गुरुवार, 16 दिसंबर 2021

भगवान् महावीर से जुड़ी 3 बेहद रोचक कहानियां

 

ज्ञान की खोज में महावीर नंगे पाँव एक स्थान से दूसरे स्थान विचरण करते हुए घनघोर तपस्या कर रहे थे. एक बार वह श्वेताम्बी नगरी जा रहे थे जिसका रास्ता एक घने जंगल से होकर गुजरता था, जिसमे चंडकौशिक नाम का एक भयंकर सर्प रहता था.उस सर्प के बारे में प्रसिद्द था कि वह सदा क्रोध में रहता था और उसके देखने मात्र से ही पक्षी, जानवर या इंसान मृत हो जाते थे.

जब महावीर उस जंगल की ओर बढे तो ग्रामीणों ने उन्हें चंडकौशिक के बारे में बताया और उधर न जाने का निवेदन किया.

पर अहिंसा के मार्ग पर चलने वाले महावीर तो भयरहित थे. उन्हें किसी के प्रति नफरत नहीं थी, और वे डर और नफरत को स्वयम के प्रति हिंसा मानते थे. उनके चेहरे पर एक तेज था और वे साक्षात करुणा की मूर्ती थे.

उन्होंने गाँव वालों को समझाया कि वे भयभीत न हों और जंगल में प्रवेश कर गए.

कुछ देर चलने के बाद जंगल की हरियाली क्षीण पड़ने लगी और भूमि बंजर नज़र आने लगी. वहां के पेड़ पौधे मृत हो चुके थे और जीवन का नामोनिशान नहीं था.

महावीर समझ गए कि वह चंडकौशिक के इलाके में आ चुके हैं. वे वहीँ रुक गए और ध्यान की मुद्रा में बैठ गए. महावीर के ह्रदय से प्रत्येक जीव के कल्याण के लिए शांति और करुणा बह रही थी.

महावीर की आहट सुन चंडकौशिक फौरन सतर्क हो गया और अपने बिल से बाहर निकला. महावीर को देखते ही वह क्रोध से लाल हो गया

और मन ही मन सोचा, “इस तुच्छ मनुष्य की यहाँ तक आने की हिम्मत कैसे हुई?”

वह महावीर की ओर अपना फेन ऊँचा कर फुंफकारने लगा…हिस्स…हिस्स..

पर महावीर तो शांतचित्त हो अपनी ध्यान मुद्रा में बैठे रहे और जरा भी विचलित नहीं हुए.

यह देख चंडकौशिक और भी क्रोधित हो गया और उनकी ओर बढ़ते हुए अपना फन हिलाने लगा.

महावीर अभी भी शांति से बैठे रहे और न भागने की कोशिश की ना भयभीत हुए. सर्प का क्रोध बढ़ता जा रहा था, उसने फ़ौरन अपना ज़हर महावीर के ऊपर उड़ेल दिया.

पर ये क्या महवीर तो अभी भी ध्यानमग्न थे, उस घटक विष का उनपर कोई असर नही हो रहा था.

चंडकौशिक को विश्वास नहीं हो रहा था कि कोई मनुष्य उसके विष से बच सकता है, वह बिजली की गति से आगे बढ़ा और महवीर के अंगूठे में अपने दांत गड़ा दिए.

पर ये क्या महवीर अभी भी ध्यानमग्न थे और उनके अंगूठे से खून की जगह दूध बह रहा था.

अब महावीर ने अपनी आँखें खोली. वह शांत थे उनके मुख पर न कोई भय था ना ही क्रोध. वे चंडकौशिक की आँखों में देखते हुए बोले-

उठो!उठो! चंडकौशिक सोचो तुम क्या कर रहे हो!

उनके वाणी में प्रेम और स्नेह था.

चंडकौशिक ने इससे पहले कभी इतना निर्भय और वात्सल्यपूर्ण प्राणी नहीं देखा था, वह शांत हो गया. अचानक ही उसे अपने पिछले जन्म याद आने लगे, अपने क्रोध और अभिमान के कारण आज वह जिस स्थिति में पहुँच गया था वह उसे ज्ञात हो गया. अचानक आये इस ज्ञान से उसका ह्रदय परिवर्तन हो गया वह प्रेम और अहिंसा का पुजारी बन गया.

महावीर के जाने के बाद उसने चुपचाप अपना सिर बिल के अन्दर कर लिया जबकि उसका बाकी का शरीर बहार ही था.

धीरे-धीरे यह बात सभी को ज्ञात हो गयी कि चंडकौशिक बदल गया है. बहुत से लोग उसे नाग-देवता मान कर दूध, घी इत्यादि से पूजने लगे तो कई लोग जिन्होंने उसके विष के कारण अपने प्रियजन खोये थे उस पर ईंट-पत्थर फेंकने लगे.

चंडकौशिक न क्रोधित हुआ न किसी का विरोध नहीं किया और लुहू-लुहान उसी अवस्था में पड़ा रहा. रक्त, दूध, मिष्टान आदि कि वजह से जल्द ही वहां चींटियों के झुण्ड के झुण्ड आ पहुंचे. चींटियों के काटने के बावजूद वह अपने स्थान से नहीं हिला कि कहीं कोई चींटी दब कर मर ना जाए.

अपने इस आत्म संयम और भावनाओं पर नियंत्रण के कारण उसके कई पाप कर्म नष्ट हो गए और मृत्युपरांत वह स्वर्ग को प्राप्त हुआ.

 

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