़ोर हो जाता है। भारतीय और अमेरिकन्स में यह बहुत ही आम बीमारी है जिसने लगभग एक प्रतिशत लोगों को प्रभावित किया है। यह बीमारी किसी भी उम्र के लोगों में कभी भी हो सकती है। मानसिक स्वास्थ्य संस्थान के अनुसार यह बीमारी जब बच्चा गर्भ में होता है उस समय न्यूरान में हुई गड़बड़ी से होती है।

अधिकतर लोगों में युवावस्था तक इस बीमारी के लक्षण छिपे होते हैं और इस अवस्था में आकर ही यह लक्षण दिखते हैं। इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति वास्तविक दुनिया से कोसों दूर रहता है और अपने आपको लोगों और घटनाओं से अलग समझने लगता है। मरीज़ो को आवाज़े भी सुनाई देती है और वो इन आवाज़ों को सही मान लेते हैं। ऐसे लोग ठीक प्रकार से सोच नहीं पाते क्योंकि उनके दिमाग में बहुत सी बातें एक साथ आती रहती हैं। उनकी संवेदनाएं और अभिव्यक्ति लगभग शून्य होती है। एक सिज़ोफेरनिया का मरीज़ एक आम इन्सान जितना ही उग्र होता है।

सिज़ोफेरनिया के लक्षण:

सिज़ोफेरनिया के कई प्रकार पाये गये हैं और हर एक प्रकार दूसरे से अलग होता है। जब हम सिज़ोफेरनिया की बात करते हैं तो पहली बात हमारे दिमाग में आती है पैरानायड पर्सनालिटी की। इस प्रकार के मरीज़ एक छोटे समूह में रहना पसन्द करते हैं और उन्हें ऐसा लगता है कि लोग उन्हें पसन्द नहीं करते। अगर इनकी बात कोई नहीं मानता तो यह खिज कर अपने काम में मन लगाना छोड़ देते हैं।

सिज़ोफेरनिया से ग्रसित लोगों की सोच मिली जुली होती है जिससे कि वो अपनी सोच को ना ही सही दिशा में ले जा पाते हैं और ना ही किसी परिणाम तक पहुंच पाते हैं। इस प्रकार की मिली जुली सोच ल्युसिनेशन और डिल्यूज़न को जन्म देती है ।

रेसिडुअल सिज़ोफेरनिया वह स्थिति है जो नार्मल सिज़ोफेरनिया जैसी स्थिति नहीं है लेकिन इस बीमारी से ग्रसित लोग जीवन में अपनी रूचि खो देते हैं। सिज़ोफेरनिया के मरीज़ बहुत ही सुस्त और उदासीन होते हैं ा कभी कभी वो अवसाद के साथ बाइपोलर डिज़ार्डर भी दर्शाते हैं।

सिज़ोफेरनिया की चिकित्सा:

सिज़ोफेरनिया के मरीज़ों को एण्टी साइकाटिक ड्रग्स दिया जाता है ा क्लोज़ापिन ड्रग्स का इस्तेमाल बहुत समय से होता आया है और यह नयी दवाओं से भी ज़्यादा प्रभावी है। रिस्पैरिडोन और ओलैनज़ापाइन ऐसे ड्रग्स हैं जिनसे कि हैल्युसिनेशन और डिल्युज़न से आराम मिलता है।

इन दवाओं को लेने के बाद भी जब बीमारी पूरी तरीके से ठीक हो जाये तब दवाओं का इस्तेमाल धीरे धीरे बंद करना चाहिए। सिज़ोफेरनिया की चिकित्सा में आगे जाकर एण्टी डीप्रेसिव, एण्टी एनज़ाइटी और एण्टी कनवल्सिव दवाओं के इस्तेमाल से प्राथमिक चिकित्सा के अतिरिक्त असर नहीं दिखते और बाई पोलर मानिया से भी बचा जा सकता है।

रविवार, 11 मई 2014

अवसाद के लिए आयुर्वेदिक उपचार

अवसाद, दिमाग से संबंधित एक प्रकार की बीमारी है। जब एक व्यक्ति अचानक उदासी, लाचारी, अपराध,और निराशा की  भावनाओं के साथ परिग्रहित हो जाता है,तब उसे उदास महसूस होता हैं, ऐसा कहा जा सकता हैं।  मनोदशा में स्वाभाविक रूप से परिवर्तन होता हैं, और दिमाग की शारीरिक और मानसिक स्थिति को प्रभावित करता है। एक व्यक्ति का वजन बढ सकता हैं, या वजन घट भी सकता हैं, उसे उसके आसपास की किसी भी चिज में कोई दिलचस्पी नहीं लगती है और आम तौर पर चिड़चिड़ा और अकेले रहना पसंद करता है। इससे उसके दोस्तों, परिवार और सह कार्यकर्ताओं के साथ के संबंध प्रभावित होते हैं।

कुछ लोगों को किसी विशेष मौसम (मौसमी अवसाद) में अवसाद महसूस होता हैं, जबकि कुछ लोगों को उनके जिवन में घटी किसी दुर्घटना के बाद अवसाद होता है, हालांकि उसका कारण कुछ भी हो, अवसाद से व्यक्ति के जिवन को पूर्णरुप से तबाह करने से पहिले उसका इलाज करना आवश्यक हैं। अवसाद के लिए किये जाने वाले उपचारों में कुछ आयुर्वेदिक उपचार भी है।
 आयुर्वेद नें हमें इतने सारी अलग अलग जड़ी बूटियां दी हैं, कि हमे अवसाद पर उपचार ढुंढने के लिए काफी दूर जाने की जरुरत नही हैं। ऐसी ही कुछ जडी बूटियों की एक सूची का उल्लेख नीचे की पंक्तियों में किया है, जो आसानी से मिल सकती हैं, और अवसाद के उपचार में अद्भुत काम करती हैं।
पवित्र तुलसी (तुलसी पत्ता) -  तुलसी के पत्ते के साथ कुछ चीनी, दालचीनी और सूखे अदरक जड़ों के साथ गर्म पानी डालकर मिश्रण बनाए और एक दिन में 5 से 6 बार उसे पिए। इससे आपकी मनोदशा पर नियंत्रण रखने में मदद मिलेगी।
इलायची - इलायची की एक सुखद खुशबू होती हैं। इसे आपकी चाय में डालकर ले। यह चाय अपको शांत करेगी।
अदरक - यदि आपको इलायची पसंद नही हैं, तो आप अपनी चाय में कुछ अदरक डाल सकते हैं। अदरक का अवसाद विरोधी गुण आपको खुश करने में मदद करेगा। जल्द राहत मिलने के लिए आपके खाने में सूखी अदरक की जड़ का कुछ पाउडर डालें।
काली मिर्च - काली मिर्च अवसाद के लिए उपचार में उपयोग की जाने वाली एक अन्य महत्वपूर्ण जडी बूटी हैं, यह अवसाद के लिए कारक आपके दोषों को दूर करता हैं।

ब्राह्मी - ब्राह्मी एक बहुत लोकप्रिय आयुर्वेदिक पौधा हैं, जिसमे दिमाग को शांत करने वाले गुण होते है, जो एक व्यक्ति को शांत करने में मदद करते हैं। ब्राह्मी तेल को बेचनें वाले कई ब्रांड हैं, जिसको नियमित रुप से लागू करना चाहिए, जिससे दिमाग शांत रहेगा।
हल्दी -  हल्दी मौसमी अवसाद पर प्रभावी ढंग से उपचार करने में मदद करती है। यदि आपको मौसम में परिवर्तन के साथ उदास लगता हैं, तो गर्म दूध में चीनी और कुछ हल्दी डाल कर ले सकते हैं और इस उपचार का सकारात्मक प्रभाव महसूस करने के लिए, इस मिश्रण को कम से कम  एक सप्ताह तक ले।
जटामासी – जटामासी एक दिमाग को शांत करने वाली और एक आयुर्वेदिक जड़ी बूटी हैं। यह जड़ी बूटी अवसादग्रस्तता की भावनाओं को मन से दूर करने में मदद करती हैं।

नींबू – हालांकि यह पूरी तरह आयुर्वेदिक नहीं है, लेकिन नींबू में अवसाद विरोधी गुण हैं। नींबू निचोड कर कुछ चीनी के साथ खाए। यह आपके मन को शांत करेगा।

उपर्युक्त जड़ी बूटियों के लिए इसके अलावा, योग अवसाद के लिए एक महान आयुर्वेदिक उपचार है। जो लोग प्राणायाम और योगासन  नियमित रूप से करते हैं, वह अवसाद और निराशा की भावना के लिए कम संवेदनशील होते हैं, ऐसा पाया गया हैं। आप एक सुबह की सैर भी कर के देख सकते हैं।

शनिवार, 10 मई 2014

10 आसान रास्ते तनाव मुक्ति के


1. तैयार रहें 

जीवन में आने वाले उतार चढ़ावों के लिए अपने को पहले से तैयार रखें। यदि आप अनुमान लगा पा रही हैं कि आने वाले समय में आप किसी परेशानी का सामना करेंगी तो मानसिक रूप से इसके लिए अपने को पहले से ही तैयार कर लें। इससे परेशानी भले ही दूर न हो आपको मानसिक बल जरूर मिलेगा।

2. सामाजिक सहयोग 

अपने तनाव के क्षणों में अपने दोस्तों व रिश्तेदारों के बीच रहिए क्योंकि इससे आपको सबसे ज्यादा सपोर्ट मिलता है व हिम्मत भी मिलती है विपरीत परिस्थिति का सामना करने की।

3. विश्वास रखें  

यह एक प्रक्रिया है कि आप अपने विचारों का मूल्यांकन करें, इस बात की जानकारी रखें कि क्या हो रहा है या चल रहा है। इससे आपकी चीजें साफ व स्पष्ट होंगी और आपको मदद मिलेगी अपने लक्ष्यों को साफ देखने व उन्हें पाने में।

4. कम्युनिकेशन

अपने भावों को प्रकट करना और भावनाओं व उद्गारों को दूसरों पर व्यक्त करना अच्छा तरीका है तनाव से दूर रहने का। आप अपनी इच्छाओं व विचारों को स्पष्ट रूप से दूसरों पर जाहिर करें, इसमें पूरी ईमानदारी बरतें। इससे आपके पारिवारिक व प्रोफेशनल दोनों ही रिश्ते बेहतर रहेंगे।

5. स्वीकारोक्ति और पुष्टि 

यह बात हमेशा याद रखें कि यदि आप तनाव में हैं तो सत्य को स्वीकार करें और उसका मुकाबला करें। इससे मुंह मोड़ कर बैठने से कुछ नहीं होगा।

6. दवा का प्रयोग न करें 

एल्कोहॉल, कैफीन और सेडेटिव्स का सेवन हानिकर है। उनका प्रयोग न करें।

7. दृढ़निश्चयी हों 

दूसरे लोगों से आपके संबंध संतोषजनक भी हो सकते हैं व दुखदायी व तनाव भरे भी। हठधर्मी होना थोड़ा कठिन है पर आपके हित में होगा तनाव से मुक्ति पाने में।

8. जीवनशैली 

यदि आप फिट व स्वस्थ हैं तो आप तनाव को दूर रख सकती हैं। यह जरूरी है कि अपनी ताकत व संतुलन को बनाए रखने के लिए और प्रतिदिन की चुनौतियों का सामना करने के लिए संतुलित व पौष्टिक भोजन करें। प्रतिदिन व्यायाम करें, तनाव दूर करने के तरीकों पर अमल करें, पूरी नींद लें और कुछ समय निकाल कर जीवन को इंज्वॉय करें।

9. प्रोफेशनल सहायता 

जब आप अपने तनाव को झेलने में असमर्थ हो रही हों और इससे समस्याएं बढ़ रहीं हो तो आपको चाहिए कि आप किसी मनोचिकित्सक की सलाह लें। वह आपकी मदद करेगा तनाव दूर करने में भी और जीवन में सुधार लाने में भी।

10. समस्या सुलझाएं 

समस्या के बारे में जानना काफी नहीं है, यह जरूरी है कि आप सही व साइंटिफिक तरीके से समस्या को समझ कर तनाव को दूर करना जानें।

पुरुषों में अवसाद के खतरनाक संकेत

अवसाद चिंता और तनाव की अंतिम सीढ़ी है। दुनिया भर में लाखों लोग इस परेशानी का सामना कर रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार अकेले अमेरिका में हर वर्ष 50 लाख लोग अवसादग्रस्‍त होते हैं। यह एक मानसिक रोग है, जो हमारी शारीरिक और मानसिक गतिविधि पर असर डालता है। 
महिलाओं और पुरुषों में अवसाद दुख का सबसे बड़ा कारण होता है। इससे व्‍यक्ति का खुशनुमा चीजों में दिल नहीं लगता। लेकिन, कई बार अवसाद अलग-अलग लोगों में अलग-अलग प्रकार से सामने आता है। आइए जानते हैं उन बातों को जो पुरुषों के अवसादग्रस्‍त होने का संकेत देते हैं।

थकान

अवसादग्रस्‍त व्‍यक्ति गंभीर मानसिक और शारीरिक बदलावों से गुजरता है। वह हमेशा थका-थका सा महसूस करता है। उसकी शारीरिक गतिविधियां भी सीमित हो जाती हैं। उसके बोलने और वैचारिक प्रक्रिया की रफ्तार पर भी नकारात्‍मक प्रभाव पड़ता है। अवसाद के दौरान महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में थकान अधिक होती है। यह अवसाद के सभी लक्षणों में सबसे सामान्‍य होता है।

नींद पर असर

अवसाद के कारण लोगों की नींद पर विपरीत असर पड़ता है। वे या तो बहुत कम या बहुत अधिक सोने लगते हैं। कुछ लोग 12 घंटे तक सोने के बाद भी थकान महसूस करते हैं, तो वहीं कुछ लोग रात में थोड़ी-थोड़ी देर बाद जागते रहते हैं। थकान की ही तरह नींद की समस्‍या भी अवसादग्रस्‍त पुरुषों में सामान्‍य लक्षण है।

पेट या पीठ दर्द

कब्‍ज या डायरिया, और सिरदर्द और कमर दर्द जैसे स्‍वास्‍थ्‍य लक्षण, अवसादग्रस्‍त लोगों में सामान्‍य हैं। लेकिन, अक्‍सर पुरुष इस बात को नहीं समझते कि तेज दर्द और पाचन क्रिया में अनि‍यमितता का संबंध अवसाद से भी हो सकता है। डॉक्‍टर बताते हैं कि अवसादग्रस्‍त लोगों को स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍यायें लगी रहती हैं। लेकिन, अक्‍सर वे इसे लेकर गंभीर नहीं होते।

चिढ़चिढ़ापन

अवसादग्रस्‍त पुरुषों का स्‍वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। अगर वे भावनात्‍मक बातें कर रहे हों, तो दुख और चिड़चिड़ेपन का मेल सामने आ सकता है। पुरुषों में चिड़चिड़ेपन की बड़ी उनके मस्तिष्‍क में लगातार आने वाले नकारात्‍मक विचार आते हैं।

एकाग्रता में कमी

साइकोमीटर रेडिएशन से पुरुषों में सूचना प्रक्रिया करने की क्षमता कम हो जाती है, इससे व्‍यक्ति को काम और अन्‍य कामों पर ध्‍यान केंद्रित करने में कठिनाई होती है। अवसाद के कारण व्‍यक्ति नकारात्‍मक विचारों से भर जाता है। इससे उसके लिए किसी भी अन्‍य काम पर ध्‍यान केंद्रित करना मुश्किल हो जाता है। जब आप अवसाद में होते हैं, तो आपका मस्तिष्‍क सही प्रकार से काम नहीं कर पाता।

बेवजह गुस्‍सा

कई लोग अवसाद की वजह से शत्रुतापूर्ण रवैया अपनाने लगते हैं। उन्‍हें बेवजह गुस्‍सा आता है और उनका स्‍वभाव भी आक्रामक हो जाता है। कोई ऐसा व्‍यक्ति जिसे इस बात का अहसास हो कि कुछ गलत है तो वह क्रोध दिखाकर स्‍वयं को मजबूत और सक्षम साबित करने का प्रयास करता है। गुस्‍सा और शत्रुतापूर्ण रवैया चिड़चिड़ेपन से अलग होता है। गुस्‍से में व्‍यक्ति चिढ़ के मुकाबले स्‍वयं को अधिक प्रभावी दिखाने का प्रयास करता है। ऐसे में व्‍यक्ति को परिवार और दोस्‍तों से खास मदद की जरूरत होती है।

तनाव

तनाव भी पुरुषों में अवसाद का एक लक्षण हो सकता है। हालांकि तनाव हर बार अवसाद का कारण बने, ऐसा नहीं होता। कई बार तनाव किसी अन्‍य कारण से भी हो सकता है और वह कारण दूर होते ही व्‍यक्ति सामान्‍य जीवन जी सकता है। शोध यह साबित कर चुके हैं कि लंबे समय तक बने रहने वाला तनाव मानसिक और शारीरिक रूप से बदलाव ला सकता है, जो आगे चलकर तनाव का कारण बन सकता है।

घबराहट

घबराहट यानी एंजाइटी डिस्‍ऑर्डर और अवसाद में सीधा संबंध होता है। हालांकि, पुरुषों में महिलाओं के मुकाबले घबराहट कम होती है। हालांकि पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में यह मसमस्‍या दोगुनी होती है, लेकिन पुरुषों के लिए घबराहट अथवा चिंता की बात करना अ‍पेक्षाकृत अधिक आसान होता है। पुरुष अपने परिवार और काम को लेकर होने वाली चिंताओं को लेकर अधिक खुलकर चर्चा कर सकते हैं।

शारीरिक असक्रियता

शारीरिक असक्रियता का एक बड़ा कारण अवसाद होता है। अवसाद के कारण स्‍तंभन दोष (संभोग के दौरान लिंग का उत्तेजित नहीं हो पाना) होना सामान्‍य है। और अधिकतर पुरुष इस बारे में बात करने से डरते हैं। वे स्‍वयं को कोसने लगते हैं, जिस कारण उनके अवसाद का स्‍तर बढ़ता चला जाता है। हालांकि यह रोग कई अन्‍य चिकित्‍सीय कारणों से भी हो सकता है। अकेला स्‍तंभन दोष अवसाद का कारण नहीं है। "

अनिर्णय

अगर आपको लगातार निर्णय लेने में कठिनाई आ रही है, तो यह अवसाद का संकेत हो सकता है। कुछ लोगों को नैसर्गिक रूप से दुविधा में रहते हैं। उन्‍हें फैसले लेने में परेशानी आ सकती है। अगर आपके साथ पहले से यह परेशानी है, तो आपको अधिक घबराने की जरूरत नहीं। लेकिन, आपके स्‍वभाव में यह आदत नयी शामिल हुई है, तो आपको सोचने की जरूरत है। जानकार मानते हैं कि अवसाद आपके क्षमता लेने की प्रक्रिया को धीमा कर देता है।

आत्‍महत्‍या के विचार
महिलाओं में आत्‍महत्‍या की प्रवृत्ति अधिक देखी जाती है, लेकिन पुरुष अगर आत्‍महत्‍या का प्रयास करें, तो उनकी मौत होने की आशंका महिलाओं की अपेक्षा चार गुना होती है। इसकी एक वजह यह भी है कि पुरुष आत्‍महत्‍या के लिए अधिक खतरनाक तरीके चुनते हैं। बुजुर्गों में आत्‍महत्‍या की प्रवृत्ति अधिक देखी जाती है। कई बार डॉक्‍टर भी इस आयु वर्ग के लोगों में अवसाद के लक्षणों को सही से पहचान नहीं पाते। अधिक उम्र के पुरुषों और महिलाओं दोनों में अवसाद के लक्षण पाये जाते हैं।


अवसाद एड्स, कैंसर और मधुमेह जैसी बीमारियों से भी अधिक सामान्‍य है और इसके कारण हर साल अमेरिका में करीब चार लाख लोग आत्‍महत्‍या का प्रयास करते हैं। अवसाद के साथ एक अहम बात यह ध्‍यान रखनी चाहिए कि किसी एक लक्षण से ही इसका अंदाजा न लगायें। इसके लक्षण आमतौर पर समूह में नजर आते हैं।

मानसिक तनाव कैसे दूर करें

मुंबई के बच्चों के दिमाग पर स्कूल का कुछ ऐसा असर है कि उनमें मानसिक रोगों के कम से कम 105 लक्षण हैं। यही नहीं, लगभग एक हजार में से केवल 20 बच्चे ही स्कूल जाने के इच्छुक हैं।

एसएनडीटी महिला विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान विभाग के अध्यक्ष एचएल कैला ने पांच से 15 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों पर शोध किया है। इसमें बच्चों को होने वाली कई तरह की पीड़ा की पहचान हुई है। इनसे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर कितना असर पड़ा, इसे 105 लक्षणों के रूप में देखा जा सकता है।

पीड़ा की वजह से बच्चों का सामान्य व्यवहार और विकास रुक जाता है। कैला ने बताया कि तेजी से भागती दुनिया में बच्चों के हुनर और कौशल को निखरने का मौका मिलना चाहिए। लेकिन इस तरह की पीड़ाओं से उनके भविष्य की संभावनाओं पर खराब असर पड़ता है।

कैला ने बताया कि लड़के-लड़कियों और किशोरों पर उनके स्कूल समय में 58 बुरी चीजें होती हैं। अध्ययन में 14 स्कूलों के 966 बच्चों को शामिल किया गया। इनमें से केवल 20 बच्चों को ही स्कूल का वातावरण रास आया। बाकी को स्कूल में कुछ न कुछ बुरा व्यवहार होने की शिकायत है। बच्चों को सबसे ज्यादा दिक्कत इस बात से है कि शिक्षकों के हाथ में छड़ी होती है और वे कड़क आवाज में बात करते हैं।

अध्ययन में बताया गया कि स्कूल में बच्चों की पिटाई होती है। उन्हें तमाचे मारे जाते हैं, ताने कसे जाते हैं, यहां तक कि यौन दु‌र्व्यवहार भी होता है। इन सबसे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता है। इन घटनाओं से बच्चों में नर्वस होना, बिना बात के गुस्सा हो जाना और कम खाना जैसी दिक्कतें आ जाती हैं।

कैला ने अपनी किताब 'विक्टिमाइजेशन आफ चिल्ड्रेन' में सिफारिश की है कि शिक्षक-अभिभावक संघ के सदस्यों को बच्चों के मानसिक, भावनात्मक और व्यवहारगत स्वास्थ्य के बारे में प्रशिक्षण दिया जाए। सभी स्कूलों में सक्रिय ऐसे संगठन स्कूलों में लोकतंत्र की बहाली कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि 17 प्रतिशत बच्चों ने स्कूलों में यौन शिक्षा को नापंसद किया। कैला के मुताबिक हर स्कूल में मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम चलाने के साथ-साथ शिक्षकों को भी इससे जोड़ना चाहिए।

सोमवार, 3 मार्च 2014

जब हवा चलती है…..

जब हवा चलती है….. 

बहुत  समय  पहले  की  बात  है , आइस्लैंड के उत्तरी छोर पर  एक  किसान  रहता  था . उसे  अपने  खेत  में  काम  करने  वालों  की  बड़ी  ज़रुरत  रहती  थी  लेकिन  ऐसी  खतरनाक  जगह , जहाँ  आये  दिन  आंधी  –तूफ़ान  आते  रहते हों , कोई  काम  करने  को  तैयार  नहीं  होता  था .
किसान  ने  एक  दिन  शहर  के  अखबार  में  इश्तहार  दिया  कि  उसे   खेत  में   काम  करने  वाले एक मजदूर की  ज़रुरत  है . किसान से मिलने कई  लोग  आये  लेकिन  जो भी  उस  जगह  के  बारे  में  सुनता  , वो काम  करने  से  मन  कर  देता . अंततः  एक  सामान्य  कद  का  पतला -दुबला  अधेड़  व्यक्ति  किसान  के  पास  पहुंचा .
किसान  ने  उससे  पूछा  , “ क्या  तुम  इन  परिस्थितयों  में   काम  कर  सकते  हो ?”
“ ह्म्म्म , बस जब  हवा चलती  है  तब  मैं  सोता  हूँ .” व्यक्ति  ने  उत्तर  दिया .
किसान  को  उसका  उत्तर  थोडा अजीब  लगा  लेकिन  चूँकि  उसे  कोई  और  काम  करने  वाला  नहीं  मिल  रहा  था इसलिए  उसने  व्यक्ति  को  काम  पर  रख  लिया.
 मजदूर मेहनती  निकला  ,  वह  सुबह  से  शाम  तक  खेतों  में  म्हणत  करता , किसान  भी  उससे   काफी  संतुष्ट  था .कुछ ही दिन बीते थे कि  एक   रात  अचानक  ही जोर-जोर से हवा बहने  लगी  , किसान  अपने  अनुभव  से  समझ  गया  कि  अब  तूफ़ान  आने  वाला  है . वह   तेजी  से  उठा  , हाथ  में  लालटेन  ली   और  मजदूर  के  झोपड़े  की  तरफ  दौड़ा .
“ जल्दी  उठो , देखते  नहीं  तूफ़ान  आने वाला  है , इससे  पहले  की  सबकुछ  तबाह  हो जाए कटी फसलों  को  बाँध  कर  ढक दो और बाड़े के गेट को भी रस्सियों से कास दो .” किसान  चीखा .
मजदूर बड़े आराम से पलटा  और  बोला , “ नहीं  जनाब , मैंने  आपसे  पहले  ही कहा था  कि  जब  हवा  चलती  है  तो  मैं  सोता  हूँ !!!.”
यह  सुन  किसान  का  गुस्सा  सातवें  आसमान  पर  पहुँच  गया ,  जी  में आया  कि  उस  मजदूर  को   गोली  मार  दे , पर  अभी  वो आने  वाले  तूफ़ान  से चीजों को बचाने  के  लिए  भागा  .
किसान खेत में पहुंचा और उसकी आँखें आश्चर्य से खुली रह गयी , फसल  की गांठें  अच्छे  से  बंधी  हुई   थीं  और  तिरपाल  से  ढकी  भी  थी , उसके  गाय -बैल  सुरक्षित बंधे  हुए  थे  और  मुर्गियां  भी  अपने  दडबों  में  थीं … बाड़े  का  दरवाज़ा  भी  मजबूती  से  बंधा  हुआ  था . साड़ी  चीजें  बिलकुल  व्यवस्थित  थी …नुक्सान होने की कोई संभावना नहीं बची थी.किसान  अब   मजदूर की ये  बात  कि  “ जब  हवा चलती है  तब  मैं  सोता  हूँ ”…समझ  चुका  था , और  अब  वो  भी  चैन  से   सो  सकता  था .
मित्रों ,  हमारी  ज़िन्दगी  में भी कुछ ऐसे तूफ़ान आने तय हैं , ज़रुरत इस बात की है कि हम  उस  मजदूर की  तरह पहले से तैयारी कर के रखें ताकि  मुसीबत  आने  पर  हम भी चैन  से  सो सकें.  जैसे कि यदि कोई विद्यार्थी शुरू से पढ़ाई करे तो परीक्षा के समय वह आराम से रह सकता है, हर महीने बचत करने वाला व्यक्ति पैसे की ज़रुरत पड़ने पर निश्चिंत रह सकता है, इत्यादि.
तो चलिए हम भी कुछ ऐसा करें कि कह सकें – ” जब हवा चलती है तो मैं सोता हूँ.”

रविवार, 2 मार्च 2014

सलाह लें ,पर संभल कर…..

सलाह लें ,पर संभल कर…..

मनुष्य एक  सामाजिक प्राणी है. जो की लोगो के समूह के बीच मे रहता है ,इस समूह मे कई तरह के रिश्तो को वो निभाता है !  कुछ रिश्ते निस्स्वार्थ होते है ,जबकि अधिकतर रिश्तो की नीव स्वार्थ पर टिकी होती है!   हम जो professional relation  बनाते हैं, वो अधिकतर आदान प्रदान या यो कहें एक से दूसरे  को ,और दूसरे  से पहले व्यक्ति को फायदे की बुनियाद पर ही टिके होते हैं!  मैं यह नहीं कह रहा की सभी रिश्तो के पीछे स्वार्थ ही होता है,  लेकिन हाँ आज की दुनिया में  अधिकतर इंसान अपना फायदा देख कर ही relation  बनाते हैं!
दोस्तों ऐसा कई बार होता है ,की हम किसी दुविधा मे  फंस जाते हैं और हमे किसी की  राय की जरुरत पड़ती है, तब  हम अपने आस पास के लोगों से उस बारे मे सलाह मशवरा करते है कि हमे क्या करना चाहिये ,कई बार उनकी राय हमें सही रास्ते का मार्ग दिखाती है तो कभी और ज्यादा हमारे नुक्सान का सबब बन जाती है!
अगर आप माता पिता ,भाई बहन ,सच्चा दोस्त आदि निस्स्वार्थ रिश्तो को ,  जो की आप को सही राय ही देते हैं,  छोड़ दें ,  तो बाकी अधिकतर समाज के और work place  के लोगो से सलाह  लें जरूर ,पर अपना विवेक भी बनाय रखें !  क्योंकि कई बार ऐसे सलाह देने वालो का स्वार्थ भी उनकी सलाह मे छुपा रहता है!     इसलिए - सुने सबकी पर माने अपने विवेक और अंतरात्मा की
एक  बार एक आदमी अपने छोटे से बालक के साथ एक घने जंगल से जा रहा था!   तभी रास्ते मे उस बालक को प्यास लगी ,  और उसे पानी पिलाने उसका पिता उसे एक  नदी पर ले गया , नदी पर पानी पीते पीते अचानक वो बालक पानी मे गिर गया ,  और डूबने से उसके प्राण निकल गए!   वो आदमी बड़ा दुखी हुआ,  और उसने सोचा की इस घने जंगल मे इस बालक की अंतिम क्रिया किस प्रकार करूँ !   तभी उसका रोना सुनकर एक गिद्ध ,  सियार और नदी से एक कछुआ वहा आ गए ,  और उस आदमी से सहानुभूति व्यक्त करने लगे ,  आदमी की परेशानी जान कर सब अपनी अपनी सलाह  देने लगे!
सियार ने लार टपकाते हुए कहा ,  ऐसा करो   इस बालक के शरीर को इस जंगल मे ही किसी चट्टान के ऊपर छोड़ जाओ, धरती  माता इसका उद्धार कर देगी!   तभी गिद्ध अपनी ख़ुशी छुपाते हुए बोला,    नहीं धरती पर तो इसको जानवर खा जाएँगे,     ऐसा करो इसे किसी वृक्ष के ऊपर डाल दो ,ताकि सूरज की गर्मी से इसकी अंतिम गति अच्छी होजाएगी!    उन दोनों की बाते सुनकर कछुआ भी अपनी भूख को छुपाते हुआ बोला ,नहीं आप इन दोनों की बातो मे मत आओ, इस  बालक की जान पानी मे गई है,  इसलिए आप इसे नदी मे ही बहा दो !
और इसके बाद तीनो अपने अपने कहे अनुसार उस आदमी पर जोर डालने लगे !   तब उस आदमी ने अपने विवेक का सहारा लिया और उन तीनो से कहा ,  तुम तीनो की सहानुभूति भरी सलाह मे   मुझे तुम्हारे स्वार्थ की गंध आ रही है,  सियार चाहता  है  की मैं इस बालक  के शरीर को ऐसे ही जमीन पर छोड़ दूँ  ताकि ये उसे आराम से खा सके,  और गिद्ध   तुम  किसी पेड़ पर इस बालक के शरीर  को इसलिए रखने की सलाह दे रहे हो ताकि इस सियार और कछुआ से बच कर आराम से तुम दावत उड़ा सको ,  और कछुआ   तुम नदी के अन्दर रहते हो   इसलिए नदी मे अपनी दावत का इंतजाम कर रहे हो  !  तुम्हे सलाह देने के लिए  धन्यवाद , लेकिन मै इस बालक के शरीर  को अग्नि को समर्पित करूँगा ,  ना की तुम्हारा भोजन बनने दूंगा!    यह सुन कर वो तीनो  अपना सा मुह लेकर वहा से चले गए!
दोस्तों  मै यह नहीं कह रहा हूँ की हर व्यक्ति आपको स्वार्थ  भरी सलाह ही देगा ,  लेकिन आज के इस competitive युग मे   हम अगर अपने विवेक की छलनी  से किसी सलाह को छान ले  तो शायद ज्यादा सही रहेगा ! हो सकता है की आप लोग मेरी बात से पूरी तरह सहमत ना हो ,पर कहीं ना कहीं आज के युग में ये भी तो सच है कि  -  मेरे नज़दीक रहते है कुछ दोस्त ऐसे ,जो मुझ में  ढुंढते  है गलतियां अपनी……….

शनिवार, 1 मार्च 2014

परमात्मा और किसान

परमात्मा और किसान  

एक बार एक  किसान परमात्मा से बड़ा नाराज हो गया ! कभी बाढ़ आ जाये, कभी सूखा पड़ जाए, कभी धूप बहुत तेज हो जाए तो कभी ओले पड़ जाये! हर बार कुछ ना कुछ कारण से उसकी फसल थोड़ी ख़राब हो जाये! एक  दिन बड़ा तंग आ कर उसने परमात्मा से कहा ,देखिये प्रभु,आप परमात्मा हैं , लेकिन लगता है आपको खेती बाड़ी की ज्यादा जानकारी नहीं है ,एक प्रार्थना है कि एक साल मुझे मौका दीजिये , जैसा मै चाहू वैसा मौसम हो,फिर आप देखना मै कैसे अन्न के भण्डार भर दूंगा! परमात्मा मुस्कुराये और कहा ठीक है, जैसा तुम कहोगे वैसा ही मौसम  दूंगा, मै दखल नहीं करूँगा!
किसान ने गेहूं की फ़सल बोई ,जब धूप  चाही ,तब धूप  मिली, जब पानी तब पानी ! तेज धूप, ओले,बाढ़ ,आंधी तो उसने आने ही नहीं दी, समय के साथ फसल बढ़ी और किसान की ख़ुशी भी,क्योंकि ऐसी फसल तो आज तक नहीं हुई  थी !  किसान ने मन ही मन सोचा अब पता चलेगा परमात्मा को, की फ़सल कैसे करते हैं ,बेकार ही इतने बरस हम किसानो को परेशान करते रहे.
फ़सल काटने का समय भी आया ,किसान बड़े गर्व से फ़सल काटने गया, लेकिन जैसे ही फसल काटने लगा ,एकदम से छाती पर हाथ रख कर बैठ गया!  गेहूं की एक भी बाली के अन्दर गेहूं नहीं था ,सारी बालियाँ अन्दर से खाली थी,  बड़ा दुखी होकर उसने परमात्मा से कहा ,प्रभु  ये  क्या हुआ ?
तब परमात्मा बोले,” ये तो होना ही था  ,तुमने पौधों  को संघर्ष का ज़रा  सा  भी मौका नहीं दिया . ना तेज  धूप में उनको तपने दिया , ना आंधी ओलों से जूझने दिया ,उनको  किसी प्रकार की चुनौती  का अहसास जरा भी नहीं होने दिया , इसीलिए सब पौधे खोखले रह गए, जब आंधी आती है, तेज बारिश होती है ओले गिरते हैं तब पोधा अपने बल से ही खड़ा रहता है, वो अपना अस्तित्व बचाने का संघर्ष करता है और इस संघर्ष से जो बल पैदा होता है वोही उसे शक्ति देता है ,उर्जा देता है, उसकी जीवटता को उभारता है.सोने को भी कुंदन बनने के लिए आग में तपने , हथौड़ी  से पिटने,गलने जैसी चुनोतियो से गुजरना पड़ता है तभी उसकी स्वर्णिम आभा उभरती है,उसे अनमोल बनाती है !”
उसी तरह जिंदगी में भी अगर संघर्ष ना हो ,चुनौती  ना हो तो आदमी खोखला  ही रह जाता है, उसके अन्दर कोई गुण नहीं आ पाता ! ये चुनोतियाँ  ही हैं जो आदमी रूपी तलवार को धार देती हैं ,उसे सशक्त और प्रखर बनाती हैं, अगर प्रतिभाशाली बनना है तो चुनोतियाँ  तो स्वीकार करनी ही पड़ेंगी, अन्यथा हम खोखले ही रह जायेंगे.  अगर जिंदगी में प्रखर बनना है,प्रतिभाशाली बनना है ,तो संघर्ष और चुनोतियो का सामना तो करना ही पड़ेगा !

शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2014

लकड़ी का कटोरा

एक  वृद्ध  व्यक्ति अपने  बहु – बेटे  के  यहाँ  शहर  रहने  गया . उम्र  के  इस  पड़ाव  पर   वह  अत्यंत  कमजोर  हो  चुका  था , उसके  हाथ  कांपते  थे  और  दिखाई  भी  कम   देता  था .  वो एक छोटे से घर में रहते थे , पूरा  परिवार  और  उसका  चार  वर्षीया  पोता  एक  साथ  डिनर  टेबल  पर  खाना  खाते  थे . लेकिन  वृद्ध  होने  के  कारण  उस  व्यक्ति  को खाने  में  बड़ी  दिक्कत  होती  थी . कभी  मटर  के  दाने  उसकी  चम्मच  से  निकल  कर  फर्श  पे  बिखर  जाते  तो  कभी  हाँथ  से  दूध  छलक   कर  मेजपोश   पर  गिर  जाता  .
बहु -बेटे   एक -दो   दिन   ये   सब   सहन   करते   रहे   पर   अब   उन्हें  अपने  पिता  की  इस   काम  से  चिढ  होने  लगी . “ हमें  इनका  कुछ  करना  पड़ेगा ”, लड़के  ने  कहा . बहु  ने  भी  हाँ  में  हाँ  मिलाई  और  बोली ,” आखिर  कब तक  हम  इनकी  वजह  से  अपने  खाने  का  मजा किरकिरा रहेंगे , और  हम  इस  तरह  चीजों  का  नुक्सान  होते  हुए  भी  नहीं  देख  सकते .”
अगले दिन जब  खाने  का  वक़्त  हुआ  तो  बेटे  ने  एक  पुरानी  मेज  को  कमरे  के  कोने  में  लगा  दिया  , अब बूढ़े पिता  को  वहीँ  अकेले  बैठ  कर  अपना  भोजन  करना  था .  यहाँ  तक की  उनके  खाने  के  बर्तनों   की  जगह  एक  लकड़ी  का  कटोरा  दे  दिया  गया  था  , ताकि  अब  और  बर्तन  ना  टूट -फूट  सकें . बाकी  लोग  पहले की तरह ही आराम   से   बैठ  कर  खाते  और  जब  कभी -कभार  उस  बुजुर्ग  की  तरफ   देखते  तो  उनकी  आँखों  में  आंसू  दिखाई  देते  . यह देखकर भी बहु-बेटे का मन नहीं पिघलता ,वो  उनकी  छोटी  से  छोटी  गलती  पर  ढेरों  बातें  सुना  देते .  वहां  बैठा  बालक  भी  यह  सब  बड़े  ध्यान  से  देखता  रहता , और  अपने  में  मस्त   रहता .
एक  रात  खाने  से  पहले  , उस  छोटे  बालक  को  उसके  माता -पिता  ने  ज़मीन  पर  बैठ  कर  कुछ  करते  हुए  देखा ,  ”तुम  क्या  बना  रहे  हो ?”   पिता ने  पूछा ,
बच्चे  ने  मासूमियत  के  साथ  उत्तर  दिया , “ अरे  मैं  तो  आप  लोगों  के  लिए  एक  लकड़ी  का  कटोरा  बना  रहा  हूँ , ताकि  जब  मैं बड़ा हो  जाऊं  तो  आप  लोग  इसमें  खा  सकें .” ,और  वह  पुनः  अपने  काम  में  लग  गया . पर  इस  बात  का  उसके  माता -पिता  पर  बहुत  गहरा  असर  हुआ  ,उनके  मुंह  से  एक  भी  शब्द  नहीं  निकला  और आँखों  से  आंसू  बहने  लगे . वो  दोनों  बिना  बोले  ही  समझ  चुके  थे  कि  अब  उन्हें  क्या  करना  है . उस  रात  वो  अपने  बूढ़े पिता  को   वापस  डिनर  टेबल  पर  ले  आये , और  फिर  कभी  उनके  साथ  अभद्र  व्यवहार  नहीं  किया .

गुरुवार, 27 फ़रवरी 2014

पचास का नोट

पचास का नोट

एक  व्यक्ति  office में देर  रात तक काम  करने  के  बाद  थका -हारा घर  पहुंचा  . दरवाजा  खोलते  ही  उसने  देखा  कि  उसका  पांच  वर्षीय  बेटा  सोने  की  बजाये  उसका  इंतज़ार  कर  रहा  है .
अन्दर  घुसते  ही  बेटे  ने  पूछा —“ पापा  , क्या  मैं  आपसे  एक  question पूछ  सकता  हूँ ?”
“ हाँ -हाँ  पूछो , क्या  पूछना  है ?” पिता  ने  कहा .
बेटा - “ पापा , आप  एक  घंटे  में  कितना  कमा लेते  हैं ?”
“ इससे  तुम्हारा  क्या  लेना  देना …तुम  ऐसे  बेकार  के  सवाल  क्यों  कर  रहे  हो ?” पिता  ने  झुंझलाते  हुए  उत्तर  दिया .
बेटा - “ मैं  बस  यूँही जानना  चाहता  हूँ . Please  बताइए  कि  आप  एक  घंटे   में  कितना  कमाते  हैं ?”
पिता  ने  गुस्से  से  उसकी  तरफ  देखते  हुए  कहा , “ 100 रुपये  .”
“अच्छा ”, बेटे  ने  मासूमियत   से   सर  झुकाते   हुए  कहा -, “  पापा  क्या  आप  मुझे  50 रूपये  उधार  दे  सकते  हैं ?”
इतना  सुनते  ही  वह   व्यक्ति  आग  बबूला  हो  उठा , “ तो  तुम इसीलिए  ये  फ़ालतू  का  सवाल  कर  रहे  थे ताकि  मुझसे  पैसे  लेकर तुम  कोई  बेकार  का  खिलौना   या  उटपटांग  चीज  खरीद  सको ….चुप –चाप  अपने  कमरे  में  जाओ  और  सो  जाओ ….सोचो  तुम  कितने  selfish हो …मैं  दिन  रात  मेहनत  करके  पैसे  कमाता  हूँ  और  तुम  उसे  बेकार  की  चीजों  में  बर्वाद  करना  चाहते  हो ”
यह सुन बेटे  की  आँखों  में  आंसू  आ  गए  …और   वह  अपने  कमरे  में चला गया .
व्यक्ति  अभी  भी  गुस्से  में  था  और  सोच  रहा  था  कि  आखिर  उसके  बेटे  कि ऐसा करने कि  हिम्मत  कैसे  हुई ……पर  एक -आध  घंटा   बीतने  के  बाद  वह  थोडा  शांत  हुआ , और  सोचने  लगा  कि  हो  सकता  है  कि  उसके  बेटे  ने  सच -में  किसी  ज़रूरी  काम  के  लिए  पैसे  मांगे  हों , क्योंकि  आज  से  पहले   उसने  कभी  इस  तरह  से  पैसे  नहीं  मांगे  थे .
फिर  वह  उठ  कर  बेटे  के  कमरे  में  गया  और बोला , “ क्या तुम सो  रहे  हो ?”, “नहीं ” जवाब  आया .
“ मैं  सोच  रहा  था  कि  शायद  मैंने  बेकार  में  ही  तुम्हे  डांट  दिया , दरअसल  दिन भर  के  काम  से  मैं  बहुत
थक   गया  था .” व्यक्ति  ने  कहा .
“I am sorry….ये  लो  अपने  पचास  रूपये .” ऐसा  कहते  हुए  उसने  अपने  बेटे  के  हाथ  में  पचास  की  नोट  रख  दी .
“Thank You पापा ” बेटा  ख़ुशी  से  पैसे  लेते  हुए  कहा , और  फिर  वह  तेजी  से  उठकर  अपनी  आलमारी  की  तरफ   गया , वहां  से  उसने  ढेर  सारे  सिक्के  निकाले  और  धीरे -धीरे  उन्हें  गिनने  लगा .
यह  देख  व्यक्ति  फिर  से  क्रोधित  होने  लगा , “ जब  तुम्हारे  पास  पहले  से  ही  पैसे  थे  तो  तुमने   मुझसे  और  पैसे  क्यों  मांगे ?”
“ क्योंकि  मेरे  पास पैसे कम  थे , पर  अब  पूरे  हैं ” बेटे  ने  कहा .
“ पापा  अब  मेरे  पास  100 रूपये  हैं . क्या  मैं  आपका  एक  घंटा  खरीद  सकता  हूँ ? Please आप ये पैसे ले लोजिये और  कल  घर  जल्दी  आ  जाइये  , मैं  आपके  साथ  बैठकर  खाना  खाना  चाहता  हूँ .”
दोस्तों इस तेज रफ़्तार जीवन में हम कई बार खुद को इतना busy कर लेते हैं कि उन लोगो के लिए  ही समय नहीं निकाल पाते जो हमारे जीवन में सबसे ज्यादा importance रखते हैं. इसलिए हमें ध्यान रखना होगा कि इस आपा-धापी में भी हम अपने माँ-बाप, जीवन साथी, बच्चों और अभिन्न मित्रों के लिए समय निकालें, वरना एक दिन हमें भी अहसास होगा कि हमने छोटी-मोटी चीजें पाने के लिए कुछ बहुत बड़ा खो दिया.

कहीं आप monkey business में तो नहीं लगे हैं

कहीं आप monkey business में तो नहीं लगे हैं? 

एक  समय  की  बात  है , एक  गाँव  में  एक  आदमी  आया  और  उसने  गाँव  वालों  से  कहा कि  वो  बन्दर  खरीदने  आया  है , और  वो  एक  बन्दर  के  10 रुपये  देगा . चूँकि  गाँव  में  बहुत  सारे  बन्दर  थे  इसलिए  गाँव  वाले  तुरंत  ही  इस  काम  में  लग  गए .
उस  आदमी  ने  10 रूपये  की  rate से  1000 बन्दर  खरीद  लिए  अब  बंदरों  की  supply काफी  घट  गयी  और  धीरे  धीरे  गाँव  वालों  ने  बन्दर  पकड़ने  का  प्रयास  बंद  कर  दिया . ऐसा  होने पर  उस  आदमी  ने  फिर  घोषणा  की  कि  अब  वो  20 रूपये  में  एक  बन्दर  खरीदेगा . ऐसा  सुनते  ही गाँव  वाले  फिर  से  बंदरों  को  पकड़ने  में  लग  गए .
बहुत  जल्द  बंदरों  की  संख्या  इतनी  घाट  गयी  की  लोग  ये  काम  छोड़  अपने  खेती -बारी  में  लगने  लगे . अब  एक  बन्दर  के  लिए  25 रुपये  दिए  जाने  लगे , पर  उनकी  तादाद  इतनी  कम  हो  चुकी  थी  की  पकड़ना  तो  दूर  उन्हें  देखने  के  लिए  भी  बहुत  मेहनत  करनी  पड़ती  थी .
तब  उस  आदमी  ने  घोषणा  की  कि  वो  एक  बन्दर  के  50 रूपये  देगा . पर  इस  बार  उसकी  जगह  बन्दर  खरीदने  का  काम  उसका  assistant करेगा  क्योंकि  उसे  किसी  ज़रूरी  काम  से  कुछ  दिनों  के  लिए  शहर  जाना  पद  रहा  है . उस  आदमी  की  गैरमौजूदगी   में  assistant ने  गाँव  वालों  से  कहा  कि  वो  पिंजड़े  में  बंद  बंदरों  को  35 रुपये  में  उससे  खरीद  लें  और  जब  उसका  मालिक  वापस  आये  तो  उसे  50 रुपये  में  बेंच  दें .
फिर  क्या  था  गाँव  वाले  ने  अपनी  जमा  पूँजी   बदारों  को   खरीदने  में  लगा  दी . और  उसके  बाद  ना  कभी  वो  आदमी  दिखा  ना  ही  उसका  assistant, बस  चारो  तरफ  बन्दर  ही  बन्दर  थे .
दोस्तों  कुछ  ऐसा  ही  होता  है  जब  Speak Asia जैसी  company अपना  business  फैलाती  है . बिना  ज्यादा  मेहनत  के  जब  पैसा  आता  दीखता  है तो  अच्छे-अच्छे  लोगों  की  आँखें  चौंधिया  जाती  हैं  और  वो  अपने  तर्क  सांगत  दिमाग  की  ना  सुनकर  लालच  में  फँस  जाते  हैं .
जब  Speak Aisa आई  थी  तो  मुझे  भी  कई  लोगों  ने  इस  join करने  के  लिए  कहा  था , पर  मैंने  join नहीं  किया  क्योंकि  मैं  उनके  business model से  संतुष्ट  नहीं  हो  पाया . और  यकीन  जानिये  ज्यादातर  लोग  संतुष्ट  नहीं  हो  पाते  , जब  बहुत  आसानी  से  पैसा  आता  दीखता  है  तो  कहीं  ना  कहीं  आपके  अन्दर  से  आवाज़  आती  है  कि  कहीं  कुछ  गड़बड़  है , पर  हम  ये  सोच  के  पैसे  लगा  देते  हैं  की  अगर  company 6 महीने  और  नहीं  भागी   तो  भी  मेरा  पैसा  निकल  जायेगा .
कई  लोगों  का  पैसा  निकल  भी  जाता  है , पर  जहाँ  एक  आदमी  को  फायदा  होता  है  वहीँ  10 लोगों  का  नुकसान  भी  होता  है  यानि  यदि  आप  अपने  लाभ  के  लिए  किसी  ऐसी  company से  जुड़ते  हैं  तो  आप  कई  लोगों  का  नुकसान  भी  कराते हैं . और  अधिकतर  नुकसान  उठाने  वाले  लोग  आपके  करीबी  होते  हैं . इसलिए  कभी  भी  ऐसे  लुभावने  वादों  में  मत  आइये ; आप  पैसे  तो  गवाएंगे  ही  साथ  में  रिश्तों  में  भी  दरार  पड़  जायेगी .
तो  अब  जब  कभी  कोई  आपसे  बिना  मेहनत  के  पैसा  कमाने   की  बात  करे  आप  उसे  इस  Monkey Business की कहानी सुना  दीजिये  और  अपना  पल्ला  झाड  लीजिये

तीन प्रेरणादायक कहानियाँ

अच्छाई से क्यूँ बाज़ आऊं ?


एक बार हजरत बायेजीद बुस्तामी अपने कुछ दोस्तों के साथ दरिया के किनारे बेठे थे, उनकी  नज़र एक बिच्छू पर पड़ी जो पानी में डूब रहा था. हजरत ने उसे डूबने से बचाने के लिए पकड़ा तो उसने डंक मार दिया. कुछ देर बाद वो दोबारा पानी में जा गिरा , इस बार फिर हज़रत उसे बचने के लिए आगे बढे, पर उसने फिर डंक मार दिया . चार बार ऐसा ही हुआ, तब एक दोस्त से रहा न गया तो उसने पूछा हुजुर आपका ये काम हमारी समझ के बाहर है, ये डंक मार रहा है और आप इसे बचने से बाज़ नहीं आते. उन्होंने बहुत तकलीफ में मुस्कुराते हुए कहा कि जब ये बुराई से बाज़ नहीं आता तो मैं अच्छाई से क्यूँ बाज़ आऊं!!!
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   मजदूरों जैसी ज़िन्दगी 

 हजरत सिद्दीक अकबर रज़ी० खलीफा हो गए थे. उनके वेतन पर विचार किया जा  रहा था. उन्होंने कहा कि मदीने में एक मजदूर की रोजाना की कमाई कितनी है… उतनी ही रक़म मेरे लिए भी तय कर दी जाये. यह सुन,साथियों में से कोई बोला- सिद्दीक इतनी कम रक़म में आपका गुज़ारा कैसे होगा ? हजरत सिद्दीक ने जवाब दिया- मेरा गुज़ारा उसी तरह होगा जिस तरह एक मजदूर का होता है. अगर न हुआ तो मैं मजदूरों की आमदनी बढ़ा दूंगा ताकि मेरा वेतन भी बढ़ जाये. जैसे-जैसे मजदूरों की मजदूरी बढ़ेगी मेरी  ज़िन्दगी का स्तर भी बढ़ता जायेगा.
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पडोसी 

इमाम अबू हनीफ के पड़ोस में एक मोची रहता था. वह दिन भर तो अपनी झोंपड़ी के दरवाज़े पर सुकून से बैठकर जूते गांठता रहता मगर शाम को शराब पीकर उधम मचाता और जोर-जोर से गाने गाता. इमाम अपने मकान के किसी कोने में रात भर हर चीज़ से बेपरवा इबादत में मशगूल रहते. पडोसी का शोर उनके कानो तक पहुँचता मगर उन्हें कभी गुस्सा नहीं आता. एक रात उन्हें उस मोची का शोर सुनाई नहीं दिया . इमाम बेचैन हो गए और बेचैनी से सुबह का इंतज़ार करने लगे. सुबह होते ही उन्होंने आस-पड़ोस में मोची के बारे में पूछा. मालूम हुआ कि सिपाही उसे पकड़ कर ले गए हैं क्यूंकि वह रात में शोर मचा मचा कर दूसरों कि नींदें हराम करता था. 
उस समय खलीफा मंसूर की हुकूमत थी. बार-बार आमंत्रित करने पर भी इमाम ने कभी उसकी देहलीज़ पर कदम नहीं रखा था मगर उस रोज़ वह पडोसी को छुड़ाने के लिए पहली बार खलीफा के दरबार में पहुंचे. खलीफा को उनका मकसद मालूम हुआ तो वह कुछ देर रुका फिर कहा – “हजरत ये बहुत ख़ुशी का मौका है कि आप दरबार में तशरीफ़ लाये. आपकी इज्ज़त में हम सिर्फ आपके पडोसी नहीं बल्कि तमाम कैदियों कि रिहाई का हुक्म देते हैं “. इस वाकये का इमाम के पडोसी पर इतना गहरा असर हुआ कि उसने शराब छोड़ दी और फिर उसने मोहल्ले वालों को कभी परेशान नहीं किया.

प्रेरणा का स्रोत

प्रेरणा का स्रोत 

 दोस्तों ,जिंदगी है तो संघर्ष हैं,तनाव है,काम का pressure है, ख़ुशी है,डर है !लेकिन अच्छी बात यह है कि ये सभी स्थायी नहीं हैं!समय रूपी नदी के प्रवाह में से सब प्रवाहमान हैं!कोई भी परिस्थिति चाहे ख़ुशी की हो या ग़म की, कभी स्थाई नहीं होती ,समय के अविरल प्रवाह में विलीन हो जाती है!
ऐसा अधिकतर होता है की जीवन की यात्रा के दौरान हम अपने आप को कई बार दुःख ,तनाव,चिंता,डर,हताशा,निराशा,भय,रोग इत्यादि के मकडजाल में फंसा हुआ पाते हैं  हम तत्कालिक परिस्थितियों के इतने वशीभूत हो जाते हैं  कि दूर-दूर तक देखने पर भी हमें कोई प्रकाश की किरण मात्र भी दिखाई नहीं देती , दूर से चींटी की तरह महसूस होने वाली परेशानी हमारे नजदीक आते-आते हाथी के जैसा रूप धारण कर लेती है  और हम उसकी विशालता और भयावहता के आगे समर्पण कर परिस्थितियों को अपने ऊपर हावी हो जाने देते हैं,वो परिस्थिति हमारे पूरे वजूद को हिला डालती है ,हमें हताशा,निराशा के भंवर में उलझा जाती है…एक-एक क्षण पहाड़ सा प्रतीत होता है और हममे से ज्यादातर लोग आशा की कोई  किरण ना देख पाने के कारण  हताश होकर परिस्थिति के आगे हथियार डाल देते हैं!
अगर आप किसी अनजान,निर्जन रेगिस्तान मे फँस जाएँ तो उससे निकलने का एक ही उपाए है ,बस -चलते रहें!   अगर आप नदी के बीच जाकर हाथ पैर नहीं चलाएँगे तो निश्चित ही डूब जाएंगे !  जीवन मे कभी ऐसा क्षण भी आता है, जब लगता है की बस अब कुछ भी बाकी नहीं है ,ऐसी परिस्थिति मे अपने  आत्मविश्वास और साहस के साथ सिर्फ डटे रहें क्योंकि-
हर चीज का हल होता है,आज नहीं तो कल होता है|”
एक बार एक राजा की सेवा से प्रसन्न होकर एक साधू नें उसे एक ताबीज दिया और कहा की राजन  इसे अपने गले मे डाल लो और जिंदगी में कभी ऐसी परिस्थिति आये की जब तुम्हे लगे की बस अब तो सब ख़तम होने वाला है ,परेशानी के भंवर मे अपने को फंसा पाओ ,कोई प्रकाश की किरण नजर ना आ रही हो ,हर तरफ निराशा और हताशा हो तब तुम इस ताबीज को खोल कर इसमें रखे कागज़ को पढ़ना ,उससे पहले नहीं!
राजा ने वह ताबीज अपने गले मे पहन लिया !एक बार राजा अपने सैनिकों के साथ शिकार करने घने जंगल मे गया!  एक शेर का पीछा करते करते राजा अपने सैनिकों से अलग हो गया और दुश्मन राजा की सीमा मे प्रवेश कर गया,घना जंगल और सांझ का समय ,  तभी कुछ दुश्मन सैनिकों के घोड़ों की टापों की आवाज राजा को आई और उसने भी अपने घोड़े को एड लगाई,  राजा आगे आगे दुश्मन सैनिक पीछे पीछे!   बहुत दूर तक भागने पर भी राजा उन सैनिकों से पीछा नहीं छुडा पाया !  भूख  प्यास से बेहाल राजा को तभी घने पेड़ों के बीच मे एक गुफा सी दिखी ,उसने तुरंत स्वयं और घोड़े को उस गुफा की आड़ मे छुपा लिया !  और सांस रोक कर बैठ गया , दुश्मन के घोड़ों के पैरों की आवाज धीरे धीरे पास आने लगी !  दुश्मनों से घिरे हुए अकेले राजा को अपना अंत नजर आने लगा ,उसे लगा की बस कुछ ही क्षणों में दुश्मन उसे पकड़ कर मौत के घाट उतार देंगे !  वो जिंदगी से निराश हो ही गया था , की उसका हाथ अपने ताबीज पर गया और उसे साधू की बात याद आ गई !उसने तुरंत ताबीज को खोल कर कागज को बाहर निकाला और पढ़ा !   उस पर्ची पर लिखा था —”यह भी कट जाएगा “
राजा को अचानक  ही जैसे घोर अन्धकार मे एक  ज्योति की किरण दिखी , डूबते को जैसे कोई सहारा मिला !  उसे अचानक अपनी आत्मा मे एक अकथनीय शान्ति का अनुभव हुआ !  उसे लगा की सचमुच यह भयावह समय भी कट ही जाएगा ,फिर मे क्यों चिंतित होऊं !  अपने प्रभु और अपने पर विश्वासरख उसने स्वयं से कहा की हाँ ,यह भी कट जाएगा !
और हुआ भी यही ,दुश्मन के घोड़ों के पैरों की आवाज पास आते आते दूर जाने लगी ,कुछ समय बाद वहां शांति छा गई !  राजा रात मे गुफा से निकला और किसी तरह अपने राज्य मे वापस आ गया !
दोस्तों,यह सिर्फ किसी राजा की कहानी नहीं है यह हम सब की कहानी है !हम सभी परिस्थिति,काम ,तनाव के दवाव में इतने जकड जाते हैं की हमे कुछ सूझता नहीं है ,हमारा डर हम पर हावी होने लगता है ,कोई रास्ता ,समाधान दूर दूर तक नजर नहीं आता ,लगने लगता है की बस, अब सब ख़तम ,है ना?
जब ऐसा हो तो २ मिनट शांति से बेठिये ,थोड़ी गहरी गहरी साँसे लीजिये !  अपने आराध्य को याद कीजिये और स्वयं से जोर से कहिये –यह भी कट जाएगा !   आप देखिएगा एकदम से जादू सा महसूस होगा , और आप उस परिस्थिति से उबरने की शक्ति अपने अन्दर महसूस करेंगे !  आजमाया हुआ है ! बहुत कारगर है !
आशा है जैसे यह सूत्र मेरे जीवन मे मुझे प्रेरणा देता है ,आपके जीवन मे भी प्रेरणादायक सिद्ध होगा !

शिष्टाचार – स्वामी विवेकानंद के जीवन का एक प्रेरक प्रसंग

 शिष्टाचार

 स्वामी विवेकानंद जी ने कहा है कि–विश्व  में अधिकांश लोग इसलिए असफल हो जाते हैं, क्योंकि उनमें समय पर साहस का संचार नही हो पाता और वे भयभीत हो उठते हैं।
स्वामीजी की कही सभी बातें हमें उनके जीवन काल की घटनाओं में सजीव दिखाई देती हैं। उपरोक्त लिखे वाक्य को शिकागो की एक घटना ने सजीव  कर दिया, किस तरह विपरीत परिस्थिती में भी उन्होने भारत को गौरवान्वित किया। हमें बहुत गर्व होता है कि हम इस देश के निवासी हैं जहाँ विवेकानंद जी जैसे महान संतो का मार्ग-दशर्न  मिला। आज आपके साथ शिकागो धर्म सम्मेलन से सम्बंधित एक छोटा सा वृत्तान्त बता रहें हैं जो भारतीय संस्कृति में समाहित शिष्टाचार की ओर इंगित करता है|                   
                1893 में शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन चल रहा था। स्वामी विवेकानंद भी उसमें बोलने के लिए गये हुए थे।11सितंबर को स्वामी जी का व्याखान होना था। मंच पर ब्लैक बोर्ड पर लिखा हुआ था- हिन्दू धर्म – मुर्दा धर्म। कोई साधारण व्यक्ति इसे देखकर क्रोधित हो सकता था , पर स्वामी जी भला ऐसा कैसे कर सकते थे| वह बोलने के लिये खङे हुए और उन्होने सबसे पहले (अमरीकावासी बहिनों और भाईयों) शब्दों के साथ श्रोताओं को संबोधित किया। स्वामीजी के शब्द ने जादू कर दिया, पूरी सभा ने करतल ध्वनि से उनका स्वागत किया।
इस हर्ष का कारण था, स्त्रियों को पहला स्थान देना। स्वामी जी ने सारी वसुधा को अपना कुटुबं मानकर सबका स्वागत किया था। भारतीय संस्कृति में निहित शिष्टाचार का यह तरीका किसी को न सूझा था। इस बात का अच्छा प्रभाव पङा। श्रोता मंत्र मुग्ध उनको सुनते रहे, निर्धारित 5 मिनट कब बीत गया पता ही न चला। अध्यक्ष कार्डिनल गिबन्स ने और आगे बोलने का अनुरोध किया। स्वामीजी 20 मिनट से भी अधिक देर तक बोलते रहे|
स्वामीजी की धूम सारे अमेरिका में मच गई। देखते ही देखते हजारों लोग उनके शिष्य बन गए। और तो और, सम्मेलन में कभी शोर मचता तो यह कहकर श्रोताओं को शान्त कराया जाता कि यदि आप चुप रहेंगे तो स्वामी विवेकानंद जी का व्याख्यान सुनने का अवसर दिया जायेगा। सुनते ही सारी जनता शान्त हो कर बैठ जाती।
अपने व्याख्यान से स्वामीजी ने यह सिद्ध कर दिया कि  हिन्दू धर्म भी श्रेष्ठ है, जिसमें सभी धर्मो को अपने अंदर समाहित करने की क्षमता है। भारतिय संसकृति, किसी की अवमानना या निंदा नही करती। इस तरह स्वामी विवेकानंद जी ने सात समंदर पार भारतीय संसकृति की ध्वजा फहराई।

मेरी ताकत

मेरी ताकत 

जापान  के  एक  छोटे  से  कसबे में  रहने  वाले  दस  वर्षीय  ओकायो  को  जूडो  सीखने  का  बहुत  शौक  था . पर  बचपन  में  हुई  एक  दुर्घटना  में  बायाँ  हाथ  कट  जाने  के  कारण  उसके  माता -पिता  उसे  जूडो सीखने  की  आज्ञा  नहीं  देते  थे . पर  अब  वो  बड़ा  हो  रहा  था  और  उसकी  जिद्द  भी  बढती  जा  रही  थी .
 अंततः  माता -पिता  को  झुकना  ही  पड़ा  और  वो  ओकायो  को  नजदीकी  शहर  के  एक  मशहूर मार्शल आर्ट्स   गुरु  के  यहाँ  दाखिला  दिलाने ले  गए .
 गुरु  ने  जब  ओकायो  को  देखा  तो  उन्हें  अचरज  हुआ   कि ,  बिना  बाएँ  हाथ  का  यह  लड़का  भला   जूडो   क्यों  सीखना  चाहता   है ?
उन्होंने  पूछा , “ तुम्हारा  तो  बायाँ   हाथ  ही  नहीं  है  तो  भला  तुम  और  लड़कों  का  मुकाबला  कैसे  करोगे .”
“ ये  बताना  तो  आपका  काम  है” ,ओकायो  ने  कहा . मैं  तो  बस  इतना  जानता  हूँ  कि  मुझे  सभी  को  हराना  है  और  एक  दिन  खुद  “सेंसेई” (मास्टर) बनना  है ”
गुरु  उसकी  सीखने  की  दृढ  इच्छा  शक्ति  से  काफी  प्रभावित  हुए  और  बोले , “ ठीक  है  मैं  तुम्हे  सीखाऊंगा  लेकिन  एक  शर्त  है , तुम  मेरे  हर  एक  निर्देश  का  पालन  करोगे  और  उसमे  दृढ  विश्वास  रखोगे .”
ओकायो  ने  सहमती  में  गुरु  के  समक्ष  अपना  सर  झुका  दिया .
गुरु  ने एक  साथ लगभग  पचास छात्रों  को  जूडो  सीखना  शुरू  किया . ओकायो  भी  अन्य  लड़कों  की  तरह  सीख  रहा  था . पर  कुछ  दिनों  बाद  उसने  ध्यान  दिया  कि  गुरु  जी  अन्य  लड़कों  को  अलग -अलग  दांव -पेंच  सीखा  रहे  हैं  लेकिन  वह  अभी  भी  उसी  एक  किक  का  अभ्यास  कर  रहा  है  जो  उसने  शुरू  में  सीखी  थी . उससे  रहा  नहीं  गया  और  उसने  गुरु  से  पूछा , “ गुरु  जी  आप  अन्य  लड़कों  को  नयी -नयी  चीजें  सीखा  रहे  हैं , पर  मैं  अभी  भी  बस  वही  एक  किक  मारने  का  अभ्यास  कर  रहा  हूँ . क्या  मुझे  और  चीजें  नहीं  सीखनी  चाहियें  ?”
गुरु  जी  बोले , “ तुम्हे  बस  इसी  एक  किक  पर  महारथ  हांसिल  करने  की  आवश्यकता  है ”   और वो आगे बढ़ गए.
ओकायो  को  विस्मय हुआ  पर  उसे  अपने  गुरु  में  पूर्ण  विश्वास  था  और  वह  फिर  अभ्यास  में  जुट  गया .
समय  बीतता  गया  और  देखते -देखते  दो  साल  गुजर  गए , पर  ओकायो  उसी  एक  किक  का  अभ्यास  कर  रहा  था . एक  बार  फिर  ओकायो को चिंता होने लगी और उसने  गुरु  से  कहा  , “ क्या  अभी  भी  मैं  बस  यही  करता  रहूँगा  और बाकी सभी  नयी तकनीकों  में  पारंगत  होते  रहेंगे ”
गुरु  जी  बोले , “ तुम्हे  मुझमे  यकीन  है  तो  अभ्यास  जारी  रखो ”
ओकायो ने गुरु कि आज्ञा का पालन करते हुए  बिना कोई प्रश्न  पूछे अगले  6 साल  तक  उसी  एक  किक  का  अभ्यास  जारी  रखा .
सभी को जूडो  सीखते आठ साल हो चुके थे कि तभी एक  दिन  गुरु जी ने सभी शिष्यों को बुलाया और बोले ” मुझे आपको जो ज्ञान देना था वो मैं दे चुका हूँ और अब गुरुकुल  की परंपरा  के  अनुसार सबसे  अच्छे  शिष्य  का  चुनाव  एक प्रतिस्पर्धा के  माध्यम  से किया जायेगा  और जो इसमें विजयी होने वाले शिष्य को  “सेंसेई” की उपाधि से सम्मानित किया जाएगा.”
प्रतिस्पर्धा आरम्भ हुई.
गुरु जी ओकायो  को  उसके  पहले  मैच में हिस्सा लेने के लिए आवाज़ दी .
ओकायो ने लड़ना शुर किया और खुद  को  आश्चर्यचकित  करते  हुए  उसने  अपने  पहले  दो  मैच  बड़ी  आसानी  से  जीत  लिए . तीसरा मैच  थोडा कठिन  था , लेकिन  कुछ  संघर्ष  के  बाद  विरोधी  ने  कुछ  क्षणों  के  लिए  अपना  ध्यान उस पर से हटा दिया , ओकायो  को  तो  मानो  इसी  मौके  का  इंतज़ार  था  , उसने  अपनी  अचूक  किक  विरोधी  के  ऊपर  जमा  दी  और  मैच  अपने  नाम  कर  लिया . अभी  भी  अपनी  सफलता  से  आश्चर्य  में  पड़े  ओकयो  ने  फाइनल  में  अपनी  जगह  बना  ली .
इस  बार  विरोधी  कहीं अधिक  ताकतवर, अनुभवी  और विशाल   था . देखकर  ऐसा  लगता  था  कि  ओकायो उसके  सामने एक मिनट भी  टिक नहीं  पायेगा .
मैच  शुरू  हुआ  , विरोधी  ओकायो  पर  भारी  पड़ रहा  था , रेफरी  ने  मैच  रोक  कर  विरोधी  को  विजेता  घोषित  करने  का  प्रस्ताव  रखा , लेकिन  तभी  गुरु  जी  ने  उसे रोकते हुए कहा , “ नहीं , मैच  पूरा  चलेगा ”
मैच  फिर  से  शुरू  हुआ .
विरोधी  अतिआत्मविश्वास  से  भरा  हुआ   था  और  अब  ओकायो  को कम आंक रहा था . और इसी  दंभ  में  उसने  एक  भारी  गलती  कर  दी , उसने  अपना  गार्ड  छोड़  दिया !! ओकयो  ने इसका फायदा उठाते हुए आठ  साल  तक  जिस  किक  की प्रैक्टिस  की  थी  उसे  पूरी  ताकत  और सटीकता  के  साथ  विरोधी  के  ऊपर  जड़  दी  और  उसे  ज़मीन पर  धराशाई  कर  दिया . उस  किक  में  इतनी शक्ति  थी  की  विरोधी  वहीँ  मुर्छित  हो  गया  और  ओकायो  को  विजेता  घोषित  कर  दिया  गया .
मैच  जीतने  के  बाद  ओकायो  ने  गुरु  से  पूछा  ,” सेंसेई , भला  मैंने  यह प्रतियोगिता  सिर्फ  एक  मूव  सीख  कर  कैसे  जीत  ली ?”
“ तुम  दो  वजहों  से  जीते ,”  गुरु जी  ने  उत्तर  दिया . “ पहला , तुम  ने जूडो  की  एक  सबसे  कठिन  किक  पर  अपनी इतनी  मास्टरी  कर  ली कि  शायद  ही  इस  दुनिया  में  कोई  और  यह  किक  इतनी  दक्षता   से  मार  पाए , और  दूसरा  कि  इस  किक  से  बचने  का  एक  ही  उपाय  है  , और  वह  है  वोरोधी   के  बाएँ  हाथ  को  पकड़कर  उसे  ज़मीन  पर  गिराना .”
ओकायो  समझ चुका था कि आज उसकी  सबसे  बड़ी  कमजोरी  ही  उसकी  सबसे  बड़ी  ताकत बन  चुकी  थी .
मित्रों human being होने का मतलब ही है imperfect होना. Imperfection अपने आप में बुरी नहीं होती, बुरा होता है हमारा उससे deal करने का तरीका. अगर ओकायो चाहता तो अपने बाएँ हाथ के ना होने का रोना रोकर एक अपाहिज की तरह जीवन बिता सकता था, लेकिन उसने इस वजह से कभी खुद को हीन नहीं महसूस होने दिया. उसमे  अपने सपने को साकार करने की दृढ इच्छा थी और यकीन जानिये जिसके अन्दर यह इच्छा होती है भगवान उसकी मदद के लिए कोई ना कोई गुरु भेज देता है, ऐसा गुरु जो उसकी सबसे बड़ी कमजोरी को ही उसकी सबसे बड़ी ताकत बना उसके सपने साकार कर सकता है.

बुधवार, 19 फ़रवरी 2014

सबसे कीमती चीज

सबसे कीमती चीज

एक जाने-माने स्पीकर ने हाथ में पांच सौ का नोट लहराते हुए अपनी सेमीनार शुरू की. हाल में बैठे सैकड़ों लोगों से उसने पूछा ,” ये पांच सौ का नोट कौन लेना चाहता है?” हाथ उठना शुरू हो गए.
फिर उसने कहा ,” मैं इस नोट को आपमें से किसी एक को दूंगा पर  उससे पहले मुझे ये कर लेने दीजिये .” और उसने नोट को अपनी मुट्ठी में चिमोड़ना शुरू कर दिया. और  फिर उसने पूछा,” कौन है जो अब भी यह नोट लेना चाहता है?” अभी भी लोगों के हाथ उठने शुरू हो गए.
“अच्छा” उसने कहा,” अगर मैं ये कर दूं ? “ और उसने नोट को नीचे गिराकर पैरों से कुचलना शुरू कर दिया. उसने नोट उठाई , वह बिल्कुल चिमुड़ी और गन्दी हो गयी थी.
“ क्या अभी भी कोई है जो इसे लेना चाहता है?”. और एक  बार  फिर हाथ उठने शुरू हो गए.
“ दोस्तों  , आप लोगों ने आज एक बहुत महत्त्वपूर्ण पाठ सीखा है. मैंने इस नोट के साथ इतना कुछ किया पर फिर भी आप इसे लेना चाहते थे क्योंकि ये सब होने के बावजूद नोट की कीमत घटी नहीं,उसका मूल्य अभी भी 500 था.
जीवन में कई बार हम गिरते हैं, हारते हैं, हमारे लिए हुए निर्णय हमें मिटटी में मिला देते हैं. हमें ऐसा लगने लगता है कि हमारी कोई कीमत नहीं है. लेकिन आपके साथ चाहे जो हुआ हो या भविष्य में जो हो जाए , आपका मूल्य कम नहीं होता. आप स्पेशल हैं, इस बात को कभी मत भूलिए.
कभी भी बीते हुए कल की निराशा को आने वाले कल के सपनो को बर्बाद मत करने दीजिये. याद रखिये आपके पास जो सबसे कीमती चीज है, वो है आपका जीवन.”

विजेता मेंढक

बहुत  समय  पहले  की  बात  है  एक  सरोवर  में  बहुत  सारे  मेंढक  रहते  थे . सरोवर  के   बीचों -बीच  एक  बहुत  पुराना  धातु   का  खम्भा  भी  लगा  हुआ   था  जिसे  उस  सरोवर  को  बनवाने  वाले  राजा    ने   लगवाया  था . खम्भा  काफी  ऊँचा  था  और  उसकी  सतह  भी  बिलकुल  चिकनी  थी .
एक  दिन  मेंढकों  के  दिमाग  में  आया  कि  क्यों  ना  एक  रेस  करवाई  जाए . रेस  में  भाग  लेने  वाली  प्रतियोगीयों  को  खम्भे  पर  चढ़ना  होगा , और  जो  सबसे  पहले  एक  ऊपर  पहुच  जाएगा  वही  विजेता  माना  जाएगा .
रेस  का  दिन  आ   पंहुचा , चारो  तरफ   बहुत  भीड़  थी ; आस -पास  के  इलाकों  से  भी  कई  मेंढक  इस  रेस  में  हिस्सा   लेने  पहुचे   . माहौल  में  सरगर्मी थी   , हर  तरफ  शोर  ही  शोर  था .
रेस  शुरू  हुई …
…लेकिन  खम्भे को देखकर  भीड़  में  एकत्र  हुए  किसी  भी  मेंढक  को  ये  यकीन  नहीं हुआकि  कोई  भी  मेंढक   ऊपर  तक  पहुंच  पायेगा …
हर  तरफ  यही सुनाई  देता …
“ अरे  ये   बहुत  कठिन  है ”
“ वो  कभी  भी  ये  रेस  पूरी  नहीं  कर  पायंगे ”
“ सफलता  का  तो  कोई  सवाल ही  नहीं  , इतने  चिकने  खम्भे पर चढ़ा ही नहीं जा सकता  ”
और  यही  हो  भी  रहा  था , जो भी  मेंढक  कोशिश  करता , वो  थोडा  ऊपर  जाकर  नीचे  गिर  जाता ,
कई  मेंढक  दो -तीन  बार  गिरने  के  बावजूद  अपने  प्रयास  में  लगे  हुए  थे …
पर  भीड़  तो अभी भी  चिल्लाये  जा  रही  थी , “ ये  नहीं  हो  सकता , असंभव ”, और  वो  उत्साहित  मेंढक  भी ये सुन-सुनकर हताश हो गए और अपना  प्रयास  छोड़  दिया .
लेकिन  उन्ही  मेंढकों  के  बीच  एक  छोटा  सा  मेंढक  था , जो  बार -बार  गिरने  पर  भी  उसी  जोश  के  साथ  ऊपर  चढ़ने  में  लगा  हुआ  था ….वो लगातार   ऊपर  की  ओर  बढ़ता  रहा ,और  अंततः  वह  खम्भे के  ऊपर  पहुच  गया  और इस रेस का  विजेता  बना .
उसकी  जीत  पर  सभी  को  बड़ा  आश्चर्य  हुआ , सभी मेंढक  उसे  घेर  कर  खड़े  हो  गए  और  पूछने  लगे   ,” तुमने  ये  असंभव  काम  कैसे  कर  दिखाया , भला तुम्हे   अपना  लक्ष्य   प्राप्त  करने  की  शक्ति  कहाँ  से  मिली, ज़रा हमें भी तो बताओ कि तुमने ये विजय कैसे प्राप्त की ?”
तभी  पीछे  से  एक  आवाज़  आई … “अरे  उससे  क्या  पूछते  हो , वो  तो  बहरा  है ”
Friends, अक्सर हमारे अन्दर अपना लक्ष्य प्राप्त करने की काबीलियत होती है, पर हम अपने चारों तरफ मौजूद नकारात्मकता की वजह से खुद को कम आंक बैठते हैं और हमने जो बड़े-बड़े सपने देखे होते हैं उन्हें पूरा किये बिना ही अपनी ज़िन्दगी गुजार देते हैं . आवश्यकता  इस बात की है हम हमें कमजोर बनाने वाली हर एक आवाज के प्रति बहरे और ऐसे हर एक दृश्य के प्रति अंधे हो जाएं. और तब हमें सफलता के शिखर पर पहुँचने से कोई नहीं रोक पायेगा.

अंधा घोड़ा

अंधा घोड़ा 

शहर के नज़दीक बने एक farm house में दो घोड़े रहते थे. दूर से देखने पर वो दोनों बिलकुल एक जैसे दीखते थे , पर पास जाने पर पता चलता था कि उनमे से एक घोड़ा अँधा है. पर अंधे होने के बावजूद farm के मालिक ने उसे वहां से निकाला नहीं था बल्कि उसे और भी अधिक सुरक्षा और आराम के साथ रखा था. अगर कोई थोडा और ध्यान देता तो उसे ये भी पता चलता कि मालिक ने दूसरे घोड़े के गले में एक घंटी बाँध रखी थी, जिसकी आवाज़ सुनकर अँधा घोड़ा उसके पास पहुंच जाता और उसके पीछे-पीछे बाड़े में घूमता. घंटी वाला घोड़ा भी अपने अंधे मित्र की परेशानी समझता, वह बीच-बीच में पीछे मुड़कर देखता और इस बात को सुनिश्चित करता कि कहीं वो रास्ते से भटक ना जाए. वह ये भी सुनिश्चित करता कि उसका मित्र सुरक्षित; वापस अपने स्थान  पर पहुच जाए, और उसके बाद ही वो अपनी जगह की ओर बढ़ता.
दोस्तों, बाड़े के मालिक की तरह ही भगवान हमें बस इसलिए नहीं छोड़ देते कि हमारे अन्दर कोई दोष या कमियां हैं.  वो हमारा ख्याल रखते हैं और हमें जब भी ज़रुरत होती है तो किसी ना किसी को हमारी मदद के लिए भेज देते हैं. कभी-कभी हम वो अंधे घोड़े होते हैं, जो भगवान द्वारा बांधी गयी घंटी की मदद से अपनी परेशानियों से पार पाते हैं तो कभी हम अपने गले में बंधी घंटी द्वारा दूसरों को रास्ता दिखाने के काम आते हैं.

बाज की उड़ान

बाज की उड़ान 

एक बार की बात है कि एक बाज का अंडा मुर्गी के अण्डों के बीच आ गया. कुछ दिनों  बाद उन अण्डों में से चूजे निकले, बाज का बच्चा भी उनमे से एक था.वो उन्ही के बीच बड़ा होने लगा. वो वही करता जो बाकी चूजे करते, मिटटी में इधर-उधर खेलता, दाना चुगता और दिन भर उन्हीकी तरह चूँ-चूँ करता. बाकी चूजों की तरह वो भी बस थोडा सा ही ऊपर उड़ पाता , और पंख फड़-फडाते हुए नीचे आ जाता . फिर एक दिन उसने एक बाज को खुले आकाश में उड़ते हुए देखा, बाज बड़े शान से बेधड़क उड़ रहा था. तब उसने बाकी चूजों से पूछा, कि-
” इतनी उचाई पर उड़ने वाला वो शानदार पक्षी कौन है?”
तब चूजों ने कहा-” अरे वो बाज है, पक्षियों का राजा, वो बहुत ही ताकतवर और विशाल है , लेकिन तुम उसकी तरह नहीं उड़ सकते क्योंकि तुम तो एक चूजे हो!”
बाज के बच्चे ने इसे सच मान लिया और कभी वैसा बनने की कोशिश नहीं की. वो ज़िन्दगी भर चूजों की तरह रहा, और एक दिन बिना अपनी असली ताकत पहचाने ही मर गया.
 दोस्तों , हममें से बहुत से लोग  उस बाज की तरह ही अपना असली potential जाने बिना एक second-class ज़िन्दगी जीते रहते हैं, हमारे आस-पास की mediocrity हमें भी mediocre बना देती है.हम में ये भूल जाते हैं कि हम आपार संभावनाओं से पूर्ण एक प्राणी हैं. हमारे लिए इस जग में कुछ भी असंभव नहीं है,पर फिर भी बस एक औसत जीवन जी के हम इतने बड़े मौके को गँवा देते हैं.
आप चूजों  की तरह मत बनिए , अपने आप पर ,अपनी काबिलियत पर भरोसा कीजिए. आप चाहे जहाँ हों, जिस परिवेश में हों, अपनी क्षमताओं को पहचानिए और आकाश की ऊँचाइयों पर उड़ कर  दिखाइए  क्योंकि यही आपकी वास्तविकता है.

आज ही क्यों नहीं ?

आज ही क्यों नहीं ? 

एक बार की बात है कि एक शिष्य अपने गुरु का बहुत आदर-सम्मान किया करता था |गुरु भी अपने इस शिष्य से बहुत स्नेह करते थे लेकिन  वह शिष्य अपने अध्ययन के प्रति आलसी और स्वभाव से दीर्घसूत्री था |सदा स्वाध्याय से दूर भागने की कोशिश  करता तथा आज के काम को कल के लिए छोड़ दिया करता था | अब गुरूजी कुछ चिंतित रहने लगे कि कहीं उनका यह शिष्य जीवन-संग्राम में पराजित न हो जाये|आलस्य में व्यक्ति को अकर्मण्य बनाने की पूरी सामर्थ्य होती है |ऐसा व्यक्ति बिना परिश्रम के ही फलोपभोग की कामना करता है| वह शीघ्र निर्णय नहीं ले सकता और यदि ले भी लेता है,तो उसे कार्यान्वित नहीं कर पाता| यहाँ तक कि  अपने पर्यावरण के प्रति  भी सजग नहीं रहता है और न भाग्य द्वारा प्रदत्त सुअवसरों का लाभ उठाने की कला में ही प्रवीण हो पता है | उन्होंने मन ही मन अपने शिष्य के कल्याण के लिए एक योजना बना ली |एक दिन एक काले पत्थर का एक टुकड़ा उसके हाथ में देते हुए गुरु जी ने कहा –‘मैं तुम्हें यह जादुई पत्थर का टुकड़ा, दो दिन के लिए दे कर, कहीं दूसरे गाँव जा रहा हूँ| जिस भी लोहे की वस्तु को तुम इससे स्पर्श करोगे, वह स्वर्ण में परिवर्तित हो जायेगी| पर याद रहे कि दूसरे दिन सूर्यास्त के पश्चात मैं इसे तुमसे वापस ले लूँगा|’
 शिष्य इस सुअवसर को पाकर बड़ा प्रसन्न हुआ लेकिन आलसी होने के कारण उसने अपना पहला दिन यह कल्पना करते-करते बिता दिया कि जब उसके पास बहुत सारा स्वर्ण होगा तब वह कितना प्रसन्न, सुखी,समृद्ध और संतुष्ट रहेगा, इतने नौकर-चाकर होंगे कि उसे पानी पीने के लिए भी नहीं उठाना पड़ेगा | फिर दूसरे दिन जब वह  प्रातःकाल जागा,उसे अच्छी तरह से स्मरण था कि आज स्वर्ण पाने का दूसरा और अंतिम दिन है |उसने मन में पक्का विचार किया कि आज वह गुरूजी द्वारा दिए गये काले पत्थर का लाभ ज़रूर उठाएगा | उसने निश्चय किया कि वो बाज़ार से लोहे के बड़े-बड़े सामान खरीद कर लायेगा और उन्हें स्वर्ण में परिवर्तित कर देगा. दिन बीतता गया, पर वह इसी सोच में बैठा रहा की अभी तो बहुत समय है, कभी भी बाज़ार जाकर सामान लेता आएगा. उसने सोचा कि अब तो  दोपहर का भोजन करने के पश्चात ही सामान लेने निकलूंगा.पर भोजन करने के बाद उसे विश्राम करने की आदत थी , और उसने बजाये उठ के मेहनत करने के थोड़ी देर आराम करना उचित समझा. पर आलस्य से परिपूर्ण उसका शरीर नीद की गहराइयों में खो गया, और जब वो उठा तो सूर्यास्त होने को था. अब वह जल्दी-जल्दी बाज़ार की तरफ भागने लगा, पर रास्ते में ही उसे गुरूजी मिल गए उनको देखते ही वह उनके चरणों पर गिरकर, उस जादुई पत्थर को एक दिन और अपने पास रखने के लिए याचना करने लगा लेकिन गुरूजी नहीं माने और उस शिष्य का धनी होने का सपना चूर-चूर हो गया | पर इस घटना की वजह से शिष्य को एक बहुत बड़ी सीख मिल गयी: उसे अपने आलस्य पर पछतावा होने लगा, वह समझ गया कि आलस्य उसके जीवन के लिए एक अभिशाप है और उसने प्रण किया कि अब वो कभी भी काम से जी नहीं चुराएगा और एक कर्मठ, सजग और सक्रिय व्यक्ति बन कर दिखायेगा.
 मित्रों, जीवन में हर किसी को एक से बढ़कर एक अवसर मिलते हैं , पर कई लोग इन्हें बस अपने आलस्य के कारण गवां देते हैं. इसलिए मैं यही कहना चाहती हूँ कि यदि आप सफल, सुखी, भाग्यशाली, धनी अथवा महान  बनना चाहते हैं तो आलस्य और दीर्घसूत्रता को त्यागकर, अपने अंदर विवेक, कष्टसाध्य श्रम,और सतत् जागरूकता जैसे गुणों को विकसित कीजिये और जब कभी आपके मन में किसी आवश्यक काम को टालने का विचार आये तो स्वयं से एक प्रश्न कीजिये – “आज ही क्यों नहीं ?”

बाड़े की कील

 बाड़े की कील 

बहुत समय पहले की बात है, एक गाँव में एक लड़का रहता था. वह बहुत ही गुस्सैल था, छोटी-छोटी बात पर अपना आप खो बैठता और लोगों को भला-बुरा कह देता. उसकी इस आदत से परेशान होकर एक दिन उसके पिता ने उसे कीलों से भरा हुआ एक थैला दिया और कहा कि , ” अब जब भी तुम्हे गुस्सा आये तो तुम इस थैले में से एक कील निकालना और बाड़े में ठोक देना.”
 पहले दिन उस लड़के को चालीस बार गुस्सा किया और इतनी ही कीलें बाड़े में ठोंक दी.पर  धीरे-धीरे कीलों  की संख्या घटने लगी,उसे लगने लगा की कीलें ठोंकने में इतनी मेहनत करने से अच्छा है कि अपने क्रोध पर काबू किया जाए और अगले कुछ हफ्तों में उसने अपने गुस्से पर बहुत हद्द तक  काबू करना सीख लिया. और फिर एक दिन ऐसा आया कि उस लड़के ने पूरे दिन में एक बार भी अपना temper नहीं loose किया.
जब उसने अपने पिता को ये बात बताई तो उन्होंने ने फिर उसे एक काम दे दिया, उन्होंने कहा कि ,” अब हर उस दिन जिस दिन तुम एक बार भी गुस्सा ना करो इस बाड़े से एक कील निकाल निकाल देना.”
लड़के ने ऐसा ही किया, और बहुत समय बाद वो दिन भी आ गया जब लड़के ने बाड़े में लगी आखिरी कील भी निकाल दी, और अपने पिता को ख़ुशी से ये बात बतायी.
तब पिताजी उसका हाथ पकड़कर उस बाड़े के पास ले गए, और बोले, ” बेटे तुमने बहुत अच्छा काम किया है, लेकिन क्या तुम बाड़े में हुए छेदों को देख पा रहे हो. अब वो बाड़ा कभी भी वैसा नहीं बन सकता जैसा वो पहले था.जब तुम क्रोध में कुछ कहते हो तो वो शब्द भी इसी तरह सामने वाले व्यक्ति पर गहरे घाव छोड़ जाते हैं.”
इसलिए अगली बार अपना temper loose करने से पहले सोचिये कि क्या आप भी उस बाड़े में और कीलें ठोकना चाहते हैं !!!

तितली का संघर्ष

तितली का संघर्ष 

एक बार एक आदमी को अपने garden में टहलते हुए किसी टहनी से लटकता हुआ एक तितली का कोकून दिखाई पड़ा. अब हर रोज़ वो आदमी उसे देखने लगा , और एक दिन उसने notice किया कि उस कोकून में एक छोटा सा छेद बन गया है. उस दिन वो वहीँ बैठ गया और घंटो उसे देखता रहा. उसने देखा की तितली उस खोल से बाहर निकलने की बहुत कोशिश कर रही है , पर बहुत देर तक प्रयास करने के बाद भी वो उस छेद से नहीं निकल पायी , और फिर वो बिलकुल शांत हो गयी मानो उसने हार मान ली हो.
इसलिए उस आदमी ने निश्चय किया कि वो उस तितली की मदद करेगा. उसने एक कैंची उठायी और कोकून की opening को इतना बड़ा कर दिया की वो तितली आसानी से बाहर निकल सके. और यही हुआ, तितली बिना किसी और संघर्ष के आसानी से बाहर निकल आई, पर उसका शरीर सूजा हुआ था,और पंख सूखे हुए थे.
वो आदमी तितली को ये सोच कर देखता रहा कि वो किसी भी वक़्त अपने पंख फैला कर उड़ने लगेगी, पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. इसके उलट बेचारी तितली कभी उड़ ही नहीं पाई और उसे अपनी बाकी की ज़िन्दगी इधर-उधर घिसटते हुए बीतानी पड़ी.
वो आदमी अपनी दया और जल्दबाजी में ये नहीं समझ पाया की दरअसल कोकून से निकलने की प्रक्रिया को प्रकृति ने इतना कठिन इसलिए बनाया है ताकि ऐसा करने से तितली के शरीर में मौजूद तरल उसके पंखों में पहुच सके और  वो छेद से बाहर निकलते ही उड़ सके.
वास्तव में कभी-कभी हमारे जीवन में संघर्ष ही वो चीज होती जिसकी हमें सचमुच आवश्यकता होती है. यदि हम बिना किसी struggle के सब कुछ पाने लगे तो हम भी एक अपंग के सामान हो जायेंगे. बिना परिश्रम और संघर्ष के हम कभी उतने मजबूत नहीं बन सकते जितना हमारी क्षमता है. इसलिए जीवन में आने वाले कठिन पलों को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखिये वो आपको कुछ ऐसा सीखा जायंगे जो आपकी ज़िन्दगी की उड़ान को possible बना पायेंगे.