सोमवार, 3 मार्च 2014

जब हवा चलती है…..

जब हवा चलती है….. 

बहुत  समय  पहले  की  बात  है , आइस्लैंड के उत्तरी छोर पर  एक  किसान  रहता  था . उसे  अपने  खेत  में  काम  करने  वालों  की  बड़ी  ज़रुरत  रहती  थी  लेकिन  ऐसी  खतरनाक  जगह , जहाँ  आये  दिन  आंधी  –तूफ़ान  आते  रहते हों , कोई  काम  करने  को  तैयार  नहीं  होता  था .
किसान  ने  एक  दिन  शहर  के  अखबार  में  इश्तहार  दिया  कि  उसे   खेत  में   काम  करने  वाले एक मजदूर की  ज़रुरत  है . किसान से मिलने कई  लोग  आये  लेकिन  जो भी  उस  जगह  के  बारे  में  सुनता  , वो काम  करने  से  मन  कर  देता . अंततः  एक  सामान्य  कद  का  पतला -दुबला  अधेड़  व्यक्ति  किसान  के  पास  पहुंचा .
किसान  ने  उससे  पूछा  , “ क्या  तुम  इन  परिस्थितयों  में   काम  कर  सकते  हो ?”
“ ह्म्म्म , बस जब  हवा चलती  है  तब  मैं  सोता  हूँ .” व्यक्ति  ने  उत्तर  दिया .
किसान  को  उसका  उत्तर  थोडा अजीब  लगा  लेकिन  चूँकि  उसे  कोई  और  काम  करने  वाला  नहीं  मिल  रहा  था इसलिए  उसने  व्यक्ति  को  काम  पर  रख  लिया.
 मजदूर मेहनती  निकला  ,  वह  सुबह  से  शाम  तक  खेतों  में  म्हणत  करता , किसान  भी  उससे   काफी  संतुष्ट  था .कुछ ही दिन बीते थे कि  एक   रात  अचानक  ही जोर-जोर से हवा बहने  लगी  , किसान  अपने  अनुभव  से  समझ  गया  कि  अब  तूफ़ान  आने  वाला  है . वह   तेजी  से  उठा  , हाथ  में  लालटेन  ली   और  मजदूर  के  झोपड़े  की  तरफ  दौड़ा .
“ जल्दी  उठो , देखते  नहीं  तूफ़ान  आने वाला  है , इससे  पहले  की  सबकुछ  तबाह  हो जाए कटी फसलों  को  बाँध  कर  ढक दो और बाड़े के गेट को भी रस्सियों से कास दो .” किसान  चीखा .
मजदूर बड़े आराम से पलटा  और  बोला , “ नहीं  जनाब , मैंने  आपसे  पहले  ही कहा था  कि  जब  हवा  चलती  है  तो  मैं  सोता  हूँ !!!.”
यह  सुन  किसान  का  गुस्सा  सातवें  आसमान  पर  पहुँच  गया ,  जी  में आया  कि  उस  मजदूर  को   गोली  मार  दे , पर  अभी  वो आने  वाले  तूफ़ान  से चीजों को बचाने  के  लिए  भागा  .
किसान खेत में पहुंचा और उसकी आँखें आश्चर्य से खुली रह गयी , फसल  की गांठें  अच्छे  से  बंधी  हुई   थीं  और  तिरपाल  से  ढकी  भी  थी , उसके  गाय -बैल  सुरक्षित बंधे  हुए  थे  और  मुर्गियां  भी  अपने  दडबों  में  थीं … बाड़े  का  दरवाज़ा  भी  मजबूती  से  बंधा  हुआ  था . साड़ी  चीजें  बिलकुल  व्यवस्थित  थी …नुक्सान होने की कोई संभावना नहीं बची थी.किसान  अब   मजदूर की ये  बात  कि  “ जब  हवा चलती है  तब  मैं  सोता  हूँ ”…समझ  चुका  था , और  अब  वो  भी  चैन  से   सो  सकता  था .
मित्रों ,  हमारी  ज़िन्दगी  में भी कुछ ऐसे तूफ़ान आने तय हैं , ज़रुरत इस बात की है कि हम  उस  मजदूर की  तरह पहले से तैयारी कर के रखें ताकि  मुसीबत  आने  पर  हम भी चैन  से  सो सकें.  जैसे कि यदि कोई विद्यार्थी शुरू से पढ़ाई करे तो परीक्षा के समय वह आराम से रह सकता है, हर महीने बचत करने वाला व्यक्ति पैसे की ज़रुरत पड़ने पर निश्चिंत रह सकता है, इत्यादि.
तो चलिए हम भी कुछ ऐसा करें कि कह सकें – ” जब हवा चलती है तो मैं सोता हूँ.”

रविवार, 2 मार्च 2014

सलाह लें ,पर संभल कर…..

सलाह लें ,पर संभल कर…..

मनुष्य एक  सामाजिक प्राणी है. जो की लोगो के समूह के बीच मे रहता है ,इस समूह मे कई तरह के रिश्तो को वो निभाता है !  कुछ रिश्ते निस्स्वार्थ होते है ,जबकि अधिकतर रिश्तो की नीव स्वार्थ पर टिकी होती है!   हम जो professional relation  बनाते हैं, वो अधिकतर आदान प्रदान या यो कहें एक से दूसरे  को ,और दूसरे  से पहले व्यक्ति को फायदे की बुनियाद पर ही टिके होते हैं!  मैं यह नहीं कह रहा की सभी रिश्तो के पीछे स्वार्थ ही होता है,  लेकिन हाँ आज की दुनिया में  अधिकतर इंसान अपना फायदा देख कर ही relation  बनाते हैं!
दोस्तों ऐसा कई बार होता है ,की हम किसी दुविधा मे  फंस जाते हैं और हमे किसी की  राय की जरुरत पड़ती है, तब  हम अपने आस पास के लोगों से उस बारे मे सलाह मशवरा करते है कि हमे क्या करना चाहिये ,कई बार उनकी राय हमें सही रास्ते का मार्ग दिखाती है तो कभी और ज्यादा हमारे नुक्सान का सबब बन जाती है!
अगर आप माता पिता ,भाई बहन ,सच्चा दोस्त आदि निस्स्वार्थ रिश्तो को ,  जो की आप को सही राय ही देते हैं,  छोड़ दें ,  तो बाकी अधिकतर समाज के और work place  के लोगो से सलाह  लें जरूर ,पर अपना विवेक भी बनाय रखें !  क्योंकि कई बार ऐसे सलाह देने वालो का स्वार्थ भी उनकी सलाह मे छुपा रहता है!     इसलिए - सुने सबकी पर माने अपने विवेक और अंतरात्मा की
एक  बार एक आदमी अपने छोटे से बालक के साथ एक घने जंगल से जा रहा था!   तभी रास्ते मे उस बालक को प्यास लगी ,  और उसे पानी पिलाने उसका पिता उसे एक  नदी पर ले गया , नदी पर पानी पीते पीते अचानक वो बालक पानी मे गिर गया ,  और डूबने से उसके प्राण निकल गए!   वो आदमी बड़ा दुखी हुआ,  और उसने सोचा की इस घने जंगल मे इस बालक की अंतिम क्रिया किस प्रकार करूँ !   तभी उसका रोना सुनकर एक गिद्ध ,  सियार और नदी से एक कछुआ वहा आ गए ,  और उस आदमी से सहानुभूति व्यक्त करने लगे ,  आदमी की परेशानी जान कर सब अपनी अपनी सलाह  देने लगे!
सियार ने लार टपकाते हुए कहा ,  ऐसा करो   इस बालक के शरीर को इस जंगल मे ही किसी चट्टान के ऊपर छोड़ जाओ, धरती  माता इसका उद्धार कर देगी!   तभी गिद्ध अपनी ख़ुशी छुपाते हुए बोला,    नहीं धरती पर तो इसको जानवर खा जाएँगे,     ऐसा करो इसे किसी वृक्ष के ऊपर डाल दो ,ताकि सूरज की गर्मी से इसकी अंतिम गति अच्छी होजाएगी!    उन दोनों की बाते सुनकर कछुआ भी अपनी भूख को छुपाते हुआ बोला ,नहीं आप इन दोनों की बातो मे मत आओ, इस  बालक की जान पानी मे गई है,  इसलिए आप इसे नदी मे ही बहा दो !
और इसके बाद तीनो अपने अपने कहे अनुसार उस आदमी पर जोर डालने लगे !   तब उस आदमी ने अपने विवेक का सहारा लिया और उन तीनो से कहा ,  तुम तीनो की सहानुभूति भरी सलाह मे   मुझे तुम्हारे स्वार्थ की गंध आ रही है,  सियार चाहता  है  की मैं इस बालक  के शरीर को ऐसे ही जमीन पर छोड़ दूँ  ताकि ये उसे आराम से खा सके,  और गिद्ध   तुम  किसी पेड़ पर इस बालक के शरीर  को इसलिए रखने की सलाह दे रहे हो ताकि इस सियार और कछुआ से बच कर आराम से तुम दावत उड़ा सको ,  और कछुआ   तुम नदी के अन्दर रहते हो   इसलिए नदी मे अपनी दावत का इंतजाम कर रहे हो  !  तुम्हे सलाह देने के लिए  धन्यवाद , लेकिन मै इस बालक के शरीर  को अग्नि को समर्पित करूँगा ,  ना की तुम्हारा भोजन बनने दूंगा!    यह सुन कर वो तीनो  अपना सा मुह लेकर वहा से चले गए!
दोस्तों  मै यह नहीं कह रहा हूँ की हर व्यक्ति आपको स्वार्थ  भरी सलाह ही देगा ,  लेकिन आज के इस competitive युग मे   हम अगर अपने विवेक की छलनी  से किसी सलाह को छान ले  तो शायद ज्यादा सही रहेगा ! हो सकता है की आप लोग मेरी बात से पूरी तरह सहमत ना हो ,पर कहीं ना कहीं आज के युग में ये भी तो सच है कि  -  मेरे नज़दीक रहते है कुछ दोस्त ऐसे ,जो मुझ में  ढुंढते  है गलतियां अपनी……….

शनिवार, 1 मार्च 2014

परमात्मा और किसान

परमात्मा और किसान  

एक बार एक  किसान परमात्मा से बड़ा नाराज हो गया ! कभी बाढ़ आ जाये, कभी सूखा पड़ जाए, कभी धूप बहुत तेज हो जाए तो कभी ओले पड़ जाये! हर बार कुछ ना कुछ कारण से उसकी फसल थोड़ी ख़राब हो जाये! एक  दिन बड़ा तंग आ कर उसने परमात्मा से कहा ,देखिये प्रभु,आप परमात्मा हैं , लेकिन लगता है आपको खेती बाड़ी की ज्यादा जानकारी नहीं है ,एक प्रार्थना है कि एक साल मुझे मौका दीजिये , जैसा मै चाहू वैसा मौसम हो,फिर आप देखना मै कैसे अन्न के भण्डार भर दूंगा! परमात्मा मुस्कुराये और कहा ठीक है, जैसा तुम कहोगे वैसा ही मौसम  दूंगा, मै दखल नहीं करूँगा!
किसान ने गेहूं की फ़सल बोई ,जब धूप  चाही ,तब धूप  मिली, जब पानी तब पानी ! तेज धूप, ओले,बाढ़ ,आंधी तो उसने आने ही नहीं दी, समय के साथ फसल बढ़ी और किसान की ख़ुशी भी,क्योंकि ऐसी फसल तो आज तक नहीं हुई  थी !  किसान ने मन ही मन सोचा अब पता चलेगा परमात्मा को, की फ़सल कैसे करते हैं ,बेकार ही इतने बरस हम किसानो को परेशान करते रहे.
फ़सल काटने का समय भी आया ,किसान बड़े गर्व से फ़सल काटने गया, लेकिन जैसे ही फसल काटने लगा ,एकदम से छाती पर हाथ रख कर बैठ गया!  गेहूं की एक भी बाली के अन्दर गेहूं नहीं था ,सारी बालियाँ अन्दर से खाली थी,  बड़ा दुखी होकर उसने परमात्मा से कहा ,प्रभु  ये  क्या हुआ ?
तब परमात्मा बोले,” ये तो होना ही था  ,तुमने पौधों  को संघर्ष का ज़रा  सा  भी मौका नहीं दिया . ना तेज  धूप में उनको तपने दिया , ना आंधी ओलों से जूझने दिया ,उनको  किसी प्रकार की चुनौती  का अहसास जरा भी नहीं होने दिया , इसीलिए सब पौधे खोखले रह गए, जब आंधी आती है, तेज बारिश होती है ओले गिरते हैं तब पोधा अपने बल से ही खड़ा रहता है, वो अपना अस्तित्व बचाने का संघर्ष करता है और इस संघर्ष से जो बल पैदा होता है वोही उसे शक्ति देता है ,उर्जा देता है, उसकी जीवटता को उभारता है.सोने को भी कुंदन बनने के लिए आग में तपने , हथौड़ी  से पिटने,गलने जैसी चुनोतियो से गुजरना पड़ता है तभी उसकी स्वर्णिम आभा उभरती है,उसे अनमोल बनाती है !”
उसी तरह जिंदगी में भी अगर संघर्ष ना हो ,चुनौती  ना हो तो आदमी खोखला  ही रह जाता है, उसके अन्दर कोई गुण नहीं आ पाता ! ये चुनोतियाँ  ही हैं जो आदमी रूपी तलवार को धार देती हैं ,उसे सशक्त और प्रखर बनाती हैं, अगर प्रतिभाशाली बनना है तो चुनोतियाँ  तो स्वीकार करनी ही पड़ेंगी, अन्यथा हम खोखले ही रह जायेंगे.  अगर जिंदगी में प्रखर बनना है,प्रतिभाशाली बनना है ,तो संघर्ष और चुनोतियो का सामना तो करना ही पड़ेगा !