सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी का जीवन प्रेरक प्रसंगों व चमत्कारों से भरा है. अपने प्रिय शिष्यों बाला और मर्दाना के साथ भ्रमण करते हुए उन्होंने जग का कल्याण किया और हमें कई अनमोल उपदेश दिए. आइये आज हम गुरु नानक देव जी के जीवन से जुड़े दस बेहद प्रेरक प्रसंगों को जानते हैं.
एक समय आदरणीय गुरु नानक देव यात्रा करते
हुए नास्तिक विचारधारा रखने वाले लोगों के गाँव पहुंचे. वहां बसे लोगों नें
गुरु नानाक देव और उनके शिष्यों का आदर
सत्कार नहीं किया, उन्हें कटु वचन बोले और तिरस्कार किया. इतना सब होने के
बाद भी, जाते समय ठिठोली लेते हुए, उन्होंने गुरु नानक देव से आशीर्वाद
देने को कहा.
जिस पर नानक देव नें मुस्कुराते हुए कहा “आबाद रहो”
भ्रमण करते हुए, कुछ समय बाद गुरु नानक और उनके शिष्य एक दूसरे गाँव , समीप्रस्थ ग्राम जा पहुंचे. इस गाँव के लोग नेक, दयालु और प्रभु में आस्था रखने वाले थे.
उन्होंने बड़े भाव से सभी का स्वागत सत्कार किया और जाते समय गुरु नानक देव से आशीर्वाद देने की प्रार्थना की. तब गुरु नानक देव नें कहा “उजड़ जाओ\” इतना बोल कर वह आगे बढ़ गए. तब उनके शिष्य भी गुरु के पीछे पीछे चलने लगे.
आगे चल कर उनमें से एक शिष्य खुद को रोक
नहीं सका और बोला. है ‘देव’ आप नें तिरस्कार करने वाले उद्दंड मनुष्यों को
आबाद रहने का आशीर्वाद दिया और सदाचारी
शालीन लोगों को उजड़ जाने का कठोर आशीर्वाद क्यों दिया?
तब गुरु नानक देव हँसते हुए बोले-
सज्जन लोग उजड़ने पर जहाँ भी जायेंगे वहां अपनी सज्जनता से उत्तम वातावरण का निर्माण करेंगे. परंतु दुष्ट और दुर्जन व्यक्ति जहाँ विचरण करेगा वहां, अपने आचार-विचार से वातावरण दूषित करेगा. इस प्रयोजन से मैंने उन्हें वहीँ आबाद रहने का आशीर्वाद दिया.
अपने गुरु की ऐसी तर्कपूर्ण बात से वह शिष्य संतुष्ट हुआ और वह सब अपने मार्ग पर आगे बढ़ गए.
एक बार गुरु नानक देव अपने दोनों चेलों के
साथ कामरूप देश गए. वहां के लोग अपने काले जादू के लिए प्रसिद्ध थे. नगर
के द्वार पर पहुँचते ही, गुरु नानक एक पेड़ की
छाँव में ध्यान मुद्रा में बैठ गए. उनका चेला मरदाना गाँव के भीतर भोजन और
जल का प्रबंध करने गया. दूसरा चेला बाला वहीँ गुरु के पास रुका. एक जलाशय
पर मरदाना
अपनी पानी की सुराही भरने लगा तो, वहां उस नगर की रानी की दो बहने आ पहुंची.
उसने मरदाना से वहां आने का कारण पूछा. मरदाना के उत्तर देते ही वह दोनों हँस पड़ी. वह बोलीं की तुम तो भेड़ बकरी की तरह बोलते हो. चलो तुम्हे भेड़-बकरी जैसा बना दें. इतना बोल कर उन में से एक लड़की नें मरदाना को भेड़ बना दिया और वह भे… भें… करने लगा. समय अधिक हुआ तो गुरु नानक और बाला को चिंता हुई. वह दोनों ठीक उसी जगह आ पहुंचे. इस बार उन दोनों लड़कियों नें बारी-बारी मंत्र बोल कर वही टोटका गुरु नानक पर आज़माया. लेकिन उनमें से खुद एक लड़की बकरी बन गई और दूसरी लड़की का हाथ हवा में जम कर शिथिल हो गया.
वहां मौजूद लोगों नें नगर की रानी को यह
सूचना दी. वह फ़ौरन मौके पर आ पहुंची. उसने भी पहले तो गुरु नानक पर अपना
काला जादू आज़माया. कुछ ही देर में
असफ़लता मिलने पर वह जान गई की उस का पाला किसी दैवीय शक्ति वाले संत से पड़ा है.
माफ़ी मांग लेने पर दयालु गुरु नानक देव नें उन दोनों लड़कियों को ठीक कर दिया. तथा मरदाना को भी उसके असली रूप में ला दिया.
इस प्रसंग के बाद कामरूप के लोगों नें गुरु नानक देव से ज्ञान देने को कहा.
तब गुरु नानक बोले-
हमारे अंदर इश्वर का वास होता है. आप सब को, लोगों को परेशान करना छोड़ कर उनकी मदद करनी चाहिए. ध्यान करो, कर्तव्य पालन करो. लोगों से प्रेम करो. गुरु नानक यह उपदेश दे कर वहां से आगे बढे.
उसके बाद कामरूप देश एक प्रसिद्द आध्यात्म केंद्र बना.
एक समय गुरु नानक देव और उनका चेला मरदाना अमीनाबाद गए. वहां पर एक गरीब किसान लालू नें उन्हें भोजन के लिए आमंत्रित किया. उसने यथा शक्ति रोटी और साग इन दोनों को भोजन के लिए दिए. तभी गाँव के अत्याचारी ज़मींदार मलिक भागु का सेवक वहां आया. उसने कहा मेरे मालिक नें आप को भोजन के लिए आमंत्रित किया है.
बार-बार मिन्नत करने पर गुरु नानक लालू की रोटी साथ ले कर मलिक भागु के घर चले.
मलिक भागु नें उनका आदर सत्कार किया. उनके
भोजन के लिए उत्तम पकवान भी परोसे. लेकिन उससे रहा नहीं गया. उसने पूछा
कि, आप मेरे निमंत्रण पर आने में
संकोच क्यों कर रहे थे? उस गरीब किसान की सूखी रोटी में ऐसा क्या स्वाद है जो मेरे पकवान में नहीं.
इस बात को को सुन कर गुरु नानक नें एक हाथ
में लालू की रोटी ली और, दूसरे हाथ में मलिक भागु की रोटी ली, और दोनों को
दबाया. उसी वक्त लालू की रोटी से दूध की
धार बहने लगी, जब की मलिक भागु की रोटी से रक्त की धार बह निकली.
गुरु नानक देव बोले-
भाई लालू के घर की सूखी रोटी में प्रेम और ईमानदारी मिली हुई है. तुम्हारा धन अप्रमाणिकता से कमाया हुआ है, इसमें मासूम लोगों का रक्त सना हुआ है. जिसका यह प्रमाण है. इसी कारण मैंने लालू के घर भोजन करना पसंद किया.
यह सब देख कर मलिक भागु उनके पैरों में गिर गया और, बुरे कर्म त्याग कर अच्छा इन्सान बन गया.
प्रेरक प्रसंग #4: उड़ती चटाई
अपने दोनों चेलों के साथ गुरु नानक श्रीनगर- कश्मीर यात्रा पर गए. वहां लोग गुरु नानक देव की सरलता से परिचित थे. एक दिन गुरु नानक वहां लोगों से भेंट करने के लिए आये तो हज़ारों लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी. श्रीनगर में उस समय पर एक पंडित हुआ करते थे, जिनका नाम ब्रह्मदास था. दैवी उपासना और आराधना में प्रवीण होने पर उनके पास कई असाधारण सिद्धि थीं. अपना कौशल दिखाने के लिए ब्रह्मदास उड़ती चटाई पर सवार हो कर गुरु नानक के पास पहुंचे.
स्थान पर पहुँच कर देखा तो लोगों का जमावड़ा था. लेकिन गुरु नानक देव कहीं नज़र नहीं आ रहे थे. इधर-उधर झाँक कर ब्रह्मदास नें लोगों से पूछा, कहाँ है गुरु नानक देव?
तब लोगों नें कहा, आप के सामने ही तो वह बैठे हैं. उड़ती चटाई पर सवार ब्रह्मदास नें सोचा की लोग शायद उसका मज़ाक बना रहे हैं, वहां गुरु नानक तो है ही नहीं. यह सोच कर वह जाने लगा तो, उसकी चटाई ज़मीन पर आ पड़ी और साथ वह भी नीचे आ गिरा.
इस घटना के कारण वहां उसकी खूब किरकिरी हुई, उसे अपनी चटाई कंधे पर लाद कर घर जाना पड़ा. घर जा कर उसने अपने नौकर से पूछा की, मुझे गुरु नानक क्यों नहीं दिखे? तब उनका शालीन नौकर बोला, शायद आप के आँखों पर अहम की पट्टी बंधी थी.
अगले दिन पंडित ब्रह्मदास विनम्रता के साथ
चल कर वहां गया. उसने देखा तेज मुखी गुरु नानक वहीँ विराजमान थे. वह
लोगों के साथ सत्संग कर रहे थे. तभी ब्रह्मदास से
रहा नहीं गया, उसने गुरु नानक से सवाल किया, कल मैं चटाई पर उड़ कर आया था, लेकिन तब आप मुझे आप क्यों नहीं दिखे थे?
तब गुरु नानक बोले, इतने अंधकार में भला मैं तुमको कैसे दिखता. यह सुन कर ब्रह्मदास बोला, अरे… अरे… मैं तो दिन के उजाले में आया था. ऊपर आसमान में तो चमकता सूरज मौजूद था, तो अंधकार कैसे हुआ?
गुरु नानक नें कहा-
अहंकार से बड़ा कोई अंधकार है क्या? अपने ज्ञान और आकाश में उड़ने की सिद्धि के कारण तुम खुद को अन्य लोगों से ऊँचा समझने लगे. अपने चारो तरफ़ देखो, कीट-पतंगे, जंतु, पक्षी भी उड़ रहे हैं. क्या तुम इनके समान बनना चाहते हो?
ब्रह्मदास को अपनी भूल समझ आ गयी. उसने गुरु नानक से मन की शांति और उन्नति का ज्ञान लिया और भविष्य में कभी अपनी सिद्धिओं पर अभिमान नहीं किया.
प्रेरक प्रसंग #5: पितृ मोक्ष
एक बार गुरु नानक देव अपने शिष्यों के साथ हरिद्वार गए. वहां पर उन्होंने देखा एक पंडित अपने यजमान को सूर्य की और जल अर्पण करने का निर्देश दे रहा था. यह देख कर वह तुरंत पानी में उतरे. उन्होंने सूर्य से उलट दिशा में पानी अर्पण करना शुरू किया.
यह देख कर पंडित गुस्सा हो गया. उसने कहा, जल अर्पण वहां नहीं करते, सूर्य की और करने से पितृ को मोक्ष मिलता है. इस बात को अनसुनी कर के फ़िर से गुरु नानक सूर्य से उलटी दिशा में जल अर्पण करने लगे.
एक बार फिर से टोकने पर, गुरु नानक नें सवाल किया, की पंडित जी, यह पितृ लोक यहाँ से कितनी दूरी पर होगा?
तब पंडित बोले, होगा शायद हज़ारों लाखो किलोमीटर दूर. तब गुरु नानक बोले, अगर यहाँ गंगा किनारे जल अर्पण करने से पितृ लोक में उपस्थित मृत स्वजनों को जल दिया जा सकता है तो, मेरे गाँव में मौजूद मेरे खेत पर तो यह जल अवश्य पहुँच सकता है. मैं अपने खेतों को पानी देने के प्रयोजन से इस दिशा में जल अर्पण कर रहा हूँ.
गुरु नानक की इस बात से यजमान और पंडित हँसे, और उनकी बात का तात्पर्य भी वह समझ गए.
प्रेरक प्रसंग #6: गुरु नानक देव की मक्का यात्रा
मुसलमान चेले मरदाना नें कहा कि वह मक्का मदीना जाना चाहता है. उसका यह मानना था की एक मुसलमान जब तक मक्का नहीं जाता है तब तक सच्चा मुसलमान नहीं कहलाता है. कुछ ही दिनों में गुरु नानक, मरदाना और बाला तीनों मक्का की यात्रा पर निकले. वहां पहुँच जाने पर गुरु नानक काफ़ी थक गए. वह मुसाफिरों के लिए बनी आरामगाह पर जा कर आराम करने लगे.गुरु नानक को देख कर उस जगह काम करने वाला एक ख़ादिम आग बबूला हो गया. उसने गुरु नानक से गुस्से में कहा- “आपको इतनी समझ नहीं कि खुदा की ओर पाँव रख कर नहीं सोते?
तब गुरु नानक बोले-
मुझे विश्राम करने दो भाई, मै बहुत थका हुआ हूँ. या फ़िर तुम खुद ही मेरे पाँव उस दिशा में कर दो जिधर खुदा न हों!
तब खादिम को एहसास हुआ कि खुदा तो हर तरफ है और उसने गुरु नानक देव से माफ़ी मांग ली.
गुरु नानक नें भी उसे माफ़ कर दिया और मुस्कुराते हुए कहा- “खुदा दिशाओं में वास नहीं करते, वह तो दिलों में राज करते हैं. अच्छे कर्म करो, खुदा को दिल में रखो, यही खुदा का सच्चा सदका है.
प्रेरक प्रसंग #7: गुरु नानक और नाग
एक समय गुरु नानक अपनी गाय को चराने के
लिए जंगल की ओर ले कर गए. पास में एक सूखा पेड़ का तना देख कर उसके नीचे वह
बिछोना लगा कर विश्राम करने लगे.
दिन का समय था इसलिए धूप बहुत तेज़ थी. पेड़ की सूखी शाखाओं के बीच से कड़ी धूप गुरु नानक के चेहरे पर पड़ रही थी. तभी अचानक वहां पर एक बड़े फन वाला काला नाग आ पहुंचा. और गुरु नानक के पास कुंडली मार के बैठ गया.
थोड़ी देर में वहां से राय भुल्लर नाम का एक व्यक्ति अपने घोड़े पर निकला. उसने देखा की एक व्यक्ति सो रहा है और ज़हरीला नाग उसे दंश देने की फ़िराक में है. यह सब देख कर वह बड़ी तेज़ी से गुरु नानक की और बढे. लेकिन जब वह करीब आये तो नज़ारा देख कर स्तब्ध हो गए.
वह काला नाग गुरु नानक को दंश देने नहीं
आया था, वह अपना फन फैला कर गुरु नानक के चेहरे पर पड़ने वाली तीक्ष्ण धूप
को रोक रहा था. इस दिव्य प्रसंग से प्रभावित
हुए राय भुल्लर आने वाले समय में, गुरु नानक के शिष्यों में शामिल हुए.
प्रेरक प्रसंग #8: बालक नानक का यज्ञोपवीत
कल्याणराय नें एक बार अपने पुत्र नानक का यज्ञोपवीत कराने हेतु, कुटुंब और परिचितों को आमंत्रित किया. बालक नानक आसन पर बैठे, मंत्रोच्चार शुरू हुआ. तब नानक नें पुरोहित से इस विधि का प्रयोजन पूछा.
तब पुरोहित नें कहा, तुम्हारा यज्ञोपवीत
संस्कार हो रहा है, हिन्दू धर्म मर्यादा अनुसार “पवित्र सूत” को धारण करना
कल्याणकारी होता है. इससे तुम्हे धर्म में दीक्षित कराया
जा रहा है.
कौतुहल वश नानक बोले, यह तो सूत का धागा है, गंदा हो जायेगा ना? और टूट भी सकता है? इस प्रश्न के जवाब में पुरोहित जी नें समझाया की, मैला होने पर इसे साफ़ कर सकते हैं. और खंडित हो जाने पर इसे बदला भी जा सकता है.
अब नानक बोले, देहांत के बाद, यह शरीर के साथ जल भी जाता होगा ना? यदि इसे धारण कर लेने से शरीर, आत्मा, मन तथा यज्ञोपवीत में अखंड पवित्रता नहीं रहती तो इसे धारण करने से क्या लाभ?
नानक नें कहा अगर यज्ञोपवीत धारण कराना है
तो, अखंडित और अविनाशी यज्ञोपवीत पहनाओ जिस में दया का कपास हो और संतोष
का सूत हो. ऐसा यज्ञोपवीत ही सच्चा
यज्ञोपवीत है.
हे आदरणीय पुरोहित जी, क्या आप के पास ऐसा सच्चा यज्ञोपवीत है? बाल नानक के इस सटीक तर्क की काट वहां मौजूद किसी व्यक्ति के पास न थी.
प्रेरक प्रसंग #9: गुरु नानक देव का सच्चा सौदा
एक समय की बात है, गुरु नानक जी के पिता नें उन्हें 20 रुपये दिए और मुनाफ़े का सौदा कर लाने को कहा.
पिता की आज्ञा अनुसार नानक सौदा लाने निकले. रस्ते में चलते-चलते उनकी भेंट एक साधू के समूह से हुई. वह सब बहुत भूखे थे. उन्हें विश्राम की भी ज़रूरत थी. तब गुरु नानक नें सौदा लेने की रकम उन भूखे साधुओं का पेट भरने में खर्च कर दी और उसके बाद गुरु नानक नें यथा संभव उनकी सेवा भी की. युवा नानक के इस दयालू आचरण से साधू गण अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने गुरु नानक को आशीर्वाद दिया.
घर लौटने पर पिता नें सौदे के बारे में पूछा. तब गुरु नानक बोले-
मैं सच्चा सौदा कर के आया हूँ. ज़रूरतमंद की मदद करना ही सच्चा सौदा है.
गुरु नानक की इस मानवतावादी विचारधारा से उनके पिता बहुत खुश हुए और उन्होंने पुत्र नानक को गले से लगा लिया.
प्रेरक प्रसंग #10: गुरु नानक देव और कोढ़ी
एक बार गुरु नानक देव जी अपने शिष्यों के साथ जगत का उद्धार करते हुए एक गाँव पहुँचे.
वहां गाँव के बाहर सबसे अलग-थलग एक झोपडी बनी थी जिसमे कुष्ठ रोग से ग्रसित एक आदमी रहता था.
नानक देव जी उस कोढ़ी के पास गये और रात भर इस झोपड़ी में ठहरने की अनुमति मांगी…
कोढ़ी को आश्चर्य हुआ कि एक तरफ जहाँ उसे पूरे गाँव वालों यहाँ तक की उसके घर वालों ने भी अलग कर दिया है और कोई उससे बात नहीं करता वहीँ ये लोग उसके घर में रात भर रहना चाहते हैं…. वह कुछ बोल न सका और सिर्फ नानक देव जी को ओर देखता रहा.
कुछ देर में मरदाना और बाला ने भजन-कीर्तन शुरू कर दिया. कोढ़ी बड़े ध्यान से कीर्तन सुनने लगा.
कुछ देर बाद गुरु नानक ने उससे पूछा, “ भाई तुम यहाँ गाँव के बाहर इस झोपड़ी में अकेले क्यों रहते हो?”
तब कोढ़ी ने दुखी मन से बताया कि उसे कोढ़ है जिस कारण उसके घर वालों ने भी उससे सम्बन्ध ख़त्म कर लिए और पूरे गाँव में कोई परछाई तक करीब नहीं आने देता.
तब नानक ने कहा, “ जरा मुझे भी तो अपना रोग दिखाओ?”
फिर जैसे ही वह कोढ़ी नानक जी को अपना रोग दिखाने को उठा … एक महान चमत्कार हुआ… उसके हाथ-पाँव की उँगलियाँ सीधी हो गयीं….सभी अंग ठीक प्रकार से काम करने लगे…. उसका कुष्ट रोग हमेशा के लिए ख़त्म हो गया.
वह नानक देव जी के चरणों में लिपट पड़ा.
नानक जी ने उसे उठाया और गले लगा कर कहा – प्रभु का स्मरण करो और लोगों की सेवा करो; यही मनुष्य के जीवन का मुख्य कार्य है !
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