गुरुवार, 12 मई 2022

आरी की कीमत | लालच पर हिंदी कहानी

 

एक बार की बात है एक बढ़ई था। वह दूर किसी शहर में एक सेठ के यहाँ काम करने गया। एक दिन काम करते-करते उसकी आरी टूट गयी। बिना आरी के वह काम नहीं कर सकता था, और वापस अपने गाँव लौटना भी मुश्किल था, इसलिए वह शहर से सटे एक गाँव पहुंचा। इधर-उधर पूछने पर उसे लोहार का पता चल गया।

वह लोहार के पास गया और बोला-

भाई मेरी आरी टूट गयी है, तुम मेरे लिए एक अच्छी सी आरी बना दो।

लोहार बोला, “बना दूंगा, पर इसमें समय लगेगा, तुम कल इसी वक़्त आकर मुझसे आरी ले सकते हो।”

बढ़ई को तो जल्दी थी सो उसने कहा, ” भाई कुछ पैसे अधिक ले लो पर मुझे अभी आरी बना कर दे दो!”

“बात पैसे की नहीं है भाई…अगर मैं इतनी जल्दबाजी में औजार बनाऊंगा तो मुझे खुद उससे संतुष्टि नहीं होगी, मैं औजार बनाने में कभी भी अपनी तरफ से कोई कमी नहीं रखता!”, लोहार ने समझाया।

बढ़ई तैयार हो गया, और अगले दिन आकर अपनी आरी ले गया।

आरी बहुत अच्छी बनी थी। बढ़ई पहले की अपेक्षा आसानी से और पहले से बेहतर काम कर पा रहा था।

बढ़ई ने ख़ुशी से ये बात अपने सेठ को भी बताई और लोहार की खूब प्रसंशा की।

सेठ ने भी आरी को करीब से देखा!

“इसके कितने पैसे लिए उस लोहार ने?”, सेठ ने बढ़ई से पूछा।

“दस रुपये!”

सेठ ने मन ही मन सोचा कि शहर में इतनी अच्छी आरी के तो कोई भी तीस रुपये देने को तैयार हो जाएगा। क्यों न उस लोहार से ऐसी दर्जनों आरियाँ बनवा कर शहर में बेचा जाये!

अगले दिन सेठ लोहार के पास पहुंचा और बोला, “मैं तुमसे ढेर सारी आरियाँ बनवाऊंगा और हर आरी के दस रुपये दूंगा, लेकिन मेरी एक शर्त है… आज के बाद तुम सिर्फ मेरे लिए काम करोगे। किसी और को आरी बनाकर नहीं बेचोगे।”

“मैं आपकी शर्त नहीं मान सकता!” लोहार बोला।

सेठ ने सोचा कि लोहार को और अधिक पैसे चाहिए। वह बोला, “ठीक है मैं तुम्हे हर आरी के पन्द्रह रूपए दूंगा….अब तो मेरी शर्त मंजूर है।”

लोहार ने कहा, “नहीं मैं अभी भी आपकी शर्त नहीं मान सकता। मैं अपनी मेहनत का मूल्य खुद निर्धारित करूँगा। मैं आपके लिए काम नहीं कर सकता। मैं इस दाम से संतुष्ट हूँ इससे ज्यादा दाम मुझे नहीं चाहिए।”

“बड़े अजीब आदमी हो…भला कोई आती हुई लक्ष्मी को मना करता है?”, व्यापारी ने आश्चर्य से बोला।

लोहार बोला, “आप मुझसे आरी लेंगे फिर उसे दुगने दाम में गरीब खरीदारों को बेचेंगे। लेकिन मैं किसी गरीब के शोषण का माध्यम नहीं बन सकता। अगर मैं लालच करूँगा तो उसका भुगतान कई लोगों को करना पड़ेगा, इसलिए आपका ये प्रस्ताव मैं स्वीकार नहीं कर सकता।”

सेठ समझ गया कि एक सच्चे और ईमानदार व्यक्ति को दुनिया की कोई दौलत नहीं खरीद सकती। वह अपने सिद्धांतों पर अडिग रहता है।

अपने हित से ऊपर उठ कर और लोगों के बारे में सोचना एक महान गुण है। लोहार चाहता तो आसानी से अच्छे पैसे कमा सकता था पर वह जानता था कि उसका जरा सा लालच बहुत से ज़रूरतमंद लोगों के लिए नुक्सानदायक  साबित होगा और वह सेठ के लालच में नहीं पड़ता।

दोस्तों, अगर ध्यान से देखा जाए तो लोहार की तरह ही हममे से अधिकतर लोग जानते हैं कि कब हमारी selfishness या Greediness की वजह से बाकी लोगों को नुक्सान होता है पर ये जानते हुए भी हम अपने फायदे के लिए काम करते हैं। हमें इस behaviour को बदलना होगा, बाकी लोग क्या करते हैं इसकी परवाह किये बगैर हमें खुद ये फैसला करना होगा कि हम अपने फायदे के लिए ऐसा कोई काम न करें जिससे औरों को तकलीफ पहुँचती हो।

 

बुधवार, 11 मई 2022

शेख चिल्ली की 5 मजेदार कहानियां

 

कौन थे शेख चिल्ली?

माना जाता है कि सूफी संत अब्द-उर-रहीम, जिन्हें अब्द-उई-करीम और अब्द-उर- रज़ाक के नाम से भी जाना जाता था उन्ही का प्रसिद्द नाम शेख चिल्ली पड़ा। उनकी मौजूदगी 1650 AD के आस-पास की मानी जाती है और हरयाणा में उनका एक मकबरा भी बना हुआ है।
भारत में शेख चिल्ली को एक मजेदार कैरेक्टर के रूप में देख जाता है जो अक्सर ख्यालों में खो जाता है और हवाई-किलें बनाया करता है। पर जब उसे होश आता है तो वो खुद को लोगों के बीच पाता है और सबके लिए हंसी का पात्र बन जाता है।

शेख चिल्ली के मजेदार किस्से #1 – क्यों पड़ा “मियां शेख” का नाम “मियां शेख चिल्ली”

बचपन में मियां शेख चिल्ली को मौलवी साहब नें शिक्षा दी थी की लड़के और लड़की के लिए अलग अलग शब्दों का प्रावधान होता है। उदाहरण के तौर पर “सुलतान खाना खा रहा है” लेकिन “सुलताना खाना खा रही है।”

मियां शेख चिल्ली नें मौलवी साहब की यह सीख गाठ बांध ली।

फिर एक दिन मियां शेख चिल्ली जंगल से गुज़र रहे थे। तभी उन्हे किसी कुएं के अंदर से किसी के चिल्लाने की आवाज़ आई। वह फौरन वहाँ दौड़ कर जा पहुंचे। उन्होने देखा की वहाँ कुए में एक लड़की गिरि पड़ी थी और वह मदद के लिए चिल्ला रही थी।

मियां शेख चिल्ली तुरंत दौड़ कर अपने दोस्तों के पास गए और उन्हे बोलने लगे कि वहाँ कुएं के अंदर एक लड़की गिरि पड़ी है और वह मदद के लिए चिल्ली  रही है।

मियां शेख चिल्ली और उनके दोस्तों नें मिल कर उस लड़की को कुएं से बाहर निकाल लिया।

फिर घर जाते वक्त मियां शेख चिल्ली के एक दोस्त नें यह सवाल किया की मियां शेख आप लड़की चिल्ली रही….चिल्ली रही… क्यों बोले जा रहे थे?

तब मियां शेख के एक पुराने दोस्त नें खुलासा किया कि मौलवी साहब नें मियां शेख को पढ़ाया था की लड़का होगा तो… खाना खा रहा है, और लड़की हुई तो खाना खा रही है इसी हिसाब से मियां शेख नें लड़की के चिल्लाने पर “चिल्ली रही” शब्द का प्रयोग किया।

मियां शेख चिल्ली के सारे दोस्त मियां शेख की इस मूर्खता पर पेट पकड़ कर हंस पड़े और तभी से मियां शेख बन गए “मियां शेख चिल्ली”।

Shekh Chilli Story in Hindi #2 – मियां शेख चिल्ली के खयाली पुलाव

 

एक दिन सुबह-सुबह मियां शेख चिल्ली बाज़ार पहुँच गए। बाज़ार से उन्होने अंडे खरीदे और उन अंडों को एक टोकरी नें भर कर अपने सिर पर रख लिया, फिर वह घर की ओर जाने लगे। घर जाते-जाते उन्हे खयाल आया कि अगर इन अंडों से बच्चे निकलें तो मेरे पास ढेर सारी मुर्गियाँ होंगी। वह सब मुर्गियाँ ढेर सारे अंडे देंगी। उन अंडों को बाज़ार में बैच कर मै धनवान बन जाऊंगा। अमीर बन जाने के बाद मै एक नौकर रखूँगा जो मेरे लिए शॉपिंग कर लाएगा। उसके बाद में अपनें लिए एक महल जैसा आलीशान घर बनवाऊंगा। उस बड़े से घर में हर प्रकार की भव्य सुख-सुविधा होंगी।

भोजन करने के लिए, आराम करने के लिए और बैठने के लिए उसमें अलग-अलग कमरे होंगे। घर सजा लेने के बाद मैं एक गुणवान, रूपवान और धनवान लड़की से शादी करूंगा। अपनी पत्नी के लिए भी एक नौकर रखूँगा और उसके लिए अच्छे-अच्छे कपड़े, गहने वगैरह ख़रीदूँगा। शादी के बाद मेरे 5-6 बच्चे होंगे, बच्चों को में खूब लाड़ प्यार से बड़ा करूंगा। और फिर उनके बड़े हो जाने के बाद उनकी शादी करवा दूंगा। फिर उनके बच्चे होंगे। फिर में अपने पोतों के साथ खुशी-खुशी खेलूँगा।

मियां शेख चिल्ली अपने ख़यालों में लहराते सोचते चले जा रहे थे तभी उनके पैर पर ठोकर लगी और सिर पर रखी हुई अंडों की टोकरी धड़ाम से ज़मीन पर आ गिरी। अंडों की टोकरी ज़मीन पर गिरते ही सारे अंडे फूट कर बरबाद हो गए। अंडों के फूटने के साथ साथ मियां शेख चिल्ली के खयाली पुलाव जैसे सपनें भी टूट कर चूर-चूर हो गए।  

Sheikh Chilli Ki Kahaniyan #3 – मियां शेख चिल्ली चले लकड़ीयां काटनें

एक बार मियां शेख चिल्ली अपने मित्र के साथ जंगल में लकड़ियाँ कांटने गए। एक बड़ा सा पेड़ देख कर वह दोनों दोस्त उस पर लकड़ियाँ काटने के लिए चढ़ गए। मियां शेख चिल्ली अब लकड़ियाँ काटते-काटते लगे अपनी सोच के घोड़े दौड़ने। उन्होने सोचा कि मै इस जंगल से ढेर सारी लकड़ियाँ काटूँगा। उन लकड़ियों को बाज़ार में अच्छे दामों में बेचूंगा। इस तरह मुझे काफी धन-लाभ होगा।

इस काम से मै कुछ ही समय में अमीर बन जाऊंगा। फिर लकड़ियाँ काटने के लिए ढेर सारे नौकर रख लूँगा। काटी हुई लकड़ियों से फर्नीचर का बिज़नस शुरू करूंगा। कुछ ही दिनों में मै इतना समृद्ध व्यापारी बन जाऊंगा की नगर का राजा मुझ से राजकुमारी का विवाह करवाने के लिए खुद सामने से राज़ी हो जाएगा।

शादी के बाद हम घूमने जायेंगे और एक सुन्दर सी बागीचे में राजकुमारी अपना हाथ मेरी तरफ बढ़ाएंगी…. ख़यालों में खोये हुए मियां शेख चिल्ली ऐसा सोचते-सोचते पेड़ की डाल छोड़ कर सचमुच राजकुमारी का हाथ थामने के लिए अपने हाथ आगे बढाने लगते हैं…तभी अचानक उनका संतुलन बिगड़ जाता है और वो धड़ाम से नीचे ज़मीन पर गिर पड़ते है। ऊंचाई से गिरने पर मियां शेख चिल्ली के पैर की हड्डी टूट जाती है। और साथ-साथ उनके बिना सिर-पैर के खयाली सपनें भी टूट कर बिखर जाते हैं।

शेख चिल्ली के कारनामे #4 – मियां शेख चिल्ली चले चोरों के संग “चोरी करने”

एक बार अंधेरी रात में मियां शेख चिल्ली अपने घर की ओर चले जा रहे थे। तभी अचानक उनके पास से चार चोर गुज़रे। चुप-चाप दबे पाँव आगे बढ़ रहे चोरों के पास जा कर मियां शेख चिल्ली नें उनसे पूछा कि आप सब इस वक्त कहाँ जा रहे हैं। चोरों नें सोचा कि मियां शेख चिल्ली भी उन्ही की तरह कोई चोर है और साफ-साफ बता दिया कि हम चोर हैं और चोरी करनें जा रहे हैं।

मियां शेख चिल्ली को खयाल आया कि इन लोगों के साथ चला जाता हूँ… कुछ नया सीखने को मिलेगा। यही सोच कर उन्होने चोरों को कहा कि मुझे भी अपने साथ ले चलो।

पहले तो चोरों नें मियां शेख चिल्ली को मना कर दिया , पर बार-बार मिन्नतें करने पर उन्होने उन्हें भी साथ ले लिया। चोरों ने एक रिहाईशी इलाके में बने आलिशाना मकान में चोरी करने का फैसला किया, जिसमे एक अकेली बुढ़िया रहती थी। और फिर चारों घर के अंदर घुस गए और उनके पीछे-पीछे मियां शेख चिल्ली भी हो लिए।

चोरो नें उन्हें हिदायत दी कि जैसा हम कहें वैसा ही करना और हेमशा छुपे रहना।

घर के अंदर आते ही चारों चोर पैसों गहनों और अन्य कीमती चीजों की खोज में लग गए। मियां शेख चिल्ली की यह पहली चोरी थी और वो काफी उत्साहित थे। उन्होने सोचा कि चलो मैं भी घर में कुछ कीमती सामान ढूँढता हूँ और चोरों का हाथ बटाता हूँ।

खोज करते-करते मियां शेख चिल्ली घर के रसोई-घर पर जा पहुंचे। वहाँ से खीर पकने की खुशबू आ रही थी। मियां शेख चिल्ली के मुंह में पानी आ गया, चोरी करने का खयाल अब उनके दिमाग से पूरी तरह से जा चुका था। अब उन्हे किसी भी कीमत पर वह पक रही खीर खानी थी!

मियां शेख चिल्ली दबे पाँव चूल्हे के पास पहुंचे तो उन्होने देखा कि वहीं पास ही में एक बुढ़िया कुर्सी पर बैठी थी, जो शायद खीर पकाते-पकाते सो गयी थी।

खीर के ख्यालों में खोये मियां शेख चिल्ली भूल ही गए कि वो एक चोर हैं, उन्होंने फटा-फट एक प्लेट में खीर निकाली और मजे से खाने लगे।

वो खा ही रहे थे कई तभी अचानक कुरसी पर सो रही बुढ़िया का हाथ सीधा हो कर कुरसी से बाहर की और लहरा गया।

मियां शेख चिल्ली को लगा कि बेचारी बुढ़िया भूखी होगी, इसीलिए हाथ बाधा कर खीर मांग रही है। इसी नेक सोच के साथ उन्होने पतीले से एक प्याला खीर भर कर बुढ़िया के हाथ में रख दिया। गरम खीर के प्याले की तपन से सो रही बुढ़िया तिलमिला उठी। और चोर-चोर चिल्लाने लगी। चिल्लम-चिल्ली होने पर आस-पड़ोस के लोग जमा हो गए।

मियां शेख चिल्ली और चोर बाहर नहीं भाग सकते थे सो घर में ही इधर उधर छुप गए।

जल्द ही एक चोर पकड़ा गया। लोग उसे मार-मार कर सवाल-जवाब करने लगे?

तू यहाँ क्यों आया था?

“ऊपर वाला जाने!”

तूने क्या-क्या चुराया?

“ऊपर वाला जाने!”

इस तरह लोग कुछ भी पूछते चोर यही कहता कि ऊपर वाला यानि अल्लाह जाने।

लोगों ने सोचा कि चलो जाने दो, भले चोर है लेकिन हर बात में अल्लाह को तो याद करता है!

लेकिन तभी धडाम से आवाज़ आई….मियां शेख चिल्ली जो ठीक ऊपर दूछत्ती में छुपे थे नीचे कूद पड़े और चोर को थप्पड़ जड़ते हुए बोले….

“सारा करम तुमने और तुम्हारे तीन साथियो ने किया….लेकिन हर बात में तू मेरा नाम लगा दे रहा है….” ऊपर वाला जाने–ऊपर वाला जाने”…भाइयों मैं कुछ नहीं जानता मैं तो बस ऐसे ही इनके साथ हो लिया था…”

फिर क्या था…लोगों ने बाकी तीनो चोरों को भी खोजा और उनकी धुनाई करने लगे….और मौके का फायदा उठाते हुए मियां शेख चिल्ली पतली गली से निकल लिए! 

Shekh Chilli Short Tales in Hindi #5 – शेख चिल्ली की “चिट्ठी”

एक बार मियां शेख चिल्ली के भाई बीमार पड़ गए। इस बात की खबर पाते ही मियां शेख चिल्ली नें अपनें भाई की खैरियत पूछने के लिए चिट्ठी लिखने की सोची।

पूर्व काल में डाक व्यवस्था और फोन जैसी आधुनिक सुविधाएं थी नहीं तो खत और चिट्ठियाँ मुसाफिर (लोगों) के हाथों ही भिजवाई जाती थीं। मियां शेख चिल्ली नें अपनें गाँव में नाई से चिट्ठी पहुंचानें को कहा, पर उनके गाँव का नाई (चिट्ठियाँ पहुंचाने वाला) पहले से ही बीमार चल रहा था सो उसने मना कर दिया। गाँव में फसल पकी होने के कारण दूसरे अन्य नौकर या मुसाफिर का मिलना भी मुश्किल हो गया।

तब मियां शेख चिल्ली नें सोचा की मै खुद ही जा कर भाई जान को चिट्ठी दे आता हूँ।

अगले ही दिन सुबह-सुबह मियां शेख चिल्ली अपने भाई के घर रवाना हो गए। शाम तक वह उसके घर भी पहुँच गए।

घर का दरवाज़ा खटखटाने पर उनके बीमार भाई तुरंत बाहर आए। मियां शेख चिल्ली नें उन्हे चिट्ठी पकड़ाई और उल्टे पाँव वापसअपने गाँव की और लौटने लगे।

तभी उनके भाई उनके पीछे दौड़े और उन्हे रोक कर बोले –

तू इतनी दूर से आया है तो घर में तो आ मुझ से गले तो मिल। नाराज़ है क्या मुझ से?

यह बोल कर भाई साहब मियां शेख चिल्ली को गले लगाने आगे बढ़े।

तभी मियां शेख चिल्ली नें अपने भाई से दूर हटते हुए कहा कि-

मै आप से नाराज़ बिलकुल नहीं हूँ, पर यह तो मुझे चिट्ठी पहुंचाने वाला “नाई” मिल नहीं रहा था इसलिए आप की खैर खबर पूछने की चिट्ठी देने मुझे खुद आप के गाँव तक यहाँ आना पड़ा।

मियां शेख चिल्ली के भाई  ने समझाया कि अब तुम आ ही गए हो तो दो चार दिन रुक कर जाओ। इस बात पर मियां शेख चिल्ली का पारा चढ़ गया। उन्होने मुंह टेढ़ा करते हुए कहा, “भाईजान आप तो अजीब इन्सान है। आप को यह बात समझ नहीं आती की मै यहाँ नाई का फर्ज़ अदा करने आया हूँ। मुझे आप से मिलने आना होता तो मै खुद चला आता, नाई के बदले थोड़े ही आता।

 

 

शुक्रवार, 6 मई 2022

कॉकरोच थ्योरी

 

एक रेस्टोरेंट में अचानक ही एक कॉकरोच उड़ते हुए आया और एक महिला की कलाई पर बैठ गया।

महिला भयभीत हो गयी और उछल-उछल कर चिल्लाने लगी…कॉकरोच…कॉकरोच…

उसे इस तरह घबराया देख उसके साथ आये बाकी लोग भी पैनिक हो गए …इस आपाधापी में महिला ने एक बार तेजी से हाथ झटका और कॉकरोच उसकी कलाई से छटक कर उसके साथ ही आई एक दूसरी महिला के ऊपर जा गिरा। अब इस महिला के चिल्लाने की बारी थी…वो भी पहली महिला की तरह ही घबरा गयी और जोर-जोर से चिल्लाने लगी!

दूर खड़ा वेटर ये सब देख रहा था, वह महिला की मदद के लिए उसके करीब पहुंचा कि तभी कॉकरोच उड़ कर उसी के कंधे पर जा बैठा।

वेटर चुपचाप खड़ा रहा।  मानो उसे इससे कोई फर्क ही ना पड़ा, वह ध्यान से कॉकरोच की गतिविधियाँ देखने लगा और एक सही मौका देख कर उसने पास रखा नैपकिन पेपर उठाया और कॉकरोच को पकड़ कर बाहर फेंक दिया।

मैं वहां बैठ कर कॉफ़ी पी रहा था और ये सब देखकर मेरे मन में एक सवाल आया….क्या उन महिलाओं के साथ जो कुछ भी हुआ उसके लिए वो कॉकरोच जिम्मेदार था?

यदि हाँ, तो भला वो वेटर क्यों नहीं घबराया?

बल्कि उसने तो बिना परेशान हुए पूरी सिचुएशन को पेर्फेक्ट्ली हैंडल किया।

दरअसल, वो कॉकरोच नहीं था, बल्कि वो उन औरतों की अक्षमता थी जो कॉकरोच द्वारा पैदा की गयी स्थिति को संभाल नहीं पायीं।

मैंने रियलाइज़ किया है कि ये मेरे पिता, मेरे बॉस या मेरी वाइफ का चिल्लाना नहीं है जो मुझे डिस्टर्ब करता है, बल्कि उनके चिल्लाने से पैदा हुई डिस्टर्बेंस को हैंडल ना कर पाने की मेरी काबिलियत है जो मुझे डिस्टर्ब करती है।

ये रोड पे लगा ट्रैफिक जाम नहीं है जो मुझे परेशान करता है बल्कि जाम लगने से पैदा हुई परेशानी से डील ना कर पाने की मेरी अक्षमता है जो मुझे परेशान करती है।

यानि problems से कहीं अधिक, मेरा उन problems पर reaction है जो मुझे वास्तव में परेशान करता है।

मैं इससे क्या सीखता हूँ?

एक रेस्टोरेंट में अचानक ही एक कॉकरोच उड़ते हुए आया और एक महिला की कलाई पर बैठ गया।

महिला भयभीत हो गयी और उछल-उछल कर चिल्लाने लगी…कॉकरोच…कॉकरोच…

उसे इस तरह घबराया देख उसके साथ आये बाकी लोग भी पैनिक हो गए …इस आपाधापी में महिला ने एक बार तेजी से हाथ झटका और कॉकरोच उसकी कलाई से छटक कर उसके साथ ही आई एक दूसरी महिला के ऊपर जा गिरा। अब इस महिला के चिल्लाने की बारी थी…वो भी पहली महिला की तरह ही घबरा गयी और जोर-जोर से चिल्लाने लगी!

दूर खड़ा वेटर ये सब देख रहा था, वह महिला की मदद के लिए उसके करीब पहुंचा कि तभी कॉकरोच उड़ कर उसी के कंधे पर जा बैठा।

वेटर चुपचाप खड़ा रहा।  मानो उसे इससे कोई फर्क ही ना पड़ा, वह ध्यान से कॉकरोच की गतिविधियाँ देखने लगा और एक सही मौका देख कर उसने पास रखा नैपकिन पेपर उठाया और कॉकरोच को पकड़ कर बाहर फेंक दिया।

मैं वहां बैठ कर कॉफ़ी पी रहा था और ये सब देखकर मेरे मन में एक सवाल आया….क्या उन महिलाओं के साथ जो कुछ भी हुआ उसके लिए वो कॉकरोच जिम्मेदार था?

यदि हाँ, तो भला वो वेटर क्यों नहीं घबराया?

बल्कि उसने तो बिना परेशान हुए पूरी सिचुएशन को पेर्फेक्ट्ली हैंडल किया।

दरअसल, वो कॉकरोच नहीं था, बल्कि वो उन औरतों की अक्षमता थी जो कॉकरोच द्वारा पैदा की गयी स्थिति को संभाल नहीं पायीं।

मैंने रियलाइज़ किया है कि ये मेरे पिता, मेरे बॉस या मेरी वाइफ का चिल्लाना नहीं है जो मुझे डिस्टर्ब करता है, बल्कि उनके चिल्लाने से पैदा हुई डिस्टर्बेंस को हैंडल ना कर पाने की मेरी काबिलियत है जो मुझे डिस्टर्ब करती है।

ये रोड पे लगा ट्रैफिक जाम नहीं है जो मुझे परेशान करता है बल्कि जाम लगने से पैदा हुई परेशानी से डील ना कर पाने की मेरी अक्षमता है जो मुझे परेशान करती है।

यानि problems से कहीं अधिक, मेरा उन problems पर reaction है जो मुझे वास्तव में परेशान करता है।

मैं इससे क्या सीखता हूँ?

मैं सीखता हूँ कि मुझे लाइफ में react नहीं respond करना चाहिए।

महिलाओं ने कॉकरोच की मौजूदगी पर react किया था जबकि वेटर ने respond किया था… रिएक्शन हमेशा instinctive होता है …बिना सोचे-समझे किया जाता है जबकि response सोच समझ कर की जाने वाली चीज है।

जीवन को समझने का एक सुन्दर तरीका-

जो लोग सुखी हैं वे इसलिए सुखी नहीं हैं क्योंकि उनके जीवन में सबकुछ सही है…वो इसलिए सुखी हैं क्योंकि उनके जीवन में जो कुछ भी होता है उसके प्रति उनका attitude सही होता है।

दोस्तों, महान साइकेट्रिस्ट Viktor Frankl का भी कहना था-  

Stimulus और response के बीच में एक space होता है। उसी space में हमारे पास अपना response चुनने की शक्ति होती है।  और हमारे रिस्पोंस में ही हमारी growth और हमारी स्वतंत्रता निहित है।

फ्रेंड्स,  ये स्टोरी पिछले कुछ सालों से इन्टरनेट पर चल रही है, हालांकि इसे Google CEO Sundar Pichai की स्पीच का हिस्सा बताया जाता है पर इस बात के कोई पुख्ता प्रमाण नहीं हैं। खैर, ये matter नही करता कि इसे किसने, कब, कहाँ  सुनाया…. matter इस कहानी से मिलने वाली सीख करती है।

आप इस बारे में क्या सोचते हैं? क्या आप इस बात से agree करते हैं कि हमें life में हमेशा respond करना चाहिए….react नहीं? या कभी-कभी रियेक्ट करना ही बेस्ट रिसपॉन्स होता है?

सर्दी की एक रात | एक दर्द भरी दिल छू लेने वाली कहानी

 

मैं थक-हार कर काम से घर वापस जा रहा था। कार में शीशे बंद होते हुए भी..जाने कहाँ से ठंडी-ठंडी हवा अंदर आ रही थी…मैं उस सुराख को ढूंढने की कोशिश करने लगा..पर नाकामयाब रहा।

कड़ाके की ठण्ड में  आधे घंटे की ड्राइव के बाद मैं घर पहुंचा…

रात के 12 बज चुके थे,  मैं घर के बाहर कार से आवाज देने लगा….बहुत देर हॉर्न भी बजाया…शायद सब सो चुके थे…

10 मिनट बाद खुद ही उतर कर गेट खोला….सर्द रात के सन्नाटे में मेरे जूतों की आवाज़ साफ़ सुनी जा सकती थी…

कार अन्दर कर जब दुबारा गेट बंद करने लगा तभी मैंने देखा एक 8-10 साल का बच्चा, अपने कुत्ते के साथ मेरे घर के सामने फुटपाथ पर सो रहा है… वह एक अधफटी चादर ओढ़े हुए था …

उसको देख कर मैंने उसकी ठण्ड महसूस करने की कोशिश की तो एकदम सकपका गया..

 मैंने Monte Carlo की महंगी जेकेट पहनी हुई थी फिर भी मैं ठण्ड को कोस रहा था…और बेचारा वो बच्चा…मैं उसके बारे में सोच ही रहा था कि इतने में वो कुत्ता बच्चे की चादर छोड़  मेरी कार के नीचे आ कर सो गया।

मेरी कार का इंजन गरम था…शयद उसकी गरमाहट कुत्ते को सुकून दे रही थी…

फिर मैंने कुत्ते की भागने की बजाय उसे वहीं सोने दिया…और बिना अधिक आहट किये पीछे का ताला खोल घर में घुस गया… सब के सब सो रहे थे….मैं चुप-चाप अपने कमरे में चला गया।

जैसे ही मैंने सोने के लिए रजाई उठाई…उस लड़के का ख्याल मन आया…सोचा मैं कितना स्वार्थी हूँ….मेरे पास विकल्प के तौर पर कम्बल ,चादर ,रजाई सब थे… पर उस बच्चे के पास एक अधफटी चादर भर थी… फिर भी वो बच्चा उस अधफटी चादर को भी कुत्ते के साथ बाँट कर सो रहा था और मुझे घर में फ़ालतू पड़े कम्बल और चादर भी किसी को देना गवारा नहीं था…

यही सोचते-सोचते ना जाने कब मेरी आँख लग गयी ….अगले दिन सुबह उठा तो देखा घर के बहार भीड़ लगी हुई थी..

बाहर निकला तो किसी को बोलते सुना-

अरे वो चाय बेचने वाला सोनू कल रात ठण्ड से मर गया..

मेरी पलके कांपी और एक आंसू की बूंद मेरी आँख से छलक गयी..उस बच्चे की मौत से किसी को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा…बस वो कुत्ता अपने नन्हे दोस्त के बगल में गुमसुम बैठा था….मानो उसे उठाने की कोशिश कर रहा हो!

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दोस्तों, ये कहानी सिर्फ एक कहानी नहीं ये आज के इंसान की सच्चाई है। मानव से अगर मानवता चली जाए तो वो मानव नहीं रहता दानव बन जाता है…और शायद हममें से ज्यादातर लोग दानव बन चुके हैं। हम अपने लिए पैदा होते हैं….अपने लिए जीते हैं और अपने लिए ही मर जाते हैं….ये भी कोई जीना हुआ!

हथौड़ा और चाबी

 शहर की तंग गलियों के बीच एक पुरानी ताले की दूकान थी। लोग वहां से ताला-चाबी खरीदते और कभी-कभी चाबी खोने पर डुप्लीकेट चाबी बनवाने भी आते। ताले वाले की दुकान में एक भारी-भरकम हथौड़ा भी था जो कभी-कभार ताले तोड़ने के काम आता था।

हथौड़ा अक्सर सोचा करता कि आखिर इन छोटी-छोटी चाबियों में कौन सी खूबी है जो इतने मजबूत तालों को भी चुटकियों में खोल देती हैं जबकि मुझे इसके लिए कितने प्रहार करने पड़ते हैं?

एक दिन उससे रहा नहीं गया, और दूकान बंद होने के बाद उसने एक नन्ही चाबी से पूछा, “बहन ये बताओ कि आखिर तुम्हारे अन्दर ऐसी कौन सी शक्ति है जो तुम इतने जिद्दी तालों को भी बड़ी आसानी से खोल देती हो, जबकि मैं इतना बलशाली होते हुए भी ऐसा नहीं कर पाता?”

चाबी मुस्कुराई और बोली,

दरअसल, तुम तालों को खोलने के लिए बल का प्रयोग करते हो…उनके ऊपर प्रहार करते हो…और ऐसा करने से ताला खुलता नहीं टूट जाता है….जबकि मैं ताले को बिलकुल भी चोट नहीं पहुंचाती….बल्कि मैं तो उसके मन में उतर कर उसके हृदय को स्पर्श करती हूँ और उसके दिल में अपनी जगह बनाती हूँ। इसके बाद जैसे ही मैं उससे खुलने का निवेदन करती हूँ, वह फ़ौरन खुल जाता है।

दोस्तों, मनुष्य जीवन में भी ऐसा ही कुछ होता है। यदि हम किसी को सचमुच जीतना चाहते हैं, अपना बनाना चाहते हैं तो हमें उस व्यक्ति के हृदय में उतरना होगा। जोर-जबरदस्ती या forcibly किसी से कोई काम कराना संभव तो है पर इस तरह से हम ताले को खोलते नहीं बल्कि उसे तोड़ देते हैं ….यानि उस व्यक्ति की उपयोगिता को नष्ट कर देते हैं, जबकि प्रेम पूर्वक किसी का दिल जीत कर हम सदा के लिए उसे अपना मित्र बना लेते हैं और उसकी उपयोगिता को कई गुना बढ़ा देते हैं।

इस बात को हेमशा याद रखिये-

हर एक चीज जो बल से प्राप्त की जा सकती है उसे प्रेम से भी पाया जा सकता है लेकिन हर एक जिसे प्रेम से पाया जा सकता है उसे बल से नहीं प्राप्त किया जा सकता।

 

गुरुवार, 5 मई 2022

कहीं बारिश हो गयी तो!

 

प्रार्थना करना अच्छा है। लेकिन उससे भी ज़रूरी है इस बात में यकीन रखना कि तुम्हारी प्रार्थना सुनी जायेगी और फिर उसी के मुताबिक काम करना….

हरिया ने फौरन अपनी बेटी को गोद में उठा लिया, उसके माथे को चूमा और छाता अपने हाथ में घुमाते हुए आगे बढ़ गया।

दोस्तों, हम सभी प्रार्थना करते हैं पर हम सभी अपनी prayers में firmly believe नहीं करते। और ऐसे में हमारी प्रार्थना बस शब्द बन कर रह जाती है…वास्तविकता में नहीं बदलती। सभी धर्मों में विश्वास की शक्ति का उल्लेख है, कहते भी हैं कि “faith can move mountains” यानि दृढ विश्वास हो तो इंसान पहाड़ भी हिला सकता है। And, in fact दशरथ मांझी के रूप में हमारे सामने इसका एक प्रत्यक्ष प्रमाण भी है।

इसलिए अपनी पूजा को सही मायने में सफल होते देखना चाहते हैं तो ईश्वर में विश्वास रखें और ऐसे act करें मानो आपको प्रार्थना सुनी ही जाने वाली हो…और जब आप लगातार ऐसा करेंगे तो भगवान् आपकी ज़रूर सुनेगा!

बुधवार, 4 मई 2022

ब्लैक स्पॉट

 एक दिन एक प्रोफ़ेसर अपनी क्लास में आते ही बोला, “चलिए, surprise test के लिए तैयार हो जाइये।

सभी स्टूडेंट्स घबरा गए…कुछ किताबों के पन्ने पलटने लगे तो कुछ सर के दिए नोट्स जल्दी-जल्दी पढने लगे।

“ये सब कुछ काम नहीं आएगा….”, प्रोफेसर मुस्कुराते हुए बोले, “ मैं question paper आप सबके सामने रख रहा हूँ, जब सारे पेपर बट जाएं तभी आप उसे पलट कर देखिएगा।”

पेपर बाँट दिए गए।

“ठीक है! अब आप पेपर देख सकते हैं!”, प्रोफेसर ने निर्देश दिया।

अगले ही क्षण सभी question paper को निहार रहे थे, पर ये क्या इसमें तो कोई प्रश्न ही नहीं था! था तो सिर्फ वाइट पेपर पर एक ब्लैक स्पॉट!

ये क्या सर, इसमें तो कोई question ही नहीं है?, एक छात्र खड़ा होकर बोला।

प्रोफ़ेसर बोले, “जो कुछ भी है आपके सामने है, आपको बस इसी को एक्सप्लेन करना है… और इस काम के लिए आपके पास सिर्फ 10 मिनट हैं…चलिए शुरू हो जाइए…”

स्टूडेंट्स के पास कोई चारा नहीं था…वे अपने-अपने answers लिखने लगे।

समय ख़त्म हुआ, प्रोफेसर ने answer sheets collect कीं और बारी-बारी से उन्हें पढने लगे।

लगभग सभी ने ब्लैक स्पॉट को अपनी-अपनी तरह से समझाने की कोशिश की थी लेकिन किसी ने भी उस स्पॉट के चारों ओर मौजूद white space के बारे में बात नहीं की थी।

प्रोफ़ेसर गंभीर होते हुए बोले, “इस टेस्ट का आपके academics से कोई लेना-देना नहीं है और ना ही मैं इसके कोई मार्क्स देने वाला हूँ…. इस टेस्ट के पीछे मेरा एक ही मकसद है….मैं आपको जीवन की एक अद्भुत सच्चाई बताना चाहता हूँ…

देखिये…इस पूरे पेपर का 99% हिस्सा सफ़ेद है…लेकिन आप में से किसी ने भी इसके बारे में नहीं लिखा और अपना 100% answer सिर्फ उस एक चीज को explain करने में लगा दिया जो मात्र 1% है… और यही बात हमारे life में भी देखने को मिलती है… समस्याएं हमारे जीवन का एक छोटा सा हिस्सा होती हैं, लेकिन हम अपना पूरा ध्यान इन्ही पर लगा देते हैं…कोई दिन रात अपने looks को लेकर परेशान रहता है तो कोई अपने करियर को लेकर चिंता में डूबा रहता है तो कोई और बस पैसों का रोना रोता रहता है।

क्यों नहीं हम अपनी blessings को count करेक खुश होते हैं… क्यों नहीं हम पेट भर खाने के लिए भगवान को थैंक्स कहते हैं…क्यों नहीं हम अपनी प्यारी सी फॅमिली के लिए शुक्रगुजार होते हैं….क्यों नहीं हम लाइफ की उन 99% चीजों की तरफ ध्यान देते हैं जो सचमुच हमारे जीवन को अच्छा बनाती हैं।

चलिए आज से हम life की problems को ज़रुरत से ज्यादा seriously लेना छोडें और जीवन की छोटी-छोटी खुशियों को enjoy करना सीखें ….तभी हम ज़िन्दगी को सही मायने में जी पायेंगे!”