नंदन वन में जग्गा और राका नाम के दो तेंदुए रहते थे. वहां हिरनों की कोई कमी नहीं थी, दोनों अपने-अपने इलाकों में आराम से इनका शिकार करते और महीने के अंत में जंगल के बीचो-बीच स्थित एक टीले पर मिलकर साथ में कुछ समय बिताते.
ऐसी ही एक मुलाक़ात में जग्गा बोला, “मैं सोच रहा हूँ कि अब मैं सुअर का शिकार करना भी सीख लूँ.”
इस पर राका बोला. “ऐसा करने की क्या ज़रुरत ? इस जंगल में हज़ारों हिरन हैं और हम बड़ी आसानी से उनका शिकार कर लेते हैं…फिर क्यों बेकार में नया शिकार सीखने में अपनी एनर्जी बर्बाद की जाए?”
“तुम्हारी बात सही है कि आज यहाँ बहुत से हिरन हैं… पर कल किसने देखा है? क्या पता एक दिन इनकी संख्या कम हो जाए…” जग्गा ने समझाया.
यह सुन कर राका जोर से हंस पड़ा और बोला, “जो तुम्हारे जी में आये करो मैं बेकार की चीजों में अपना समय बर्बाद नहीं करूँगा.”
इसके बाद दोनों तेंदुए अपने-अपने रास्ते चल दिए और एक महीने बाद वापस उसी टीले पे मिले.
“पता है इस महीने मैंने बड़े ध्यान से सुअरों की गतिविधियाँ देखीं… इन्हें पकड़ना इतना आसान भी नही होता है… कई प्रयासों के बाद ही मैं पहली बार एक सुअर का शिकार कर पाया… और पूरे महीने इसी की प्रैक्टिस करता रहा. और अब इस महीने मैं बंदरों का शिकार करना सीखूंगा.” जग्गा उत्साहित होते हुए बोला.
पर इन सब बातों का राका पर कोई असर नहीं पड़ा उसने वही बात दोहरा दी, “जो तुम्हारे जी में आये करो मैं बेकार की चीजों में अपना समय बर्बाद नहीं करूँगा.”
अगले महीने जग्गा बन्दर कर शिकार करना सीख चुका था.
समय बीतता गया और साल का अंत आते-आते जग्गा ने सुअर, बन्दर, ज़ेब्रा , भेंड़, नीलगाय समेत कई जानवरों का शिकार करने में महारथ हासिल कर लिया
और दूसरी तरफ राका अभी भी बस हिरनों का शिकार करना ही जानता था.
अगले कुछ सालों तक सबकुछ सामान्य रहा पर उसके बाद नंदन वन में भयंकर सूखा पड़ा. तालाब के तालाब सूख गए, कभी घासों से लहलहाते मैदान आज बंजर हो गए…पेड़-पौधों से पत्तियां गायब सी हो गयीं… भोजन और पानी की कमी के कारण बहुत से जानवर मर गए. हर तरफ हाहाकार मच गया.
बचे हुए मुट्ठीभर हिरनों को मारने के लिए शेर, बाघ और चीता जैसे जानवर आपस में टकराने लगे.
ऐसे में जग्गा और राका एक बार फिर से टीले पर मिले. साफ़ पता चल रहा था कि इस त्रासदी के बावजूद जग्गा की सेहत पर कोई ख़ास फरक नहीं पड़ा था जबकि राका की हालत बुरी थी… पर्याप्त भोजन न मिलने के कारण वह कमजोर हो गया था… और इस हालत में कोई नया शिकार करना सीखना भी उसके बस की बात नहीं थी.
राका आज मन ही मन पछता रहा था उसके मन में उसके ही शब्द…“जो तुम्हारे जी में आये करो मैं बेकार की चीजों में अपना समय बर्बाद नहीं करूँगा.” गूँज रहे थे.
दोनों दोस्त विदा हुए और इसके बाद राका कभी नहीं दिखाई दिया.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें