बुधवार, 30 मार्च 2022

पूजा और पाखी | डर का सामना करने की सीख देती कहानी

 पूजा और पाखी जुड़वा बहनें थीं और दोनों को ही प्यानो बजाना बेहद पसंद था. वे स्कूल के बाद एक प्यानो टीचर के पास जातीं और प्यानो बजाना सीखतीं. घर जाकर भी वे रोज घंटों प्रैक्टिस करतीं और दिन प्रति-दिन उनकी प्यानो-स्किल्स बेहतर होती जा रही थी.

एक दिन क्लास ख़त्म होने के बाद प्यानो-टीचर बोले-

“तुम दोनों के लिए एक अच्छी खबर है..”, दोनों बहनें गौर से टीचर की बात सुननें लगीं, “ इस बार दुर्गा पूजा के दौरान तुम दोनों को पहली बार स्टेज पे सबके सामने अपना हुनर दिखाने का मौका मिलेगा!”

दोनों एक-दूसरे को देखने लगीं… उनके दिल तेजी से धड़कने लगे, उन्हें डर था कि पता नहीं वे इतने लोगों के सामने परफॉर्म कर पाएंगी या नहीं?

अगले कुछ हफ़्तों तक दोनों ने जम के तैयारी की और अंततः दुर्गा पूजा का दिन भी आ गया! दोनों अपने माता-पिता के साथ स्टेज के पास बैठी बाकी बच्चों का प्रोग्राम देख रही थीं.

उनके मन में कई सवाल चल रहे थे-

“अगर मैंने वहां जाकर गलती कर दी तो…अगर मैं अपनी धुन भूल गयी तो….सब लोग कितना हँसेंगे…कितनी बदनाम होगी…”

वे ऐसा सोच ही रही थीं कि तभी एंकर ने एनाउंस किया, “और हमारा अगला टैलेंट है-पूजा”

अपना नाम सुनकर पूजा के पैरों तले जमीन खिसक गयी… उसका चेहरा पीला पड़ गया… मम्मी-पापा ने उसे स्टेज पे जाने के लिए एंकरेज किया पर वो कुर्सी से ही चिपकी रही.

अंत में मम्मी ने एंकर को आवाज दी—”माफ़ कीजियेगा..पूजा की तबीयत ठीक नहीं है!”

“कोई बात नहीं… दोस्तों हम बढ़ते हैं अपनी अगली परफ़ॉर्मर की तरफ….और अब स्टेज पर आ रहीं हैं…पाखी…”, एंकर ने बड़े अंदाज से पाखी का नाम पुकारा.

पाखी की हालत भी अपनी बहन पूजा की तरह थी…कुछ क्षणों के लिए वो भी कुर्सी से चिपकी रही… मम्मी-पापा ने उसका भी उत्साह बढ़ाया और डर का सामना करने को कहा… पाखी ने गहरी सांस ली और स्टेज की तरफ जाने लगी… उसके हाथ-पाँव कांप रहे थे… इतना नर्वस वो इससे पहले कभी नहीं हुई थी!

उसने परफॉर्म करना शुरू किया, उससे कई गलतियाँ हुईं…जी में आया कि स्टेज छोड़ कर भाग जाए…पर वो टिकी रही और अपनी परफॉरमेंस पूरी की!

पाखी की हिम्मत के लिए लोगों ने तालियों से उसका उत्साहवर्धन किया!

इसके बाद फिर दोनों पहले की तरह प्यानो सीखने लगीं. समय के साथ दोनों में काफी सुधार आया. और कुछ महीनों बाद एक बार फिर टीचर ने उन्हें सूचना दी- “ अगले महीने शहर में एक कॉन्सर्ट आयोजित हो रहा है और तुम दोनों को उसमे परफॉर्म करना है!”

इस बार भी पूजा और पाखी एक दूसरे को डर के मारे देखने लगीं.

जब कन्सर्ट का दिन आया तो एक बार फिर पूजा अपनी सीट से नही उठ पायी और पाखी पिछले बार की तुलना में अधिक कॉंफिडेंट थी और उसने पहले से बेहतर परफॉर्म किया.

दोस्तों, पूजा और पाखी की कहानी हम सबकी कहानी है. जब हम पूजा की तरह fear को अपने ऊपर हावी होने देते हैं और उसका सामना करने से पहले ही हार मान लेते हैं तो हमारा self-confidence घटता जाता है लेकिन अगर हम हिम्मत दिखाते हैं और fear को face करते हैं तो हमारा आत्मविश्वास बढ़ता जाता है और हम ज़िन्दगी में बेहतर कर पाते हैं.

यहाँ ये भी ध्यान देने वाली बात है कि पूजा और पाखी में कोई और अंतर नहीं था. दोनों जुड़वाँ बहनें थीं… सिखाने वाला टीचर भी same था… लेकिन बस एक “डर” की वजह से पूजा कुर्सी पर बैठी थी और पाखी stage पर perform कर रही थी!

क्या आप भी किसी चीज को लेकर बहुत डरते हैं? क्या आप भी failure के डर से खुद को बाँध कर रखते हैं? यदि ऐसा है तो इस डर को अपने भीतर से निकाल फेंकिये… और देखिये ज़िन्दगी के पास आपको देने के लिए कितना कुछ है!

 

 

 

मंगलवार, 29 मार्च 2022

छुआछूत | रामकृष्ण परमहंस प्रेरक प्रसंग

 भारत महान संतों की भूमि रही है. मानवता के पुजारी रामकृष्ण परमहंस भी उनमे से एक थे. ये उनका ही प्रताप था  कि नरेन्द्र नाम का एक साधारण बालक उनकी शरण में आकर स्वामी विवेकानंद बन गया और उनकी दी हुई शिक्षा से पूरे विश्व को प्रकाशमान किया.

छुआछूत | रामकृष्ण परमहंस प्रेरक प्रसंग

एक समय की बात है रामकृष्ण परमहंस तोतापुरी नामक एक संत के साथ ईश्वर व आध्यात्म पर चर्चा कर रहे थे. शाम हो चली थी और ठण्ड का मौसम होने के कारण वे एक जलती हुई धुनी के समीप बैठे हुए थे.

बगीचे का माली भी वहीँ काम कर रहा था और उसे भी आग जलाने की ज़रुरत महसूस हुई. वह फ़ौरन उठा और तोतापुरी जी ने जो धुनी जलाई थी उसमे से लकड़ी का एक जलता हुआ टुकड़ा उठा लिया.

“धूनी नी छूने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?”, तोतापुरी जी चीखने लगे…” पता नहीं ये कितनी पवित्र है.”

और ऐसा कहते हुए वे माली की तरफ बढ़े और उसे दो-चार थप्पड़ जड़ दिया.

रामकृष्ण यह सब देख कर मुस्कुराने लगे.

उनकी मुस्कराहट ने तोतापुरी जी को और भी खिन्न कर दिया.

तोतापुरी जी बोले, ” आप हंस रहे हैं… यह आदमी कभी पूजा-पाठ नहीं करता है, भगवान का भजन नहीं गाता है… फिर भी इसने इसने मेरे द्वारा प्रज्वलित की गयी पवित्र धूनी को स्पर्श करने की चेष्टा की… अपने गंदे हाथों से उसे छुआ…इसीलिए मैंने उसे ये दंड दिया.”

रामकृष्ण परमहंस शांतिपूर्वक उनकी बात सुनते रहे और फिर बोले, ” मुझे तो पता ही नहीं था की कोई चीज छूने मात्र से अपवित्र हो जाती है… अभी कुछ ही क्षण पहले आप ही तो हमें –

“एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति” 

का पाठ पढ़ा  रहे थे… आप ही तो समझा रहे थे कि ये सारा संसार ब्रह्म के प्रकाश-प्रतिबिम्ब के अलावा और कुछ भी नहीं है.

और अभी आप अपने माली के धूनी स्पर्श कर देने मात्र से अपना सारा ज्ञान भूल गए… और उसे मारने तक लगे. भला मुझे इसपर हंसी नहीं आएगी तो और क्या होगा!”

परमहंस गंभीरता से बोले, ” इसमें आपका कोई दोष नहीं है, आप जिससे हारे हैं वो कोई मामूली शत्रु नहीं है…वो आपके अन्दर का अहंकार है, जिसे जीत पाना सरल नहीं है.”

तोतापुरी जी अब अपनी गलती समझ चुके थे.  उन्होंने सौगंध खायी की अब वो अपने हंकार का त्याग देंगे और कभी भी छुआछूत और ऊंच-नीच का भेद-भाव नहीं करेंगे.

स्वामी रामकृष्ण परमहंस का उपदेश है कि किसी भी व्यक्ति को, चाहे वो किसी भी कुल का हो…चाहे वो धनवान हो या निर्धन… कभी ये नहीं भूलना चाहिए कि हम सबको बनाने वाला एक ही है. हम सभी परमात्मा की संतान हैं और एक सामान हैं.

 

छपाक !

 MBA करने के बाद समीर की प्लेसमेंट एक मल्टीनेशनल कम्पनी में हो गयी. Managerial positions में काम करने वाले employees में समीर सबसे young था. कम्पनी के directors के सामने वह खुद को साबित करना चाहता था, पर तमाम कोशिशों के बावजूद वो कुछ ऐसा नहीं कर पा रहा था जिसका एक बड़ा impact पड़े और लोग उसे notice करें.

 

अपनी इस परेशानी को discuss करने के लिए एक दिन उसने अपने college के professor, प्रो० कृष्णन को कॉल किया.

Busy होने के कारण प्रोफेसर ने समीर की मिल कर बात करने को कहा और उसे अगले Sunday को college में बुलाया.

समीर समय से पहुँच गया और दोनों campus में घूम-घूम कर बात करने लगे.

प्रोफेसर समीर की परेशानी समझ गए और बोले, “चलो जरा swimming pool का चक्कर लगा कर आते हैं.”

“क्या सर! मैं आपसे इतनी बड़ी problem discuss कर रहा हूँ और आप स्विमिंग पूल जाने की बात कर रहे हैं…”, समीर कुछ झुंझलाते हुए बोला.

“अरे आओ तो सही!”, प्रोफ़ेसर जबरदस्ती उसे अपने साथ ले गए.

दोपहर का समय था, पूल बिलकुल खाली था.

प्रोफ़ेसर बोले, “चलो एक गेम खेलते हैं… करना ये है कि हमें इस पूल में हलचल पैदा करनी है. देखते हैं कौन अधिक हलचल पैदा कर लेता है.”

समीर को लगा कि यहाँ आकर उसने अपना समय बर्बाद कर दिया है…पर वो प्रोफ़ेसर कृष्णन की बात टाल भी नहीं सकता था.

“सबसे पहले तुम प्रयास करो.”, प्रोफ़ेसर बोले.

समीर ने इधर-उधर देखा और पास ही पड़ी एक swimming pool tube उठा कर पानी में फेंक दी.

“हा-हा-हा”, प्रोफ़ेसर हँसते हुए बोले, “ इससे तो बस थोड़े से ही ripples बने हैं….क्या अपने प्रयासों से तुम बस इतनी सी ही हलचल पैदा कर सकते हो?”

यह सुनकर समीर थोड़ा गुस्से में आ गया, और झट से side में पड़ी एक चेयर उठाई और पानी में फेंक दी.

प्रोफेसर मुस्कुराते हुए बोले, “अच्छा है! ये प्रयास पहले वाले से बेहतर है…देखो इस बार का impact पहले से ज्यादा है और इसकी लहरें भी दूर तक गयी हैं.”

“ठीक है सर, तो क्या अब हम यहाँ से चलें?”, समीर बोला.

प्रोफ़ेसर ने फ़ौरन जवाब दिया, “नहीं! अभी खेल ख़त्म नहीं हुआ है!

क्या तुम एक और प्रयास करना चाहोगे?”

समीर जो भी हो रहा था उससे खुश नहीं था, वह खीजते हुए बोला, “ नहीं सर, अब यहाँ और कुछ नहीं पड़ा है जो मैं इस पूल में फेंकूं…. क्यों नहीं आप ही कोई प्रयास करके देख लेते हैं?”

अगले ही पल प्रोफ़ेसर अपने कपड़े उतारने लगे और दौड़ कर पानी में एक छलांग लगा दी!

“छपाक….”

पूल में हलचल ही हलचल मच गयी .

समीर भौंचक्का था. उसे ऐसा कुछ होने की उम्मीद नहीं थी.

“कुछ समझे समीर…”, प्रोफ़ेसर पानी से निकलते हुए बोले जा रहे थे, “ ये swimming pool दरअसल हमारे area of work को दर्शाता है…और अगर हमें इसमें maximum impact डालना है… अपने काम से पूरे ecosystem में ripples create करनी हैं तो हमें उस काम में डूबना होगा…हमें उसमे अपना सबकुछ लगा देना होगा…अधमने और छोटे-छोटे प्रयास तो हर कोई कर लेता है…हमें जी-जान से अपने काम को अपना सर्वश्रेष्ठ देना होगा और तब ये दुनिया हमें notice किये बिना नहीं रह पाएगी!”

समीर प्रोफ़ेसर की बात अच्छी तरह से समझ चुका था. अब वह एक नए जोश के साथ शहर की ओर वापस लौट रहा था…उसे पता था कि अब उसे क्या करना है!

दोस्तों, हमे चाहे जिस field से हों…अगर हमें अपनी field में नाम कमाना है…अपना प्रभाव छोड़ना है तो हमें ordinary से ऊपर उठना होगा. और ऐसा करने के लिए हमें extra-ordinary efforts करने होंगे…वरना हमारा काम तो होगा….लेकिन नाम नहीं होगा!

 

ईमानदारी का फल

 

बहुत समय पहले की बात है, प्रतापगढ़ के राजा को कोई संतान नहीं थी. राजा ने फैसला किया कि वह अपने राज्य के किसी बच्चे को ही अपना उत्तराधिकारी चुनेगा. इसी इरादे से एक दिन सभी बच्चों को बुलाया गया. राजा ने घोषणा की कि वह वह वहां मौजूद बच्चों में से ही किसी को अपना उत्तराधिकारी चुनेगा.

उसके बाद उसने सभी बच्चों के बीच एक छोटी सी थैली बंटवा दी…. और बोला,

“प्यारे बच्चों, आप सभी को जो थैली दी गयी है उसमे अलग-अलग पौधों के बीज हैं. हर बच्चे को सिर्फ एक ही बीज दिया गया है…आपको इसे अपने घर ले जाकर एक गमले में लगाना है. 6 महीने बाद हम फिर यहाँ इकठ्ठा होंगे और उस समय मैं फैसला करूँगा कि मेरे बाद प्रतापगढ़ का अगला शाषक कौन होगा?

 

उन्ही लड़कों में ध्रुव नाम का भी एक लड़का था. बाकी बच्चों की तरह वह भी बीज लेकर ख़ुशी-ख़ुशी अपने घर वापस पहुँच गया.

माँ की मदद से उसने एक गमला चुना और उसमे और अच्छे से उसकी देखभाल करता.

दिन बीतने लगे, पर हफ्ते-दो हफ्ते बाद भी ध्रुव के गमले में पौधे का कोई नामोनिशान नहीं था.

वहीँ अब आस-पास के कुछ बच्चों के गमलों में उपज दिखने लगी थी.

ध्रुव ने सोचा कि हो सकता है उसका बीज कुछ अलग हो… और कुछ दिनों बाद उसमे से कुछ निकले.

और ऐसा सोच कर वह पूरी लगन से गमले की देखभाल करता रहा. पर तीन महीने बीत जाने पर भी उसका गमला खाली था.

वहीं दूसरी ओर बाकी बच्चों के गमलों में अच्छे-खासे पौधे उग गए थे. कुछ में तो फल-फूल भी दिखाई देने लगे थे.

ध्रुव का खाली गमला देख सभी उसका मजाक बनाते…और उस पर हँसते… यहाँ तक की कुछ बड़े बुजुर्ग भी उसे बेकार में मेहनत करने से मना करते.

पर बावजूद इसेक ध्रुव ने हार नहीं मानी, और लगातार गमले की देखभाल करता रहा.

देखते-देखते 6 महीने भी बीत गए और राजा के सामने अपना गमला ले जाने का दिन आ गया.

ध्रुव चिंतित था क्योंकि अभी भी उसे गमले में कुछ नहीं निकला था. वह मन ही मन सोचने लगा-

अगर मैं ऐसे ही राजा के सामने चला गया तो सब लोग मुझ पर कितना हँसेंगे… और कहीं राजा भी मुझसे नाराज हो गया और सजा देदी तो…किसी को यकीन नहीं होगा कि मैं बीज में रोज पानी डालता था…सब मुझे कितना आलसी समझेंगे!

माँ ध्रुव की परेशानी समझ रही थी, उसने ध्रुव की आँखों में आँखें डाल कर कहा-

“नतीजा जो कुछ भी हो, तुम्हे राजा को उसका दिया हुआ बीज लौटाना ही चाहिए!”

तय दिन सभी बच्चे राजमहल के मैदान में इकठ्ठा हो गए. वहां एक से बढ़कर एक पौधों का अम्बार लगा था…रंग-बिरंगे फूलों की खुशबु से पूरा महल सुगन्धित हो गया था.

ध्रुव का खाली गमला देख बाकी बच्चे उसका मजाक उड़ा रहे थे कि तभी राजा के आने की घोषणा हुई.

सभी बच्चे शांति से अपनी जगह खड़े हो गए…सब के अन्दर बस एक ही प्रश्न चल रहा था…कि

कौन बनेगा राजा ?

राजा बच्चों के बीच से हो कर आगे बढ़ने लगे…वह जहाँ से भी गुजरते बच्चे तन कर खड़े हो जाते और अपने आप को योग्य उत्तराधिकारी साबित करने की कोशिश करते.

तमाम खूबसूरत पौधों को देखने के बाद राजा की नज़र ध्रुव पर पड़ी.

“क्या हुआ? तुम्हारा गमला खाली क्यों है?”, राजा ने पूछा.

“जी मैं रोज इसमें पानी डालता था…धूप दिखाता था… 6 महीने तक मैंने इसकी पूरी देख-भाल की पर फिर भी इसमें से पौधा नहीं निकला..”, ध्रुव कुछ हिचकिचाहट के साथ बोला.

राजा बाकी गमलों को देखने के लिए आगे बढ़ गया और जब सभी गमले देखने के बाद उसने बच्चों को संबोधित किया-

“आप लोगों ने खुद को साबित करने के लिए कड़ी कड़ी मेहनत की… ज्यादातर लोग किसी भी कीमत पर राजा बनना चाहते हैं, लेकिन एक लड़का है जो यहाँ खाली हाथ ही चला आया…. ध्रुव, तुम यहाँ मेरे पास आओ…”

सबके सामने इस तरह बुलाया जाना ध्रुव को कुछ अजीब लगा.

वह धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा.

जैसे ही राजा ने उसका गमला उठाकर बाकी बच्चों को दिखाया…सभी हंसने लगे.

“शांत हो जाइए!”, राजा ने ऊँची आवाज़ में कहा, “

6 महीने पहले मैंने आपको बीज दिए थे और अपने-अपने पौधों के साथ आने को कहा था. मैंने आपको जो बीज दिए थे वो बंजर थे… आप चाहे उसकी जितनी भी देख-भाल करते उसमे से कुछ नहीं निकलता… लेकिन अफ़सोस है कि आप सबके बीच में बस एक ध्रुव ही है जो खाली हाथ यहाँ उपस्थित हुआ है.

आप सबको उससे सीखना चाहिए…पहले तो उसने ईमानदारी दिखाई कि और लोगों की तरह बीज में से कुछ ना निकले पर दूसरा बीज नहीं लगाया…और उसके बाद खाली गमले के साथ यहाँ आने का सहस दिखाया…ये जानते हुए भी कि लोग उस पर कितना हँसेंगे…उसे कितना अपमानित होना पड़ेगा!

मैं घोषणा करता हूँ कि ध्रुव ही प्रतापगढ़ का अगला राजा होगा. यही उसकी इमानदारी का फल है!

 

चलते रहने की ज़िद!

 

अजय पिछले चार-पांच सालों से अपने शहर में होने वाली मैराथन में हिस्सा लेता था…लेकिन कभी भी उसने रेस पूरी नहीं की थी.

पर इस बार वह बहुत एक्साइटेड था. क्योंकि पिछले कई महीनों से वह रोज सुबह उठकर दौड़ने की प्रैक्टिस कर रहा था और उसे पूरा भरोसा था कि वह इस साल की मैराथन रेस ज़रूर पूरी कर लेगा.

देखते-देखते मैराथन का दिन भी आ गया और धायं की आवाज़ के साथ रेस शुरू हुई. बाकी धावकों की तरह अजय ने भी दौड़ना शुरू किया.

वह जोश से भरा हुआ था, और बड़े अच्छे ढंग से दौड़ रहा था. लेकिन आधी रेस पूरी करने के बाद अजय बिलकुल थक गया और उसके जी में आया कि बस अब वहीं बैठ जाए…

वह ऐसा सोच ही रहा था कि तभी उसने खुद को ललकारा…

रुको मत अजय! आगे बढ़ते रहो…अगर तुम दौड़ नहीं सकते, तो कम से कम जॉग करते हुए तो आगे बढ़ सकते हो…आगे बढ़ो…

और अजय पहले की अपेक्षा धीमी गति से आगे बढ़ने लगा.

कुछ किलो मीटर इसी तरह दौड़ने के बाद अजय को लगा कि उसके पैर अब और आगे नहीं बढ़ सकते…वह लड़खड़ाने लगा. अजय के अन्दर विचार आया….अब बस…और नहीं बढ़ सकता!

लेकिन एक बार फिर अजय ने खुद को समझाया…

रुको मत अजय …अगर तुम जॉग नहीं कर सकते तो क्या… कम से कम तुम चल तो सकते हो….चलते रहो.

अजय अब जॉग करने की बजाय धीरे-धीरे लक्ष्य की ओर बढ़ने लगा.

बहुत से धावक अजय से आगे निकल चुके थे और जो पीछे थे वे भी अब आसानी से उसे पार कर रहे थे…अजय उन्हें आगे जाने देने के अलावा कुछ नहीं कर सकता था. चलते-चलते अजय को फिनिशिंग पॉइंट दिखने लगा…लेकिन तभी वह अचानक से लड़खड़ा कर गिर पड़ा… उसके बाएँ पैर की नसें खिंच गयी थीं.

“अब कुछ भी हो जाए मैं आगे नहीं बढ़ सकता…”, जमीन पर पड़े-पड़े अजय के मन में ख़याल आया.

लेकिन अगले पल ही वो जोर से चीखा….

नहीं! आज चाहे जो हो जाए मैं ये रेस पूरी करके रहूँगा…ये मेरी ज़िद है…माना मैं चल नहीं सकता लेकिन लड़खड़ाते-लड़खड़ाते ही सही इस रेस को पूरा ज़रूर करूँगा….

अजय ने साहस दिखाया और एक बार फिर असहनीय पीड़ा सहते हुए आगे बढ़ने लगा….और इस बार वह तब तक बढ़ता रहा….तब तक बढ़ता रहा…जब तक उसने फिनिशिंग लाइन पार नहीं कर ली!

और लाइन पार करते ही वह जमीन पर लेट गया…उसके आँखों से आंसू बह रह थे.

अजय ने रेस पूरी कर ली थी…उसके चेहरे पर इतनी ख़ुशी और मन में इतनी संतुष्टि कभी नहीं आई थी…आज अजय ने अपने चलते रहने की ज़िदके कारण न सिर्फ एक रेस पूरी की थी बल्कि ज़िन्दगी की बाकी रेसों के लिए भी खुद को तैयार कर लिया था.

दोस्तों, चलते रहने की ज़िद हमें किसी भी मंजिल तक पहुंचा सकती है. बाधाओं के आने पर हार मत मानिए…

 ना चाहते हुए भी कई बार conditions ऐसी हो जाती हैं कि आप बहुत कुछ नहीं कर सकते! पर ऐसी कंडीशन को “कुछ भी ना करने” का excuse मत बनाइए.

घर में मेहमान हैं आप 8 घंटे नहीं पढ़ सकते….कोई बात नहीं 2 घंटे तो पढ़िए…

बारिश हो रही है…आप 10 कस्टमर्स से नहीं मिल सकते…कम से कम 2-3 से तो मिलिए…

एकदम से रुकिए नहीं… थोड़ा-थोड़ा ही सही आगे तो बढ़िये.

और जब आप ऐसा करेंगे तो अजय की तरह आप भी अपने ज़िन्दगी की रेस ज़रूर पूरी कर पायेंगे और अपने अन्दर उस ख़ुशी उस संतुष्टि को महसूस कर पायेंगे जो सिर्फ चलते रहने की ज़िद से आती है!

 

तेनालीराम की चतुराई भरी कहानियाँ

 सोलहवीं सदी (1509 से 1529 ) में विजयनगर की सत्ता महाराज कृष्णदेव राय  के हाथों में थी। उनके दरबार में एक से बढ़कर एक  दरबारी हुआ करते थे, और उन्हें में से एक थे महाचतुर तेनालीराम। अक्सर महाराज किसी अनसुलझी गुत्थी को सुलझाने के लिए तेनालीराम की मदद लिया करते थे। कालांतर में तेनालीराम एक प्रसिद्द किरदार बन गए और अकबर-बीरबल की तरह उनके जीवन से भी कई चतुराई भरे किस्से जोड़ दिए गए। इस तरह तेनालीराम की चतुराई भरी कहानियां प्रसिद्द होती गयीं और बच्चों के साथ-साथ बड़ों की भी शिक्षा और मनोरंजन का जरिया बन गयीं.

आइये आज हम ऐसी ही तीन प्रसिद्द  कहानियों को जानते हैं:

तेनालीराम की कहानी #1:  अंगूठी चोर

महाराजा कृष्ण देव राय एक कीमती रत्न जड़ित अंगूठी पहना करते थे। जब भी वह दरबार में उपस्थित होते तो अक्सर उनकी नज़र अपनी सुंदर अंगूठी पर जाकर टिक जाती थी। राजमहल में आने वाले मेहमानों और मंत्रीगणों से भी वह बार-बार अपनी उस अंगूठी का ज़िक्र किया करते थे।

एक बार राजा कृष्ण देव राय उदास हो कर अपने सिंहासन पर बैठे थे। तभी तेनालीराम वहाँ आ पहुंचे। उन्होने राजा की उदासी का कारण पूछा। तब राजा ने बताया कि उनकी पसंदीदा अंगूठी खो गयी है, और उन्हे पक्का शक है कि उसे उनके बारह अंग रक्षकों में से किसी एक ने चुराया है।

चूँकि राजा कृष्ण देव राय का सुरक्षा घेरा इतना चुस्त होता था की कोई चोर-उचक्का या सामान्य व्यक्ति उनके नज़दीक नहीं जा सकता था।
तेनालीराम ने तुरंत महाराज से कहा कि-

मैं अंगूठी चोर को बहुत जल्द पकड़ लूँगा। 

यह बात सुन कर राजा कृष्ण देव राय बहुत प्रसन्न हुए। उन्होने तुरंत अपने अंगरक्षकों को बुलवा लिया।

तेनालीराम बोले, “राजा की अंगूठी आप बारह अंगरक्षकों में से किसी एक ने की है। लेकिन मैं इसका पता बड़ी आसानी से लगा लूँगा। जो सच्चा है उसे डरने की कोई ज़रुरत नहीं और जो चोर है वह कठोर दण्ड भोगने के लिए तैयार हो जाए।”

तेनालीराम ने बोलना जारी रखा, “आप सब मेरे साथ आइये हम सबको काली माँ के मंदिर जाना है।”

राजा बोले, ” ये कर रहे हो तेनालीराम हमें चोर का पता लगाना है मंदिर के दर्शन नहीं कराने हैं!”

“महाराज, आप धैर्य रखिये जल्द ही चोर का पता चल जाएगा।”, तेनालीराम ने राजा को सब्र रखने को कहा।

मंदिर पहुँच कर तेनालीराम पुजारी के पास गए और उन्हें कुछ निर्देश दिए। इसके बाद उन्होंने अंगरक्षकों से कहा, ” आप सबको बारी-बारी से  मंदिर में जा कर माँ काली की मूर्ति के पैर छूने हैं और फ़ौरन बाहर निकल आना है। ऐसा करने से माँ काली आज रात स्वप्न में मुझे उस चोर का नाम बता देंगी।

अब सारे अंगरक्षक बारी-बारी से मंदिर में जा कर माता के पैर छूने लगे। जैसे ही कोई अंगरक्षक पैर छू कर बाहर निकलता तेनालीराम उसका हाथ सूंघते आर एक कतार में खड़ा कर देते। कुछ ही देर में सभी अंगरक्षक एक कतार में खड़े हो गए।

महाराज बोले, “चोर का पता तो कल सुबह लगेगा, तब तक इनका क्या किया जाए?”

नहीं महाराज, चोर का पता तो ला चुका है। सातवें स्थान पर खड़ा अंगरक्षक ही चोर है।

ऐसा सुनते ही वह अंगरक्षक भागने लगा, पर वहां मौजूद सिपाहियों ने उसे धर दबोचा, और कारागार में डाल दिया.

राजा और बाकी सभी लोग आशार्यचाकित थे कि तेनालीराम ने बिना स्वप्न देखे कैसे पता कर लिया कि चोर वही है।

तेनालीराम सबकी जिज्ञासा शांत करते हुए बोले,”मैंने पुजारी जी से कह कर काली माँ के पैरों पर तेज सुगन्धित इत्र छिड़कवा दिया था। जिस कारण जिसने भी माँ के पैर छुए उसके हाथ में वही सुगन्ध आ गयी। लेकिन जब मैंने सातवें अंगरक्षक के हाथ महके तो उनमे कोई खुशबु नहीं थी… उसने पकड़े जाने के डर से माँ काली की मूर्ति के पैर छूए ही नहीं। इसलिए यह साबित हो गया की उसी के मन में पाप था और वही चोर है।”

राजा कृष्ण देव राय एक बार फिर तेनालीराम की बुद्धिमत्ता के कायल हो गए। और उन्हें स्वर्ण मुद्राओं से सम्मानित किया।

तेनालीराम की कहानी #2- कुछ नहीं

तेनालीराम राजा कृष्ण देव राय के निकट होने के कारण बहुत से लोग उनसे जलते थे। उनमे से एक था रघु नाम का ईर्ष्यालु फल व्यापारी। उसने एक बार तेनालीराम को षड्यंत्र में फसाने की युक्ति बनाई। उसने तेनालीराम को फल खरीदने के लिए बुलाया। जब तेनालीराम ने उनका दाम पूछा तो रघु मुस्कुराते हुए बोला,

“आपके लिए तो इनका दाम ‘कुछ नहीं’ है।”

यह बात सुन कर तेनालीराम ने कुछ फल खाए और बाकी थैले में भर आगे बढ़ने लगे। तभी रघु ने उन्हें रोका और कहा कि मेरे फल के दाम तो देते जाओ।

तेनालीराम रघु के इस सवाल से हैरान हुए, वह बोले कि अभी तो तुमने कहा की फल के दाम ‘कुछ नहीं’ है। तो अब क्यों अपनी बात से पलट रहे हो। तब रघु बोला की, मेरे फल मुफ्त नहीं है। मैंने साफ-साफ बताया था की मेरे फलों का दाम कुछ नहीं है। अब सीधी तरह मुझे ‘कुछ नहीं’ दे दो, वरना मै राजा कृष्ण देव राय के पास फरियाद ले कर जाऊंगा और तुम्हें कठोर दंड दिलाऊँगा।

तेनालीराम सिर खुझाने लगे। और यह सोचते-सोचते वहाँ से अपने घर चले गए।

उनके मन में एक ही सवाल चल रहा था कि इस पागल फल वाले के अजीब षड्यंत्र का तोड़ कैसे खोजूँ। इसे कुछ नहीं कहाँ से लाकर दूँ।

अगले ही दिन फल वाला राजा कृष्ण देव राय के दरबार में आ गया और फरियाद करने लगा। वह बोला की तेनाली ने मेरे फलों का दाम ‘कुछ नहीं’ मुझे नहीं दिया है।

राजा कृष्ण देव राय ने तुरंत तेनालीराम को हाज़िर किया और उससे सफाई मांगी। तेनालीराम पहले से तैयार थे उन्होंने एक रत्न-जड़ित संदूक लाकर रघु फल वाले के सामने रख दिया और कहा ये लो तुम्हारे फलों का दाम।

उसे देखते ही रघु की आँखें चौंधिया, उसने अनुमान लगाया कि इस संदूक में बहुमूल्य हीरे-जवाहरात होंगे… वह रातों-रात अमीर बनने के ख्वाब देखने लगा। और इन्ही ख़यालों में खोये-खोये उसने संदूक खोला।

संदूक खोलते ही मानो उसका खाब टूट गया, वह जोर से चीखा, ” ये क्या? इसमें तो ‘कुछ नहीं’ है!”

तब तेनालीराम बोले, “बिलकुल सही, अब तुम इसमें से अपना ‘कुछ नहीं’ निकाल लो और यहाँ से चलते बनो।”

वहां मौजूद महाराज और सभी दरबारी ठहाका लगा कर हंसने लगे। और रघु को अपना सा मुंह लेकर वापस जाना पड़ा। एक बार फिर तेनालीराम ने अपने बुद्धि चातुर्य से महाराज का मन जीत लिया था।

तेनालीराम की कहानी #3- जादूगर का घमंड

एक बार राजा कृष्ण देव राय के दरबार में एक जादूगर आया। उसने बहुत देर तक हैरतअंगेज़ जादू करतब दिखा कर पूरे दरबार का मनोरंजन किया। फिर जाते समय राजा से ढेर सारे उपहार ले कर अपनी कला के घमंड में सबको चुनौती दे डाली-

क्या कोई व्यक्ति मेरे जैसे अद्भुत करतब दिखा सकता है। क्या कोई मुझे यहाँ टक्कर दे सकता है?

इस खुली चुनौती को सुन कर सारे दरबारी चुप हो गए। परंतु तेनालीराम को इस जादूगर का यह अभिमान अच्छा नहीं लगा। वह तुरंत उठ खड़े हुए और बोले कि हाँ मैं तुम्हे चुनौती देता हूँ कि जो करतब मैं अपनी आँखें बंद कर के दिखा दूंगा वह तुम खुली आंखो से भी नहीं कर पाओगे। अब बताओ क्या तुम मेरी चुनौती स्वीकार करते हो?

जादूगर अपने अहम में अंध था। उसने तुरंत इस चुनौती को स्वीकार कर लिया।

तेनालीराम ने रसोइये को बुला कर उस के साथ मिर्ची का पाउडर मंगवाया। अब तेनालीराम ने अपनी आँखें बंद की और उनपर एक मुट्ठी मिर्ची पाउडर डाल दिया। फिर थोड़ी देर में उन्होंने मिर्ची पाउडर झटक कर कपड़े से आँखें पोंछ कर शीतल जल से अपना चेहरा धो लिया। और फिर जादूगर से कहा कि अब तुम खुली आँखों से यह करतब करके अपनी जादूगरी का नमूना दिखाओ।

घमंडी जादूगर को अपनी गलती समझ आ गयी। उसने माफी मांगी और हाथ जोड़ कर राजा के दरबार से चला गया।

राजा कृष्ण देव राय अपने चतुर मंत्री तेनालीराम की इस युक्ति से अत्यंत प्रभावित हुए। उन्होने तुरंत तेनालीराम को पुरस्कार दे कर सम्मानित किया और राज्य की इज्जत रखने के लिए धन्यवाद दिया।

 

 

 

 

मुट्ठी भर लोग! साहस पर कहानी

 

हर साल गर्मी की छुट्टियों में नितिन अपने दोस्तों के साथ किसी पहाड़ी इलाके में माउंटेनियरिंग के लिए जाता था. इस साल भी वे इसी मकसद से ऋषिकेश पहुंचे.

गाइड उन्हें एक फेमस माउंटेनियरिंग स्पॉट पर ले गया. नितिन और उसके दोस्तों ने सोचा नहीं था कि यहाँ इतनी भीड़ होगी. हर तरफ लोग ही लोग नज़र आ रहे थे.

एक दोस्त बोला, ” यार यहाँ तो शहर जैसी भीड़ है…यहाँ चढ़ाई करने में क्या मजा??”

“क्या कर सकते हैं… अब आ ही गए हैं तो अफ़सोस करने से क्या फायदा…चलो इसी का मजा उठाते हैं…”, नितिन ने जवाब दिया.

सभी दोस्त पर्वतारोहण करने लगे और कुछ ही समय में पहाड़ी की चोटी पर पहुँच गए.

वहां पर पहले से ही लोगों का तांता लगा हुआ था. दोस्तों ने सोचा चलो अब इसी भीड़ में दो-चार घंटे कैम्पिंग करते हैं  और फिर  वापस चलते हैं. तभी नितिन ने सामने की एक चोटी की तरफ इशारा करते हुए कहा, “रुको-रुको… ज़रा उस चोटी  की  तरफ भी तो देखो… वहां तो बस मुट्ठी भर लोग ही दिख रहे हैं… कितना मजा आ रहा होगा… क्यों न हम वहां चलें.”

“वहां!”, एक दोस्त बोला, “अरे वहां जाना सबके बस की बात नहीं है… उस पहाड़ी के बारे में मैंने सुना है, वहां का रास्ता बड़ा मुश्किल है और कुछ लकी लोग ही वहां तक पहुँच पाते हैं.”

बगल में खड़े कुछ लोगों ने भी नितिन का मजाक उड़ाते हुए कहा,” भाई अगर वहां जाना इतना ही आसान होता तो हम सब यहाँ झक नहीं मार रहे होते!”

लेकिन नितिन ने किसी की बात नहीं सुनी और अकेला ही चोटी की तरफ बढ़ चला. और तीन घंटे बाद वह उस पहाड़ी के शिखर पर था.

वहां पहुँचने पर पहले से मौजूद लोगों ने उसका स्वागत किया और उसे एंकरेज किया.

नितिन भी वहां पहुँच कर बहुत खुश था अब वह शांति से प्रकृति की ख़ूबसूरती का आनंद ले सकता था.

जाते-जाते नितिन ने बाकी लोगों से पूछा,”एक बात बताइये… यहाँ पहुंचना इतना मुश्किल तो नहीं था, मेरे ख़याल से तो जो उस भीड़-भाड़ वाली चोटी तक पहुँच सकता है वह अगर थोड़ी सी और मेहनत करे तो इस चोटी को भी छू सकता है…फिर ऐसा क्यों है कि वहां सैकड़ों लोगों की भीड़ है और यहाँ बस मुट्ठी भर लोग?”

वहां मौजूद एक वेटरन माउंटेनियर बोला, “क्योंकि ज्यादातर लोग बस उसी में खुश हो जाते हैं जो उन्हें आसानी से मिल जाता…वे सोचते ही नहीं कि उनके अन्दर इससे कहीं ज्यादा पाने का पोटेंशियल है… और जो थोड़ा पाकर खुश नहीं भी होते वे कुछ अधिक पाने के लिए रिस्क नहीं उठाना चाहते… वे डरते हैं कि कहीं ज्यादा के चक्कर में जो हाथ में है वो भी ना चला जाए… जबकि हकीकत ये है कि अगली चोटी या अगली मंजिल पाने के लिए बस जरा से और एफर्ट की ज़रुरत पड़ती है! पर साहस ना दिखा पाने के कारण अधिकतर लोग पूरी लाइफ बस भीड़ का हिस्सा ही बन कर रह जाते हैं… और साहस दिखाने वाली उन मुट्ठी भर लोगों को लकी बता कर खुद को तसल्ली देते रहते हैं.”

Friends, अगर आप आज तक वो अगला साहसी कदम उठाने से खुद को रोके हुए हैं तो ऐसा मत करिए क्योंकि-

अगली चोटी या अगली मंजिल पाने के लिए बस जरा से और एफर्ट की ज़रुरत पड़ती है!

खुद को उस effort को करने से रोकिये मत … थोडा सा साहस… थोड़ी सी हिम्मत आपको भीड़ से निकाल कर उन मुट्ठी भर लोगों में शामिल कर सकती है जिन्हें दुनिया lucky कहती है

 

अकबर बीरबल की कहानियां

 अकबर-बीरबल के किस्से कहानियां सदियों से हमारा मनोरंजन करते आ रहे हैं। आज ऐसी ही असंख्य किस्सों में से हम आपके साथ 5 बेहद मनोरंजक कहानियां साझा कर रहे हैं।

कहानी #1:  तोते की मौत  

एक बार बादशाह अकबर किसी व्यापारी के पास से तोता खरीद कर लाये। वह तोता देखने में अत्यंत सुंदर था और उसकी बोली भी बड़ी मीठी थी। अकबर ने उस तोते की रखवाली के लिए एक सेवक को नियुक्त कर दिया, और उसे साफ़ हिदायत दे दी कि –

अगर तोता मरा तो तुम्हें मृत्यु दंड दे दूंगा। और इसके अलावा जिसने भी अपने मुंह से कहा कि ‘तोता मर चुका है‘ उसे भी मौत की सज़ा मिलेगी । इसलिए तोते की रखवाली अच्छे से करना।

सेवक तोते को ले कर चला गया। और बड़े उत्साह से उसकी देखभाल करने लगा। उसे कहीं ना कहीं यह डर सता रहा था कि अगर कहीं बादशाह का तोता मरा तो उसकी जान पर बन आएगी। और फिर एक दिन ऐसा ही हुआ। तोता अचानक मर गया। अब सेवक के हाथ पाँव फूलने लगे। उसे बादशाह अकबर की कही बात याद थी। वह तुरंत दौड़ कर बीरबल के पास गया। और पूरी बात बताई।

बीरबल ने उस सेवक को पानी पिलाया और कहा, “चिंता मत करो। मै बादशाह से बात करूंगा.. तुम बस इस समय उस तोते से दूर हो जाओ। “

थोड़ी देर बाद बीरबल अकेले बादशाह के पास गए और बोले कि-

मालिक, आप का जो तोता था….वह…

इतना बोल कर बीरबल ने बात अधूरी छोड़ दी।

अकबर बादशाह तुरंत सिंहासन से खड़े हुए और बोले, क्या हुआ? तोता मर गया?

बीरबल बोले, “मै सिर्फ इतना ही कहना चाहूँगा कि आप का तोता ना मुंह खोलता है, ना खाता है, ना पीता है, ना हिलता है, ना डुलता है। ना चलता है, ना फुदकता है। उसकी आँखें बंद है। और वह अपने पिंजरे में लेटा पड़ा है। आप आइये और ज़रा उसे देखिये।”

अकबर और बीरबल फ़ौरन तोते के पास गए।

“अरे बीरबल ‘तोता मर चुका है।’ ये बात तुम मुझे वहीं पर नहीं बता सकते थे।”, अकबर क्रोधित होते हुए बोले।”उस तोते का रखवाला कहाँ है? मैं उसे अभी अपनी तलवार से सजाये मौत दूंगा।”

तब बीरबल बोले, “जी मैं अभी उस रखवाले को हाज़िर करता हूँ लेकिन ये तो बताइये कि आपको मृत्यु देने के लिए मैं किसे बुलाऊं।”

“क्या मतलब है तुम्हारा?”, अकबर जोर से चीखे।

“जी, आप ही ने तो कहा था कि जो कोई भी बोलेगा कि ‘तोता मर चुका है’, उसे भी मौत की सजा दी जायेगी, और अभी कुछ देर पहले आप ही के मुख से ये बात निकली थी।”

अब अकबर को अपनी गलती का एहसास हो गया।

बीरबल की इस चतुराई से अकबर हंस पड़े और वे दोनों हँसते-हँसते दरबार लौट गए। अकबर ने तुरंत घोषणा कर दी की सेवक पर कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी। तोता अपनी मौत मरा है, उसमें किसी का कोई दोष नहीं है।

कहानी #2: आदमी एक खूबियाँ तीन

एक बार अकबर और बीरबल बागीचे में बैठे थे। अचानक अकबर ने बीरबल से पूछा कि क्या तुम किसी ऐसे इन्सान को खोज सकते हो जिसमें अलग-अलग बोली बोलने की खूबी हों?

बीरबल ने कहा, क्यों नहीं, मै एक आदमी जानता हूँ जो तोते की बोली बोलता है, शेर की बोली बोलता है, और गधे की बोली भी बोलता है। अकबर इस बात को सुन कर हैरत में पड़ गए। उन्होने बीरबल को कहा किअगले दिन उस आदमी को पेश किया जाये।

बीरबल उस आदमी को अगले दिन सुबह दरबार में ले गए। और उसे एक छोटी बोतल शराब पीला दी। अब हल्के नशे की हालत में शराबी अकबर बादशाह के आगे खड़ा था। वह जानता था की दारू पी कर आया जान कर बादशाह सज़ा देगा। इस लिए वह गिड़गिड़ाने लगा। और बादशाह की खुशामत करने लगा। तब बीरबल बोले की हुज़ूर, यह जो सज़ा के डर से बोल रहा है वह तोते की भाषा है।

उसके बाद बीरबल ने वहीं, उस आदमी को एक और शराब की बोतल पिला दी। अब वह आदमी पूरी तरह नशे में था। वह अकबर बादशाह के सामने सीना तान कर खड़ा हो गया। उसने कहा कि आप नगर के बादशाह हैं तो क्या हुआ। में भी अपने घर का बादशाह हूँ। मै यहाँ किसी से नहीं डरता हूँ।

बीरबल बोले कि  हुज़ूर, अब शराब के नशे में निडर होकर यह जो बोल रहा है यह शेर की भाषा है।

अब फिर से बीरबल ने उस आदमी का मुह पकड़ कर एक और बोतल उसके गले से उतार दी। इस बार वह आदमी लड़खड़ाते गिरते पड़ते हुए ज़मीन पर लेट गया और हाथ पाँव हवा में भांजते हुए, मुंह से उल-जूलूल आवाज़ें निकालने लगा। अब बीरबल बोले कि हुज़ूर अब यह जो बोल रहा है वह गधे की भाषा है।

अकबर एक बार फिर बीरबल की हाज़िर जवाबी से प्रसन्न हुए, और यह मनोरंजक उदाहरण पेश करने के लिए उन्होने बीरबल को इनाम दिया।

कहानी #3: तीन रूपये, तीन चीज़ें

एक मंत्री की उदास शक्ल देख बादशाह अकबर ने उसकी उदासी का कारण पूछा। तब मंत्री बोले कि आप सारे महत्वपूर्ण कार्य बीरबल को सौप कर उसे महत्ता देते हैं। जिस कारण हमें अपनी प्रतिभा साबित करने का मौका ही नहीं मिलता है। इस बात को सुन कर अकबर ने उस मंत्री को तीन रूपये दिये और कहा कि आप बाज़ार जा कर इन तीन रुपयों को तीन चीजों पर बराबर-बराबर खर्च करें…यानी हर एक चीज पर 1 रुपये।

लेकिन शर्त यह है कि-

पहली  चीज यहाँ की होनी चाहिए। दूसरी चीज वहाँ की होनी चाहिए। और तीसरी चीज ना यहाँ की होनी चाहिए और ना वहाँ की होनी चाहिए।

दरबारी मंत्री अकबर से तीन रूपये ले कर बाज़ार निकल पड़ा। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वो अब क्या करे। वह एक दुकान से दुसरे दुकान चक्कर लगाने लगा लेकिन उसे ऐसा कोई नहीं मिला जो इस शर्त के मुताबिक एक-एक रूपये वाली तीन चीज़ें दे सके। वह थक हार कर वापस अकबर के पास लौट आया।

अब बादशाह अकबर ने यही कार्य बीरबल को दिया।

बीरबल एक घंटे में अकबर बादशाह की चुनौती पार लगा कर तीन वस्तुएँ ले कर लौट आया। अब बीरबल ने उन वस्तुओं का वृतांत कुछ इस प्रकार सुनाया।

पहला एक रुपया मैंने मिठाई पर खर्च कर दिया जो यहाँ इस दुनिया की चीज है। दूसरा रुपया मैंने एक गरीब फ़कीर को दान किया जिससे मुझे पुण्य मिला जो वहाँ यानी ज़न्नत की चीज है। और तीसरे रुपये से मैंने जुवा खेला और हार गया… इस तरह “जुवे में हारा रुपया” वो तीसरी चीज थी जो ना यहाँ मेरे काम आई न वहां ,ज़न्नत में मुझे नसीब होगी।

बीरबल की चतुराईपूर्ण बात सुनकर राजा के साथ-साथ दरबारी भी मुस्कुरा पड़े और सभी ने उनकी बुद्धि का लोहा मान लिया।

 

कहानी #4: सबसे बड़ा मनहूस कौन?

एक बार अकबर बिस्तर पर पड़े-पड़े पानी मांगे जा रहे थे। आसपास कोई खास निजी सेवक था नहीं। सो महल का कूड़ा कचरा साफ करने वाले निम्न दर्जे के मामूली नौकर ने हिम्मत कर के बादशाह को पानी का गिलास दिया। अकबर उसे अपने कमरे में देख कर चौक गए। लेकिन प्यास इतनी लगी थी कि वे खुद को रोक नहीं पाए और पानी ले लिया।

तभी वहां अकबर के खास सेवक आ पहुंचे। उन्होने फौरन उस कचरा साफ करने वाले नौकर को कमरे से बाहर कर दिया। और सभी अकबर की चापलूसी करने लगे।

दोपहर हुई तो अकबर का पेट खराब हो गया। हकीम को बुलाया गया। पर फिर भी अकबर की हालत में सुधार नहीं हुआ। अब राज वैद्य आए, उनके साथ राज्य ज्योतिष भी थे। उन्होने कहा की शायद आप पर किसी मनहूस व्यक्ति का साया पड़ा है, इसीलिए आप की तबीयत खराब हुई है।

अकबर बादशाह को तुरंत उस कचरा साफ करने वाले नौकर का खयाल आया। उन्होने कहा कि आज सुबह मैंने उस कचरा साफ करने वाले के हाथ से पानी पिया था इसीलिए मेरे साथ यह सब हुआ है। उन्होने गुस्से में उस नौकर को मौत की सज़ा दे दी।  थोड़ी ही देर में सिपाहीयों ने उस नौकर को कारागार में बंद कर दिया।

बीरबल को जब इस बात का पता लगा तो वह उस नौकर के पास गए और उसे सांत्वना देते हुए कहा कि वह उसे बचा लेंगे।

बीरबल तुरंत अकबर के पास गए और उनका हाल-चाल लिया। तब अकबर ने बताया कि-

हमारे राज्य का सब से बड़ा मनहूस मुझे बीमार कर गया।

यह बात सुन कर बीरबल हंस पड़े। तब अकबर को गुस्सा आया और वह बोले कि तुम्हें मेरी यह हालत देख कर मज़ा आ रहा है? तो बीरबल ने कहा कि नहीं नहीं महाराज एक बात पूछनी थी। अगर मैं उस नौकर से बड़ा मनहूस आप को ढूंढ कर दूँ तो आप क्या करेंगे? क्या आप इस नौकर को सज़ा से मुक्ति दे देंगे? अकबर ने तुरंत बीरबल की यह शर्त मान ली। और पूछा की बताओ उस नौकर से बड़ा मनहूस कौन है?

अब बीरबल बोले,  “उस नौकर से बड़े मनहूस तो आप खुद हैं। उस नौकर के हाथ पानी पीने से आप की तबियत खराब हुई, आप बिस्तर पर आ गए। लेकिन उसका तो सोचिए, वह तो आप की प्यास बुझाने आया था। आप की खिदमद कर रहा था। सुबह सुबह आप की शक्ल देखने से उसकी तो जान पर बन आई है। उसे तो मौत की सज़ा मिल गयी। तो इस लिए उस से बड़े मनहूस तो आप हुए। अब आप खुद को मौत की सज़ा मत दीजिएगा। चूँकि हम सब आप से बहुत प्यार करते हैं।”

बीरबल की यह चतुराई भरी बात सुन कर, अकबर बिस्तर पर पड़े-पड़े हंसने लगे। उन्होने उसी वक्त उस गरीब नौकर को छोड़ देने के आदेश दिये। और उसे इनाम भी दिया। और मनहूसियत का अंधविश्वासी सुझाव देने वाले राज्य ज्योतिष को उसी वक्त घोड़े के तबेले में मुनीमगिरी के काम में लगा दिया गया।

कहानी #5: अकबर का साला

अकबर का साला हमेशा से ही बीरबल की जगह लेना चाहता था। अकबर जानते थे कि बीरबल की जगह ले सके ऐसा बुद्धिमान इस संसार में कोई नहीं है। फिर भी जोरू के भाई को वह सीधी ‘ना’ नहीं बोल सकते थे। ऐसा कर के वह अपनी लाडली बेगम की बेरुखी मोल नहीं लेना चाहते थे। इसीलिए उन्होने अपने साले साहब को एक कोयले से भरी बोरी दे दी और कहा कि-

जाओ और इसे हमारे राज्य के सबसे  मक्कार और लालची सेठ – सेठ दमड़ीलाल  को बेचकर दिखाओ , अगर तुम यह काम कर गए तो तुम्हें बीरबल की जगह वज़ीर बना दूंगा।

अकबर की इस अजीब शर्त को सुन कर साला अचंभे में पड़ गया। वह कोयले की बोरी ले कर चला तो गया। पर उसे पता था कि वह सेठ किसी की बातो में नहीं आने वाला ऊपर से वह उल्टा उसे ही चूना लगा देगा। हुआ भी यही सेठ दमड़ीलाल ने कोयले की बोरी के बदले एक ढेला भी देने से इनकार कर दिया।

साला अपना सा मुंह लेकर महल वापस लौट आया और अपनी हार स्वीकार कर ली.

अब अकबर ने वही काम बीरबल को करने को कहा।

बीरबल कुछ सोचे और फिर बोले कि सेठ दमड़ीलाल जैसे मक्कार और लालची सेठ को यह कोयले की बोरी क्या मैं सिर्फ कोयले का एक टुकड़ा ही दस हज़ार रूपये में बेच आऊंगा। यह बोल कर वह तुरंत वहाँ से रवाना हो गए।

सबसे पहले उसने एक दरज़ी के पास जा कर एक मखमली कुर्ता सिलवाया। हीरे-मोती वाली मालाएँ गले में डाली। महंगी जूती पहनी और कोयले को बारीक सुरमे जैसा पिसवा लिया।

फिर उसने पिसे कोयले को एक सुरमे की छोटी चमकदार डिब्बी में भर लिया। इसके बाद बीरबल ने अपना भेष बदल लिया और एक मेहमानघर में रुक कर इश्तिहार दे दिया कि बगदाद से बड़े शेख आए हैं। जो करिश्माई सुरमा बेचते हैं। जिसे आँखों में लगाने से मरे हुए पूर्वज  दिख जाते हैं और यदि उन्होंने कहीं कोई धन गाड़ा है तो उसका पता बताते हैं। यह बात शहर में आग की तरह फ़ैली।

सेठ दमड़ीलाल को भी ये बात पता चली। उसने सोचा ज़रूर उसके पूर्वजों ने कहीं न कहीं धन गाड़ा होगा। उसने तुरंत शेख बने बीरबल से सम्पर्क किया और सुरमे की डिब्बी खरीदने की पेशकश की। शेख ने डिब्बी के 20 हज़ार रुपये मांगे और मोल-भाव करते-करते 10 हज़ार में बात तय हुई।

पर सेठ भी होशियार था, उसने कहा मैं अभी तुरंत ये सुरमा लगाऊंगा और अगर मुझे मेरे पूर्वज नहीं दिखे तो मैं पैसे वापस ले लूँगा।

बीरबल बोला, “बिलकुल आप ऐसा कर सकते हैं, चलिए शहर के चौराहे पर चलिए और वहां इसे जांच लीजिये।”

सुरमे का चमत्कार देखने के लिए भीड़ इकठ्ठा हो गयी।

तब बीरबल ने ऊँची आवाज़ में कहा, “ये सेठ अभी ये चमत्कारी सुरमा लगायेंगे और अगर ये उन्ही की औलाद हैं जिन्हें ये अपना माँ-बाप समझते हैं तो इन्हें इनके पूर्वज दिखाई देंगे और गड़े धन के बारे में बताएँगे। लेकिन अगर आपके माँ-बाप में से किसी ने भी बेईमानी की होगी और आप उनकी असल औलाद नहीं होंगे तो आपको कुछ भी नहीं दिखेगा।

और ऐसा कहते ही बीरबल ने सेठ की आँखों में सुरमा लगा दिया।

फिर क्या था, सिर खुजाते हुए सेठ ने आँखें खोली। अब दिखना तो कुछ था नहीं, पर सेठ करे भी तो क्या करे!

अपनी इज्ज़त बचाने के लिए सेठ ने दस हज़ार बीरबल के हाथ थमा दिये। और मुंह फुलाते हुए आगे बढ़ गए।

बीरबल फ़ौरन अकबर के पास पहुंचे और रुपये थमाते हुए सारी कहानी सुना दी।

अकबर का साला बिना कुछ कहे अपने घर लौट गया। और अकबर-बीरबल एक दूसरे को देख कर मंद-मंद मुसकाने लगे। इस किस्से के बाद फिर कभी अकबर के साले ने बीरबल का स्थान नहीं मांगा।

 

 

 

कैसे हुई भगवान विष्णु के चक्र की उतपत्ति | भगवान विष्णु की कहानी

 एक बार नारायण;  जिन्हें हम भगवान विष्णु भी कहते हैं; ने सोचा कि वो अपने इष्ट देवों के देव महादेव को प्रसन्न करने के लिए उन्हें एक हजार कमल के पुष्प अर्पित करेंगे. पूजा की सारी सामग्री एकत्रित करने के बाद उन्होंने अपना आसान ग्रहण किया. और आँखे बंद कर के संकल्प को दोहराया. और अनुष्ठान शुरू किया.

यथार्थ में शिव जी के इष्ट नारायण है, और नारायण के इष्ट शिव जी है.

किन्तु आज इस क्षण भगवान शंकर भगवान की भूमिका में थे और भगवान नारायण भक्त की. भगवान शिव शंकर को एक ठिठोली सूझी. उन्होंने चुपचाप सहस्त्र कमलो में से एक कमल चुरा लिया. नारायण अपने इष्ट की भक्ति में लीन थे. उन्हें इस बारे कुछ भी पता न चला. जब नौ सौ निन्यानवे कमल चढ़ाने के बाद नारायण ने एक हजारवें कमल को चढ़ाने के लिए थाल में हाथ डाला तो देखा कमल का फूल नहीं था.

कमल पुष्प लाने के लिए न तो वे स्वयं उठ कर जा सकते थे न किसी को बोलकर मंगवा सकते थे. क्यों की शास्त्र मर्यादा है की भगवान की पूजा अथवा कोई अनुष्ठान करते समय न तो बीच में से उठा जा सकता है न ही किसी से बात की जा सकती है. वो चाहते तो अपनी माया से कमल के पुष्पों का ढेर थाल में प्रकट कर लेते किन्तु इस समय वो भगवान नहीं बल्कि अपने इष्ट के भक्त के रूप में थे. अतः वो अपनी शक्तियों का उपयोग अपनी भक्ति में नहीं करना चाहते थे.

नारायण ने सोचा लोग मुझे कमल नयन बोलते है. और तब नारायण ने अपनी एक आँख शरीर से निकालकार शिव जी को कमल पुष्प की तरह अर्पित कर दी. और अपना अनुष्ठान पूरा किया.

नारायण का इतना समर्पण देखकर शिव जी बहुत प्रसन्न हुए, उनके नेत्रों से प्रेमाश्रु निकल पड़े . इतना ही नहीं, नारायण के इस त्याग से शिव जी मन से ही नहीं बल्कि शरीर से भी पिघल गए. और चक्र रूप में परिणित हो गए. ये वही चक्र है जो नारायण हमेशा धारण किये रहते है. तब से नारायण वही चक्र अपने दाहिने हाथ की तर्जनी में धारण करते है. और इस तरह नारायण और शिव हमेशा एक दूसरे के साथ रहते है.

 

बाज और पेंगुइन

 

समुद्र के किनारे खड़े एक पेंगुइन ने जब ऊँचे आसमान में उड़ते बाज को देखा तो सोचने लगा-

“बाज भी क्या पक्षी है…कितने शान से खुले आकाश में घूमता है…और एक मैं हूँ जो चाहे जितना भी पंख फड़-फड़ा लूँ ज़मीन से एक इंच ऊपर भी नहीं उठ पाता…”

और ऐसा सोच कर वह कुछ उदास हो गया.

ठीक इसी पल बाज ने भी पेंगुइन को नीचे समुद्र में तैरते हुए देखा…और सोचने लगा, “ये पेंगुइन भी क्या कमाल का पक्षी है… जो धरती की सैर भी करता है और समुद्र की गहराइयों में गोता भी लगाता है… और यहाँ मैं…बस यूँही इधर-उधर उड़ता फिरता हूँ!”

जानते हैं इसके बाद क्या हुआ?

कुछ नहीं… बाज आकाश की ऊँचाइयों में खो गया और पेंगुइन समद्र की गहराइयों में… दोनों अपनी मन में आये नेगेटिव थॉट्स को भूल गए और बिना समय गँवाए भगवान की दी हुई उस ताकत को… उस शक्ति को प्रयोग करने लगे जिसके साथ वो पैदा हुए थे.

सोचिये अगर वो बाज और पेंगुइन बाज और पेंगुइन न होकर इंसान होते तो क्या होता?

बाज यही सोच-सोच कर परेशान होता कि वो पानी के अन्दर तैर नहीं सकता और पेंगुइन दिन-रात बस यही सोचता कि काश वो आकाश में उड़ पाता… और इस चक्कर में वे दोनों ही अपनी-अपनी existing strengths या skills सही ढंग से use नहीं कर पाते.

काश हम इंसान भी इन पक्षियों से सीख पाते कि ईश्वर ने हर किसी के अन्दर अलग-अलग गुण दिए हैं… हर किसी ने अलग-अलग क्षमताओं के साथ जन्म लिया है और हर इंसान किसी दुसरे इंसान से किसी ना किसी रूप में बेहतर है. But unfortunately, बहुत से लोगों का ध्यान अपनी competencies की बजाय दूसरों की achievements पर ही लगा रहता है, जिसे देखकर वे जलते हैं और अपनी energy गलत जगह लगाते हैं.

आप क्या करते हैं?

क्या आपको पता है कि आपके अन्दर सबसे अच्छी बात क्या है? क्या आपने कभी कोशिश की है उस strength को जानने और निखारने की जिसके साथ ईश्वर ने आपको भेजा है?

अगर नहीं की है तो करिए, उस gifted skill… उस strength को समझिये…अपनी ताकत को पहचानिए और उसे अपनी मेहनत से इतना निखारिये कि औरों की नज़र में आप एक achiever बन पाएं या नहीं लेकिन अपनी और उस ऊपर वाले की नज़र में आप एक champion ज़रूर बन जाएं!

ये लूँ कि वो? निर्णय लेने पर कहानी

 एक पांच साल का लड़का अपने पापा के साथ दिल्ली की एक सुपरमार्केट में घूमने गया. जब शॉपिंग करते-करते वे टॉयज सेक्शन के करीब पहुंचे तो वहन मौजूद रंग-बिरंगे खिलौनों को देखकर उसका जी मचल गया.

“पापा-पापा… मुझे ये कार लेना है…प्लीज न पापा”, लड़के ने पापा का हाथ खींचते हुए कहा.

पापा अपने बेटे को बहुत मानते थे और उसकी ये रिक्वेस्ट ठुकरा नहीं पाए.

“ठीक है बेटा तुम ये कार ले लो!”, पापा ने बेटे को पुचकारते हुए कहा.

बच्चे ने झट से कार उठा ली और ख़ुशी से झूमता हुआ आगे बढ़ने लगा. अभी वो दो-चार ही कदम चले होंगे कि बेटा बोला, ” पापा, मुझे ये कार नहीं चाहिए…मुझे तो वो रिमोट कण्ट्रोल हेलीकाप्टर चाहिए!”

यह सुनते ही पापा कुछ गुस्सा हो गए और बोले, ” हमारे पास अधिक टाइम नहीं है, मार्केट बंद होने वाला है… जल्दी से खिलौना लो और यहाँ से चलो!”

बेटे ने कार रखी और हेलीकाप्टर को अपने कब्जे में लेकर इतराने लगा.

पापा ने बेटे का हाथ पकड़ा और आगे बढ़ने लगे की तभी बेटा जोर से बोला, ” रुको-रुको-रुको पापा, वो देखो वो डायनासौर कितना खतरनाक लग रहा है… मैं वो ले लूँ क्या…बाताओ ना पापा… क्या करूँमैं… ये लूँ कि वो ?”

पापा ने बेटे को फ़ौरन गोद से उतार दिया और कहा, “जाओ…जल्दी से कोई खिलौना चूज कर लो और यहाँ से चलो!”

अगले कुछ पलों तक बेटा इधर-उधर दौड़ता रहा और यही सोचता रहा कि ये लूँ कि वो ? पर वो डिसाइड नहीं कर पाया कि उसे क्या लेना है?

तभी सुपरमार्केट की लाइट्स ऑफ होने लगीं और कस्टमर्स को बाहर निकलने के लिए कहा जाने लगा. पापा भी गुस्से में थे, उन्होंने बेटे को गोद में उठाया और बाहर निकल पड़े. बेचारा बेटा रोता रह गया, उसके मन में यही आ रहा था कि काश उसने कोई टॉय चूज कर लिया होता.

दोस्तों, हम सभी उस लड़के की तरह हैं और ये दुनिया खिलौनों की एक दूकान है, जिसमे हर तरह के ढेरों खिलौने मौजूद हैं… life आपको अलग-अलग स्टेज पे टॉयज की ढेर सारी choices देती है.

कभी आपको education, कभी job या business तो कभी relationship choose करने का option देती है, but unfortunately बहुत से लोग कोई ठोस निर्णय लेने की बजाय यही सोचते रहते हैं किये लूँ कि वो?

  • ये पढाई करूँ कि वो?
  • ये जॉब करूँ कि वो?
  • ये बिजनेस करूँ कि वो?
  • इससे शादी करूँ कि उससे?

और इसी चक्कर में कुछ करने का उनका prime time निकल जाता है और बाद में उन्हें उस बच्चे की तरह पछताना पड़ता है या sub-standard option choose करना पड़ता है.

इस बात को याद रखिये कि-

कोई भी निर्णय ना लेने से अच्छा है कोई ग़लत निर्णय लेना!

इसलिए जब life के important decisions लेने की बात हो तब indecisive मत बने रही…अपने निर्णय को लम्बे समय तक टालिये नहीं. अपने circumstances और best of knowledge को use करते हुए एक निर्णय लीजिये और ज़िन्दगी में आगे बढ़ जाइए

 

 

 

प्रभु यीशु के जन्म की कहानी

 लगभग 2000 साल पहले जब यहूदिया (Judea), जो अब इजराइल का हिस्सा है; में राजा हेरोदेस (King Herod) का शासन था, तब परमेश्वर ने गेब्रियल (Gabriel) नाम के एक फ़रिश्ते को नासरत (Nazareth) में रहने वाली एक युवा महिला के पास भेजा. उसका नाम मरियम (Mary) था और उसकी शादी युसुफ (Joseph) नाम के एक नवयुवक से होने वाली थी.

गेब्रियल ने मरियम से कहा, “ पीस बी विथ यू! परमेश्वर तुमसे खुश हैं और उन्होंने तुम्हे आशीर्वाद दिया है!”

मरियम फ़रिश्ते को देखकर आश्चर्यचकित थी, और सोच रही थी की फ़रिश्ते की बात का क्या मतलब है.

फ़रिश्ते ने कहा,

डरो मत , ईश्वर की तुम पर बड़ी कृपा है. तुम एक पवित्र आत्मा के माध्यम से गर्भवती होगी और एक बालक को जन्म दोगी और उसे तुम यीशु  (Jesus) कह कर पुकारोगी. वो परमेश्वर का अपना पुत्र होगा और उसका राज्य कभी ख़त्म नहीं होगा.

मरियम डरी हुई थी लेकिन उसको ईश्वर पर भरोसा था.

वही हो जो भगवान ने चाहा है.

मरियम ने फ़रिश्ते को जवाब दिया.

गेब्रियल ने मरियम से ये भी बताया कि उसकी कज़न एलिज़ाबेथ, जिसे सब लोग मानते थे कि अब वो माँ नहीं बन सकती, को भी एक पुत्र होगा जिसे ईश्वर ने यीशु का मार्ग तैयार करने के लिए चुना है.

इसके बाद मरियम ने अपने परिवार को अलविदा कहा और अपनी कज़न एलिज़ाबेथ और उसके पति जकर्याह (Zechariah) से मिलने गयी. एलिज़ाबेथ मरियम को देख कर बहुत खुश हो गयी. उसे पहले से पता था कि मरियम को ईश्वर के पुत्र की माँ बनने के लिए चुना गया है.

दरअसल, एक फ़रिश्ते ने पहले ही जकर्याह को बता दिया था कि भविष्य में एलिज़ाबेथ का पुत्र ही लोगों को यीशु के स्वागत के लिए तैयार करेगा और उसका नाम जॉन होगा. मरियम अगले तीन महीनो तक एलिज़ाबेथ के साथ रही और फिर वापस नासरत चली गयी.

जब युसुफ को पता चला कि उसकी होने वाले बीवी पहले से ही गर्भवती है तो उसे चिंता होने लगी. वह सोचने लगा कि क्या उसे इस शादी के लिए मना कर देना चाहिए. पर जल्द ही उसे भी एक फ़रिश्ते ने सपने में आकर यीशु के जन्म की बात बता दी और उसे शादी से ना डरने की सलाह दी. इसके बाद युसुफ ने मरियम से शादी कर ली.

उस समय, मरियम और युसुफ जहाँ रहते थे वो रोमन एम्पायर का हिस्सा था और ऑगस्टस (Augustus) उनका राजा था. राजा चाहता था कि उसके राज्य में जितने भी लोग हैं उनके नाम की एक लिस्ट तैयार की जाए ताकि हर किसी से टैक्स वसूला जा सके.

उसने आदेश दिया कि हर किसी को उस जगह पर लौटना होगा जहाँ का वह मूल निवासी है और अपना एक रजिस्टर में दर्ज कराना होगा.

इसके बाद मरियम और युसुफ नासरत से 70 मील की यात्रा करके बेतलेहेम (Bethlehem) पहुंचे, क्योंकि युसुफ वहीँ का मूल निवासी था.
यह यात्रा वैसे ही कठिन थी पर मरियम के गर्भवती होने के कारण यह और भी मुश्किल हो गयी थी.

जब वे बेतलेहेम पहुंचे तो नाम रजिस्टर करवाने के लिए वहां पहले से ही इतनी भीड़ थी कि उन्हें वहां रहने की कोई सही जगह ही नहीं मिली.
ठहरने की एकमात्र जगह जो से ढूंढ पाए वो थी जानवरों के बीच.

 

 

छोटे बच्चों के लिए नयी कहानियाँ

 दोस्तों, आज हम आपके साथ शेयर कर रहे हैं 6 छोटी-छोटी कहानियां जो बच्चों को बहुत पसंद आती हैं. आप इन कहानियों को अपने नन्हे-मुन्नों को सोते वक़्त सुना सकते हैं और इनसे मिलने वाली सीख के बारे में उनसे प्रश्न कर सकते हैं. तो आइये देखते हैं इन short kids stories in Hindi को.

Kids Stories in Hindi #1: साधू की झोपड़ी

एक गाँव के पास दो साधू अपनी अपनी झोपड़ियाँ बना कर रहते थे। दिन के वक्त वह दोनों गाँव जा कर भिक्षा मांगते और उसके बाद पूरा दिन पूजा-पाठ करते थे। एक दिन भारी तूफान और आँधी आने के कारण उनकी झोपड़ियाँ जगह-जगह से टूट-फूट गयीं और बहुत हद तक बर्बाद हो गयीं।

पहला साधू यह सब देख कर दुख के मारे विलाप करने लगा और बोला,

हे ईश्वर ! तूने मेरे साथ यह अनर्थ क्यों किया। क्या मेरी भक्ति, तप, जप और पूजा का यही पुरस्कार है ?

इस तरह वह पूरा दिन बड़बड़ाते हुए, अपना जी जलाते हुए वहीं एक पेड़ के नीचे बैठ गया।

तभी वहाँ दूसरा साधू आ पहुंचा। उसने अपनी बर्बाद जोपड़ी देखी तो वह मुस्कुराने लगा। और उसी वक्त ऊपरवाले का धन्यवाद करने लगा। उसने कहा कि-

ऐसे भीषण तूफान में तो पक्के मकान भी क्षतिग्रस्त हो जाते हैं पर तूने तो मेरी आधी झोपड़ी बचा ली। आज यह बात सिद्ध हो गयी की तू मेरी भक्ति से कितना प्रसन्न है। और तेरी मुझ पर कितनी बड़ी कृपा है।

सीख हर अच्छी बुरी घटना के दो पहलू होते हैं। बुरा निष्कर्ष निकालना, या अच्छा अर्थ निकालना यह आप के हाथ में है।

Kids Stories in Hindi #2: घास, बकरी और भेड़िया

एक बार की बात है एक मल्लाह  के पास घास का ढेर, एक बकरी और एक भेड़िया होता है। उसे इन तीनो को नदी के उस पार लेकर जाना होता है। पर नाव छोटी होने के कारण वह एक बार में किसी एक चीज को ही अपने साथ ले जा सकता है।

अब अगर वह अपने साथ भेड़िया को ले जाता तो बकरी घास खा जाती।

अगर वह घास को ले जाता तो भेड़िया बकरी खा जाता।

इस तरह वह परेशान हो उठा कि करें तो क्या करें? उसने कुछ देर सोचा और फिर उसके दिमाग में एक योजना आई।

सबसे पहले वह बकरी को ले कर उस पार गया। और वहाँ बकरी को छोड़ कर, वापस इस पार अकेला लौट आया। उसके बाद वह दूसरे सफर में भेड़िया को उस पार ले गया। और वहाँ खड़ी बकरी को अपने साथ वापस इस पार ले आया।

इस बार उसने बकरी को वहीँ बाँध दिया और घास का ढेर लेकर उस पार चला गया। और भेड़िया के पास उस ढेर को छोड़ कर अकेला इस पार लौट आया। और फिर अंतिम सफर में बकरी को अपने साथ ले कर उस पार चला गया।

सीख – मुसीबत चाहे कितनी भी बड़ी हो, खोजने पर समाधान मिल ही जाता है।

Kids Stories in Hindi #3: राजकुमारी का चाँद

एक समय की बात है। एक राजा की नन्ही लाडली बेटी आसमान से चांद तोड़ लाने की ज़िद कर बैठी। पर ज़िद पूरी ना होने के कारण वह खूब रोई और बुरी तरह बीमार पड़ गयी। वैद्य, हकीम सब उसे ठीक करने में नाकाम रहे।

अंत में पुत्री प्रेम में भावुक बने राजा ने यह घोषणा करा दी कि –

जो व्यक्ति उसकी बेटी के लिए चांद तोड़ कर लाएगा। उसे वह धनवान बना देंगे।

राजा के इस पागलपन को सुन कर दरबारी और नगरवासी उस पर हंसने लगा। लेकिन राजा को बस अपनी लाडली बेटी के ठीक होने से मतलब था, और वह इसके लिए कुछ भी करने को तैयार था।

नगर में रहने वाले एक बुद्धिमान व्यापारी से राजा का दुख देखा नहीं गया। वह तुरंत उन से मिलने आया। और बोला कि मैं आपकी बेटी के लिए चांद तोड़ लाऊँगा।

इतना बोल कर वह राजकुमारी के पास गया। उसने नन्ही राजकुमारी से कहा, “चांद कितना बड़ा है?”

राज कुमारी ने जवाब दिया, “मेरी उंगली की मोटाई जितना।”

चूँकि जब मै अपनी उंगली उसके आगे रख देती हूँ तो वह दिखता नहीं है।

फिर व्यापारी बोला, “चांद कितना ऊंचा है?”

तब राजकुमारी ने कहा, “शायद पेड़ जितना ऊंचा है। चूँकि, महल के बाहर लगे पेड़ के ऊपर ही तो वह दिखता है।”

फिर उसने पूछा चांद कैसा दिखता है?

तब राजकुमारी बोली, “वह तो सफ़ेद चमकीला चाँदी जैसा दिखता है।”

व्यापारी हंस कर बोल उठा। ठीक है, मै कल ही चांद तोड़ कर आप के लिए ला दूंगा। उसके बाद वह राजा को मिल कर अपनी युक्ति बता कर वहाँ से चला जाता है।

दूसरे दिन व्यापारी एक चांदी का छोटा सा चांद ले कर महल में आता है। और राजकुमारी से कहता है की मै आकाश से चांद तोड़ लाया हूँ। राजकुमारी चांद देख ख़ुशी से उछलने लगती है। और दिन भर उसके साथ खेलती है। अपनी ज़िद पूरी होने से उसकी तबीयत  भी ठीक हो जाती है।

पर बावजूद इसेक राजा को एक चिंता थी, उन्होंने कहा, “अगर राजकुमारी नें खिड़की के बाहर आसमान में चांद देख लिया तो वह फिर से उदास होगी।”

तब व्यापारी ने कहा कि उसके पास इसका भी समाधान है।  वह राजकुमारी के पास गया और खेल-खले में पूछा, “आपको पता है जब किसी बच्चे का दांत टूट जाता है तो क्या होता है?”

“हाँ, दूसरा दांत निकल आता है।”, राजकुमारी बोली।

“बिलकुल सही!”, “अच्छा जब कोई चाँद तोड़ लेता है तो पता है क्या होता है?”, व्यापारी ने पुचकारते हुए पूछा।

तब राजकुमारी मुस्कुरा कर बोली, “हाँ, वहाँ दूसरा चांद उग आता है।”

“अरे वाह! आपको तो सब पता है! चलिए आज नए चाँद को देखें!”, और ऐसा कह कर व्यापारी ने खिड़कियाँ खोल दीं।

राजकुमारी ने नया चाँद देखा और कहा, “मेरा चाँद तो उससे भी अच्छा है, और खेलने में व्यस्त हो गयी।

यह सब देखकर राजा प्रसन्न हो गया और व्यापारी को ढेर सारा इनाम दिया।

सीख –  कई बार बड़ी मुसीबतें भी छोटी सी युक्ति आज़मा कर टाली जा सकती हैं

 

 

 

Selfless बनिए selfish नहीं! | दो खरगोशों की कहानी

 एक बार की बात है, दो खरगोश थे. एक का नाम वाईजी था और दूसरे का नाम फूली. वाईजी अपने नाम के अनुसार वाइज यानी बुद्धिमान था और फूली अपने नाम के अनुरूप फूलिश यानी बेवकूफ था.

दोनों में गहरी दोस्ती थी. एक दिन उन्हें गाजर खाने का बड़ा मन किया और वे फ़ौरन इनकी खोज में निकल पड़े.

कुछ दूर चलने पर उन्हें अगल-बगल लगे दो गाजर दिखे. एक गाजर के ऊपर बड़े-बड़े पत्ते लगे थे जबकि दूसरे के पत्ते काफी छोटे थे.

फूली बिना देर किये बड़े पत्तों वाले गाजर के पास दौड़ा और उसे उखाड़ते हुए कहने लगा, “ये वाला मेरा है… ये वाला मेरा है…”

वाईजी उसकी इस हरकत को देख कर मुस्कुराया और बोला, “ठीक है भाई तुम उसे ले लो मैं ये बड़ा वाला ले लेता हूँ?”

और जब उसने गाजर उखाड़ा तो सचमुच वो फूली के गाजर से बड़ा था.

यह देख कर फूली को बड़ा आश्चर्य हुआ, वह बोला, “लेकिन मेरे गाजर के पत्ते तो काफी बड़े थे!”

“तुम गाजर के पत्ते देखकर उसकी साइज़ का अनुमान नहीं लगा सकते!”, वाईजी ने समझाया.

गाजर चट कर दोनों दोस्त आगे बढ़ गए.

थोड़ी दूरी पर उन्हें फिर से दो गाजर दिखाई दिए.

फूली बोला, “जाओ इस बार तुम पहले अपना गाजर चुन लो.”

वाईजी बारी-बारी से दोनों गाजरों के पास गया और सावधानी से उन्हें देखने लगा…. उसने उनके पत्ते छुए और कुछ देर सूंघने के बाद बड़े पत्ते वाला गाजर ही चुन लिया.

“ये क्या तुमने इस बार छोटा गाजर क्यों चुन लिया.” फूली बोला.

“मैंने छोटा नहीं बड़ा गाजर ही चुना है!” वाईजी ने जवाब दिया.

और सचमुच इस बार भी वाईजी का ही गाजर बड़ा था.

 

दड़बे की मुर्गी !

 

एक शिष्य अपने गुरु के पास पहुंचा और बोला, ” लोगों को खुश रहने के लिए क्या चाहिए?”

“तुम्हे क्या लगता है?”, गुरु ने शिष्य से खुद इसका उत्तर देने के लिए कहा

शिष्य एक क्षण के लिए सोचने लगा और बोला, “मुझे लगता है कि अगर किसी की मूलभूत आवश्यकताएं पूरी हो रही हों… खाना-पीना मिल जाए …रहने के लिए जगह हो…एक अच्छी सी नौकरी या कोई काम हो… सुरक्षा हो…तो वह खुश रहेगा.”

यह सुनकर गुरु कुछ नहीं बोले और शिष्य को अपने पीछे आने का इशारा करते हुए चलने लगे.

वह एक दरवाजे के पास जाकर रुके और बोले, “इस दरवाजे को खोलो…”

शिष्य ने दरवाजा खोला, सामने मुर्गी का दड़बा था. वहां मुर्गियों और चूजों का ढेर लगा हुआ था… वे सभी बड़े-बड़े पिंजड़ों में कैद थे….

“आप मुझे ये क्यों दिखा रहे हैं.” शिष्य ने आश्चर्य से पूछा.

इस पर गुरु शिष्य से ही प्रश्न-उत्तर करने लगे.

“क्या इन मुर्गियों को खाना मिलता है?'”

“हाँ.”

“क्या इनके पास रहने को घर है?”

“हाँ… कह सकते हैं.”

“क्या ये यहाँ कुत्ते-बिल्लियों से सुरक्षित हैं?”

“हम्म”

“क्या उनक पास कोई काम है?”

“हाँ, अंडा देना.”

“क्या वे खुश हैं?”

शिष्य मुर्गियों को करीब से देखने लगा. उसे नहीं पता था कि कैसे पता किया जाए कि कोई मुर्गी खुश है भी या नहीं…और क्या सचमुच कोई मुर्गी खुश हो सकती है?

वो ये सोच ही रहा था कि गुरूजी बोले, “मेरे साथ आओ.”

दोनों चलने लगे और कुछ देर बाद एक बड़े से मैदान के पास जा कर रुके.  मैदान में ढेर सारे मुर्गियां और चूजे थे… वे न किसी पिंजड़े में कैद थे और न उन्हें कोई दाना डालने वाला था… वे खुद ही ढूंढ-ढूंढ कर दाना चुग रहे थे और आपस में खेल-कूद रहे थे.

“क्या ये मुर्गियां खुश दिख रही हैं?” गुरु जी ने पूछा.

शिष्य को ये सवाल कुछ अटपटा लगा, वह सोचने लगा…यहाँ का माहौल अलग है…और ये मुर्गियां प्राकृतिक तरीके से रह रही हैं… खा-पी रही रही है…और ज्यादा स्वस्थ दिख रही हैं…और फिर वह दबी आवाज़ में बोला-

“शायद!”

“बिलकुल ये मुर्गियां खुश है, बेतुके मत बनो,” गुरु जी बोले, ” पहली जगह पर जो मुर्गियों हैं उनके पास वो सारी चीजें हैं जो तुमने खुश रहने के लिए ज़रूरी मानी थीं.

उनकी मूलभूत आवश्यकताएं… खाना-पीना, रहना सबकुछ है… करने के लिए काम भी है….सुरक्षा भी है… पर क्या वे खुश हैं?

वहीँ मैदानों में  घूम रही मुर्गियों को खुद अपना भोजन ढूंढना है… रहने का इंतजाम करना है… अपनी और अपने चूजों की सुरक्षा करनी है… पर फिर भी वे खुश हैं…”

गुरु जी गंभीर होते हुए बोले, ” हम सभी को एक चुनाव करना है, “या तो हम दड़बे की मुर्गियों की तरह एक पिंजड़े में रह कर जी सकते हैं एक ऐसा जीवन जहाँ हमारा कोई अस्तित्व नहीं होगा… या हम मैदान की उन मुर्गियों की तरह जोखिम उठा कर एक आज़ाद जीवन जी सकते हैं और अपने अन्दर समाहित अनन्त संभावनाओं को टटोल सकते हैं…तुमने खुश रहने के बारे में पूछा था न… तो यही मेरा जवाब है… सिर्फ सांस लेकर तुम खुश नहीं रह सकते… खुश रहने के लिए तुम्हारे अन्दर जीवन को सचमुच जीने की हिम्मत होनी चाहिए…. इसलिए खुश रहना है तो दड़बे की मुर्गी मत बनो!”

 

 

शनिवार, 26 मार्च 2022

क्या आप सही रास्ते पर हैं?

 बहुत समय पहले की बात है, घास के मैदानों से भरा एक जंगल था जिससे भैंसों का एक झुण्ड गुजर रहा था. झुंड अभी कुछ ही आगे बढ़ा था कि अचानक शेरों ने उनपर हमला कर दिया.

बाकी भैंसे तो बच गयीं पर एक बेचारी भैंस झुण्ड से अलग हो गयी. शेर उसका पीछा करने लगे और वो घबराहट के मारे इधर-उधर भागने लगी… कभी दाएं…. कभी बाएँ…कभी ढलान पर … तो कभी चढ़ाई पर…

भैंस इतनी डरी हुई थी कि उसने पलट कर देखा तक नहीं कि शेर कब के वापस लौट गए हैं…उसे तो बस अपने जान की फ़िक्र थी! काफी देर तक भागने के बाद जब वो रुकी तब उसे एहसास हुआ कि वह जंगल से बाहर निकल एक गाँव में आ चुकी है.

अगले दिन जंगली कुत्तों का झुण्ड घास के बीच मिल रही उस भैंस की गंध का पीछा करते-करते उसी रास्ते पर चल पड़ा.
अगले दिन भेडें भी घास के बीच बने रास्ते को देखकर उसी पर चल पड़ी..

ऐसे करते-करते बहुत से जानवर उसी रास्ते पर चलने लगे… और एक दिन जब जंगल में शिकार कर रहे नवयुवकों ने वो रास्ता देखा तो वो भी उसी पर चल पड़े और गाँव पहुँच कर बहुत खुश हुए कि उन्होंने जंगल से निकलने का एक सरल रास्ता खोज लिया है.

फिर क्या था गाँव वाले भी उसे रास्ते जंगल आने जाने लगे… धीरे-धीरे उस रास्ते पर बैल गाड़ियाँ चलने लगीं जिसपर किसान लकड़ियाँ काट कर गाँव ले जाते और फिर उसे शहर में बेच देते.

भैंस द्वारा बनाया गया वो रास्ता आज उस इलाके का मुख्य मार्ग बन चुका था…और बेहद बेढंगा…ऊँचा-नीचा और कठिन होने के बावजूद सब उसी रस्ते पर ख़ुशी-ख़ुशी चल रहे थे.

पर वो जंगल गाँव वालों की ख़ुशी देखकर मुस्कुरा रहा था… क्योंकि वो जानता था जंगल से गाँव जाने का इससे कठिन और कोई रास्ता हो ही नहीं सकता था…. आज एक भैंस की वजह से हज़ारों लोग 30 मिनट के रास्ते को तीन घंटे में बड़ी कठिनाई के साथ पार कर रहे थे…पर फिर भी वे खुश थे.

दोस्तों, आप किस रास्ते पर हैं ? क्या ये आपका सोचा-समझा रास्ता है या कोई illogical path है जिसपर हज़ारों लोग चल रहे हैं और इस वजह से वह logical लग रहा है?

मत स्वीकार करिए उस रास्ते को जो आपने सिर्फ इस लिए चुना है क्योंकि सब उसे ही चुनते हैं…एक बार ठहरिये और समझने की कोशिश करिए…कहीं आप भी 30 मिनट का रास्ता 3 घंटे में तो नहीं cover कर रहे हैं… पूछिए खुद से —

क्या आप सही रास्ते पर हैं?