सोमवार, 12 मई 2014

सिज़ोफेरनिया क्‍या है

सिज़ोफेरनिया एक दिमाग से जुड़ी परेशानी है जिसमें कि दिमाग कमज़ोर हो जाता है। भारतीय और अमेरिकन्स में यह बहुत ही आम बीमारी है जिसने लगभग एक प्रतिशत लोगों को प्रभावित किया है। यह बीमारी किसी भी उम्र के लोगों में कभी भी हो सकती है। मानसिक स्वास्थ्य संस्थान के अनुसार यह बीमारी जब बच्चा गर्भ में होता है उस समय न्यूरान में हुई गड़बड़ी से होती है।

अधिकतर लोगों में युवावस्था तक इस बीमारी के लक्षण छिपे होते हैं और इस अवस्था में आकर ही यह लक्षण दिखते हैं। इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति वास्तविक दुनिया से कोसों दूर रहता है और अपने आपको लोगों और घटनाओं से अलग समझने लगता है। मरीज़ो को आवाज़े भी सुनाई देती है और वो इन आवाज़ों को सही मान लेते हैं। ऐसे लोग ठीक प्रकार से सोच नहीं पाते क्योंकि उनके दिमाग में बहुत सी बातें एक साथ आती रहती हैं। उनकी संवेदनाएं और अभिव्यक्ति लगभग शून्य होती है। एक सिज़ोफेरनिया का मरीज़ एक आम इन्सान जितना ही उग्र होता है।

सिज़ोफेरनिया के लक्षण:

सिज़ोफेरनिया के कई प्रकार पाये गये हैं और हर एक प्रकार दूसरे से अलग होता है। जब हम सिज़ोफेरनिया की बात करते हैं तो पहली बात हमारे दिमाग में आती है पैरानायड पर्सनालिटी की। इस प्रकार के मरीज़ एक छोटे समूह में रहना पसन्द करते हैं और उन्हें ऐसा लगता है कि लोग उन्हें पसन्द नहीं करते। अगर इनकी बात कोई नहीं मानता तो यह खिज कर अपने काम में मन लगाना छोड़ देते हैं।

सिज़ोफेरनिया से ग्रसित लोगों की सोच मिली जुली होती है जिससे कि वो अपनी सोच को ना ही सही दिशा में ले जा पाते हैं और ना ही किसी परिणाम तक पहुंच पाते हैं। इस प्रकार की मिली जुली सोच ल्युसिनेशन और डिल्यूज़न को जन्म देती है ।

रेसिडुअल सिज़ोफेरनिया वह स्थिति है जो नार्मल सिज़ोफेरनिया जैसी स्थिति नहीं है लेकिन इस बीमारी से ग्रसित लोग जीवन में अपनी रूचि खो देते हैं। सिज़ोफेरनिया के मरीज़ बहुत ही सुस्त और उदासीन होते हैं ा कभी कभी वो अवसाद के साथ बाइपोलर डिज़ार्डर भी दर्शाते हैं।

सिज़ोफेरनिया की चिकित्सा:

सिज़ोफेरनिया के मरीज़ों को एण्टी साइकाटिक ड्रग्स दिया जाता है ा क्लोज़ापिन ड्रग्स का इस्तेमाल बहुत समय से होता आया है और यह नयी दवाओं से भी ज़्यादा प्रभावी है। रिस्पैरिडोन और ओलैनज़ापाइन ऐसे ड्रग्स हैं जिनसे कि हैल्युसिनेशन और डिल्युज़न से आराम मिलता है।

इन दवाओं को लेने के बाद भी जब बीमारी पूरी तरीके से ठीक हो जाये तब दवाओं का इस्तेमाल धीरे धीरे बंद करना चाहिए। सिज़ोफेरनिया की चिकित्सा में आगे जाकर एण्टी डीप्रेसिव, एण्टी एनज़ाइटी और एण्टी कनवल्सिव दवाओं के इस्तेमाल से प्राथमिक चिकित्सा के अतिरिक्त असर नहीं दिखते और बाई पोलर मानिया से भी बचा जा सकता है।

रविवार, 11 मई 2014

अवसाद के लिए आयुर्वेदिक उपचार

अवसाद, दिमाग से संबंधित एक प्रकार की बीमारी है। जब एक व्यक्ति अचानक उदासी, लाचारी, अपराध,और निराशा की  भावनाओं के साथ परिग्रहित हो जाता है,तब उसे उदास महसूस होता हैं, ऐसा कहा जा सकता हैं।  मनोदशा में स्वाभाविक रूप से परिवर्तन होता हैं, और दिमाग की शारीरिक और मानसिक स्थिति को प्रभावित करता है। एक व्यक्ति का वजन बढ सकता हैं, या वजन घट भी सकता हैं, उसे उसके आसपास की किसी भी चिज में कोई दिलचस्पी नहीं लगती है और आम तौर पर चिड़चिड़ा और अकेले रहना पसंद करता है। इससे उसके दोस्तों, परिवार और सह कार्यकर्ताओं के साथ के संबंध प्रभावित होते हैं।

कुछ लोगों को किसी विशेष मौसम (मौसमी अवसाद) में अवसाद महसूस होता हैं, जबकि कुछ लोगों को उनके जिवन में घटी किसी दुर्घटना के बाद अवसाद होता है, हालांकि उसका कारण कुछ भी हो, अवसाद से व्यक्ति के जिवन को पूर्णरुप से तबाह करने से पहिले उसका इलाज करना आवश्यक हैं। अवसाद के लिए किये जाने वाले उपचारों में कुछ आयुर्वेदिक उपचार भी है।
 आयुर्वेद नें हमें इतने सारी अलग अलग जड़ी बूटियां दी हैं, कि हमे अवसाद पर उपचार ढुंढने के लिए काफी दूर जाने की जरुरत नही हैं। ऐसी ही कुछ जडी बूटियों की एक सूची का उल्लेख नीचे की पंक्तियों में किया है, जो आसानी से मिल सकती हैं, और अवसाद के उपचार में अद्भुत काम करती हैं।
पवित्र तुलसी (तुलसी पत्ता) -  तुलसी के पत्ते के साथ कुछ चीनी, दालचीनी और सूखे अदरक जड़ों के साथ गर्म पानी डालकर मिश्रण बनाए और एक दिन में 5 से 6 बार उसे पिए। इससे आपकी मनोदशा पर नियंत्रण रखने में मदद मिलेगी।
इलायची - इलायची की एक सुखद खुशबू होती हैं। इसे आपकी चाय में डालकर ले। यह चाय अपको शांत करेगी।
अदरक - यदि आपको इलायची पसंद नही हैं, तो आप अपनी चाय में कुछ अदरक डाल सकते हैं। अदरक का अवसाद विरोधी गुण आपको खुश करने में मदद करेगा। जल्द राहत मिलने के लिए आपके खाने में सूखी अदरक की जड़ का कुछ पाउडर डालें।
काली मिर्च - काली मिर्च अवसाद के लिए उपचार में उपयोग की जाने वाली एक अन्य महत्वपूर्ण जडी बूटी हैं, यह अवसाद के लिए कारक आपके दोषों को दूर करता हैं।

ब्राह्मी - ब्राह्मी एक बहुत लोकप्रिय आयुर्वेदिक पौधा हैं, जिसमे दिमाग को शांत करने वाले गुण होते है, जो एक व्यक्ति को शांत करने में मदद करते हैं। ब्राह्मी तेल को बेचनें वाले कई ब्रांड हैं, जिसको नियमित रुप से लागू करना चाहिए, जिससे दिमाग शांत रहेगा।
हल्दी -  हल्दी मौसमी अवसाद पर प्रभावी ढंग से उपचार करने में मदद करती है। यदि आपको मौसम में परिवर्तन के साथ उदास लगता हैं, तो गर्म दूध में चीनी और कुछ हल्दी डाल कर ले सकते हैं और इस उपचार का सकारात्मक प्रभाव महसूस करने के लिए, इस मिश्रण को कम से कम  एक सप्ताह तक ले।
जटामासी – जटामासी एक दिमाग को शांत करने वाली और एक आयुर्वेदिक जड़ी बूटी हैं। यह जड़ी बूटी अवसादग्रस्तता की भावनाओं को मन से दूर करने में मदद करती हैं।

नींबू – हालांकि यह पूरी तरह आयुर्वेदिक नहीं है, लेकिन नींबू में अवसाद विरोधी गुण हैं। नींबू निचोड कर कुछ चीनी के साथ खाए। यह आपके मन को शांत करेगा।

उपर्युक्त जड़ी बूटियों के लिए इसके अलावा, योग अवसाद के लिए एक महान आयुर्वेदिक उपचार है। जो लोग प्राणायाम और योगासन  नियमित रूप से करते हैं, वह अवसाद और निराशा की भावना के लिए कम संवेदनशील होते हैं, ऐसा पाया गया हैं। आप एक सुबह की सैर भी कर के देख सकते हैं।

शनिवार, 10 मई 2014

10 आसान रास्ते तनाव मुक्ति के


1. तैयार रहें 

जीवन में आने वाले उतार चढ़ावों के लिए अपने को पहले से तैयार रखें। यदि आप अनुमान लगा पा रही हैं कि आने वाले समय में आप किसी परेशानी का सामना करेंगी तो मानसिक रूप से इसके लिए अपने को पहले से ही तैयार कर लें। इससे परेशानी भले ही दूर न हो आपको मानसिक बल जरूर मिलेगा।

2. सामाजिक सहयोग 

अपने तनाव के क्षणों में अपने दोस्तों व रिश्तेदारों के बीच रहिए क्योंकि इससे आपको सबसे ज्यादा सपोर्ट मिलता है व हिम्मत भी मिलती है विपरीत परिस्थिति का सामना करने की।

3. विश्वास रखें  

यह एक प्रक्रिया है कि आप अपने विचारों का मूल्यांकन करें, इस बात की जानकारी रखें कि क्या हो रहा है या चल रहा है। इससे आपकी चीजें साफ व स्पष्ट होंगी और आपको मदद मिलेगी अपने लक्ष्यों को साफ देखने व उन्हें पाने में।

4. कम्युनिकेशन

अपने भावों को प्रकट करना और भावनाओं व उद्गारों को दूसरों पर व्यक्त करना अच्छा तरीका है तनाव से दूर रहने का। आप अपनी इच्छाओं व विचारों को स्पष्ट रूप से दूसरों पर जाहिर करें, इसमें पूरी ईमानदारी बरतें। इससे आपके पारिवारिक व प्रोफेशनल दोनों ही रिश्ते बेहतर रहेंगे।

5. स्वीकारोक्ति और पुष्टि 

यह बात हमेशा याद रखें कि यदि आप तनाव में हैं तो सत्य को स्वीकार करें और उसका मुकाबला करें। इससे मुंह मोड़ कर बैठने से कुछ नहीं होगा।

6. दवा का प्रयोग न करें 

एल्कोहॉल, कैफीन और सेडेटिव्स का सेवन हानिकर है। उनका प्रयोग न करें।

7. दृढ़निश्चयी हों 

दूसरे लोगों से आपके संबंध संतोषजनक भी हो सकते हैं व दुखदायी व तनाव भरे भी। हठधर्मी होना थोड़ा कठिन है पर आपके हित में होगा तनाव से मुक्ति पाने में।

8. जीवनशैली 

यदि आप फिट व स्वस्थ हैं तो आप तनाव को दूर रख सकती हैं। यह जरूरी है कि अपनी ताकत व संतुलन को बनाए रखने के लिए और प्रतिदिन की चुनौतियों का सामना करने के लिए संतुलित व पौष्टिक भोजन करें। प्रतिदिन व्यायाम करें, तनाव दूर करने के तरीकों पर अमल करें, पूरी नींद लें और कुछ समय निकाल कर जीवन को इंज्वॉय करें।

9. प्रोफेशनल सहायता 

जब आप अपने तनाव को झेलने में असमर्थ हो रही हों और इससे समस्याएं बढ़ रहीं हो तो आपको चाहिए कि आप किसी मनोचिकित्सक की सलाह लें। वह आपकी मदद करेगा तनाव दूर करने में भी और जीवन में सुधार लाने में भी।

10. समस्या सुलझाएं 

समस्या के बारे में जानना काफी नहीं है, यह जरूरी है कि आप सही व साइंटिफिक तरीके से समस्या को समझ कर तनाव को दूर करना जानें।

पुरुषों में अवसाद के खतरनाक संकेत

अवसाद चिंता और तनाव की अंतिम सीढ़ी है। दुनिया भर में लाखों लोग इस परेशानी का सामना कर रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार अकेले अमेरिका में हर वर्ष 50 लाख लोग अवसादग्रस्‍त होते हैं। यह एक मानसिक रोग है, जो हमारी शारीरिक और मानसिक गतिविधि पर असर डालता है। 
महिलाओं और पुरुषों में अवसाद दुख का सबसे बड़ा कारण होता है। इससे व्‍यक्ति का खुशनुमा चीजों में दिल नहीं लगता। लेकिन, कई बार अवसाद अलग-अलग लोगों में अलग-अलग प्रकार से सामने आता है। आइए जानते हैं उन बातों को जो पुरुषों के अवसादग्रस्‍त होने का संकेत देते हैं।

थकान

अवसादग्रस्‍त व्‍यक्ति गंभीर मानसिक और शारीरिक बदलावों से गुजरता है। वह हमेशा थका-थका सा महसूस करता है। उसकी शारीरिक गतिविधियां भी सीमित हो जाती हैं। उसके बोलने और वैचारिक प्रक्रिया की रफ्तार पर भी नकारात्‍मक प्रभाव पड़ता है। अवसाद के दौरान महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में थकान अधिक होती है। यह अवसाद के सभी लक्षणों में सबसे सामान्‍य होता है।

नींद पर असर

अवसाद के कारण लोगों की नींद पर विपरीत असर पड़ता है। वे या तो बहुत कम या बहुत अधिक सोने लगते हैं। कुछ लोग 12 घंटे तक सोने के बाद भी थकान महसूस करते हैं, तो वहीं कुछ लोग रात में थोड़ी-थोड़ी देर बाद जागते रहते हैं। थकान की ही तरह नींद की समस्‍या भी अवसादग्रस्‍त पुरुषों में सामान्‍य लक्षण है।

पेट या पीठ दर्द

कब्‍ज या डायरिया, और सिरदर्द और कमर दर्द जैसे स्‍वास्‍थ्‍य लक्षण, अवसादग्रस्‍त लोगों में सामान्‍य हैं। लेकिन, अक्‍सर पुरुष इस बात को नहीं समझते कि तेज दर्द और पाचन क्रिया में अनि‍यमितता का संबंध अवसाद से भी हो सकता है। डॉक्‍टर बताते हैं कि अवसादग्रस्‍त लोगों को स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍यायें लगी रहती हैं। लेकिन, अक्‍सर वे इसे लेकर गंभीर नहीं होते।

चिढ़चिढ़ापन

अवसादग्रस्‍त पुरुषों का स्‍वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। अगर वे भावनात्‍मक बातें कर रहे हों, तो दुख और चिड़चिड़ेपन का मेल सामने आ सकता है। पुरुषों में चिड़चिड़ेपन की बड़ी उनके मस्तिष्‍क में लगातार आने वाले नकारात्‍मक विचार आते हैं।

एकाग्रता में कमी

साइकोमीटर रेडिएशन से पुरुषों में सूचना प्रक्रिया करने की क्षमता कम हो जाती है, इससे व्‍यक्ति को काम और अन्‍य कामों पर ध्‍यान केंद्रित करने में कठिनाई होती है। अवसाद के कारण व्‍यक्ति नकारात्‍मक विचारों से भर जाता है। इससे उसके लिए किसी भी अन्‍य काम पर ध्‍यान केंद्रित करना मुश्किल हो जाता है। जब आप अवसाद में होते हैं, तो आपका मस्तिष्‍क सही प्रकार से काम नहीं कर पाता।

बेवजह गुस्‍सा

कई लोग अवसाद की वजह से शत्रुतापूर्ण रवैया अपनाने लगते हैं। उन्‍हें बेवजह गुस्‍सा आता है और उनका स्‍वभाव भी आक्रामक हो जाता है। कोई ऐसा व्‍यक्ति जिसे इस बात का अहसास हो कि कुछ गलत है तो वह क्रोध दिखाकर स्‍वयं को मजबूत और सक्षम साबित करने का प्रयास करता है। गुस्‍सा और शत्रुतापूर्ण रवैया चिड़चिड़ेपन से अलग होता है। गुस्‍से में व्‍यक्ति चिढ़ के मुकाबले स्‍वयं को अधिक प्रभावी दिखाने का प्रयास करता है। ऐसे में व्‍यक्ति को परिवार और दोस्‍तों से खास मदद की जरूरत होती है।

तनाव

तनाव भी पुरुषों में अवसाद का एक लक्षण हो सकता है। हालांकि तनाव हर बार अवसाद का कारण बने, ऐसा नहीं होता। कई बार तनाव किसी अन्‍य कारण से भी हो सकता है और वह कारण दूर होते ही व्‍यक्ति सामान्‍य जीवन जी सकता है। शोध यह साबित कर चुके हैं कि लंबे समय तक बने रहने वाला तनाव मानसिक और शारीरिक रूप से बदलाव ला सकता है, जो आगे चलकर तनाव का कारण बन सकता है।

घबराहट

घबराहट यानी एंजाइटी डिस्‍ऑर्डर और अवसाद में सीधा संबंध होता है। हालांकि, पुरुषों में महिलाओं के मुकाबले घबराहट कम होती है। हालांकि पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में यह मसमस्‍या दोगुनी होती है, लेकिन पुरुषों के लिए घबराहट अथवा चिंता की बात करना अ‍पेक्षाकृत अधिक आसान होता है। पुरुष अपने परिवार और काम को लेकर होने वाली चिंताओं को लेकर अधिक खुलकर चर्चा कर सकते हैं।

शारीरिक असक्रियता

शारीरिक असक्रियता का एक बड़ा कारण अवसाद होता है। अवसाद के कारण स्‍तंभन दोष (संभोग के दौरान लिंग का उत्तेजित नहीं हो पाना) होना सामान्‍य है। और अधिकतर पुरुष इस बारे में बात करने से डरते हैं। वे स्‍वयं को कोसने लगते हैं, जिस कारण उनके अवसाद का स्‍तर बढ़ता चला जाता है। हालांकि यह रोग कई अन्‍य चिकित्‍सीय कारणों से भी हो सकता है। अकेला स्‍तंभन दोष अवसाद का कारण नहीं है। "

अनिर्णय

अगर आपको लगातार निर्णय लेने में कठिनाई आ रही है, तो यह अवसाद का संकेत हो सकता है। कुछ लोगों को नैसर्गिक रूप से दुविधा में रहते हैं। उन्‍हें फैसले लेने में परेशानी आ सकती है। अगर आपके साथ पहले से यह परेशानी है, तो आपको अधिक घबराने की जरूरत नहीं। लेकिन, आपके स्‍वभाव में यह आदत नयी शामिल हुई है, तो आपको सोचने की जरूरत है। जानकार मानते हैं कि अवसाद आपके क्षमता लेने की प्रक्रिया को धीमा कर देता है।

आत्‍महत्‍या के विचार
महिलाओं में आत्‍महत्‍या की प्रवृत्ति अधिक देखी जाती है, लेकिन पुरुष अगर आत्‍महत्‍या का प्रयास करें, तो उनकी मौत होने की आशंका महिलाओं की अपेक्षा चार गुना होती है। इसकी एक वजह यह भी है कि पुरुष आत्‍महत्‍या के लिए अधिक खतरनाक तरीके चुनते हैं। बुजुर्गों में आत्‍महत्‍या की प्रवृत्ति अधिक देखी जाती है। कई बार डॉक्‍टर भी इस आयु वर्ग के लोगों में अवसाद के लक्षणों को सही से पहचान नहीं पाते। अधिक उम्र के पुरुषों और महिलाओं दोनों में अवसाद के लक्षण पाये जाते हैं।


अवसाद एड्स, कैंसर और मधुमेह जैसी बीमारियों से भी अधिक सामान्‍य है और इसके कारण हर साल अमेरिका में करीब चार लाख लोग आत्‍महत्‍या का प्रयास करते हैं। अवसाद के साथ एक अहम बात यह ध्‍यान रखनी चाहिए कि किसी एक लक्षण से ही इसका अंदाजा न लगायें। इसके लक्षण आमतौर पर समूह में नजर आते हैं।

मानसिक तनाव कैसे दूर करें

मुंबई के बच्चों के दिमाग पर स्कूल का कुछ ऐसा असर है कि उनमें मानसिक रोगों के कम से कम 105 लक्षण हैं। यही नहीं, लगभग एक हजार में से केवल 20 बच्चे ही स्कूल जाने के इच्छुक हैं।

एसएनडीटी महिला विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान विभाग के अध्यक्ष एचएल कैला ने पांच से 15 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों पर शोध किया है। इसमें बच्चों को होने वाली कई तरह की पीड़ा की पहचान हुई है। इनसे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर कितना असर पड़ा, इसे 105 लक्षणों के रूप में देखा जा सकता है।

पीड़ा की वजह से बच्चों का सामान्य व्यवहार और विकास रुक जाता है। कैला ने बताया कि तेजी से भागती दुनिया में बच्चों के हुनर और कौशल को निखरने का मौका मिलना चाहिए। लेकिन इस तरह की पीड़ाओं से उनके भविष्य की संभावनाओं पर खराब असर पड़ता है।

कैला ने बताया कि लड़के-लड़कियों और किशोरों पर उनके स्कूल समय में 58 बुरी चीजें होती हैं। अध्ययन में 14 स्कूलों के 966 बच्चों को शामिल किया गया। इनमें से केवल 20 बच्चों को ही स्कूल का वातावरण रास आया। बाकी को स्कूल में कुछ न कुछ बुरा व्यवहार होने की शिकायत है। बच्चों को सबसे ज्यादा दिक्कत इस बात से है कि शिक्षकों के हाथ में छड़ी होती है और वे कड़क आवाज में बात करते हैं।

अध्ययन में बताया गया कि स्कूल में बच्चों की पिटाई होती है। उन्हें तमाचे मारे जाते हैं, ताने कसे जाते हैं, यहां तक कि यौन दु‌र्व्यवहार भी होता है। इन सबसे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता है। इन घटनाओं से बच्चों में नर्वस होना, बिना बात के गुस्सा हो जाना और कम खाना जैसी दिक्कतें आ जाती हैं।

कैला ने अपनी किताब 'विक्टिमाइजेशन आफ चिल्ड्रेन' में सिफारिश की है कि शिक्षक-अभिभावक संघ के सदस्यों को बच्चों के मानसिक, भावनात्मक और व्यवहारगत स्वास्थ्य के बारे में प्रशिक्षण दिया जाए। सभी स्कूलों में सक्रिय ऐसे संगठन स्कूलों में लोकतंत्र की बहाली कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि 17 प्रतिशत बच्चों ने स्कूलों में यौन शिक्षा को नापंसद किया। कैला के मुताबिक हर स्कूल में मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम चलाने के साथ-साथ शिक्षकों को भी इससे जोड़ना चाहिए।