शनिवार, 23 अक्टूबर 2021

भगवान् से क्या मांगते थे स्वामी विवेकानंद ? | प्रेरक प्रसंग

 

1884 में स्वामी विवेकानन्द के पिता जी का स्वर्गवास हुआ और उनके जाते ही घर की स्थिति खराब हो गयी। जिन लोगो से उनके पिता ने कर्जा लिया था वे बार-बार घर पर पैसे माँगने आने लगे।
और उनके पैसे चुकाने में घर की सारी पूँजी चली गयी। उनकी चाची ने उनके परिवार को घर से अलग कर दिया। अब 7 सदस्यों के परिवार का भार नरेन्द्र ( स्वामी विवेकानन्द ) के ऊपर आ पड़ा था।

नरेन्द्र उस समय लॉ के प्रथम वर्ष में था। पर घर की परस्थितियों को देखते हुए उसने Law छोड़ दिया और नौकरी की तलाश करने लगा। घर की परिस्थितियाँ इतनी खराब हो गयीं थी कि कभी-कभी दिन में एक बार ही भोजन हो पाता था। नरेन्द्र दिन-दिन भर कम्पनियों के और ऑफिसों के चक्कर लगता था, ताकि एक नौकरी मिल सके, जिससे घर का खर्चा चल सके। पर बहुत प्रयास करने पर भी कोई नौकर नहीं मिली।

नरेन्द्र उस समय B.A. पास था इसलिए अधिकारी वर्ग के पदों के लिये आवेदन करता था। पर जब उसे कोई नौकरी नही मिली, तो फिर उसने क्लर्क के पदों पर भी आवेदन करना प्रारम्भ कर दिया।  दिन- दिन भर भूखे-प्यासे पैदल चलकर उसने कई इंटरव्यू दिये, पर कहीं भी उसे एक नौकरी नहीं मिल सकी।

इसी तरह एक दिन जब वह इंटरव्यू  में रिजेक्देट होकर लौट रहा था तभी अचानक सड़क के किनारे बेहोश होकर गिर पड़ा।

जब उसे होश आया तब वह घर पर था, लेकिन अब उसका भगवान् पर से विश्वास उठ गया। उसने मन ही मन सोचा –

यदि भगवान् होते तो क्या इतने प्रयास करने पर भी सफलता न देते ?

यह बात किसी ने जाकर दक्षिणेश्वर के काली मन्दिर में श्री रामकृष्ण परमहंस को बतायी।

उन्होनें कहा, “नहीं। नहीं ऐसा नहीं हो सकता। तुम नरेन्द्र से मेरे पास आने के लिये कहना।”

कुछ समय बाद नरेन्द्र रामकृष्ण परमहंस के पास आये तो उन्होने मंदिर में माँ काली की प्रतिमा के समक्ष जाकर कुछ मांगने के लिये कहा।

नरेन्द्र मन्दिर में गया और ध्यानस्त बैठ कर आ गया।

परमहंस जी ने पूछा -“क्या माँगा” ?

उसने कहा – “ज्ञान और भक्ति”।

परमहंस जी ने कहा – “तुमने आपने घर की समस्या के बारे में तो कुछ माँगा ही नहीं। जाओ फिर से जाओ और अपनी बात कह कर आओ”।

ऐसा तीन बार हुआ। पर यह पूछने पर कि उसने क्या माँगा, एक ही जबाब मिलता –

“ज्ञान और भक्ति”

परमहंस जी ने कहा- तुम अपनी समस्या के बारे में क्यो नहीं कुछ माँगते ?

नरेन्द्र ने उत्तर दिया – “क्या ईश्वर से इतनी तुच्छ चीजे माँगूँ”।

परमहंस जी मुस्करा रहे थे और समझ चुके थे कि नरेन्द्र का ईश्वर से विश्वास नहीं उठा है। वह निराशा के कारण ऐसा बोल गया।

यही नरेन्द्र आगे चलकर स्वामी विवेकानन्द हुए और शिकागो में दिए अपने भाषण से सम्पूर्ण विश्व में विख्यात हुए.

—-

मित्रों, नरेन्द्र जिस दौर से गुजरा वह दौर बहुतों की ज़िन्दगी में आता है, पर ऐसा होने पर आप घबराये नहीं और निराश तो बिलकुल भी न हो। ईश्वर ने आपके लिये कुछ और सोच रखा है।

सोचिये अगर स्वामी विवेकानन्द की एक क्लर्क की नौकर लग जाती, तो क्या होता, आज हम जिस रूप में उन्हें जानते हैं, शायद उस रूप में नहीं जानते।

इसलिये ईश्वर पर विश्वास रखो और सदैव अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए प्रयासरत रहो.

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्वकर्मणि।। 2/ 47।।

 

 

 

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