रविवार, 28 नवंबर 2021

क्या है HANDSOME होने का सही मतलब?

 दूरदराज के एक गाँव में एक किसान रहता था. उसने सुना था कि उसके देश के प्रेसिडेंट बड़े महान इंसान हैं. उसने मन ही मन उनकी एक तस्वीर बना रखी थी… एक लम्बा, खूबसूरत इंसान, राजसी ठाट-बाट वाला, जो चले तो लोग देखते रह जाएं, जो बोले तो लोग सुनते रह जाएं.

उसके मन में प्रेसिडेंट को देखने की तीव्र इच्छा थी, पर बेचारा ऐसी जगह रहता था जहाँ अभी तक बिजली भी नहीं पहुँच पायी थी… उसने कभी टीवी या अखबार में भी प्रेसिडेंट को नहीं देखा था.

लेकिन यदि मन किसी चीज को पूरी ताकत से चाह ले तो वो चीज होना तय है. एक दिन पता चला कि उसके गाँव से करीब 100 मील दूर खुद प्रेसिडेंट आने वाले हैं. उसने फ़ौरन वहां जाने का निश्चय कर लिया… काफी दूर पैदल चलने और कई साधनों को बदलने के बाद आखिरकार वह तय दिन और समय पर प्रेसिडेंट को देखने के लिए पहुँच गया.

भीड़ बहुत थी. हज़ारों लोग अपने प्रिय प्रेसिडेंट की एक झलक पाने के लिए खड़े थे. किसान ने बगल में खड़े एक व्यक्ति से पूछा-

“क्या आपने कभी प्रेसिडेंट को देखा है?”

“हाँ देखा है.” जवाब आया.

“वो दिखने में कैसे हैं?”

“कुछ ख़ास नहीं, बड़े साधारण से हैं.”

वे बात कर ही रहे थे कि जनता का शोर उनके कानो में पड़ा….प्रेसिडेंट उनके बीच से होते हुए स्टेज पर जा रहे थे.

किसान ने देखा कि एक सामन्य कद का साधारण सा इंसान रेड कारपेट पे चलता हुआ आगे बढ़ रहा है. प्रेसिडेंट उसकी मानसिक तस्वीर से बिलकुल अलग थे.

किसान अपने विचारों में खोया हुआ था कि तभी प्रेसिडेंट उसके सामने रुके उससे हाथ मिलाया, हाल-चाल लिया और आगे बढ़ गए. उसे यकीन नहीं हुआ कि देश का राष्ट्रपति उससे दो शब्द बोल कर गया है…उसने फ़ौरन सोचा–

कौन कहता है मेरा राष्ट्रपति साधारण है…मैंने तो आज तक इससे असाधारण व्यक्ति नहीं देखा!

दोस्तों, वो शख्श कोई और नहीं भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे अब्दुल कलाम थे. इंसान अपने बाहरी रंग-रूप से महान या असाधारण नहीं होता, वो अपने अंदर की अच्छाई, काबिलियत , करुणा और प्रेम से असाधारण बनता है.

डॉ. कलाम ने एक बार भाषण देते हुए कहा भी था-

I am not handsome, but I can give my Hand To Some.

यानी मैं हैण्डसम नहीं हूँ लेकिन मैं कसी को अपना हाथ मदद के लिए दे सकता हूँ.

सोमवार, 22 नवंबर 2021

बाज का शिकार

 बाज के बच्चे ने अभी-अभी उड़ना सीखा था… उत्साह से भरा होने के कारण वह हर किसी को अपनी कलाबाजियां दिखाने में लगा था.

तभी उसने पेड़ के नीचे एक सूअर के बच्चे को भागते देखा, ” माँ वो देखो सूअर, कितना स्वादिष्ट होगा ना, मैं अभी उसका शिकार करता हूँ.”

“नहीं बेटा,” माँ बोलीं, “अभी तुम इसके लिए तैयार नहीं हो, सूअर एक बड़ा शिकार है , तुम चूहे से शुरुआत करो.”

 बाज आज्ञाकारी था, उसने फ़ौरन माँ की बात मान ली और जल्दी ही उसने बड़ी कुशलता के साथ चूहों का शिकार करना सीख लिया.

अब उसका आत्मविश्वास बहुत बढ़ चुका था, वह अपनी माँ के पास गया और फिर से सूअर का शिकार करने के लिए कहने लगा.

“अभी नहीं बेटा, पहले तुम खरगोश का शिकार करना सीखो”, माँ ने समझाया.

कुछ ही दिनों में बाज ने खरगोशों का शिकार करना भी सीख लिया. उसे पूरा यकीन था कि अब वो अपने पहले लक्ष्य सूअर को ज़रूर मार सकता है…और इसी की आज्ञा लेने वह माँ के पास पहुंचा.

पर इस बार भी माँ ने उसे मना कर दिया और पहले मेमने का शिकार करने को कहा. बाज जल्दी ही मेमनों का शिकार करने में पारंगत हो गया.

फिर एक दिन वह अपनी माँ के साथ यूँही डाल पर बैठा था कि एक सूअर का बच्चा उधर से गुजरा… बाज ने अपनी माँ की ओर देखा…माँ मुस्कुराई और सूअर पर झपट पड़ने का इशारा किया.

 बाज ने फ़ौरन नीचे की ओर उड़ान भरी और उस दिन उसने पहली बार अपना मनपसंद खाना खाया.

दोस्तों, सोचिये अगर माँ ने पहली बार में ही उसे सूअर का शिकार करने को कह दिया होता तो क्या होता?

नन्हा बाज निश्चित तौर पर असफल हो जाता…और संभव है उसका आत्मविश्वास कमजोर हो जाता. लेकिन जब उसने पहले छोटे-छोटे शिकार किये तो उसका आत्मविश्वास और उसकी काबिलियत दोनों निखरती गयीं. और अंततः वह अपने मनपसन्द लक्ष्य को पाने में सफल हुआ.

बाज की ये कहानी हमें अपने बड़े लक्ष्य को छोटे-छोटे आसान हिस्सों में बाँट कर उसे पाने की सीख देती है. इसलिए बड़ा लक्ष्य बनाइये, ज़रूर बनाइये लेकिन उसे पाने के लिए अपने अन्दर धैर्य रखिये, अपने गुरु की बात मानिए और योजनाबद्ध तरीके से उसे छोटे हिस्सों में बांटकर अंततः अपने उस बड़े लक्ष्य को हासिल करिए.

 

 

 

सोमवार, 15 नवंबर 2021

आम की गुठलियाँ

 

अरविन्द के अन्दर धैर्य बिलकुल भी नहीं था. वह एक काम शुरू करता…कुछ दिन उसे करता और फिर उसे बंद कर दूसरा काम शुरू कर देता. इसी तरह कई साल बीत चुके थे और वह अभी तक किसी बिजनेस में सेटल नहीं हो पाया था. 

अरविन्द की इस आदत से उसके माता-पिता बहुत परेशान थे. वे जब भी उससे कोई काम छोड़ने की वजह पूछते तो वह कोई न कोई कारण बता खुद को सही साबित करने की कोशिश करता. 

अब अरविन्द के सुधरने की कोई उम्मीद नहीं दिख रही थी कि तभी पता चला कि शहर से कुछ दूर एक आश्रम में  बहुत पहुंचे हुए गुरु जी का आगमन हुआ. दूर-दूर से लोग उनका प्रवचन सुनने आने लगे. 

एक दिन अरविन्द के माता-पिता भी उसे लेकर महात्मा जी के पास पहुंचे.

उनकी समस्या सुनने के बाद उन्होंने अगले दिन सुबह-सुबह अरविन्द को अपने पास बुलाया. 

अरविन्द को ना चाहते हुए भी भोर में ही गुरु जी के पास जाना पड़ा. 

गुरु जी उसे एक  बागीचे में ले गए और धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए बोले. 

बेटा तुम्हारा पसंदीदा फल कौन सा है.

“आम” अरविन्द बोला.

ठीक है बेटा !  जरा वहां रखे बोरे में से कुछ आम की गुठलियाँ निकालना और उन्हें यहाँ जमीन में गाड़ देना.  

अरविन्द को ये सब बहुत अजीब लग रहा था लेकिन गुरु जी बात मानने के अलावा उसके पास कोई चारा भी नहीं था. 

उसने जल्दी से कुछ गुठलियाँ उठायीं और फावड़े से जमीन खोद उसमे गाड़ दीं.

फिर वे अरविन्द को लेकर वापस आश्रम में चले गए. 

करीब आधे घंटे बाद वे अरविन्द से बोले, “जरा बाहर जा कर देखना उन  गुठलियों में से फल निकला की नहीं!”

“अरे! इतनी जल्दी फल कहाँ से निकल आएगा… अभी कुछ ही देर पहले तो हमने गुठलियाँ जमीन में गाड़ी थीं.”

“अच्छा, तो रुक जाओ थोड़ी देर बाद जा कर देख लेना!”

कुछ देर बाद उन्होंने अरविन्द से फिर बाहर जा कर देखने को कहा.

अरविन्द जानता था कि अभी कुछ भी नहीं हुआ होगा, पर फिर भी गुरु जी के कहने पर वह बागीचे में गया.

लौट कर बोला, “कुछ भी तो नहीं हुआ है गुरूजी…आप फल की बात कर रहे हैं अभी तो बीज से पौधा भी नहीं निकला है.”

“लगता है कुछ गड़बड़ है!”, गुरु जी ने आश्चर्य से कहा.

“अच्छा, बेटा ऐसा करो, उन गुठलियों को वहां से निकाल के कहीं और गाड़ दो…”

अरविन्द को गुस्सा तो बहुत आया लेकिन वह दांत पीस कर रह गया.

कुछ देर बाद गुरु जी फिर बोले, “अरविन्द बेटा, जरा बाहर जाकर देखो…इस बार ज़रूर फल निकल गए होंगे.”

अरविन्द इस बार भी वही जवाब लेकर लौटा और बोला, “मुझे पता था इस बार भी कुछ नहीं होगा…. कुछ फल-वाल नहीं निकला…”

“….क्या अब मैं अपने घर जा सकता हूँ?”

“नहीं, नहीं रुको…चलो हम इस बार गुठलियों को ही बदल कर देखते हैं…क्या पता फल निकल आएं.”

इस बार अरविन्द ने अपना धैर्य खो दिया और बोला, “मुझे यकीन नहीं होता कि आपके जैसे नामी गुरु को इतनी छोटी सी बात पता नहीं कि कोई भी बीज लगाने के बाद उससे फल निकलने में समय लगता है….आपको  बीज को खाद-पानी देना पड़ता है ….लम्बा इन्तजार करना पड़ता है…तब कहीं जाकर फल प्राप्त होता है.”

गुरु जी मुस्कुराए और बोले-

बेटा, यही तो मैं तुम्हे समझाना चाहता था…तुम कोई काम शुरू करते हो…कुछ दिन मेहनत करते हो …फिर सोचते हो प्रॉफिट क्यों नहीं आ रहा!  इसके बाद तुम किसी और जगह वही या कोई नया काम शुरू करते हो…इस बार भी तुम्हे रिजल्ट नहीं मिलता…फिर तुम सोचते हो कि “यार! ये धंधा ही बेकार है!

एक बात समझ लो जैसे आम की गुठलियाँ तुरंत फल नहीं दे सकतीं, वैसे ही कोई भी कार्य तब तक अपेक्षित फल नहीं दे सकता जब तक तुम उसे पर्याप्त प्रयत्न और समय नहीं देते.  

इसलिए इस बार अधीर हो आकर कोई काम बंद करने से पहले आम की इन गुठलियों के बारे में सोच लेना …. कहीं ऐसा तो नहीं कि तुमने उसे पर्याप्त समय ही नहीं दिया!

अरविन्द अब अपनी गलती समझ चुका था. उसने मेहनत और धैर्य के बल पर जल्द ही एक नया व्यवसाय खड़ा किया और एक कामयाब व्यक्ति बना.

 

 

 

शनिवार, 13 नवंबर 2021

मूर्तिकार और पत्थर

 

एक बार एक मूर्तिकार एक पत्थर को छेनी और हथौड़ी से काट कर  मूर्ति का रूप दे रहा था. जब पत्थर  काटा जा रहा था, तो उसको बहुत दर्द हो रहा था.

कुछ देर तो पत्थर ने बर्दाश्त किया पर जल्द ही उसका धैर्य जवाब दे गया.

वह नाराज़ होते हुए बोला, ” बस ! अब और नहीं सहा जाता. छोड़ दो मुझे मैं तुम्हारे वार को अब और नहीं सह सकता… चले जाओ यहाँ से!”

मूर्तिकार ने समझाया, “अधीर मत हो! मैं तुम्हे भगवान् की मूरत के रूप में तराश रहा हूँ.  अगर तुम कुछ दिनों का दर्द बर्दाश्त कर लोगे तो जीवन भर लोग तुम्हे पूजेंगे… दूर-दूर से लोग तुम्हारे दर्शन करने आयेंगे. दिन-रात पुजारी तुम्हारी देख-भाल में लगे रहेंगे.”

और ऐसा कह कर उसने अपने औजार उठाये ही थे कि पत्थर क्रोधित होते हुए बोला, “मुझे मेरी ज़िन्दगी खुद जीने दो… मैं जानता हूँ मेरे लिए क्या अच्छा है क्या बुरा… मैं आराम से यहाँ पड़ा हूँ…चले जाओ मैं अब जरा सी भी तकलीफ नहीं सह सकता!”

मैं जानता हूँ तुम्हे दर्द बहुत हो रहा है…पर अगर आज तुम अपना आराम देखोगे तो कल को पछताओगे… मैं तुम्हारे गुणों को देख सकता हूँ तुम्हारे अन्दर आपार संभावनाएं हैं… यूँ यहाँ पड़े-पड़े अपना जीवन बर्बाद मत करो! मूर्तिकार ने समझाया.

पर पत्थर पर उसकी बात का कोई असर नहीं हुआ, वह अपनी बात पर ही अड़ा रहा.

मूर्तिकार पत्थर को वहीँ  छोड़ आगे बढ़ गया.

सामने ही उसे एक दूसरा अच्छा पत्थर दिख गया. उसने उसे उठाया और उसकी मूर्ति बना दी.

दूसरे पत्थर ने दर्द बर्दाश्त कर लिया और वो भागवान की मूर्ति बन गया, लोग रोज उसे  फूल-माला चढाने लगे, दूर-दूर से लोग उसके दर्शन करने आने लगे.

फिर एक दिन एक और पत्थर उस मंदिर में लाया गया और उसे एक कोने में रख दिया गया. उसे नारियल फोड़ने के लिए इस्तमाल किया जाने लगा.  वह कोई और नहीं बल्कि वही पत्थर था जिसने मूर्तिकार को उसे छूने से मना कर दिया था.

अब वह मन ही मन पछता रहा था कि काश उसने उसी वक्त दर्द सह लिया होता तो आज समाज में उसकी भी पूछ होती… सम्मान होता… कुछ दिनों की वह पीड़ा इस जीवन भर के कष्ट से बचा लेती!

दोस्तों, हमारे लिए निर्णय लेने का ये सही समय है कि हम आज दर्द बर्दाश्त करना है या अभी मौज-मस्ती करनी है और फिर जीवन भर का दर्द झेलना है.  आज आप जिस किसी competitive exam की तैयारी कर रहे हों… जो भी skill acquire करने की कोशिश कर रहे हों…जिस किसी खेल में excel करने का प्रयास कर रहे हों…उसमे अपना 100% effort लगाइए… होने दीजिये अपने ऊपर तकलीफों के वार…हार मत मानिए… उस दूसरे पत्थर की तरह अभी सह लीजिये और अपने लक्ष्य को प्राप्त करिए ताकि पहले पत्थर की तरह आपको जीवन भर कष्ट ना सहना पड़े.

 

मंगलवार, 9 नवंबर 2021

ज़िन्दगी में ठक-ठक तो चलती रहेगी!

एक सिपाही अपने घोड़े पर सवार हो कर राज्य की सीमाओं का निरीक्षण करने निकला. घंटों चलने के कारण सिपाही और घोड़ा दोनों ही थक गए थे.

सिपाही ने तो अपने पास रखे पानी से प्यास बुझा ली पर बेचारे घोड़े के लिए कहीं पानी नहीं दिख रहा था. 

पानी की तलाश में दोनों आगे बढ़ गए. थोड़ी देर चलने के बाद कुछ दूर पर एक बूढ़ा किसान अपने बैल के साथ दिखा.

वह खेतों की सींचाई करने के लिए रहट चला रहा था. 

सिपाही उसके समीप पहुँच कर बोला, “काका, मेरा घोड़ा बड़ा प्यासा है इसे जरा पानी पिलाना था.”

“पिला दो बेटा!”, किसान बोला.

सिपाही घोड़े को रहट के पास ले गया ताकि वो उससे गिरता हुआ पानी पी सके. 

पर ये क्या घोड़ा चौंक कर पीछे हट गया.

“अरे! ये पानी क्यों नहीं पी रहा?”, किसान ने आश्चर्य से पूछा.

सिपाही कुछ देर सोचने के बाद बोला, “काका! रहट चलने से ठक-ठक की जो आवाज़ आ रही है उससे यह चौंक कर पीछे हट गया.”

“आप थोड़ी देर अपने बैल को रोक देते तो घोड़ा आराम से पानी पी लेता.”

किसान मुस्कुराया,

बेटा ये ठक-ठक तो चलती रहेगी… अगर मैंने बैल को रोक दिया तो कुंएं से पानी कैसे उठेगा…यदि घोड़े को पानी पीना है तो उसे इस ठक-ठक के बीच ही अपनी प्यास बुझानी होगी…

 सिपाही को बात समझ आ गयी, उसने फिर से घोड़े को पानी पिलाने का प्रयास किया, घोड़ा फिर पीछे हट गया…पर दो-चार बार ऐसा करने के बाद घोड़ा भी समझ गया कि उसे इस ठक-ठक के बीच ही पानी पीना होगा और उसने इस विघ्न के बावजूद अपनी प्यास बुझा ली.  

दोस्तों, इस घोड़े की तरह ही यदि हमें अपनी इच्छित वस्तु पानी है तो जीवन में चल रही ठक-ठक पर से ध्यान हटाना होगा. हमें सही समय के इंतज़ार में अपने प्लान्स को टालना छोड़ना होगा… बहानो के पीछे छुप कर ज़रूरी कम से मुंह मोड़ना छोड़ना होगा…हमें ये कंडिशन लगाना छोड़ना होगा कि हम आइडियल कंडिशन में ही काम करेंगे…क्योंकि ज़िन्दगी में ठक-ठक तो हमेशा ही चलती रहेगी, हमें तो इसी सिचुएशन में अपनी प्यास बुझानी होगी.

बुधवार, 3 नवंबर 2021

गुरु नानक देव से जुड़ी कहानियां व प्रेरक प्रसंग

 सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी का जीवन प्रेरक प्रसंगों व चमत्कारों से भरा है. अपने प्रिय शिष्यों बाला और मर्दाना के साथ भ्रमण करते हुए उन्होंने जग का कल्याण किया और हमें कई अनमोल उपदेश दिए. आइये आज हम गुरु नानक देव जी के जीवन से जुड़े दस बेहद प्रेरक प्रसंगों को जानते हैं.

एक समय आदरणीय गुरु नानक देव यात्रा करते हुए नास्तिक विचारधारा रखने वाले लोगों के गाँव पहुंचे. वहां बसे लोगों नें गुरु नानाक देव और उनके शिष्यों का आदर
सत्कार नहीं किया, उन्हें कटु वचन बोले और तिरस्कार किया. इतना सब होने के बाद भी, जाते समय ठिठोली लेते हुए, उन्होंने गुरु नानक देव से आशीर्वाद देने को कहा.

जिस पर नानक देव नें मुस्कुराते हुए कहा “आबाद रहो”

भ्रमण करते हुए, कुछ समय बाद गुरु नानक और उनके शिष्य एक दूसरे गाँव , समीप्रस्थ ग्राम जा पहुंचे. इस गाँव के लोग नेक, दयालु और प्रभु में आस्था रखने वाले थे.

उन्होंने बड़े भाव से सभी का स्वागत सत्कार किया और जाते समय गुरु नानक देव से आशीर्वाद देने की प्रार्थना की. तब गुरु नानक देव नें कहा “उजड़ जाओ\” इतना बोल कर वह आगे बढ़ गए. तब उनके शिष्य भी गुरु के पीछे पीछे चलने लगे.

आगे चल कर उनमें से एक शिष्य खुद को रोक नहीं सका और बोला. है ‘देव’ आप नें तिरस्कार करने वाले उद्दंड मनुष्यों को आबाद रहने का आशीर्वाद दिया और सदाचारी
शालीन लोगों को उजड़ जाने का कठोर आशीर्वाद क्यों दिया?

तब गुरु नानक देव हँसते हुए बोले-

सज्जन लोग उजड़ने पर जहाँ भी जायेंगे वहां अपनी सज्जनता से उत्तम वातावरण का निर्माण करेंगे. परंतु दुष्ट और दुर्जन व्यक्ति जहाँ विचरण करेगा वहां, अपने आचार-विचार से वातावरण दूषित करेगा. इस प्रयोजन से मैंने उन्हें वहीँ आबाद रहने का आशीर्वाद दिया.

अपने गुरु की ऐसी तर्कपूर्ण बात से वह शिष्य संतुष्ट हुआ और वह सब अपने मार्ग पर आगे बढ़ गए.

 

एक बार गुरु नानक देव अपने दोनों चेलों के साथ कामरूप देश गए. वहां के लोग अपने काले जादू के लिए प्रसिद्ध थे. नगर के द्वार पर पहुँचते ही, गुरु नानक एक पेड़ की
छाँव में ध्यान मुद्रा में बैठ गए. उनका चेला मरदाना गाँव के भीतर भोजन और जल का प्रबंध करने गया. दूसरा चेला बाला वहीँ गुरु के पास रुका. एक जलाशय पर मरदाना
अपनी पानी की सुराही भरने लगा तो, वहां उस नगर की रानी की दो बहने आ पहुंची.

उसने मरदाना से वहां आने का कारण पूछा. मरदाना के उत्तर देते ही वह दोनों हँस पड़ी. वह बोलीं की तुम तो भेड़ बकरी की तरह बोलते हो. चलो तुम्हे भेड़-बकरी जैसा बना दें. इतना बोल कर उन में से एक लड़की नें मरदाना को भेड़ बना दिया और वह भे… भें… करने लगा. समय अधिक हुआ तो गुरु नानक और बाला को चिंता हुई. वह दोनों ठीक उसी जगह आ पहुंचे. इस बार उन दोनों लड़कियों नें बारी-बारी मंत्र बोल कर वही टोटका गुरु नानक पर आज़माया. लेकिन उनमें से खुद एक लड़की बकरी बन गई और दूसरी लड़की का हाथ हवा में जम कर शिथिल हो गया.

वहां मौजूद लोगों नें नगर की रानी को यह सूचना दी. वह फ़ौरन मौके पर आ पहुंची. उसने भी पहले तो गुरु नानक पर अपना काला जादू आज़माया. कुछ ही देर में
असफ़लता मिलने पर वह जान गई की उस का पाला किसी दैवीय शक्ति वाले संत से पड़ा है.

माफ़ी मांग लेने पर दयालु गुरु नानक देव नें उन दोनों लड़कियों को ठीक कर दिया. तथा मरदाना को भी उसके असली रूप में ला दिया.

इस प्रसंग के बाद कामरूप के लोगों नें गुरु नानक देव से ज्ञान देने को कहा.

तब गुरु नानक बोले-

हमारे अंदर इश्वर का वास होता है. आप सब को, लोगों को परेशान करना छोड़ कर उनकी मदद करनी चाहिए. ध्यान करो, कर्तव्य पालन करो. लोगों से प्रेम करो. गुरु नानक यह उपदेश दे कर वहां से आगे बढे.

उसके बाद कामरूप देश एक प्रसिद्द आध्यात्म केंद्र बना.

एक समय गुरु नानक देव और उनका चेला मरदाना अमीनाबाद गए. वहां पर एक गरीब किसान लालू नें उन्हें भोजन के लिए आमंत्रित किया. उसने यथा शक्ति रोटी और साग इन दोनों को भोजन के लिए दिए. तभी गाँव के अत्याचारी ज़मींदार मलिक भागु का सेवक वहां आया. उसने कहा मेरे मालिक नें आप को भोजन के लिए आमंत्रित किया है.

बार-बार मिन्नत करने पर गुरु नानक लालू की रोटी साथ ले कर मलिक भागु के घर चले.

मलिक भागु नें उनका आदर सत्कार किया. उनके भोजन के लिए उत्तम पकवान भी परोसे. लेकिन उससे रहा नहीं गया. उसने पूछा कि, आप मेरे निमंत्रण पर आने में
संकोच क्यों कर रहे थे? उस गरीब किसान की सूखी रोटी में ऐसा क्या स्वाद है जो मेरे पकवान में नहीं.

इस बात को को सुन कर गुरु नानक नें एक हाथ में लालू की रोटी ली और, दूसरे हाथ में मलिक भागु की रोटी ली, और दोनों को दबाया. उसी वक्त लालू की रोटी से दूध की
धार बहने लगी, जब की मलिक भागु की रोटी से रक्त की धार बह निकली.

गुरु नानक देव बोले-

भाई लालू के घर की सूखी रोटी में प्रेम और ईमानदारी मिली हुई है. तुम्हारा धन अप्रमाणिकता से कमाया हुआ है, इसमें मासूम लोगों का रक्त सना हुआ है. जिसका यह प्रमाण है. इसी कारण मैंने लालू के घर भोजन करना पसंद किया.

यह सब देख कर मलिक भागु उनके पैरों में गिर गया और, बुरे कर्म त्याग कर अच्छा इन्सान बन गया.

प्रेरक प्रसंग #4: उड़ती चटाई

अपने दोनों चेलों के साथ गुरु नानक श्रीनगर- कश्मीर यात्रा पर गए. वहां लोग गुरु नानक देव की सरलता से परिचित थे. एक दिन गुरु नानक वहां लोगों से भेंट करने के लिए आये तो हज़ारों लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी. श्रीनगर में उस समय पर एक पंडित हुआ करते थे, जिनका नाम ब्रह्मदास था. दैवी उपासना और आराधना में प्रवीण होने पर उनके पास कई असाधारण सिद्धि थीं. अपना कौशल दिखाने के लिए ब्रह्मदास उड़ती चटाई पर सवार हो कर गुरु नानक के पास पहुंचे.

स्थान पर पहुँच कर देखा तो लोगों का जमावड़ा था. लेकिन गुरु नानक देव कहीं नज़र नहीं आ रहे थे. इधर-उधर झाँक कर ब्रह्मदास नें लोगों से पूछा, कहाँ है गुरु नानक देव?

तब लोगों नें कहा, आप के सामने ही तो वह बैठे हैं. उड़ती चटाई पर सवार ब्रह्मदास नें सोचा की लोग शायद उसका मज़ाक बना रहे हैं, वहां गुरु नानक तो है ही नहीं. यह सोच कर वह जाने लगा तो, उसकी चटाई ज़मीन पर आ पड़ी और साथ वह भी नीचे आ गिरा.

इस घटना के कारण वहां उसकी खूब किरकिरी हुई, उसे अपनी चटाई कंधे पर लाद कर घर जाना पड़ा. घर जा कर उसने अपने नौकर से पूछा की, मुझे गुरु नानक क्यों नहीं दिखे? तब उनका शालीन नौकर बोला, शायद आप के आँखों पर अहम की पट्टी बंधी थी.

अगले दिन पंडित ब्रह्मदास विनम्रता के साथ चल कर वहां गया. उसने देखा तेज मुखी गुरु नानक वहीँ  विराजमान थे. वह लोगों के साथ सत्संग कर रहे थे. तभी ब्रह्मदास से
रहा नहीं गया, उसने गुरु नानक से सवाल किया, कल मैं चटाई पर उड़ कर आया था, लेकिन तब आप मुझे आप क्यों नहीं दिखे थे?

तब गुरु नानक बोले, इतने अंधकार में भला मैं तुमको कैसे दिखता. यह सुन कर ब्रह्मदास बोला, अरे… अरे… मैं तो दिन के उजाले में आया था. ऊपर आसमान में तो चमकता सूरज मौजूद था, तो अंधकार कैसे हुआ?

गुरु नानक नें कहा-

अहंकार से बड़ा कोई अंधकार है क्या? अपने ज्ञान और आकाश में उड़ने की सिद्धि के कारण तुम खुद को अन्य लोगों से ऊँचा समझने लगे. अपने चारो तरफ़ देखो, कीट-पतंगे, जंतु, पक्षी भी उड़ रहे हैं. क्या तुम इनके समान बनना चाहते हो?

ब्रह्मदास को अपनी भूल समझ आ गयी. उसने गुरु नानक से मन की शांति और उन्नति का ज्ञान लिया और भविष्य में कभी अपनी सिद्धिओं पर अभिमान नहीं किया.

प्रेरक प्रसंग #5: पितृ मोक्ष

एक बार गुरु नानक देव अपने शिष्यों के साथ हरिद्वार गए. वहां पर उन्होंने देखा एक पंडित अपने यजमान को सूर्य की और जल अर्पण करने का निर्देश दे रहा था. यह देख कर वह तुरंत पानी में उतरे. उन्होंने सूर्य से उलट दिशा में पानी अर्पण करना शुरू किया.

यह देख कर पंडित गुस्सा हो गया. उसने कहा, जल अर्पण वहां नहीं करते, सूर्य की और करने से पितृ को मोक्ष मिलता है. इस बात को अनसुनी कर के फ़िर से गुरु नानक सूर्य से उलटी दिशा में जल अर्पण करने लगे.

एक बार फिर से टोकने पर, गुरु नानक नें सवाल किया, की पंडित जी, यह पितृ लोक यहाँ से कितनी दूरी पर होगा?

तब पंडित बोले, होगा शायद हज़ारों लाखो किलोमीटर दूर. तब गुरु नानक बोले, अगर यहाँ गंगा किनारे जल अर्पण करने से पितृ लोक में उपस्थित मृत स्वजनों को जल दिया जा सकता है तो, मेरे गाँव में मौजूद मेरे खेत पर तो यह जल अवश्य पहुँच सकता है. मैं अपने खेतों को पानी देने के प्रयोजन से इस दिशा में जल अर्पण कर रहा हूँ.

गुरु नानक की इस बात से यजमान और पंडित हँसे, और उनकी बात का तात्पर्य भी वह समझ गए.

प्रेरक प्रसंग #6: गुरु नानक देव की मक्का यात्रा

मुसलमान चेले मरदाना नें कहा कि वह मक्का मदीना जाना चाहता है. उसका यह मानना था की एक मुसलमान जब तक मक्का नहीं जाता है तब तक सच्चा मुसलमान नहीं कहलाता है. कुछ ही दिनों में गुरु नानक, मरदाना और बाला तीनों मक्का की यात्रा पर निकले. वहां पहुँच जाने पर गुरु नानक काफ़ी थक गए. वह मुसाफिरों के लिए बनी आरामगाह पर जा कर आराम करने लगे.

गुरु नानक को देख कर उस जगह काम करने वाला एक ख़ादिम आग बबूला हो गया. उसने गुरु नानक से गुस्से में कहा- “आपको इतनी समझ नहीं कि खुदा  की ओर पाँव रख कर नहीं सोते?

तब गुरु नानक बोले-

मुझे विश्राम करने दो भाई, मै बहुत थका हुआ हूँ. या फ़िर तुम खुद ही मेरे पाँव उस दिशा में कर दो जिधर खुदा न हों!

तब खादिम को एहसास हुआ कि खुदा तो हर तरफ है और उसने गुरु नानक देव से माफ़ी मांग ली.

गुरु नानक नें भी उसे माफ़ कर दिया और मुस्कुराते हुए कहा- “खुदा दिशाओं में वास नहीं करते, वह तो दिलों में राज करते हैं. अच्छे कर्म करो, खुदा को दिल में रखो, यही खुदा का सच्चा सदका है.

प्रेरक प्रसंग #7: गुरु नानक और नाग

एक समय गुरु नानक अपनी गाय को चराने के लिए जंगल की ओर ले कर गए. पास में एक सूखा पेड़ का तना देख कर उसके नीचे वह बिछोना लगा कर विश्राम करने लगे.

दिन का समय था इसलिए धूप बहुत तेज़ थी. पेड़ की सूखी शाखाओं के बीच से कड़ी धूप गुरु नानक के चेहरे पर पड़ रही थी. तभी अचानक वहां पर एक बड़े फन वाला काला नाग आ पहुंचा. और गुरु नानक के पास कुंडली मार के बैठ गया.

थोड़ी देर में वहां से राय भुल्लर नाम का एक व्यक्ति अपने घोड़े पर निकला. उसने देखा की एक व्यक्ति सो रहा है और ज़हरीला नाग उसे दंश देने की फ़िराक में है. यह सब देख कर वह बड़ी तेज़ी से गुरु नानक की और बढे. लेकिन जब वह करीब आये तो नज़ारा देख कर स्तब्ध हो गए.

वह काला नाग गुरु नानक को दंश देने नहीं आया था, वह अपना फन फैला कर गुरु नानक के चेहरे पर पड़ने वाली तीक्ष्ण धूप को रोक रहा था. इस दिव्य प्रसंग से प्रभावित
हुए राय भुल्लर आने वाले समय में, गुरु नानक के शिष्यों में शामिल हुए.

प्रेरक प्रसंग #8: बालक नानक का यज्ञोपवीत

कल्याणराय नें एक बार अपने पुत्र नानक का यज्ञोपवीत कराने हेतु, कुटुंब और परिचितों को आमंत्रित किया. बालक नानक आसन पर बैठे, मंत्रोच्चार शुरू हुआ. तब नानक नें पुरोहित से इस विधि का प्रयोजन पूछा.

तब पुरोहित नें कहा, तुम्हारा यज्ञोपवीत संस्कार हो रहा है, हिन्दू धर्म मर्यादा अनुसार “पवित्र सूत” को धारण करना कल्याणकारी होता है. इससे तुम्हे धर्म में दीक्षित कराया
जा रहा है.

कौतुहल वश नानक बोले, यह तो सूत का धागा है, गंदा हो जायेगा ना? और टूट भी सकता है? इस प्रश्न के जवाब में पुरोहित जी नें समझाया की, मैला होने पर इसे साफ़ कर सकते हैं. और खंडित हो जाने पर इसे बदला भी जा सकता है.

अब नानक बोले, देहांत के बाद, यह शरीर के साथ जल भी जाता होगा ना? यदि इसे धारण कर लेने से शरीर, आत्मा, मन तथा यज्ञोपवीत में अखंड पवित्रता नहीं रहती तो इसे धारण करने से क्या लाभ?

नानक नें कहा अगर यज्ञोपवीत धारण कराना है तो, अखंडित और अविनाशी यज्ञोपवीत पहनाओ जिस में दया का कपास हो और संतोष का सूत हो. ऐसा यज्ञोपवीत ही सच्चा
यज्ञोपवीत है.

हे आदरणीय पुरोहित जी, क्या आप के पास ऐसा सच्चा यज्ञोपवीत है? बाल नानक के इस सटीक तर्क की काट वहां मौजूद किसी व्यक्ति के पास न थी.

प्रेरक प्रसंग #9: गुरु नानक देव का सच्चा सौदा

एक समय की बात है, गुरु नानक जी के पिता नें उन्हें 20 रुपये दिए और मुनाफ़े का सौदा कर लाने को कहा.

पिता की आज्ञा अनुसार नानक सौदा लाने निकले. रस्ते में चलते-चलते उनकी भेंट एक साधू के समूह से हुई. वह सब बहुत भूखे थे. उन्हें विश्राम की भी ज़रूरत थी. तब गुरु नानक नें सौदा लेने की रकम उन भूखे साधुओं का पेट भरने में खर्च कर दी और उसके बाद गुरु नानक नें यथा संभव उनकी सेवा भी की. युवा नानक के इस दयालू आचरण से साधू गण अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने गुरु नानक को आशीर्वाद दिया.

घर लौटने पर पिता नें सौदे के बारे में पूछा. तब गुरु नानक बोले-

मैं सच्चा सौदा कर के आया हूँ. ज़रूरतमंद की मदद करना ही सच्चा सौदा है.

गुरु नानक की इस मानवतावादी विचारधारा से उनके पिता बहुत खुश हुए और उन्होंने पुत्र नानक को गले से लगा लिया.

प्रेरक प्रसंग #10: गुरु नानक देव और कोढ़ी

एक बार गुरु नानक देव जी अपने शिष्यों के साथ जगत का उद्धार करते हुए एक गाँव पहुँचे.

वहां गाँव के बाहर सबसे अलग-थलग एक झोपडी बनी थी जिसमे कुष्ठ रोग से ग्रसित एक आदमी रहता था.

नानक देव जी उस कोढ़ी के पास गये और रात भर इस झोपड़ी में ठहरने की अनुमति मांगी… 

कोढ़ी को आश्चर्य हुआ कि एक तरफ जहाँ उसे पूरे गाँव वालों यहाँ तक की उसके घर वालों ने भी अलग कर दिया है और कोई उससे बात नहीं करता वहीँ ये लोग उसके घर में रात भर रहना चाहते हैं…. वह कुछ बोल न सका और सिर्फ नानक देव जी को ओर देखता रहा.

कुछ देर में मरदाना और बाला ने भजन-कीर्तन  शुरू कर दिया. कोढ़ी बड़े ध्यान से कीर्तन सुनने लगा. 

कुछ देर बाद गुरु नानक ने उससे पूछा, “ भाई तुम यहाँ गाँव के बाहर इस झोपड़ी में अकेले क्यों रहते हो?”

तब कोढ़ी ने दुखी मन से बताया कि उसे कोढ़ है जिस कारण उसके घर वालों ने भी उससे सम्बन्ध ख़त्म कर लिए और पूरे गाँव में कोई परछाई तक करीब नहीं आने देता.

तब नानक ने कहा, “ जरा मुझे भी तो अपना रोग दिखाओ?”

फिर जैसे ही वह कोढ़ी नानक जी को अपना रोग दिखाने को उठा … एक महान चमत्कार हुआ… उसके हाथ-पाँव की उँगलियाँ सीधी हो गयीं….सभी अंग ठीक प्रकार से काम करने लगे…. उसका कुष्ट रोग हमेशा के लिए ख़त्म हो गया. 

वह नानक देव जी के चरणों में लिपट पड़ा.

नानक जी ने उसे उठाया और गले लगा कर कहा – प्रभु का स्मरण करो और लोगों की सेवा करो; यही मनुष्य के जीवन का मुख्य कार्य है !

 

 

 

सबसे बड़ा दान | एक नेवले की कथा

 

कुरुक्षेत्र के युद्ध के बाद पांचों पांडव भाईयों ने एक महान दान यज्ञ का आयोजन किया और गरीबों को बहुत बड़े उपहार दिए। सभी लोगों ने महानता और समृद्धि पर विस्मय व्यक्त किया और कहा कि इस तरह का दान दुनिया में पहले कभी नहीं देखा।

लेकिन, समारोह के बाद, वहाँ एक नेवला आया, जिसका आधा शरीर सुनहरा था, और आधा भूरे रंग का।  और वह समारोह हॉल के फर्श पर लोटने लगा। और उसने आसपास के लोगों से कहा-

आप सभी झूठे हैं; यह कोई महान दान नहीं है।

“क्या!”, सभी ने अचरज से कहा।

“तुम कहते हो कि यह कोई बड़ा दान नहीं है; क्या तुम नहीं जानते कि यहाँ आने वाले गरीबों को कैसे पूर्णतः सन्तुष्ट किया गया, हर एक की झोली बेशकीमती उपहारों से भर दी गयी?  ऐसा महान दान ना पहले हुआ है और ना कभी होगा।

लेकिन नेवला उनकी बातों से संतुष्ट नहीं हुआ। वह बोला –

“एक बार एक छोटा सा गाँव था, उसमें एक गरीब ब्राह्मण अपनी पत्नी, बेटे और बहू के साथ रहता था। वे बहुत गरीब थे और जीवन-यापन के लिए वे उपदेश के बदले में मिलने वाले दान पर निर्भर रहते थे।

लेकिन एक बार उस गाँव में तीन साल का अकाल पड़ा। गरीब ब्राह्मण के परिवार का निर्वाह होना बहुत कठिन हो गया।

आखिर में गरीब ब्राह्मण बड़ी मुश्किल से भूख से बिलखते अपने परिवार के लिए कहीं से जौ का आटा लेकर आया। बिना किसी देरी के परिवार ने इससे रोटियां तैयार कीं, आटा  कम होने के कारण चार रोटियां ही बन पायीं.  सभी के हिस्से में एक-एक रोटी आई.

मैं चुपचाप एक कोने में बैठा हुआ ये सब देख रहा था कि काश मुझे भी कुछ खाने को मिल जाए।

पर होनी में तो कुछ और ही लिखा था…चारों रोटी खाने को तत्पर हुए कि तभी किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी।

पिता ने दरवाजा खोला, वहां एक अतिथि खड़ा था।

अतिथि ने ब्राह्मण से कहा कि मैं कई दिनो से भूखा हूँ,  मुझपर कृपा करिए, मेरे प्राण भूख से बचा लीजिए।

अतिथि को भगवान का दर्जा देने वाला ब्राह्मण फ़ौरन बोला, “आपका स्वागत है, कृपया अपना स्थान ग्रहण कीजिये, मैं अभी आपको भोजन कराता हूँ।” और ऐसा कह कर उस निर्धन ब्राहमण ने अपने हिस्से की रोटी अतिथि के सामने परोस दी.

अतिथि तो मानो बरसों से भूखा था, पलक झपकते ही उसने रोटी ख़तम कर दी और बोला, “ओह, आपने तो मुझे मार ही दिया; मैं दस दिनों से भूखा हूँ, और एक रोटी से मेरा कुछ नहीं होने वाला, इससे तो मेरी भूख और भी बढ़ गयी… जल्दी से और रोटियां लाइए।”

पिता असमंजस में पड़ गया। वह अपने भूख से तड़पते परिवार को अपने हिस्से की रोटी देने के लिए नहीं कह सकता था.

लेकिन तभी पत्नी ने पति से कहा, “उन्हें मेरा हिस्सा भी दे दीजिये,”

पति ने इनकार कर दिया.

तब  पत्नी ने  ने जोर देकर कहा, “यह मेरा एक पत्नी के रूप में कर्तव्य है।”

फिर उसने अतिथि को अपना हिस्सा दे दिया.

उसे खाने के बाद अतिथि और रोटियाँ मांगने लगा.

इस बार बेटा आगे बढ़ा और यह बोलते हुए अपनी रोटी अतिथि को परोस दी कि, “यह एक बेटे का कर्तव्य है कि वह अपने पिता की सम्मान रखने में कोई कसर ना छोड़े।”

अतिथि ने बेटे का हिस्सा भी खाया, लेकिन फिर भी असंतुष्ट रहा। तब बेटे की पत्नी ने भी उसे अपना हिस्सा भी दे दिया।

अथिति अब संतुष्ट था उसे उसकी पर्याप्त खुराक मिल चुकी थी। वह उन्हें आशीर्वाद दे वहां से चला गया।

लेकिन अतिथि के जाने के कुछ देर बाद ही उन चारों अभागों की भुखमरी से मौत हो गई।

फिर नेवला आगे बोला-

उन चारों को मरा देख मैं वहां से घबरा कर भागा तभी मेरे शरीर का कुछ भाग जमीन पर गिरे आँटो के कणों से छू गया और जैसा कि आप देख सकते हैं, तभी से मेरा आधा शरीर सुनहरा हो गया। 

तब से मैं पूरे देश का भ्रमण कर रहा हूँ कि कहीं तो मुझे उस तरह का एक और महान दान देखने को मिल जाए, और वहां की पवित्र भूमि पर लोट कर मैं अपना बाकी का शरीर भी सोने में बदल सकूँ। लेकिन अब तक मुझे उस उच्च कोटि का दान देखने को नहीं मिला, इसलिए मैं कहता हूं कि यह कोई महान दान नहीं है।