शनिवार, 30 अप्रैल 2022

क्या सचमुच आत्मा होती है?

 प्रातः काल का समय था। गुरुकुल में हर दिन की भांति गुरूजी अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहे थे। आज का विषय था- “आत्मा”

आत्मा के बारे में बताते हुए गुरु जी ने गीता का यह श्लोक बोला –

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः |
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ||

अर्थात: आत्मा को न शस्त्र छेद सकते हैं, न अग्नि जला सकती है, न जल उसे गला सकता है और न हवा उसे सुखा सकती है। इस आत्मा का कभी भी विनाश नहीं हो सकता है, यह अविनाशी है।

यह सुनकर एक शिष्य को जिज्ञासा हुई, वह बोला, “किन्तु गुरुवर यह कैसे संभव है? यदि आत्मा का अस्तित्व है, वो अविनाशी है, तो भला वो इस नाशवान शरीर में कैसे वास करती है और वो हमें दिखाई क्यों नहीं देती? क्या सचमुच आत्मा होती है?”

गुरु जी मुस्कुराए और बोले, पुत्र आज तुम रसोईघर से एक कटोरा दूध ले लेना और उसे सुरक्षित अपने कमरे में रख देना। और कल इसी समय वह कटोरा लेकर यहाँ उपस्थित हो जाना।

अगले दिन शिष्य कटोरा लेकर उपस्थित हो गया।

गुरु जी ने पूछा, “ क्या दूध आज भी पीने योग्य है?”

शिष्य बोला, “नहीं गुरूजी, यह तो कल रात ही फट गया था….लेकिन इसका मेरे प्रश्न से क्या लेना-देना?”

गुरु जी शिष्य की बात काटते हुए बोले, “ आज भी तुम रसोई में जाना और एक कटोरा दही ले लेना, और कल इसी समय कटोरा लेकर यहाँ  उपस्थित हो जाना।

अगले दिन शिष्य सही समय पर उपस्थित हो गया।

गुरु जी ने पूछा, “ क्या दही आज भी उपभोग हेतु ठीक है ?”

शिष्य बोला, “जी हाँ गुरूजी ये अभी भी ठीक है।”

“अच्छा ठीक है कल तुम फिर इसे लेकर यहाँ आना।”, गुरूजी ने आदेश दिया।

अगले दिन जब गुरु जी ने शिष्य से दही के बारे में पूछा तो उसने बताया कि दही में खटास आ चुकी थी और वह कुछ खराब लग रही है।

इसपर गुरूजी ने कटोरा एक तरफ रखते हुए कहा, “ कोई बात नहीं, आज तुम रसोई से एक कटोरा घी लेकर जाना और उसे तब लेकर आना जब वो खराब हो जाए!”दिन बीतते गए पर घी खराब नहीं हुआ और शिष्य रोज खाली हाथ ही गुरु के समक्ष उपस्थित होता रहा।

फिर एक दिन शिष्य से रहा नहीं गया और उसने पूछ ही लिए, “गुरुवर मैंने बहुत दिनों पहले आपसे पश्न किया था कि -“ यदि आत्मा का अस्तित्व है, वो अविनाशी है, तो भला वो वो इस नाशवान शरीर में कैसे वास करती है और व हमें दिखाई क्यों नहीं देती? क्या सचमुच आत्मा होती है?”, पर उसका उत्तर देने की बजाये आपने मुझे दूध, दही, घी में उलझा दिया। क्या आपके पास इसका कोई उत्तर नहीं है?”

इस बार गुरूजी गंभीर होते हुए बोले, “ वत्स मैं ये सब तुम्हारे प्रश्न का उत्तर देने के लिए ही तो कर रहा था- देखो दूध, दही और घी सब दूध का ही हिस्सा हैं…लेकिन दूध एक दिन में खराब हो जाता है..दही दो-तीन दिनों में लेकिन शुद्ध घी कभी खराब नहीं होता। ”

इसी प्रकार आत्मा इस नाशवान शरीर में होते हुए भी ऐसी है कि उसे कभी नष्ट नहीं किया जा सकता।

“ठीक है गुरु जी, मान लिया कि आत्मा अविनाशी है लेकिन हमें घी तो दिखयी देता है पर आत्मा नहीं दिखती?”

“शिष्य!”, गुरु जी बोले, “ घी अपने आप ही तो नहीं दिखता न? पहले दूध में जामन डाल कर दही में बदलना पड़ता है, फिर दही को मथ कर उसे मक्खन में बदला जाता है, फिर कहीं जाकर जब मक्खन को सही तापमान पर घंटों पिघलाया जाता है तब जाकर घी बनता है!

हर इंसान आत्मा का दर्शन यानी आत्म-दर्शन कर सकता है, लेकिन उसके लिए पहले इस दूध रुपी शरीर को भजन रूपी जामन से पवित्र बनाना पड़ता है उसके बाद कर्म की मथनी से इस शरीर को दीन-दुखियों की सेवा में मथना होता है और फिर सालों तक साधना व तपस्या की आंच पर इसे तपाना होता है…तब जाकर आत्म-दर्शन संभव हो पाता है!

शिष्य गुरु जी की बात अच्छी तरह से समझ चुका था, आज उसकी जिज्ञासा शांत हो गयी थी, उसने गुरु के चरण-स्पर्श किये और आत्म-दर्शन के मार्ग पर आगे बढ़ गया

बादल और राजा – दो घोड़ों की कहानी

 

घोड़ों की बाधा दौड़ का चैंपियन था और कई सालों से वह अपने मालिक को सर्वश्रेष्ठ घुड़सवार का खिताब दिला रहा था।

एक दिन जब राजा ने बादल को ट्रैक के किनारे उदास खड़े देखा तो बोला, ” क्या हुआ बेटा तुम इस तरह उदास क्यों खड़े हो?”

“कुछ नहीं पिताजी…आज मैंने आपकी तरह उस पहली बाधा को कूदने का प्रयास किया लेकिन मैं मुंह के बल गिर पड़ा…मैं कभी आपकी तरह काबिल नहीं बन पाऊंगा…”

राजा बादल की बात समझ गया। अगले दिन सुबह-सुबह वह बादल को लेकर ट्रैक पर आया और एक लकड़ी के लट्ठ की तरफ इशारा करते हुए बोला- ” चलो बादल, ज़रा उसे लट्ठ के ऊपर से कूद कर तो दिखाओ।”

बादला हंसते हुए बोला, “क्या पिताजी, वो तो ज़मीन पे पड़ा है…उसे कूदने में क्या रखा है…मैं तो उन बाधाओं को कूदना चाहता हूँ जिन्हें आप कूदते हैं।”

“मैं जैसा कहता हूँ करो।”, राजा ने लगभग डपटते हुए कहा।

अगले ही क्षण बादल लकड़ी के लट्ठ की और दौड़ा और उसे कूद कर पार कर गया।

“शाबाश! ऐसे ही बार-बार कूद कर दिखाओ!”, राजा उसका उत्साह बढाता रहा।

अगले दिन बादल उत्साहित था कि शायद आज उसे बड़ी बाधाओं को कूदने का मौका मिले पर राजा ने फिर उसी लट्ठ को कूदने का निर्देश दिया।

करीब 1 हफ्ते ऐसे ही चलता रहा फिर उसके बाद राजा ने बादल से थोड़े और बड़े लट्ठ कूदने की प्रैक्टिस कराई।

इस तरह हर हफ्ते थोड़ा-थोड़ा कर के बादल के कूदने की क्षमता बढती गयी और एक दिन वो भी आ गया जब राजा उसे ट्रैक पर ले गया।

महीनो बाद आज एक बार फिर बादल उसी बाधा के सामने खड़ा था जिस पर पिछली बार वह मुंह के बल गिर पड़ा था… बादल ने दौड़ना शुरू किया… उसके टापों की आवाज़ साफ़ सुनी जा सकती थी… 1…2…3….जम्प….और बादल बाधा के उस पार था।

आज बादल की ख़ुशी का ठिकाना न था…आज उसे अन्दर से विश्वास हो गया कि एक दिन वो भी अपने पिता की तरह चैंपियन घोड़ा बन सकता है और इस विश्वास के बलबूते आगे चल कर बादल भी एक चैंपियन घोड़ा बना।

दोस्तों, बहुत से लोग सिर्फ इसलिए goals achieve नहीं कर पाते क्योंकि वो एक बड़े challenge या obstacle को छोटे-छोटे challenges में divide नहीं कर पाते। इसलिए अगर आप भी अपनी life में एक champion बनना चाहते हैं…एक बड़ा लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं तो systematically उसे पाने के लिए आगे बढिए… पहले छोटी-छोटी बाधाओं को पार करिए और ultimately उस बड़े goal को achieve कर अपना जीवन सफल बनाइये।

Moral of the story is:

जल्दी हार मत मानिए, बल्कि छोटे से शुरू करिए और प्रयास जारी रखिये…इस तरह आप उस लक्ष्य को भी प्राप्त कर पायेंगे जो आज असंभव लगता है।

 

शुक्रवार, 29 अप्रैल 2022

अनोखी साइकिल रेस

 अमर एक multi national company का ग्रुप लीडर था। काम करते-करते उसे अचानक ऐसा लगा की उसके टीम में मतभेद बढने लगे हैं। और सभी एक-दूसरे को नीचा दिखाने में लगे हुए हैं। इससे निबटने के लिए उसने एक तरकीब सोची।

उसने एक meeting बुलाई और team members से कहा –

Sunday को आप सभी के लिए एक साइकिल race का आयोजन किया जा रहा है। कृपया सब लोग सुबह सात बजे अशोक नगर चौराहे पर इकठ्ठा हो जाइएगा।

तय समय पर सभी अपनी-अपनी साइकलों पर इकठ्ठा हो गए।

अमर ने एक-एक करके सभी को अपने पास बुलाया और उन्हें उनका लक्ष्य बता कर स्टार्टिंग लाइन पर तैयार रहने को कहा। कुछ ही देर में पूरी टीम रेस के लिए तैयार थी, सभी काफी उत्साहित थे और रूटीन से कुछ अलग करने के लिए अमर को थैंक्स कर रहे थे।

अमर ने सीटी बजायी और रेस शुरू हो गयी।

Boss को impress करने के लिए हर कोई किसी भी कीमत पर रेस जीतना चाहता था। रेस शुरू होते ही सड़क पर अफरा-तफरी मच गयी… कोई दाएं से निकल रहा था तो कोई बाएँ से… कई तो आगे निकलने की होड़ में दूसरों को गिराने से भी नहीं चूक रहे थे।

इस हो-हल्ले में किसी ने अमर के निर्देशों का ध्यान ही नहीं रखा और भेड़ चाल चलते हुए सबसे आगे वाले साइकिलिस्ट के पीछे-पीछे भागने लगे।

पांच मिनट बाद अमर ने फिर से सीटी बजायी और रेस ख़त्म करने का निर्देश दिया। एका -एक सभी को रेस से पहले दिए हुए निर्देशों का ध्यान आया और सब इधर-उधर भागने लगे। लेकिन अमर ने उन्हें रोकते हुए अपने पास आने का इशारा किया।

सभी बॉस के सामने मुंह लटकाए खड़े थे और रेस पूरी ना कर पाने के कारण एक-दूसरे को दोष दे रहे थे।

अमर ने मुस्कुराते हुए अपनी टीम की ओर देखा और कहा-

“अरे क्या हुआ? इस टीम में तो एक से एक चैंपियन थे पर भला क्यों कोई भी व्यक्ति इस अनोखी साइकिल  रेस को पूरा नहीं कर सका?”

अमर ने बोलना जारी रखा- “मैं बताता हूँ क्या हुआ….दरअसल आप में से किसी ने भी अपने लक्ष्य की तरफ ध्यान ही नही दिया। अगर आप सभी ने सिर्फ अपने लक्ष्य पर ध्यान दिया होता तो आप सभी विजेता बन गये होते , क्योंकि सभी व्यक्ति का target अलग-अलग था। सभी को अलग-अलग गलियों में जाना था। हर किसी का लक्ष्य भिन्न था। आपस में कोई मुकाबला था ही नही।

लेकिन आप लोग सिर्फ एक दूसरे को नीचा दिखाने में लगे रहे, जबकि आपने अपने लक्ष्य को तो ठीक से समझा ही नही। ठीक यही माहौल हमारी टीम का हो गया है। आप सभी के अंदर वह अनोखी बात है, जिसकी वजह से टीम को आप की जरुरत है। लेकिन आपसी unhealthy competition के कारण ना ही टीम और ना ही आप का विकास हो पा रहा है। आने वाला आपका कल, आपके हाथ में है। हम या तो एक-दूसरे की ताकत बन कर एक-दूसरे को विकास के पथ पर ले जा सकते है या आपसी competition के चक्कर में अपना और दूसरों का समय व्यर्थ कर सकते है।

मेरी आप सबसे यही request है कि एक individual की तरह नहीं बल्कि एक team की तरह काम करिए…याद रखिये individual performer बनने से कहीं ज्यादा ज़रूरी एक team-player बनना है।”

 

 

रविवार, 24 अप्रैल 2022

गुडडू कब मरेगा! एक दुःख भरी कहानी

एक दिन ठेले पर भार अधिक होने के कारण रामू उसे ठीक से सम्भाल नहीं पाया और तेज गति से आती ट्रक से भिड गया। अगले ही पल उसकी मौत हो गयी और उसके पीछे रह गयी उसकी पत्नी जानकी और दो छोटे-छोटे बच्चे गुड्डी और गुडडू।

एक तरफ रामू का अंतिम संस्कार किया जा रहा था और दूसरी तरफ उसके बच्चे बिलख रहे थे… नहीं इसलिए नहीं कि पापा मर गए थे….वे तो भूख से बिलख रहे थे…उन्होंने कई दिनों से पेट भर खाना नहीं खाया था…और आज तो मुंह में एक निवाला भी नही गया था…सो, भूख से रोये जा रहे थे…

माँ-माँ….कुछ खाने को दो न…माँ….बड़ी भूख लगी है माँ…कुछ दो न….

 

कोई पत्थर दिल भी इस दृश्य को देखकर पसीज जाता… पड़ोसियों को भी दया आ गयी….अगल-बगल से खाना आ गया।

बड़े दिनों बाद आज गुड्डी और गुडडू पेट भर के खाना खा रहे थे।

अजीब विरोधाभास था…एक तरफ लोग रामू की मौत पर दुःख व्यक्त कर रहे थे वहीँ दूसरी तरफ उसके अपने बच्चे बड़े चाव से भोजन कर रहे थे!

जानकी ने अगले कुछ दिन इसी तरह से उधार लेकर और इधर-उधर से मांग कर अपना और बच्चों का पेट पाला…लेकिन ये कब तक चलता? लोगों ने मदद करना बंद कर दी…जानकी पागलों की तरह काम खोजने लगी…लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद भी किसी ने उसे काम नहीं दिया।

जब थक-हर कर घर लौटी तो बच्चे उम्मीद से उसकी तरफ देखने लगे….

गुडडू तुतलाती आवाज़ में बोला-

त्या लायी हो माँ…जल्दी से खिला दो, बलि भूख लगी है…

माँ रो पड़ी और बच्चे समझ गए कि माँ के पास कुछ भी नहीं है…एक पल के लिए अजीब सा सन्नाटा पसर गया…

फिर गुड्डी बोली-

माँ, ये गुडडू कब मरेगा!

“पागल हो गयी है….ऐसा क्यों बोल रही है…..”, माँ ने डांटते हुए बोला।

माँ, जब पापा मरे थे तो उस दिन हम लोगों को पेट भर खाना मिला था….गुडडू मरेगा तो फिर खाना आएगा ना!

गुड्डी की बातें सुनकर माँ कि आँखें फटी की फटी रही गयीं…उसके पास गुड्डी की बात को कोई जवाब ना था!

दोस्तों, ये सिर्फ एक कहानी नहीं है…ये दुनिया के करोड़ों लोगों की हक़ीकत है! इस पर गौर कीजिये, जिस खाने को हम थाली में ऐसे ही छोड़ देते हैं उसकी कीमत को समझिये…बचपन से हमें अन्न का आदर करना सिखाया जाता है लेकिन चूँकि हमने कभी असल भूख नहीं देखी होती इसलिए हम उसका आदर करना नहीं सीखते…एक दिन… बस एक दिन भूखा रह कर देखिये और आप करोड़ों लोगों का दर्द समझ जायेंगे!

चलिए हम प्रण करें कि हम कभी भी अन्न का अपमान नहीं करेंगे…हम कभी भी खाना बर्बाद नहीं करेंगे…हम कभी भी होटल जाकर दो लोगों के बीच चार लोगों का खाना नहीं मंगाएंगे….चलिए अन्न को बचाएं और उसे ऐसे लोगों तक पहुंचाने का प्रयास करें जिन्हें इनकी सचमुच ज़रुरत है!

 

शनिवार, 23 अप्रैल 2022

डर पर जीत हासिल करने की सीख देती कहानी

 

इसलिए दोनों इधर-उधर देखने लगे कि शायद नदी पार करने के लिए कहीं कोई पुल हो! पर बहुत खोजने पर भी उन्हें कोई पुल नज़र नहीं आया।

रोहित बोला, “हमारी तो किस्मत ही खराब है, चलो वापस चलते हैं, अब गर्मियों में शहर के लिए निकलेंगे!

“नहीं”, सुमित बोला, “नदी पार करने के बाद शहर थोड़ी दूर पर ही है और हम अभी शहर जायेंगे…”

और ऐसा कह कर वो धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा।

“अरे ये क्या का रहे हो….पागल हो गए हो…तुम गिर जाओगे…” रोहित चिल्लाते हुए बोल ही रहा था कि सुमित पैर फिसलने के कारण गिर पड़ा।

“कहा था ना मत जाओ..”, रोहित झल्लाते हुए बोला।

सुमित ने कोई जवाब नही दिया और उठ कर फिर आगे बढ़ने लगा…एक-दो-तीन-चार….और पांचवे कदम पे वो फिर से गिर पड़ा..

रोहित लगातार उसे मना करता रहा…मत जाओ…आगे मत बढ़ो…गिर जाओगे…चोट लग जायेगी… लेकिन सुमित आगे बढ़ता रहा।

वो शुरू में दो-तीन बार गिरा ज़रूर लेकिन जल्द ही उसने बर्फ पर सावधानी से चलना सीख लिया और देखते-देखते नदी पार कर गया।

दूसरी तरफ पहुँच कर सुमित बोला, ” देखा मैंने नदी पर कर ली…और अब तुम्हारी बारी है!”

“नहीं, मैं यहाँ पर सुरक्षित हूँ…”

“लेकिन तुमने तो शहर जाने का निश्चय किया था।”

“मैं ये नहीं कर सकता!”

नहीं कर सकते या करना नहीं चाहते!

सुमित ने मन ही मन सोचा और शहर की तरफ आगे बढ़ गया।

दोस्तों, हम सबकी ज़िन्दगी में कभी न कभी ऐसे मोड़ आ ही जाते हैं जब जमी हुई नदी के रूप में कोई बड़ी बाधा या challenge  हमारे सामने आ जाता है। और ऐसे में हमें कोई निश्चय करना होता है। तब क्या हम खतरा उठाने का निश्चय लेते हैं और तमाम मुश्किलों, डर, और असफलता के भय के बावजूद नदी पार करते हैं? या हम safe रहने के लिए वहीँ खड़े रह जाते हैं जहाँ हम सालों से खड़े थे?

 जहाँ तक दुनिया के सफल लोगों का सवाल है वे रिस्क लेते हैं…अगर आप नहीं लेते तो हो सकता है आज आप बिलकुल सुरक्षित हों आपके शरीर पर एक भी घाव ना हों…लेकिन जब आप अपने भीतर झाकेंगे तो आपको अपने अन्दर ज़रूर कुछ ऐसे ज़ख्म दिख जायेंगे जो आपके द्वारा अपने सपनो को के लिए कोई प्रयास ना करने के कारण आज भी हरे होंगे।
Friends, पंछी सबसे ज्यादा सुरक्षित एक पिंजड़े में होता है…लेकिन क्या वो इसलिए बना है? या फिर वो आकश की ऊँचाइयों को चूमने और आज़ाद घूमने के लिए दुनिया में आया है? फैसला आपका है…आप पिंजड़े का पंछी बनना चाहते हैं या खुले आकाश का?

 

 

गुरुवार, 14 अप्रैल 2022

माँ दुर्गा की कहानियां व प्रेरक-प्रसंग

 

आइये नवरात्र के शुभ अवसर पर हम माँ दुर्गा से जुड़े कुछ बेहद रोचक व भक्तिपूर्ण प्रेरक प्रसंगों को जानते हैं और माँ की आराधना करते हैं। सबसे पहले माँ दुर्गा के नौ रूपों के नाम जानते हैं:

माँ दुर्गा के नौ रूप

दुर्गा माँ के नौ रूप

  1. माँ शैलपुत्री
  2. माँ ब्रह्मचारिणी
  3. माँ चन्द्रघण्टा
  4. माँ कुष्मांडा
  5. माँ कालरात्रि
  6. माँ कात्यायनी
  7. माँ सिद्धिदात्री
  8. माँ महागौरी
  9. माँ स्कंदमाता

प्रेरक प्रसंग #1: क्यों माता शक्ति (माँ भगवती) का नाम दुर्गा पड़ा?

पुरातन काल में दुर्गम नाम का एक अत्यंत बलशाली दैत्य हुआ करता था। उसने ब्राहमाजी को प्रसन्न कर के समस्त वेदों को अपनें आधीन कर लिया, जिस कारण सारे देव गण का बल क्षीण हो गया। इस घटना के उपरांत दुर्गम नें स्वर्ग पर आक्रमण कर के उसे जीत लिया।और तब समस्त देव गण एकत्रित हुए और उन्होने देवी माँ भगवती का आह्वान किया और फिर देव गण नें उन्हे अपनी व्यथा सुनाई। तब माँ भगवती नें समस्त देव गण को दैत्य दुर्गम के प्रकोप से मुक्ति दिलाने का आश्वासन दिया।

माँ भगवती नें दुर्गम का अंत करने का प्रण लिया है, यह बात जब दुर्गम को पता चली तब उसने सवर्ग लोग पर पुनः आक्रमण कर दिया। और तब माँ भगवती नें दैत्य दुर्गम की सेना का संहार किया और अंत में दुर्गम को भी मृत्यु लोक पहुंचा दिया। माँ भगवती नें दुर्गम के साथ जब अंतिम युद्ध किया तब उन्होने भुवनेश्वरी, काली, तारा, छीन्नमस्ता, भैरवी, बगला तथा दूसरी अन्य महा शक्तियों का आह्वान कर के उनकी सहायता से दुर्गम को पराजित किया था।

इस भीषण युद्ध में विकट दैत्य दुर्गम को पराजित करके उसका वध करने पर माँ भगवती दुर्गा नाम से प्रख्यात हुईं।

प्रेरक प्रसंग #2: माँ दुर्गा नें जब नष्ट किया देवगण का अभिमान

देवताओं और राक्षसों के बीच एक बार अत्यंत भीषण युद्ध हुआ। रक्त से सराबोर इस लड़ाई में अंततः देवगण विजयी हुए। जीत के मद में देव गण अभिमान और घमंड से भर गए। तथा स्वयं को सर्वोत्तम मानने लगे। देवताओं के इस मिथ्या अभिमान को नष्ट करने हेतु माँ दुर्गा नें तेजपुंज का रूप धारण किया और फिर देवताओं के समक्ष प्रकट हुईं। तेजपुंज विराट स्वरूप देख कर समस्त देवगण भयभीत हो उठे। और तब सभी देवताओं  के राजा इन्द्र नें वरुण देव को तेजपुंज का रहस्य जानने के लिए आगे भेजा।

तेजपुंज के सामने जा कर वरुण देव अपनी शक्तियों का बखान करने लगे। और तेजपुंज से उसका परिचय मांगने लगे। तब तेजपुंज नें वरुण देव के सामने एक अदना सा, छोटा सा तिनका रखा और उन्हे कहा की तुम वास्तव में इतने बलशाली हो जितना तुम खुद का बखान कर रहे हो तो इस तिनके को उड़ा कर दिखाओ।

वरुण देव नें एड़ी-चोटी का बल लगा दिया पर उनसे वह तिनका रत्ती भर भी हिल नहीं पाया और उनका घमंड चूर-चूर हो गया। अंत में वह वापस लौटे और उन्होने वह वास्तविकता इन्द्र देव से कही ।

इन्द्र देव नें फिर अग्नि देव को भेजा। तेजपुंज नें अग्नि देव से कहा की अपने बल और पराक्रम से इस तिनके को भस्म कर के बताइये।

अग्नि देव नें भी इस कार्य को पार लगाने में अपनी समस्त शक्ति झोंक दी। पर कुछ भी नहीं कर पाये। अंत में वह भी सिर झुकाये इन्द्र देव के पास लौट आए। इस तरह एक एक-कर के समस्त देवता तेजपुंज की चुनौती से परास्त हुए तब अंत में देव राज इन्द्र खुद मैदान में आए पर उन्हे भी सफलता प्राप्त ना हुई।

अंत में समस्त देव गण नें तेजपुंज से हार मान कर वहाँ उनकी आराधना करना शुरू कर दिया। तब तेजपुंज रूप में आई माँ दुर्गा में अपना वास्तविक रूप दिखाया और देवताओं को यह ज्ञान दिया की माँ शक्ति के आशीष से आप सब नें दानवों को परास्त किया है। तब देवताओं नें भी अपनी गलती के लिए क्षमा मांगी और अपना मिथ्या अभिमान त्याग दिया।

प्रेरक प्रसंग #3: माँ दुर्गा का वाहन शेर क्यों है?

एक धार्मिक (पौराणिक) कथा अनुसार माँ पार्वती नें भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। हजारों वर्षों तक चली इस कठोर तपस्या के फल स्वरूप माँ पार्वती नें शिवजी को तो पा लिया पर तप के प्रभाव से वह खुद सांवली पड़ गयी।

विनोद में एक दिन शिवजी नें माँ पार्वती को काली कह दिया, यह बात माँ पार्वती को इतनी बुरी लग गयी की उन्होने कैलाश त्याग दिया और वन गमन किया। वन में जा कर उन्होने घोर तपस्या की। उनकी इस कठिन तपस्या के दौरान वहाँ एक भूखा शेर, उनका भक्षण करने के इरादे से आ चढ़ा। लेकिन तपस्या में लीं माँ पार्वती को देख कर वह शेर चमत्कारिक रूप से वहीं रुक गया और माँ पार्वती के सामने बैठ गया। और उन्हे निहारता रहा।

माँ पार्वती नें तो हठ ले ली थी की जब तक वह गौरी (रूपवान) नहीं हो जाएंगी तब तक तप करती ही रहेंगी। शेर भी भूखा प्यासा उनके सामने बरसों तक बैठा रहा। अंत में शिवजी प्रकट हुए और माँ पार्वती को गौरी होने का वरदान दे कर अंतरध्यान हो गए। इस प्रसंग के बाद पार्वती माँ गंगा स्नान करने गईं तब उनके अंदर से एक और देवी प्रकट हुई। और माँ पार्वती गौरी बन गईं। और उनका नाम इसीलिए गौरी पड़ा। और दूसरी देवी जिनका स्वरूप श्याम था उन्हे कौशकी नाम से जाना गया।

स्नान सम्पन्न करने के उपरांत जब माँ पार्वती (गौरी) वापस लौट रही थीं तब उन्होने देखा की वहाँ एक शेर बैठा है जो उनकी और बड़े ध्यान से देखे जा रहा है। शेर एक मांस-आहारी पशु होने के बावजूद, उसने माँ पर हमला नहीं किया था यह बात माँ पार्वती को आश्चर्यजनक लगी। फिर उन्हे अपनी दिव्य शक्ति से यह भास हुआ की वह शेर तो तपस्या के दौरान भी उनके साथ वहीं पर बैठा था। और तब माँ पार्वती नें उस शेर को आशीष दे कर अपना वाहन बना लिया।

प्रेरक प्रसंग #4: माँ दुर्गा नें किया प्रचंड पराक्रमी असुर महिषासुर का संहार ( Mahishasura Story in Hindi)

अत्याचारी असुरों का नाश करने हेतु माँ भगवती नें कई अवतार लिए हैं। असुर महिषासुर का वध करने के लिए शक्ति माँ नें दुर्गा का अवतार लिया था। एक धार्मिक कथा अनुसार महिषासुर नें अपने बल और पराक्रम से स्वर्ग लोक देवताओं से छीन लिया था। तब सारे देवता मिल कर विष्णु भगवान एवं शंकर भगवान से सहाय मांगने उनके समक्ष गए। पूरी बात जान कर भगवान विष्णु एवं शंकर भगवान क्रोधित हो उठे।

और तब उन सभी के मुख से दिव्य तेज प्रकट हुआ जिस तेज से एक नारी का सर्जन हुआ। जिन्हें “दुर्गा” कहा गया।

  • भगवान शिव के तेज से मुख बना।
  • यमराज के तेज से केश बने।
  • भगवान विष्णु के तेज से भुजाएँ बनी।
  • चंद्रमाँ के तेज से वक्ष स्थल की रचना हुई।
  • सूर्यदेव के तेज से पैरों की उँगलियों की रचना हुई।
  • कुबेरदेव के तेज से नाक की रचना हुई।
  • प्रजापतिदेव के तेज से दांत बने।
  • अग्निदेव के तेज से तीनों नेत्र की रचना हुई।
  • संध्या के तेज से भृकुटी बनी।
  • वायुदेव तेज से कानों की उत्पति हुई।

दुर्गा माँ के दिव्य रूप के सर्जन करने के बाद देव गण नें उन्हे इन शस्त्रों से शुशोभित किया।

  • भगवान विष्णु नें सुदर्शन चक्र दिया
  • भगवान शंकर नें त्रिशूल दिया।
  • अग्निदेव नें अपनी प्रचंड श्कती प्रदान की।
  • वरुणदेव नें शंख भेट किया।
  • इन्द्रदेव नें वज्र और घंटा अर्पण किया।
  • पवनदेव नें धनुषबाण दिये।
  • यमराज नें काल दंड अर्पण किया।
  • प्रजापति दक्ष नें स्फटिक माला अर्पण की।
  • भगवान ब्रह्मा नें कमंडल दिया।
  • सूर्यदेव नें असीम तेज प्रदान किया।
  • सरोवर नें कभी ना मुरझानें वाली कमल की माला प्रदान की।
  • पर्वतराज हिमालय नें सवारी करने के लिए शक्तिशाली सिंह भेट किया।
  • कुबेरदेव नें मधु से भरा एक दिव्य पात्र दिया।
  • समुद्रदेव नें माँ दुर्गा को एक उज्ज्वल हार, दो दिव्य वस्त्र, एक दिव्य चूड़ामणि, दो कुंडल, दो कड़े, अर्ध चंद्र, एक सुंदर हँसली एवं उँगलियों में पहन नें के लिए रत्न जड़ित अंगूठियां दी।

श्स्त्रो से सुसज्जित माँ दुर्गा नें असुर महिषासुर से भीषण युद्ध किया और उसे परास्त कर के उसका वध कर दिया। उसके पश्चात दुर्गा माँ नें स्वर्गलोक पुनः देवताओं को सौप दिया। बलशाली असुर महिषासुर का हनन करने के बाद दुर्गा माँ महिषासुरमर्दिनी नाम से प्रसिद्धि हुईं।

प्रेरक प्रसंग #5: रामायण से जुड़ी दुर्गा माँ की कथा

भगवान राम जब अपनी भार्या सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अपना वनवास काट रहे थे,तब लंका नगरी के राक्षस राजा रावण नें देवी सीता का छल से हरण किया था और वह उन्हे बंदी बना कर जबरन समुद्र पार लंका नगरी ले गया था। माँ सीता को मुक्त कराने श्री राम लक्षमण, हनुमान, जांबवान, विभीषण और अपने मित्र सुग्रीव, तथा उसकी सेना सहित समुद्र तट पर पहुंचे थे, ताकि समुद्र पार कर के रावण से युद्ध कर के देवी सीता को मुक्त कराया जा सके।

उस महान कल्याणकारी युद्ध पर जाने से पहले श्री राम नें समुद्र पर नौ दिन तक माँ दुर्गा की पूजा की थी। और उन से विजय प्राप्ति के लिए आशीष ले कर दसवें दिन युद्ध के लिए प्रस्थान किया था। दुर्गा माता के आशीर्वाद से श्री राम नें रावण को परास्त कर के यमलोक भेज दिया और देवी सीता को लंका से बंधनमुक्त कराया।

विशेष

माँ दुर्गा की पूजा का विशेष महत्व है। पापीयों का नाश करने वाली माँ अपने भक्तों के प्रति करुणा भी रखती हैं। भक्तगण दुर्गा माँ की पूजा अर्चना कर के, उनका व्रत रख के अपने जीवन में सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। दुर्गाष्ट्मि के पावन दिन पर देश के विभिन्न क्षेत्रों में माँ की पूजा कर के उन्हे भोग लगा कर भक्तों में प्रसाद बाटा जाता है।

 

 

 

 

 

 

 

रविवार, 10 अप्रैल 2022

नेवला या मेंढक?

 समीर बहुत परेशान था। पिछले कुछ दिनों से एक के बाद एक उसे किसी न किसी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा था। कभी ऑफिस में बॉस के साथ बहस हो जाती तो कभी घर पर वाइफ से तो कभी उसे किसी कलीग की बात ठेस पहुंचा दे रही थी।

उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे इसलिए वो एक आश्रम में अपने गुरु जी के पास पहुंचा और अपनी समस्या बता दी।

गुरु जी ने उसकी बात सुनी और कहने लगे-

“क्या तुम जानते हो नेवले सांप को मारकर खा जाते हैं?”

“क्या?”

“कितना अद्भुत है, ये छोटे से नेवले इतने ज़हरीले कोबरा सांप तक को मारकर खा जाते हैं। ऐसा लगता है कि इन नेवलों को साँपों ने इतनी बार काटा है कि उनके अन्दर एक प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो गयी है और अब उनके ऊपर इस ज़हर का कोई असर नहीं होता!”

“क्या?”, समीर को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि गुरूजी क्या बात कर रहे हैं।

“और क्या तुम जानते हो, जंगली इलाकों में एक प्रजाति के छोटे-छोटे मेंढक होते हैं जो बेहद जहरीले होते हैं। वे पैदाइशी ऐसे नहीं होते, वे रोज थोड़ा-थोड़ा कर के  ऐसा खाना खाते हैं कि उनके पूरे शरीर में ज़हर भर जाता है और लोग उनसे दूर ही रहते हैं।

ये सुनकर समीर से रहा नहीं गया, और वह झल्लाहट में बोला, ” मुझे समझ नहीं आता कि मैंने आपसे अपनी लाइफ की एक प्रॉब्लम शेयर की और आप मुझे जंतु विज्ञान का पाठ पढ़ा रहे हैं!”

गुरु जी मुस्कुराए।

बेटा, जब तुम ज़हर रुपी दर्द या परेशानी को अनुभव करो तो तुम्हारे पास दो विकल्प होते हैं। तुम नेवले की तरह उस अनुभव को ज़हर के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने में प्रयोग कर सकते हो यानि कि तुम विपरीत परिस्थितियों का सामना करके खुद को और मजबूत बना सकते हो… या तुम उन मेंढकों की तरह बन सकते हो जो ज़हर को अपने शरीर का हिस्सा बनाते जाते हैं और इसी वजह से से हर कोई उनसे दूरी बना कर रखना चाहता है।

ऐसा कोई इंसान नहीं जिसके साथ कभी कुछ बुरा नहीं होता, ऐसा होने पर कोई कैसे प्रितिक्रिया करता है ये उसके ऊपर है!

बताओ तुम कैसे बनना चाहोगे…नेवले की तरह या मेंढक के जैसे?

दोस्तों, life में bad experiences को avoid नहीं किया जा सकता। जो किया जा सकता है वो ये कि हम इन अनुभवों को कैसे लेते हैं…हम खुद पे इनका क्या असर होने देते

हैं। किसी खट्टे अनुभव की वजह से खुद में खटास ला देना आसन ज़रूर है पर ऐसा करना हमें उन मेंढकों की तरह ज़हरीला बना देता है और धीरे-धीरे हमारे friends, relatives, और colleagues हमसे कटने लगते हैं…लेकिन अगर हम उस bad experience को positively लेते हैं और खुद को मजबूत बनाते हैं तो हम उन नेवलों की तरह सशक्त हो जाते हैं और फिर बड़ी से बड़ी बाधाओं को पार करना सीख जाते हैं। इसलिए चलिए प्रयास करें कि life में आने वाली problems की वजह से हम उनसे पार पाना  सीखें ना कि खुद ही समस्या बन जाएं!

 

शनिवार, 9 अप्रैल 2022

संसार की सबसे शक्तिशाली वस्तु

दोस्तों, क्या आपको पता है की इस संसार की सबसे शक्तिशाली वस्तु क्या है? और क्या वो आपके भी पास भी है?  और अगर है तो क्या आप उसका प्रयोग करना जानते हैं?

आइये इस कहानी के माध्यम से इन बातों को समझते हैं:

एक दिन गुरुकुल के शिष्यों में इस बात पर बहस छिड़ गयी कि आखिर इस संसार की सबसे शक्तिशाली वस्तु क्या है ? कोई कुछ कहता, तो कोई कुछ…जब पारस्परिक विवाद का कोई निर्णय ना निकला तो फिर सभी शिष्य गुरुजी के पास पहुँचे।

सबसे पहले गुरूजी ने उन सभी शिष्यों की बातों को सुना और कुछ सोचने के बाद बोले-

तुम सबों की बुद्धि ख़राब हो गयी है! क्या ये अनाप-शनाप निरर्थक प्रश्न कर रहे हो?

इतना कहकर वे वहां से चले गए।

हमेशा शांत स्वाभाव रहने वाले गुरु जी से ने किसी ने इस प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं की थी। सभी शिष्य क्रोधित हो उठे और आपस में गुरु जी के इस व्यवहार की आलोचना करने लगे।

अभी वे आलोचना कर ही रहे थे कि तभी गुरु जी उनके समक्ष पहुंचे और बोले-

 मुझे तुम सब पर गर्व है, तुम लोग अपना एक भी क्षण व्यर्थ नहीं करते और अवकाश के समय भी ज्ञान चर्चा किया करते हो।

गुरु जी से प्रसंशा के बोल सुनकर शिष्य गदगद हो गए, उनका स्वाभिमान जागृत हो गया और सभी के चेहरे खिल उठे।

गुरूजी ने फिर अपने उन सभी शिष्यों को समझाते हुए कहा –

“मेरे प्यारे शिष्यों! आज ज़रूर आप लोगों को मेरा व्यवहार कुछ विचित्र ला होगा…दरअसल, मैंने ऐसा जानबूझ आपके प्रश्न का उत्तर देने के लिए किया था।

देखिये, जब मैंने आपके प्रश्न के बदले में आपको भला-बुरा कहा तो आप सभी क्रोधित हो उठे और मेरी आलोचना करने लगे, लेकिन जब मैंने आपकी प्रसंशा की तो आप सब प्रसन्न हो उठे….पुत्रों, संसार में वाणी से बढकर दूसरी कोई शक्तिशाली वस्तु नहीं है। वाणी से ही मित्र को शत्रु और शत्रु को भी मित्र बनाया जा सकता है। ऐसी शक्तिशाली वस्तु का प्रयोग प्रत्येक व्यक्ति को सोच समझ कर करना चाहिए। वाणी का माधुर्य लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। गुरूजी की बातें सुनकर शिष्यगण संतुष्ट होकर लौट आए और उस दिन से मीठा बोलने का अभ्यास करने लगे।

Moral of the story :-

Friends,  हमारी बोली या हमारी वाणी बेहद शक्तिशाली होती है, ज़रुरत है इसका सही प्रयोग करने की। यदि हम अपनी बोली अच्छी रखते हैं और अपनी बात बिना औरों को ठेस पहुंचाए हुए कहते हैं तो ये हमारे व्यतित्व को संवारता है और हमें लोगों के बीच लोकप्रिय बनाता है। वहीँ अगर हम normal बात भी disrespect या क्रोध के साथ कहते हैं तो ना हम ठीक से अपना message convey कर पाते हैं और ना ही दूसरों के हृदय में अपने लिए कोई जगह बना पाते हैं। अतः हमें हेमशा सही शब्दों और सही लहजे का चुनाव करना चाहिए!

धन्यवाद!

 

मंगलवार, 5 अप्रैल 2022

मान का पान | रिश्ते निभाने पर कहानी

 भैया का फोन सुनते ही बिना समय गंवाये रिचा पति के संग मायके पहुंच गई। मम्मी की सबसे लाडली बेटी थी वो। इसलिए अचानक मां की गम्भीर हालत को देख कर  रेखा की आंखों से आंसुओं की झड़ी लग गयी। मां का हाथ अपने हाथों में थाम कर ” मम्मी sss ” सुबकते हुए बस इतना ही कह पायी रिचा।”

बेटी की आवाज कानों में पड़ते ही मां ने धीरे से आँखें खोल दीं। लाडली बेटी को सामने देकर उनके चेहरे पर खुशी के भाव साफ झलक रहे थे। ”  तू.. आ.. गयी.. बिटिया!.. कैसी है तू!,  देख. मेरा.. अब.. जाने का.. वक्त.. आ. गया.. है ,  बस तुझ से.. एक ही बात.. कहनी थी बेटा ! ”

” पहले आप ठीक हो जाओ मम्मी!!  बात बाद में कह लेना ” रिचा नेआंखों से हो रही बरसात पर काबू पाने की असफल कोशिश करते हुए कहा।

” नहीं बेटा!.. मेरे पास.. वक्त नहीं है,.. सुन!.. मां बाप किसी.. के हमेशा.. नहीं रहते,..  उनके बाद.. मायका. भैया भाभियों से बनता है.. “। मां की आवाज कांप रही थी।

रिचा मां की स्थिति को देख कर अपना धैर्य खो रही थी।  और बार बार एक ही बात कह रही थी ऐसा न कहो मम्मा!सब ठीक हो जायेगा “।

मां ने अपनी सारी सांसों को बटोर कर फिर बोलने की हिम्मत जुटाई-

मैं तुझे एक ही… सीख देकर जा.. रही हूं बेटा!…मेरे बाद भी.. रिश्तों की खुशबू यूं ही… बनाये रखना,  भैया भाभियों के… प्यार.. को कभी लेने -देने की.. तराजू में मत तोलना.. बेटा!..  मान का.. तो पान ही.. बहुत.. होता है…

मां ने जैसे तैसे मन की बात बेटी के सामने रख दी। शरीर में इतना बोलने की ताकत न थी, सो उनकी सांसें उखड़ने लगीं।

” हां मम्मा! आप निश्चिंत रहो, हमेशा ऐसा ही होगा, अब आप शान्त हो जाओ, देखो आप से बोला भी नहीं जा रहा है  “, रेखा ने मां को भरोसा दिलाया और टेबल पर रखे जग से पानी लेकर, मां को पिलाने के लिए जैसे ही पलटी, तब तक मां की आंखें बन्द हो चुकी थीं। उनके चेहरे पर असीम शान्ति थी, मानों उनके मन का बोझ हल्का हो गया था।

 

नैतिक शिक्षा देती पंचतंत्र की 5 कहानियाँ

 

पंचतंत्र की पहली कहानी: घमंडी हाथी और चींटी

एक समय की बात है चन्दन वन में एक शक्तिशाली हाथी रहता था। उस हाथी को अपने बल पर बहुत घमंड था। वह रास्ते से आते जाते सभी प्राणीयों को डराता धमकाता और वन के पेड़-पौधों को बिना वजह नष्ट करता उधम मचाता रहता।

एक दिन उस हाथी नें रोज़ की तरह जंगल के सभी प्राणीयों को सताना शुरू किया कि तभी अचानक आकाश में बिजली चमकी और मूसलाधार बारिश होने लगी। तेज़ बारिश से बचने के लिए हाथी दौड़ कर एक बड़ी गुफा में जा छिपा।

गुफा के भीतर एक छोटी सी छीटी भी थी। उसे देखते ही हाथी हँसने लगा-

हाहा.हा..हा… तुम कितनी छोटी हो, तुम्हे तो मैं एक फूंक मरूँगा तो चाँद पर पहुँच जाओगी…मुझे देखो मैं चाहूँ तो पूरे पर्वत को हिला दूँ…तुम्हारा जीवन तो व्यर्थ है…

छोटी सी चीटी नें हाथी को घमंड ना करने को समझाया पर हाथी अपनी ताकत के मद में चूर था…वह लगातार चींटी का मजाक उड़ाता रहा और चींटी को डराने के लिए अपना पैर पटकने लगा…

हाथी ऐसा कर ही रहा था कि तभी बाहर से धड़ाम की जोरदार आवाज़ आई… पैर पटकने की वजह से एक बड़ा सा पत्थर गुफा के मुहाने पर आ गिरा।

अब हाथी के होश उड़ गए…वह पत्थर हटाने के लिए आगे बढ़ा पर अपनी पूरी ताकत लगा कर भी वह पत्थर को टस से मस नहीं कर पाया..
बारिश रुकते ही चीटी बोली, “देखो तुम मेरे छोटे होने का मज़ाक उड़ा रहे थे पर इस समय मैं अपने इसी छोटे आकर की वजह से ही इस गुफा से बाहर ज़िंदा जा सकती हूँ लेकिन तुम नहीं।”

और इतना कह कर चींटी अपने रास्ते चल देती है.

थोड़ी देर बाद चीटी जंगल में जा कर अन्य हाथियों को बुला लाती है और सब मिल कर गुफा के द्वार पर आ गिरा पत्थर हटा देते हैं और उस हाथी को गुफा के बाहर निकाल देते हैं।

हाथी निकलते ही चींटी से अपने व्यहार के लिए क्षमा मांगता है और उसके प्राण बचाने के लिए धन्यवाद देता है।

इस घटना से हाथी को यह बात समझ आ जाती है कि सभी प्राणीयों के साथ मिल-जुल कर रहने में ही भलाई है। और उस दिन के बाद वह हाथी कभी किसी प्राणी को नहीं सताता है।

Moral of the story: आपको दिखे या नहीं, हर किसी में कुछ न कुछ गुण होता है, इसलिए यदि ईश्वर ने आपको कोई काबिलियत दी है तो कभी भी उस पर घमंड ना करें, हर कोई किसी न किसी रूप में काबिल है।

पंचतंत्र की दूसरी कहानी: चार ब्राह्मण

एक गाँव में चार ब्राह्मण रहते थे। उनमे से तीन ब्राह्मणों ने अनोखी विद्याएँ सीख रखी थीं, जबकि एक को कुछ ख़ास नहीं पता था। इसी वजह से बाकी तीनो उसे अज्ञानी वो निरा मूर्ख समझते थे।

एक बार तीन विद्वान् ब्राह्मणों ने शहर जा कर कुछ धनोपार्जन करने का विचार बनाया। उन्हें जाता देखकर चौथा ब्राह्मण भी साथ जाने का आग्रह करने लगा।

“तुम हम विद्वानों के साथ जाकर क्या करोगे? तुम्हे तो कोई ऐसी विद्या भी नहीं आती जिससे तुम धनोपार्जन कर सको? जाओ लौट जाओ..”, तीनो ने उसे लगभग डांटते हुए कहा।

“मम्म… मैं…तुम लोगों के काम कर दिया करूँगा….कृपया मुझे ले चलो।”, चौथा ब्राह्मण आग्रह करते हुए बोला।

काम कराने की लालच में सभी उसकी बात मान गए और वो भी साथ-साथ चल पड़ा।

शहर जाते वक्त रास्ते में एक घना जंगल पड़ता है। चलते-चलते उन्हें एक जगह ढेर सारी हड्डियाँ बिखरी दिखाई पड़ती हैं। सभी वहीँ रुक जाते हैं और इस बात को ले कर विवाद हो जाता है की यह हड्डियाँ किस जानवर की हैं।

तभी एक ब्राहमण बोलता है, ” चलो, बेकार की बहस बंद करो, मैं अभी अपनी तंत्र विद्या से इन हड्डियों को जोड़ देता हूँ…”

और देखते-देखते एक शेर का कंकाल तैयार हो जाता है।

यह देख दूसरा ब्राह्मण अपनी विद्या कर प्रदर्शन कर सबको प्रभावित करना चाहता है और उस कंकाल में मांस व चमड़ी लगा देता है।

अब भला तीसरा ब्राह्मण कहाँ पीछे रहने वाला था, वह हँसते हुए बोला, “तुम सब ये क्या बचकानी हरकतें कर रहे हो? मैं दिखाता हूँ असली विद्या…मैं इस शेर में अभी प्राण फूंक इसे जीवित कर देता हूँ…”

और ऐसा कह कर वह मंत्रोचारण करने लगता है।

“ठहरो-ठहरो!”, चौथा ब्राह्मण जोर से चीखता है….” तुम ये क्या कर रहे हो? अगर ये शेर जीवित हो गया…”

अभी वो अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाता है कि मंत्रोचारण कर रहा ब्राह्मण उस पर गरज पड़ता है, “मूर्ख! अल्प-बुद्धि, विद्वानों के बीच अपनी जुबान दुबारा कभी मत खोलना..”

और वह पुनः मन्त्र पढने लगता है।

चौथा ब्राहमण समझ जाता है कि यहाँ कोई उसकी बात नहीं मानेगा…और वह तेजी से भाग कर एक पेड़ पर चढ़ जाता है।

उधर मन्त्र की शक्ति से शेर में प्राण आ जाते हैं।

शेर तो शेर है..हिंसक…घातक…प्राणनाशक….वह क्या जाने उसे किसने बनाया….क्यों बनाया…वह तो बस मारना और खाना जानता है…

देखते-देखते शेर ने तीनो ब्राह्मणों को मार डाला और अपना पेट भर घने जंगलों में ओझल हो गया।

चौथा ब्राहमण सही समय देखकर गाँव की तरफ वापस लौट गया…वह मन ही मन सोच रहा था,-

ऐसा ज्ञान किस काम का जो इन्सान की सूझ-बुझ और समझदारी को क्षीण कर दे।

Moral of the story: Bookish knowledge से कहीं अधिक ज़रूरी practical knowledge होता है। कभी भी अपनी पढ़ाई-लिखाई का घमंड नहीं करना चाहिए और अपने आगे दूसरों को मूर्ख नहीं समझना चाहिए।

पंचतंत्र की तीसरी कहानी: सुराही का जिन्न

एक गरीब मछुआरा बहुत परिश्रम कर के अपनी रोज़ी रोटी कमाता था। वह एक दिन में केवल चार बार समुद्र में जाल डाल कर मछ्ली पकड़ने के नियम पर चलता था। अपने उस नियम के कारण उसे कई बार घर पर खाली हाथ लौट आना पड़ता था। मछुवाराे की पत्नी भी अपने पति के इस नियम से परेशान थी।

रोज़ की तरह एक दिन मछुआरा अपना जाल ले कर समुद्र पर जा पहुंचा। उसने अपने नियमानुसार पहली बार जाल समुद्र में फेंका और थोड़ी देर बाद उसे पानी से ऊपर खींचा। उसने देखा की जाल में कंकड़ पत्थर और भुरभुरी हड्डियाँ फसी हुई थीं।

मछुआरे नें फिर प्रयास किया इस बार उसे कचरे से भरा हुआ एक ज़ंग खाया बक्सा मिला जिसकी कीमत कुछ भी नहीं थी।

तीसरी बार मछुआरे नें जब समुद्र में अपना जाल डाला तब उसे फिर से नाकामी हाथ लगी। अब मछुआरे की हिम्मत जवाब दे चुकी थी। वह आसमान की और निराशा भरी निगाहों से देखने लगा और अपनी बुरी किस्मत को कोसने लगा।

कुछ देर बात खुद को हिम्मत देते हुए उसने चौथी और आखरी बार अपना जाल समुद्र में फेंका।

इस बार जब उसने अपना जाल समुद्र से ऊपर खींचा तो उसने देखा की उसके जाल में कोई मछ्ली तो नहीं फसी पर एक बड़ी सी पीतल की प्राचीन सुराही फंसी थी। उसने जल्दी से उस सुराही को अपने थैले में भर लिया और अपना जाल समेट कर घर चला गया।

खाली हाथ लौटने पर हेमशा की तरह उसे थोड़ी देर अपनी पत्नी की जली-कटी बातें सुननी पड़ी\ उसके बाद वह चुपचाप अपने कमरे में चला गया और सुराही को देखने लगा। उत्सुकता वश जैसे ही उसने उस सुराही का ढक्कन खोला तो उसमें से धुंवा बाहर आने लगा और पल भर में एक विशाल काय जिन्न उसके सामने आ खड़ा हुआ।

सुराही से बाहर निकलते ही जिन्न बोला-

स्वामी, मैं आपका सेवक हूँ…आप जो कहेंगे मैं करूँगा लेकिन याद रखिये मैं कभी खाली नहीं बैठ सकता…यदि आप मुझे कोई काम नहीं बता पाए तो मैं फ़ौरन आपका वध कर दूंगा और हेमशा-हेमशा के लिए आज़ाद हो जाऊँगा।

मछुवारा बोला, “जाओ मेरे परिवार के लिए श्रेष्ठ भोजन की व्यवस्था करो!”

और पलक झपकते ही मायावी जिन्न उसके समक्ष स्वादिष्ट भोजन का ढेर लगा देता है।

मछुवारा घबरा जाता है कि इतनी जिन्न ने इतनी जल्दी ये काम कैसे कर दिया?

इस बार वह उसे बड़ा काम देता है, “जाओ मेरे रहने के लिए एक आलिशान महल तैयार करो!”

अभी मछुवारा ठीक से अपना आदेश देता भी नहीं है कि जिन्न वहां एक आलिशान महल खड़ा कर देता है।मछुवारा अब और भी घबरा जाता है उसे समझ ही नहीं आता कि जिन्न को ऐसा कौन सा काम दे जिसमे वो उलझा रहे।

उधर जिन्न मछुवाराे के सर पर खड़ा चीखता है, ” बताओ अब क्या करना है?”

तभी मछुवाराे को एक तरकीब सूझती है वह मुस्कुराते हुए कहता है, “जाओ महल के बीचो-बीच एक लम्बा -मोटा बांस गाड़ दो।”हो गया।” ,जिन्न बोलता है।

बहुत अच्छे अब जाओ उस बांस पे बार-बार चढ़ो-उतरो और जब तक मैं दोबारा नहीं बुलाता तब तक मत आना!

जिन्न मुंह लटकाया चला गया और मछुवारा अपने परिवार के साथ आराम से उस महल में रहने लगा।

Moral of the story: बुद्धि से बड़ी से बड़ी समस्या को सुलझाया जा सकता है।

पंचतंत्र की चौथी कहानी: तीन काम

एक बार दो गरीब दोस्त किसी नगर के सेठ के पास काम मांगने जाते हैं। कंजूस सेठ तुरंत उन्हे काम पर रख लेता है और पूरे साल काम करने पर साल के अंत में दोनों को 12-12 स्वर्ण मुद्राएँ देने का वचन देता है।

सेठ यह भी शर्त रखता है कि अगर उन्होंने काम ठीक से नहीं किया या किसी आदेश का उलंघन किया तो उस एक गलती के बदले 4 सुवर्ण मुद्रायेँ तनख्वाह से काट ली ।

दोनों दोस्त सेठ की शर्त मान जाते हैं और पूरे साल जी-तोड़ महेनत करते हैं और सेठ के हर एक आदेश का अक्षरश पालन करते हैं।

जब काम करते-करते एक साल पूरा होने को आता है तो दोनों सेठ के पास 12-12 स्वर्ण मुद्राएँ मांगने पहुँचते हैं।

मुद्राएँ मांगने पर सेठ बोलता हैं, “अभी साल का आखरी दिन पूरा नहीं हुआ है और मुझे तुम दोनों से आज ही तीन और काम करवाने हैं।”

  • पहला काम- छोटी सुराही में बड़ी सुराही डाल कर दिखाओ।
  • दूसरा काम- दूकान में पड़े गीले अनाज को बिना बाहर निकाले सुखाओ।
  • तीसरा काम- मेरे सर का सही-सही वजन बताओ।

“यह तो असंभव है!”, दोनों दोस्त एक साथ बोल पड़ते हैं।

“ठीक है तो फिर यहाँ से चले जाओ…इन तीन कामों को ना कर पाने के कारण मैं हर एक काम के लिए 4 स्वर्ण मुद्राएँ काट रहा हूँ…”

मक्कार सेठ की इस धोखाधड़ी से उदास हो कर दोनों दोस्त नगर से जाने लगते हैं। उन्हें ऐसे जाता देख एक चतुर पण्डित उन्हे अपने पास बुलाता है और पूरी बात समझने के बाद उन्हें वापस सेठ पास भेजता है।

सेठ के पास पहुँच दोनों मित्र बोलते हैं, “सेठ जी अभी आधा दिन बाकी है, हम आपके तीनो काम किये देते हैं।”

और तीनो दूकान के अन्दर घुस बड़ी सुराही को तोड़-तोड़ कर छोटी के अन्दर डाल देते हैं। सेठ मन मसोस कर रह जाता है पर कुछ कर नहीं पाता है।

इसके बाद दोनों गीले अनाज को दूकान के अन्दर फैला देते हैं।

“अरे, फैलाने भर से भला ये कैसे सूखेगा…इसके लिए तो धूप और हवा चाहिए…”, सेठ मुस्कुराते हुए कहता है।

“देखते जाइए…”, ऐसा कहते हुए दोनों मित्र हथौड़ा उठा आगे बढ़ जाते हैं।

इसके बाद दोनों मिलकर दूकान की दीवार और छत तोड़ डालते हैं….जिससे वहां हवा और धूप दोनों आने लगती है।

क्रोधित मित्रों को सेठ और उसके आदमी देखते रह जाते हैं…किसी की भी उन्हें रोकने की हिम्मत नहीं होती।

“अब आखिरी काम बचा होता है…”, दोनों मित्र तलवार ले कर सेठ के सामने खड़े हो जाते है और कहते हैं, “मालिक आप के सिर का सही सही वज़न तौलने के लिए इसे धड़ से अलग करना होगा। कृपया बिना हिले स्थिर खड़े रहें।”

अब सेठ को समझ आ जाता है कि वह गरीबों का हक इस तरह से नहीं मार सकता और बिना कोई और नाटक किये वह उन दोनों को 12 – 12 स्वर्ण मुद्रायेँ सौप देता है ।

Moral of the story: बेईमानी का फल हमेशा बुरा ही होता है।

पंचतंत्र की पांचवी कहानी: महामूर्ख नाई

एक नगर में बहुत ही दयालु पति-पत्नी रहते थे। वे आर्थिक रूप से संपन्न थे और पूजा-पाठ, दान-धर्म में बढ़-चढ़ कर हिसा लेते थे। उनके नेक व्यवहार की कीर्ति दूर-दूर तक थी और अक्सर उनके घर में मेहमानों का ताता लगा रहता था।

समय कभी एक सा नहीं रहता है। एक बार उनके ऊपर घोर विपत्ति आ जाती है और वे कंगाल हो जाते हैं। धीरे-धीरे सभी उनसे मुंह मोड़ लेते हैं और कुछ तो उन्हें अपमानित करने से भी बाज नहीं आते।

पति-पत्नी इसे अपने पिछले जन्मो के कर्म का दंड मान लेते हैं और दरिद्रता में अपना जीवन यापन करने लगते हैं। एक दिन उनके द्वार पर एक चमत्कारी भिक्षुक आता है और भिक्षा मांगने लगता है। घर में कुछ नहीं होता, पति-पत्नी असमंजस में पड़ जाते हैं कि भिक्षुक को क्या दान दें?

जब कुछ नहीं मिलता तो दंपत्ति घर में बचा मुट्ठी भर चावल भिक्षुक को दान कर देते हैं।

भिक्षुक अन्तर्यामी होता है, वह इस दान से अतिप्रसन्न हो जाता है और उनसे कहता है-

मैं कल सुबह तुम्हारे द्वार पर फिर आऊंगा…जैसे ही मैं दरवाजा खट-खटाउ तुम दरवाजा खोलना और मेरे सर पर डंडे से प्रहार करने लगना…ऐसा करने से मेरे सर के सारे बाल स्वर्ण में परिवर्तित हो भूमि पर गिर जायंगे और तुम लोग उसे एकत्र कर पुनः धनवान बन जाओगे।

अगले दिन जब भिक्षुक आया तब पति-पत्नी ने ऐसा ही किया। भिक्षुक की बात सच निकली उसके सारे बाल स्वर्ण में बदल गए और एक बार फिर दंपत्ति पहले की तरह धनवान हो गए।

भिक्षुक के जाते ही सड़क के उस पार के बच्चे का बाल बना रहा नाई यह सब देख रहा होता है। वह मन ही मन सोचता है—” अच्छा तो ये है इनके धनवान होने का राज…ऐसे तो मैं भी धनवान बन सकता हूँ…”

और ऐसा सोचकर वह शहर के एक जाने-माने भिक्षुक के पास जाता है और अगले दिन सुबह-सुबह उन्हें अपने घर भोजन पर आमंत्रित करता है। प्रातः काल होते ही एक भिक्षुक नाई के द्वार पर पहुँच दरवाजा खटखटाता है।

नाई तो मानो इसी ताक में बैठा रहता है। वह फ़ौरन दरवाजा खोलता है और भिक्षुक के सर पर प्रहार करने लगता है।
देखते-देखते भिक्षुक लहू-लुहान हो जाता है।

खून देखकर नाई के होश उड़ जाते है…वह समझ नहीं पाता है कि ये सब क्या हो रहा है???

भिक्षुक नाई के इस व्यवहार से क्रोधित हो राजा से उसकी शिकायत कर देता है और राजा नाई को पागलखाने भिजवा देता है।

Moral of the story: किसी का अँधा अनुसरण नहीं करना चाहिए वरना बाद में पछताना पड़ता है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

पिंकी और राजू अंतःकरण की आवाज़ सुनने की सीख देती कहानी

 शाम का वक़्त था, सोसाइटी के पार्क में ढेरों बच्चे खेलने में मस्त थे. उन्ही बच्चों में पिंकी और राजू भी शामिल थे.

पिंकी के पास टॉफ़ी का एक पैकेट था और राजू रंग-बिरंगे पत्थरों के साथ खेल रहा था.

खेलते-खेलते पिंकी की नज़र राजू के पत्थरों पर पड़ी. उसका बाल-मन उन्हें देखते ही मचल पड़ा…वह फ़ौरन राजू के पास गयी और बोली, “राजू, क्या तुम ये सारे पत्थर मुझे दे सकते हो? इनके बदले में मैं तुम्हे टॉफ़ी का ये पैकेट दे दूंगी.”

टॉफियाँ  देखते ही राजू के मुंह में पानी आ गया….उसने मन ही मन सोचा, “पत्थरों से तो मैं कई दिन से खेल रहा हूँ, क्यों न इन्हें देकर सारी टॉफियाँ ले लूँ…”

उसने कहा, “ठीक है पिंकी मैं अभी तुम्हे अपने पत्थर दे देता हूँ”, और ऐसा कह कर वो दूसरी तरफ घूम कर पत्थर उठाने लगा.

अपने पसंदीदा पत्थरों को देखकर उसके मन में लालच आ गया और उसने कुछ पत्थर अपने जेब में छुपा लिए और बाकियों को थैले में रख दिया.

“ये लो पिंकी, मेरे सारे पत्थर तुम्हारे…अब लाओ अपनी टॉफियाँ मुझे दे दो..”, राजू बोला.

पिंकी ने फ़ौरन टॉफियों का थैला राजू को पकड़ा दिया और मजे से पत्थरों से खेलने लगी.

देखते-देखते शाम ढल गयी और सभी बच्चे अपने-अपने घरों को लौट गए.

रात को बिस्तर पर लेटते ही राजू के मन में ख़याल आया-

आज मैंने पत्थरों के लालच में चीटिंग की…

उसका मन उसे कचोटने लगा…फिर वह खुद को समझाने लगा…क्या पता जिस तरह मैंने कुछ पत्थर छुपा लिए थे पिंकी ने भी कुछ टॉफियाँ छिपा ली हों…” और यही सब सोच-सोच कर वह परेशान होने लगा…और रात भर ठीक से सो नही पाया.

उधर पिंकी पत्थरों को हाथ में पकड़े-पकड़े कब गहरी नींद में चली गयी उसे पता भी नही चला.

अगली सुबह दरवाजे की घंटी बजी. पिंकी ने दरवाजा खोला. सामने राजू खड़ा था.

राजू अपने जेब से पत्थर निकाले हुए बोला, ” ये लो पिंकी इन्हें भी रख लो….” और उन्हें देते ही राजू अपने घर की ओर भागा.

उस रात राजू को भी अच्छी नींद आई!

दोस्तों, भगवान् ने हम इंसानों को कुछ ऐसे design किया है कि जब भी हम कुछ गलत करते हैं हमारा conscience हमें आगाह कर देता है…ये हम पर है कि हम उस आवाज़ को सुनते हैं या नज़रअंदाज कर देते हैं. सही मायने में इस कहानी का हीरो राजू है क्योंकि गलती तो सबसे होती है पर उसे सुधारने की हिम्मत सबमे नहीं होती. हमारा भी यही प्रयास होना चाहिए कि हम अपने अंतःकरण की आवाज़ को अनसुना ना करें और एक guilt free life जियें.

याद रखिये-

शुद्ध अंतःकरण  ही सबसे नर्म तकिया होता है.

 

 

दो पत्ते

 

बहुत समय पहले की बात है गंगा नदी के किनारे पीपल का एक पेड़ था. पहाड़ों से उतरती गंगा पूरे वेग से बह रही थी कि अचानक पेड़ से दो पत्ते नदी में आ गिरे.

एक पत्ता आड़ा गिरा और एक सीधा.

जो आड़ा गिरा वह अड़ गया, कहने लगा, “आज चाहे जो हो जाए मैं इस नदी को रोक कर ही रहूँगा…चाहे मेरी जान ही क्यों न चली जाए मैं इसे आगे नहीं बढ़ने दूंगा.”

वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा – रुक जा गंगा ….अब तू और आगे नहीं बढ़ सकती….मैं तुझे यहीं रोक दूंगा!

पर नदी तो बढ़ती ही जा रही थी…उसे तो पता भी नहीं था कि कोई पत्ता उसे रोकने की कोशिश कर रहा है. पर पत्ते की तो जान पर बन आई थी..वो लगातार संघर्ष कर रहा था…नहीं जानता था कि बिना लड़े भी वहीँ पहुंचेगा जहाँ लड़कर..थककर..हारकर पहुंचेगा! पर अब और तब के बीच का समय उसकी पीड़ा का…. उसके संताप का काल बन जाएगा.

वहीँ दूसरा पत्ता जो सीधा गिरा था, वह तो नदी के प्रवाह के साथ ही बड़े मजे से बहता चला जा रहा था.

“चल गंगा, आज मैं तुझे तेरे गंतव्य तक पहुंचा के ही दम लूँगा…चाहे जो हो जाए मैं तेरे मार्ग में कोई अवरोध नहीं आने दूंगा….तुझे सागर तक पहुंचा ही दूंगा.”

नदी को इस पत्ते का भी कुछ पता नहीं…वह तो अपनी ही धुन में सागर की ओर बढती जा रही है. पर पत्ता तो आनंदित है, वह तो यही समझ रहा है कि वही नदी को अपने साथ बहाए ले जा रहा है.  आड़े पत्ते की तरह सीधा पत्ता भी नहीं जानता था कि चाहे वो नदी का साथ दे या नहीं नदी तो वहीं पहुंचेगी जहाँ उसे पहुंचना है! पर अब और तब के बीच का समय उसके सुख का…. उसके आनंद का काल बन जाएगा.

जो पत्ता नदी से लड़ रहा है…उसे रोक रहा है, उसकी जीत का कोई उपाय संभव नहीं है और जो पत्ता नदी को बहाए जा रहा है उसकी हार को कोई उपाय संभव नहीं है.

ओशो कहते हैं

व्यक्ति ब्रह्म की इच्छा के अतिरिक्त कुछ कभी कर नहीं पाता है, लेकिन लड़ सकता है, इतनी स्वतंत्रता है। और लड़कर अपने को चिंतित कर सकता है, इतनी स्वतंत्रता है…इतना फ्रीडम है।

इस फ्रीडम का प्रयोग आप सर्वशक्तिमान की इच्छा से लड़ने में कर सकते हैं और तब जीवन उस आड़े पत्ते के जीवन की तरह दुःख और संताप के अलावा और कुछ नहीं होगा…या फिर आप उस फ्रीडम को ईश्वर के प्रति समर्पण बना सकते हैं और सीधे पत्ते की तरह आनंद विभोर हो सकते हैं.

सोमवार, 4 अप्रैल 2022

व्यापारी का संदेह

 

पुराने समय में लोग व्यापार करने के लिए दूर-दूर विदेशों में जाते थे और वर्षों बाद घर लौटते थे। कई बार दशकों के बाद भी। उन्हीं दिनों की एक घटना है। एक व्यापारी व्यापार करने के लिए विदेश गया। वहाँ उसका कारोबार बहुत अच्छा चलने लगा। वह धन कमाने में इतना व्यस्त हो गया कि उसे समय का भान ही न रहा।

आखिर एक दिन घर लौटने का फैसला कर ही डाला और कमाया हुआ बहुत सारा धन लेकर घर के लिए चल पड़ा। जब घर पहुँचा तो रात हो चुकी थी। घर का मुख्य द्वार बंद था लेकिन एक शयनकक्ष की खिड़की से रोशनी बाहर आ रही थी। उसने खिड़की में से अंदर झाँककर देखा। उसने जो देखा सहसा उसे विश्वास ही नहीं हुआ। उसे अपने पैरों के नीचे से ज़मीन खिसकती हुई प्रतीत होने लगी।

उसने देखा कि शयनकक्ष में उसकी पत्नी के पास एक युवक भी लेटा हुआ है। ऐसी स्थिति में पत्नी के चरित्र पर संदेह होना अस्वाभाविक नहीं था। व्यापारी ने विचार किया कि ऐसे घर में रहने का क्या औचित्य हो सकता है जहाँ ऐसी स्त्री हो। उसने फौरन निर्णय लिया कि पत्नी और उसके पास लेटे युवक को मारकर चुपचाप वापस निकल जाऊँगा और अन्यत्र घर बसाने का प्रयास करूँगा। तभी उसकी नज़र शयनकक्ष की दीवार पड़ी जहाँ एक श्लोक लिखा था।

उसने पढ़ा-

सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम्। 

वृणुते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्ध स्वयमेव सम्पदः।।

अर्थात् किसी कार्य को बिना विचारे एकाएक नहीं करना चाहिए क्योंकि सोच-विचार न करना बड़ी विपत्तियों का कारण है। जितनी भी प्रकार की संपत्तियाँ हैं सोच-समझकर कार्य करने वाले व्यक्तियों के गुणों से आकर्षित होकर स्वयं ही उसके पास आ जाती हैं, उसे समृद्ध कर देती हैं।

यह पढ़ने के बाद व्यापारी ने अपना निर्णय बदल दिया और घर का दरवाज़ा खटखटाया। पत्नी ने दरवाज़ा खोलने से पहले काफी पूछताछ की और जब पूरी तरह से आश्वस्त हो गई कि दरवाज़ा खटखटाने वाला उसका पति ही है तो उसने शीघ्रता से दरवाज़ा खोल दिया।

पति को देखकर पत्नी की प्रसन्नता की सीमा न रही। उसने फौरन युवक को भी जगाया और पति से कहा कि ये आपका पुत्र है जो अब पूरे बीस वर्ष का हो गया है। अठारह वर्ष पहले जब आप विदेश गए थे तो ये दो साल का था। भावातिरेक में पिता की आँखों से आँसू बहने लगे। उसने पुत्र को हृदय से लगाकर प्यार किया। अब व्यापारी का संदेह ख़त्म हो चुका था।

एक श्लोक के सार्थक संदेश ने न केवल उसे पुत्रहंता होने के पाप से बचा लिया अपितु उसकी गृहस्थी भी उजड़ने से बच गई।

विमृश्यकारिता अर्थात् सोच- समझकर कार्य करना व क्षिप्रकारिता अर्थात् जल्दबाज़ी न करना महान गुण हैं।

जीवन में भ्रांतियाँ अथवा समस्याएँ उत्पन्न होना स्वाभाविक है। जब अचानक कोई भ्रांति उत्पन्न हो जाए अथवा समस्या आ खड़ी होती हैं तो हम घबरा जाते हैं और फ़ौरन प्रतिक्रिया करते हैं। इससे कई बार समस्या सुधरने की बजाय और बिगड़ जाती है। अतः हमें कभी भी बिना पर्याप्त विमर्ष किए कोई कार्य नहीं करना चाहिए। कहा गया है कि जल्दी का काम शैतान का होता है। जिस प्रकार से रोग का उपचार करने के लिए उसका सही निदान अनिवार्य है उसी तरह से कोई समस्या हो अथवा भ्रांति उसे दूर करने के लिए भी पर्याप्त विचार-विमर्ष करना अत्यंत आवश्यक है।

 

दो पत्थरों की कहानी जो आपको सफलता के लिए प्रेरित करेगी

 नदी पहाड़ों की कठिन व लम्बी यात्रा के बाद तराई में पहुंची। उसके दोनों ही किनारों पर गोलाकार, अण्डाकार व बिना किसी निश्चित आकार के असंख्य पत्थरों का ढेर सा लगा हुआ था। इनमें से दो पत्थरों के बीच आपस में परिचय बढ़ने लगा। दोनों एक दूसरे से अपने मन की बातें कहने-सुनने लगे।

 

इनमें से एक पत्थर एकदम गोल-मटोल, चिकना व अत्यंत आकर्षक था जबकि दूसरा पत्थर बिना किसी निश्चित आकार के, खुरदरा व अनाकर्षक था।

एक दिन इनमें से बेडौल, खुरदरे पत्थर ने चिकने पत्थर से पूछा, ‘‘हम दोनों ही दूर ऊंचे पर्वतों से बहकर आए हैं फिर तुम  इतने गोल-मटोल, चिकने व आकर्षक क्यों हो जबकि मैं नहीं?’’

यह सुनकर चिकना पत्थर बोला, “पता है शुरुआत में मैं भी बिलकुल तुम्हारी तरह ही था लेकिन उसके बाद मैं निरंतर कई सालों तक बहता और लगातार टूटता व घिसता रहा हूं… ना जाने मैंने कितने तूफानों का सामना किया है… कितनी ही बार नदी के तेज थपेड़ों ने मुझे चट्टानों पर पटका है…तो कभी अपनी धार से मेरे शरीर को  काटा है… तब कहीं जाकर मैंने ये रूप पाया है।

जानते हो, मेरे पास हेमशा ये विकल्प था कि मैं इन कठनाइयों से बच जाऊं और आराम से एक किनारे पड़ा रहूँ…पर क्या ऐसे जीना भी कोई जीना है? नहीं, मेरी नज़रों में तो ये मौत से भी बदतर है!

तुम भी अपने इस रूप से निराश मत हो… तुम्हें अभी और संघर्ष करना है और निरंतर संघर्ष करते रहे तो एक दिन तुम मुझसे भी अधिक सुंदर, गोल-मटोल, चिकने व आकर्षक बन जाओगे।

मत स्वीकारो उस रूप को जो तुम्हारे अनुरूप ना हो… तुम आज वही हो जो मैं कल था…. कल तुम वही होगे जो मैं आज हूँ… या शायद उससे भी बेहतर!”, चिकने पत्थर ने अपनी बात पूरी की।

दोस्तों, संघर्ष में इतनी ताकत होती है कि वो इंसान के जीवन को बदल कर रख देता है। आज आप चाहे कितनी ही विषम पारिस्थति में क्यों न हों… संघर्ष करना मत छोड़िये…. अपने प्रयास बंद मत करिए. आपको बहुत बार लगेगा कि आपके प्रयत्नों का कोई फल नहीं मिल रहा लेकिन फिर भी प्रयत्न करना मत छोडिये। और जब आप ऐसा करेंगे तो दुनिया की कोई ताकत नहीं जो आपको सफल होने से रोक पाएगी।

बीस हज़ार का चक्कर !आत्म-मूल्यांकन पर कहानी

 

एक बार एक व्यक्ति कुछ पैसे निकलवाने के लिए बैंक में गया। जैसे ही कैशियर ने पेमेंट दी कस्टमर ने चुपचाप उसे अपने बैग में रखा और चल दिया। उसने एक लाख चालीस हज़ार रुपए निकलवाए थे। उसे पता था कि कैशियर ने ग़लती से एक लाख चालीस हज़ार रुपए देने के बजाय एक लाख साठ हज़ार रुपए उसे दे दिए हैं लेकिन उसने ये आभास कराते हुए कि उसने पैसे गिने ही नहीं और कैशियर की ईमानदारी पर उसे पूरा भरोसा है चुपचाप पैसे रख लिए।

इसमें उसका कोई दोष था या नहीं लेकिन पैसे बैग में रखते ही 20,000 अतिरिक्त रुपयों को लेकर उसके मन में  उधेड़ -बुन शुरू हो गई। एक बार उसके मन में आया कि फालतू पैसे वापस लौटा दे लेकिन दूसरे ही पल उसने सोचा कि जब मैं ग़लती से किसी को अधिक पेमेंट कर देता हूँ तो मुझे कौन लौटाने आता है???

बार-बार मन में आया कि पैसे लौटा दे लेकिन हर बार दिमाग कोई न कोई बहाना या कोई न कोई वजह दे देता पैसे लौटाने की।

लेकिन इसनान के अन्दर सिर्फ दिमाग ही तो नहीं होता… दिल और अंतरात्मा भी तो होती है… रह-रह कर उसके अंदर से आवाज़ आ रही थी कि तुम किसी की ग़लती से फ़ायदा उठाने से नहीं चूकते और ऊपर से बेईमान न होने का ढोंग भी करते हो। क्या यही ईमानदारी है?

उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। अचानक ही उसने बैग में से बीस हज़ार रुपए निकाले और जेब में डालकर बैंक की ओर चल दिया।

उसकी बेचैनी और तनाव कम होने लगा था। वह हल्का और स्वस्थ अनुभव कर रहा था। वह कोई बीमार थोड़े ही था लेकिन उसे लग रहा था जैसे उसे किसी बीमारी से मुक्ति मिल गई हो। उसके चेहरे पर किसी जंग को जीतने जैसी प्रसन्नता व्याप्त थी।

रुपए पाकर कैशियर ने चैन की सांस ली। उसने कस्टमर को अपनी जेब से हज़ार रुपए का एक नोट निकालकर उसे देते हुए कहा, ‘‘भाई साहब आपका बहुत-बहुत आभार! आज मेरी तरफ से बच्चों के लिए मिठाई ले जाना। प्लीज़ मना मत करना।”

‘‘भाई आभारी तो मैं हूँ आपका और आज मिठाई भी मैं ही आप सबको खिलाऊँगा, ’’ कस्टमर ने बोला।

कैशियर ने पूछा, ‘‘ भाई आप किस बात का आभार प्रकट कर रहे हो और किस ख़ुशी में मिठाई खिला रहे हो?’’

कस्टमर ने जवाब दिया,  ‘‘आभार इस बात का कि बीस हज़ार के चक्कर ने मुझे आत्म-मूल्यांकन का अवसर प्रदान किया। आपसे ये ग़लती न होती तो न तो मैं द्वंद्व में फँसता और न ही उससे निकल कर अपनी लोभवृत्ति पर क़ाबू पाता। यह बहुत मुश्किल काम था। घंटों के द्वंद्व के बाद ही मैं जीत पाया। इस दुर्लभ अवसर के लिए आपका आभार।”

दोस्तों, कहाँ तो वो लोग हैं जो अपनी ईमानदारी का पुरस्कार और प्रशंसा पाने का अवसर नही चूकते और कहाँ वो जो औरों को पुरस्कृत करते हैं। ईमानदारी का कोई पुरस्कार नहीं होता अपितु ईमानदारी स्वयं में एक बहुत बड़ा पुरस्कार है। अपने लोभ पर क़ाबू पाना कोई सामान्य बात नहीं। ऐसे अवसर भी जीवन में सौभाग्य से ही मिलते हैं अतः उन्हें गंवाना नहीं चाहिए अपितु उनका उत्सव मनाना चाहिए।

धन्यवाद

शिकायत करने पर हिंदी कहानी

 

एक आदमी रेगिस्तान से गुजरते वक़्त बुदबुदा रहा था, “कितनी बेकार जगह है ये, बिलकुल भी हरियाली नहीं है…और हो भी कैसे सकती है यहाँ तो पानी का नामो-निशान भी नहीं है.”

तपती रेत में वो जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा था उसका गुस्सा भी बढ़ता जा रहा था. अंत में वो आसमान की तरफ देख झल्लाते हुए बोला-

क्या भगवान आप यहाँ पानी क्यों नहीं देते? अगर यहाँ पानी होता तो कोई भी यहाँ पेड़-पौधे उगा सकता था, और तब ये जगह भी कितनी खूबसूरत बन जाती!

ऐसा बोल कर वह आसमान की तरफ ही देखता रहा…मानो वो भगवान के उत्तर की प्रतीक्षा कर रहा हो!

तभी एक चमत्कार होता है, नज़र झुकाते ही उसे सामने एक कुंवा नज़र आता है!

वह उस इलाके में बरसों से आ-जा रहा था पर आज तक उसे वहां कोई कुँवा नहीं दिखा था… वह आश्चर्य में पड़ गया और दौड़ कर कुंवे के पास गया… कुंवा लाबा-लब पानी से भरा था.  

उसने एक बार फिर आसमान की तरफ देखा  और पानी के लिए धन्यवाद करने की बजाये बोला, “पानी तो ठीक है लेकिन इसे निकालने के लिए कोई उपाय भी तो होना चाहिए.”

उसका ऐसा कहना था कि उसे कुँवें के बगल में पड़ी रस्सी और बाल्टी दिख गयी.

एक बार फिर उसे अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ!

वह कुछ घबराहट के साथ आसमान की ओर देख कर बोला, “लेकिन मैं ये पानी ढोउंगा कैसे?”

तभी उसे महसूस होता है कि कोई उसे पीछे से छू रहा है, पलट कर देखा तो एक ऊंट उसके पीछे खड़ा था!

अब वह आदमी अब एकदम घबड़ा जाता है, उसे लगता है कि कहीं वो रेगिस्तान में हरियाली लाने के काम में ना फंस जाए और इस बार वो आसमान की तरफ देखे बिना तेज क़दमों से आगे बढ़ने लगता है.

अभी उसने दो-चार कदम ही बढ़ाया था कि उड़ता हुआ पेपर का एक टुकड़ा उससे आकर चिपक जाता है.

उस टुकड़े पर लिखा होता है –

मैंने तुम्हे पानी दिया, बाल्टी और रस्सी दी…पानी ढोने  का साधन भी दिया, अब तुम्हारे पास वो हर एक चीज है जो तुम्हे रेगिस्तान को हरा-भरा बनाने के लिए चाहिए; अब सब कुछ तुम्हारे हाथ में है!

आदमी एक क्षण के लिए ठहरा… पर अगले ही पल वह आगे बढ़ गया और रेगिस्तान कभी भी हरा-भरा नहीं बन पाया.

Friends, कई बार हम चीजों के अपने मन मुताबिक न होने पर दूसरों को दोष देते हैं…कभी हम सरकार को दोषी ठहराते हैं, कभी अपने पेरेंट्स को, कभी कम्पनी को तो कभी भगवान को. पर इस blame-game के चक्कर में हम इस important fact को ignore कर देते हैं कि एक इंसान होने के नाते हममें वो शक्ति है कि हम अपने सभी सपनो को खुद साकार कर सकते हैं. 

शुरुआत में भले लगे कि ऐसा कैसे संभव है पर जिस तरह इस कहानी में उस इंसान को रेगिस्तान हरा-भरा बनाने के सारे साधन मिल जाते हैं उसी तरह हमें भी effort करने पर अपना goal achieve करने के लिए ज़रूरी सारे resources मिल सकते हैं.

पर समस्या ये है कि ज्यादातर लोग इन resources के होने पर भी उस आदमी की तरह बस complaint करना जानते हैं… अपनी मेहनत से अपनी दुनिया बदलना नहीं! तो चलिए, आज इस कहानी से सीख लेते हुए हम शिकायत करना छोडें और जिम्मेदारी लेकर अपनी दुनिया बदलना शुरू करें क्योंकि सचमुच सबकुछ तुम्हारे हाथ में है!